गर्भ संस्कार - भाग 21 - एक्टिविटीज–20 Praveen Kumrawat द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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गर्भ संस्कार - भाग 21 - एक्टिविटीज–20

प्रार्थना:
हे बुद्धिदाता श्रीगणेश, मुझे सदा सद्बुद्धि प्रदान कीजिए। हे विघ्नहर्ता, अपने पाश से मेरे सर्व ओर सुरक्षा कवच निर्मित कीजिए और मेरे जीवन में आने वाले सर्व संकटों का निवारण कीजिए।

हे मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम, मेरा जीवन भी आप ही की भांति आदर्श बने, इस हेतु आप ही मुझ पर कृपा कीजिए।

हे बजरंग बली, आपकी कृपा से निर्भयता, अखंड सावधानता, दास्यभाव आदि आपके गुण मुझमें भी आने दीजिए।

हे महादेव, आपकी ही भांति मुझमें भी वैराग्यभाव निर्मित होने दीजिए।

हे जगदंबे माता, मां की ममता देकर आप मुझे संभालिए। आपकी कृपादृष्टि मुझ पर निरंतर बनी रहे और आप मेरी सदैव रक्षा कीजिए।

मंत्र:
ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये। वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥

अर्थः हे सिद्धि विनायक! आप हमें सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करें।

गर्भ संवाद
“मिट्टी की तरह सृजनशील बनो, जो हर बीज को अपने भीतर समाहित करके उसे अंकुरित होने का अवसर देती है। मिट्टी कभी भी किसी बीज को अपनी सीमाओं में बंद नहीं करती, बल्कि उसे अपनी पूरी क्षमता तक बढ़ने का मौका देती है। तुम्हारे भीतर भी वही शक्ति है कि तुम हर अवसर को अपने जीवन में बढ़ने के लिए अपनाओ और हर स्थिति में सृजनशीलता दिखाओ। जैसे मिट्टी बिना किसी भेदभाव के सभी पौधों को पोषण देती है, वैसे ही तुम भी बिना किसी भेदभाव के अपनी ऊर्जा को दूसरों के साथ बांट सकते हो।”

पहेली:
खुदा की खेती का देख यह हाल, 
ना कोई पत्ता ना कोई डाल 
ना बीज डाला ना जोता हल 
नहीं लगता उसमे कोई फल 
पर जब काटे उसको भाई 
होती पहले से दूनी सवाई।

कहानी: करवा चौथ की प्रतीक्षा
सुमित्रा और उसके पति रवि का रिश्ता प्यार और समझदारी का था। दोनों एक-दूसरे की बहुत परवाह करते थे। हर साल सुमित्रा करवा चौथ का व्रत रखती और अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती।

इस बार करवा चौथ पर, रवि किसी काम से शहर गया हुआ था। सुमित्रा ने फिर भी व्रत रखा और चांद का इंतजार करने लगी। वह अपने पति से फोन पर बात करते हुए बोली, “रवि, मुझे इस बार तुम्हारे साथ व्रत तोड़ने का मौका नहीं मिलेगा। लेकिन मैं तुम्हारी सलामती के लिए हमेशा प्रार्थना करूंगी।”

शाम को, गांव के सभी महिलाएं करवा चौथ की पूजा के लिए इकट्ठा हुईं। सभी के पति उनके साथ थे, लेकिन सुमित्रा अकेली थी। पूजा के बाद, चांद निकलने का समय आया।

तभी रवि ने एक सरप्राइज दिया। वह अचानक गांव लौट आया और सुमित्रा को पूजा स्थल पर बुलाया। सुमित्रा की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उसने कहा, “तुमने मेरा करवा चौथ खास बना दिया। मुझे नहीं पता था कि तुम आज आओगे।”

रवि ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम हर साल मेरे लिए इतना करती हो। इस बार मैं तुम्हारे लिए कुछ खास करना चाहता था।”

दोनों ने मिलकर चांद को देखकर व्रत तोड़ा और एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार और समर्पण को और मजबूत किया। गांव की बाकी महिलाओं ने भी इस प्यार और परवाह को देखकर तारीफ की।

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि करवा चौथ केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते में प्यार और समर्पण को गहराई से समझने का एक तरीका है। यह त्योहार रिश्तों में विश्वास और परवाह का प्रतीक है।

पहेली का उत्तर : सिर के बाल
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गीता सार 
आप चिन्ता करते हो तो व्यर्थ है।
मौत से जो डरते हो तो व्यर्थ है।।
आत्मा तो चिर अमर है जान लो।
तथ्य यह जीवन का सच्चा अर्थ है।।

भूतकाल जो गया अच्छा गया। 
वर्तमान देख लो चलता भया।। 
भविष्य की चिन्ता सताती है तुम्हें? 
है विधाता सारी रचना रच गया।।

नयन गीले हैं तुम्हारा क्या गया? 
साथ क्या लाये जो तुमने खो दिया? 
किस लिए पछता रहे हो तुम कहो?
जो लिया तुमने यहीं से है लिया।।

नंगे तन पैदा हुए थे खाली हाथ।
कर्म रहता है सदा मानव के साथ।। 
सम्पन्नता पर मग्न तुम होते रहो।
एक दिन तुम भी चलोगे खाली हाथ।।

धारणा मन में बसा लो बस यही। 
छोटा-बड़ा, अपना-पराया है नहीं।। 
देख लेना मन की आँखों से जरा। 
भूमि-धन-परिवार संग जाता नहीं।।

तन का क्या अभिमान करना बावरे। 
कब निकल जाये यह तेरा प्राण रे।। 
पाँच तत्वों से बना यह तन तेरा। 
होगा निश्चय यह यहाँ निष्प्राण रे।।

स्वयं को भगवान के अर्पण करो। 
निज को अच्छे कर्म से तर्पण करो।। 
शोक से, भय से रहोगे मुक्त तुम।
सर्वस्व ‘रत्नम्’ ईश को समपर्ण करो।

मंत्र:
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। 
करि कल्पित मन सुमति सलाई, राम प्रकट करहु मन भलाई॥

अर्थ: जिसकी जैसी भावना होती है, उसे प्रभु की मूरत भी वैसी ही प्रतीत होती है। यदि मन में शुभ विचार और भलाई है, तो भगवान राम उसी रूप में प्रकट होते हैं।

गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे! चाँद की चमक हमें सिखाती है कि रात का अंधकार भी उम्मीद और रोशनी लेकर आता है। जब दुनिया अंधेरे में डूब जाती है, तो चाँद अपनी शांति और नर्म रोशनी से रात को रोशन करता है। तुम भी चाँद की तरह हर कठिनाई के बावजूद शांत और धैर्यवान रहो। जब भी तुम्हारे जीवन में अंधेरे पल आएं, तो नई उम्मीद और सकारात्मकता के साथ चमको, जैसे चाँद रात में चमकता है।”

पहेली:
जंगल में मायका, गाँव में ससुराल, 
गाँव आई दुल्हन उठ चला बवाल।

कहानी: सपनों का सहारा
किसी छोटे से शहर में निधि नाम की एक महिला रहती थी। उसका बेटा आरव था, और वह अपने बेटे के सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करती थी। निधि के पति का देहांत तब हो गया था, जब आरव सिर्फ दस साल का था। इसके बाद, निधि ने अपने बेटे को बेहतर भविष्य देने के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया।

आरव का सपना था कि वह एक बड़ा पायलट बने। वह अक्सर आसमान की ओर देखकर कहता, “मां, एक दिन मैं वहां उडूंगा। मैं पूरी दुनिया देखना चाहता हूं और अपने देश का नाम रोशन करना चाहता हूं।”

निधि ने अपने बेटे की आंखों में उसके सपनों की चमक देखी थी। वह जानती थी कि पायलट बनना आसान नहीं है, लेकिन उसने ठान लिया था कि वह किसी भी कीमत पर आरव का सपना पूरा करेगी।

निधि ने सिलाई का काम शुरू किया। वह दिन-रात मेहनत करती, लेकिन कभी थकान का एहसास नहीं होने देती। वह खुद को कहती, “मेरे बेटे का सपना मेरी सबसे बड़ी ताकत है। जब तक वह अपने सपनों को जी नहीं लेता, तब तक मैं रुकूंगी नहीं।”

आरव पढ़ाई में बहुत होशियार था। उसने बारहवीं की परीक्षा में पूरे राज्य में पहला स्थान हासिल किया। उसे पायलट ट्रेनिंग के लिए एक प्रतिष्ठित अकादमी में दाखिला मिल गया। लेकिन ट्रेनिंग की फीस इतनी ज्यादा थी कि निधि के पास पैसे नहीं थे।

निधि ने अपने गहने बेच दिए और अपनी जमा-पूंजी लगाकर फीस का इंतजाम किया। उसने आरव से कहा, “बेटा, यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी पूंजी है। इसे संभालकर रखना और अपने सपनों को पूरा करना।”

अकादमी में, आरव ने कड़ी मेहनत की। ट्रेनिंग बहुत कठिन थी, लेकिन हर बार जब वह हिम्मत हारने लगता, तो उसे अपनी मां की मेहनत और त्याग की याद आती। वह खुद से कहता, “मां ने मेरे लिए इतनी कुर्बानी दी है। मैं किसी भी हालत में उनका सपना पूरा करूंगा।”

सालों की मेहनत और संघर्ष के बाद, आरव एक पायलट बन गया। जब उसने पहली बार विमान उड़ाया, तो उसकी आंखों में आंसू थे। उसने तुरंत अपनी मां को फोन किया और कहा, “मां, आज मैं आसमान में हूं। यह सब आपकी वजह से संभव हुआ है।”

कुछ महीने बाद, आरव ने अपनी पहली तनख्वाह से अपनी मां के लिए एक घर खरीदा। उसने कहा, “मां, यह घर आपका है। आपने मुझे उड़ने के लिए पंख दिए। यह आपकी मेहनत और त्याग का परिणाम है।”

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि एक मां अपने बच्चों के सपनों का सबसे बड़ा सहारा होती है। उसका त्याग, मेहनत और अटूट विश्वास बच्चों को अपने सपनों को साकार करने की ताकत देता है।

पहेली का उत्तर : झाड़ू
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प्रार्थना:
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला 
या शुभ्रवस्त्रावृता। 
या वीणावरदण्डमण्डितकरा 
या श्वेतपद्मासना॥ 
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥

ॐ सहनाववतु। 
सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। 
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।

असतो मा सदगमय॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय॥
मृत्योर्मामृतम् गमय॥ 
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

मंत्र:
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्। 
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥

अर्थः जो आत्मा को मारने वाला समझता है और जो इसे मरा हुआ मानता है,
दोनों ही अज्ञानी हैं। आत्मा न किसी को मारती है और न ही मारी जाती है।

गर्भ संवाद:
“बारिश का पानी धरती को ताजगी और नयापन देता है। जैसे बारिश हर चीज को साफ करके ताजगी का अहसास कराती है, वैसे ही तुम्हें भी जीवन में हर चुनौती से नयापन और ताजगी महसूस करनी चाहिए। जब कोई संकट आए, तो उसे एक अवसर के रूप में देखो, जो तुम्हारे जीवन को और भी मजबूत बनाए। बारिश हमें यह भी सिखाती है कि कुछ पुराना छूटने से नया आता है और यही बदलाव हमें सशक्त बनाता है।”

पहेली:
ऐसा क्या है? जिसे हम छू नहीं सकते पर देख सकते हैं।

कहानी: मां और बच्चे का अनोखा रिश्ता
किसी छोटे से गांव में शकुंतला नाम की महिला अपने बेटे आदित्य के साथ रहती थी। उनका रिश्ता बहुत अनोखा था। शकुंतला न केवल आदित्य की मां थी, बल्कि उसकी सबसे अच्छी दोस्त भी थी।

आदित्य बचपन से ही एक कलाकार बनना चाहता था। उसे चित्रकारी का बहुत शौक था। वह खाली समय में पेंसिल और कागज लेकर घंटों बैठकर पेंटिंग करता था। उसकी मां हमेशा उसकी तस्वीरों की तारीफ करती और कहती, “बेटा, तुम्हारे हाथों में जादू है। एक दिन तुम एक महान कलाकार बनोगे।”

लेकिन आदित्य का यह सपना पूरा करना आसान नहीं था। गांव में कला को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था। लोग शकुंतला से कहते, “तुम्हारे बेटे को इस बेकार काम में मत लगाओ। इसे कुछ ऐसा सिखाओ, जिससे यह अपना घर चला सके।”

लेकिन शकुंतला ने लोगों की बातों को नजरअंदाज किया। उसने आदित्य से कहा, “बेटा, लोग क्या कहते हैं, इसकी परवाह मत करो। अपने दिल की सुनो। अगर तुम मेहनत करोगे, तो तुम्हारे सपने जरूर पूरे होंगे।”

आदित्य ने अपनी मां की बात को दिल से लगा लिया।

उसने दिन-रात मेहनत की। वह नई-नई तकनीकें सीखने के लिए किताबें पढ़ता और अपनी कला में निखार लाने की कोशिश करता।

एक दिन, गांव में एक पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। आदित्य ने इसमें भाग लिया और अपनी सबसे अच्छी पेंटिंग बनाई। उसकी पेंटिंग ने सभी का दिल जीत लिया और उसने पहला पुरस्कार जीता।

इसके बाद, आदित्य ने शहर जाने का फैसला किया, जहां उसे एक कला विद्यालय में दाखिला मिला। लेकिन उसकी मां के पास उसकी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए पैसे नहीं थे।

शकुंतला ने अपने खेत को गिरवी रख दिया और आदित्य को शहर भेजा। उसने कहा, “मेरे बेटे, मेरे लिए सबसे जरूरी तुम्हारा सपना है। मैं हर कीमत पर तुम्हें एक कलाकार बनते देखना चाहती हूं।”

शहर में, आदित्य ने अपनी मां की उम्मीदों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की। उसकी पेंटिंग्स ने लोगों का ध्यान खींचा और धीरे-धीरे उसे पहचान मिलने लगी।

सालों बाद, आदित्य की पहली प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। उसने अपनी सबसे खास पेंटिंग को अपनी मां को समर्पित किया। प्रदर्शनी में उसकी मां की तस्वीर थी, जिसमें वह आदित्य को पेंटिंग सिखा रही थी।

शकुंतला ने अपनी आंखों में आंसू लिए कहा, “बेटा, आज मेरा सपना पूरा हो गया। तुम्हारी मेहनत और हमारे रिश्ते ने यह दिन दिखाया है।”

शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मां और बच्चे का रिश्ता सबसे अनमोल होता है। मां का विश्वास और प्रेरणा हर बच्चे को अपने सपनों को पूरा करने का हौसला देता है।

पहेली का उत्तर : स्वप्न (सपना)
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प्रार्थना:
हे न्यायाधीश प्रभु! आप अपनी कृपा से हमको काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, आलस्य, प्रमाद, ईर्ष्या, द्वेष, विषय-तृष्णा, निष्ठुरता आदि दुर्गुणों से मुक्तकर श्रेष्ठ कार्य में ही स्थिर करें। हम अतिदिन होकर आपसे यही मांगते हैं कि हम आप और आपकी आज्ञा से भिन्न पदार्थ में कभी प्रीति ना करें।

मंत्र:
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। 
तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्॥

अर्थः योग चित्त की वृत्तियों (विचारों) को नियंत्रित करने का साधन है। जब मन शांत होता है, तब आत्मा अपने स्वरूप में स्थित होती है।

गर्भ संवाद
“नदी में आने वाली हर छोटी-सी लहर जीवन की तरह होती है। नदी कभी भी किसी रुकावट से नहीं डरती, बल्कि वह अपने रास्ते को ढूंढ़ लेती है। तुम भी जीवन में आने वाली हर समस्या को अपनी यात्रा का हिस्सा मानो और इसे स्वीकार करो। नदी की तरह तुम्हें हर परिस्थिति में बहते रहना चाहिए, क्योंकि हर कठिनाई को पार करने के बाद सफलता की लहर आना तय है।”

पहेली:
पास में उड़ता-उड़ता आए, क्षण भर देखू फिर छिप जाए। 
बिन आग के जलता जाए सबके मन को वह लुभाए।

कहानी: दोस्ती का अर्थ
एक छोटे से गांव में अमित और राहुल नाम के दो लड़के रहते थे। दोनों बचपन से ही सबसे अच्छे दोस्त थे। वे एक-दूसरे के साथ हर खुशी और हर गम बांटते थे। गांव के लोग उनकी दोस्ती की मिसाल देते थे।

एक दिन गांव में एक नया लड़का, समीर, आया। वह बहुत चालाक और चालबाज था। उसने अमित और राहुल की दोस्ती को देखकर सोचा, “अगर मैं इनकी दोस्ती में दरार डाल दूं, तो मैं गांव में सबसे ऊपर हो जाऊंगा।” समीर ने अपनी योजना बनानी शुरू कर दी।

एक दिन, समीर ने अमित के पास जाकर कहा, “अमित, क्या तुम्हें पता है कि राहुल ने तुम्हारे बारे में बुरा कहा था?” अमित को पहले तो विश्वास नहीं हुआ, लेकिन समीर ने अपनी बातों से उसे यकीन दिला दिया। फिर समीर ने राहुल के पास जाकर वही बात दोहरा दी। धीरे-धीरे, अमित और राहुल के बीच गलतफहमियां बढ़ने लगीं।

अमित और राहुल ने एक-दूसरे से बात करना बंद कर दिया। उनकी दोस्ती में दरार पड़ गई। समीर अपनी योजना में सफल हो गया था।

कुछ दिनों बाद, गांव में एक मेला लगा। मेले में एक भालू ने हमला कर दिया। सभी लोग इधर-उधर भागने लगे। उसी समय, अमित और राहुल दोनों एक ही जगह पर फंस गए। भालू उनके पास आने लगा।

अमित ने राहुल से कहा, “हमारी लड़ाई और गलतफहमियां अब कोई मायने नहीं रखतीं। हमें मिलकर इस स्थिति का सामना करना होगा।” राहुल ने सहमति जताई। दोनों ने मिलकर भालू को भगाने की योजना बनाई। उनकी सूझबूझ और साहस ने उन्हें उस खतरनाक स्थिति से बचा लिया।

भालू के जाने के बाद, अमित और राहुल ने एक-दूसरे से माफी मांगी और अपनी दोस्ती को फिर से मजबूत किया। उन्हें समझ आ गया कि उनकी दोस्ती को कोई भी तोड़ नहीं सकता, जब तक वे खुद उसे टूटने न दें।

शिक्षा:
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची दोस्ती में गलतफहमियों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। सच्चे दोस्त हमेशा एक-दूसरे का साथ देते हैं और किसी भी परिस्थिति में साथ खड़े रहते हैं। दोस्ती का अर्थ एक-दूसरे पर विश्वास करना और कठिन समय में साथ निभाना है।

पहेली का उत्तर : जुगनू
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प्रार्थना:
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

भावार्थ– जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की है और जो श्वेत वस्त्र धारण करती है, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली सरस्वती हमारी रक्षा करें ॥1॥

ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु। सहवीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥ 
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

भावार्थ– ईश्वर हम दोनों (गुरू एवं शिष्य) की रक्षा करें! हम दोनों का पोषण करें! हम दोनों पूर्ण शक्ति के साथ कार्यरत रहें! हम तेजस्वी विद्या को प्राप्त करें! हम कभी आपस में द्वेष न करें ! सर्वत्र शांति रहे!

ॐ असतो मा सद्गमय।।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।।
मृत्योर्मामृतं गमय।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

भावार्थ– हे ईश्वर! हमको असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता के भाव की ओर ले चलो।

मंत्र:
धार्मिको ह्यधर्मेण, दुष्टो धर्मेण पालयेत्। 
अत्यन्तं धर्मपालो हि, परित्राणाय कल्पते॥

अर्थः धार्मिक व्यक्ति को अधर्म से प्रभावित नहीं होना चाहिए। धर्म का पालन करने वाले का उद्देश्य सदैव दूसरों की रक्षा करना होता है।

गर्भ संवाद:
“आकाश का कोई अंत नहीं है, और उसकी तरह तुम्हारे विचार भी सीमाहीन होने चाहिए। जब तुम अपने विचारों को खुले और विस्तृत रखते हो, तो तुम न केवल खुद को, बल्कि दूसरों को भी नई दिशा दे सकते हो। आकाश हमें सिखाता है कि हमें अपने विचारों और कार्यों में भी कभी कोई सीमा नहीं रखनी चाहिए। मैं चाहती हूं कि तुम अपने जीवन में आकाश की तरह खुले विचार रखो, ताकि तुम्हारी सोच और दृष्टिकोण हर दिशा में फैल सके।”

पहेली:
कमर पतली, पैर सुहाने, 
कहीं गये होंगे बीन बजाने।

कहानी: लालच बुरी बला
एक समय की बात है। एक व्यापारी था, जिसका नाम हरि था। हरि बहुत मेहनती था और अपने काम में ईमानदार भी था। लेकिन उसके मन में लालच की भावना घर कर गई थी। उसे लगता था कि जितना अधिक धन होगा, उतना ही वह सुखी रहेगा।

हरि के पास पहले से ही बहुत सारी संपत्ति थी, लेकिन वह कभी संतुष्ट नहीं होता था। वह दिन-रात और अधिक धन कमाने के लिए योजनाएँ बनाता रहता। एक दिन, उसे एक साधु मिला, जिसने उसे बताया कि एक खास पहाड़ पर जाओ, वहाँ तुम्हें एक ऐसा खजाना मिलेगा, जो तुम्हारे जीवन को बदल देगा।

हरि ने तुरंत पहाड़ की ओर जाने का निर्णय लिया। वहां पहुँचने पर उसने एक गुफा देखी, जिसमें एक बड़ा सा ताला लगा हुआ था। ताले पर लिखा था, “इस ताले को खोलने के लिए तुम्हें सबसे पहले अपनी लालच को त्यागना होगा।”

हरि को यह देखकर अजीब लगा। उसने सोचा, “अगर मैं अपना लालच छोड़ दूँगा, तो इस खजाने का क्या फायदा होगा?” लेकिन खजाने को पाने के लालच में उसने खुद को समझाने की कोशिश की कि वह थोड़ी देर के लिए लालच छोड़ सकता है। हरि ने ताले को खोल दिया। गुफा के अंदर ढेर सारा सोना, चांदी और कीमती पत्थर थे। हरि की आंखें चमक उठीं। उसने जितना हो सके, उतना धन इकट्ठा करना शुरू कर दिया। 

लेकिन जैसे ही उसने खजाने को छुआ, गुफा हिलने लगी और एक आवाज आई, “लालच बुरी बला है। अगर तुमने इस खजाने को ले जाने की कोशिश की, तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा।”

हरि को यह सुनकर डर लगने लगा। उसने अपनी लालच को छोड़ने का प्रयास किया, लेकिन उसका मन उसे रोक रहा था। उसने सोचा, “अगर मैं थोड़ा सा धन भी ले जाऊं, तो यह मेरे लिए काफी होगा।” लेकिन जैसे ही उसने खजाने को उठाया, गुफा पूरी तरह से बंद हो गई, और हरि उसमें फँस गया।

कई दिनों तक वह गुफा में फंसा रहा और उसने अपने लालच को कोसा। आखिरकार, उसने अपनी गलती मानी और भगवान से प्रार्थना की कि उसे मुक्त कर दें। उसकी प्रार्थना सुन ली गई, और गुफा फिर से खुल गई।

हरि ने गुफा से बाहर आकर लालच को हमेशा के लिए त्याग दिया। उसने समझ लिया कि लालच हमें केवल नुकसान पहुंचाता है और असली सुख संतोष में है।

शिक्षा:
यह कहानी हमें सिखाती है कि लालच बुरी बला है। लालच से केवल दुख और हानि होती है। हमें अपने पास जो कुछ है, उसमें संतोष करना चाहिए। सच्चा सुख धन या संपत्ति में नहीं, बल्कि हमारी संतुष्टि और संतोष में है।

पहेली का उत्तर : मच्छर
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प्रार्थना:
मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये॥

अर्थ: जिनकी गति, मन के समान तथा वेग वायु के समान है, जिन्होंने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है, जो बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, पवन के पुत्र एवं वानरों की सेना के मुखिया हैं तथा श्री रामचन्द्र के दूत हैं। ऐसे हनुमान जी की मै शरण लेता हूँ और उन्हें प्रणाम करता हूँ।

मंत्र का अर्थ: हमारे लिए मित्र, वरुण, अर्यमा, इंद्र, बृहस्पति और विष्णु कल्याणकारी हों। हमें हर ओर से सुख और शांति प्राप्त हो।

गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे, भगवान के प्रति श्रद्धा हमारी जीवन की दिशा तय करती है। जब हम सच्चे मन से भगवान की पूजा करते हैं, तो हम अपने जीवन को एक उद्देश्य के साथ जीने की प्रेरणा पाते हैं। भगवान की उपासना से हमें आत्म-संस्कार और सही मार्ग पर चलने की दिशा मिलती है। मैं चाहती हूं कि तुम जीवन में श्रद्धा से भगवान का ध्यान करो, क्योंकि यही तुम्हारे जीवन को सच्ची दिशा देगा और तुम्हारा हर कदम सही रहेगा।”

पहेली:
एक लड़का और एक डॉक्टर शॉपिंग कर रहे थे। लड़का डॉक्टर का बेटा था पर डॉक्टर लड़के का पिता नहीं था। तो डॉक्टर कौन था ?

कहानी: गणेश की बुद्धिमत्ता
एक समय की बात है, कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश और कार्तिकेय के बीच एक अनोखी प्रतियोगिता हुई। दोनों भाई आपस में हमेशा खेल-कूद में हिस्सा लेते थे, लेकिन यह प्रतियोगिता सबसे खास थी।

एक दिन, माता पार्वती ने दोनों भाइयों को बुलाया और कहा, “तुम दोनों में से जो भी सबसे पहले पृथ्वी का चक्कर लगाकर वापस आएगा, उसे सबसे बुद्धिमान घोषित किया जाएगा।” कार्तिकेय, जो अपने तेज गति वाले मोर वाहन पर सवार थे, तुरंत प्रतियोगिता के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि वह आसानी से इस प्रतियोगिता को जीत सकते हैं।

गणेश ने देखा कि उनका वाहन मूषक (चूहा) है, जो तेज गति से नहीं दौड़ सकता। उन्होंने गहराई से सोचा और अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करने का फैसला किया। उन्होंने अपने माता-पिता, भगवान शिव और माता पार्वती, के पास जाकर उन्हें प्रणाम किया और उनके चारों ओर तीन बार परिक्रमा की।

कार्तिकेय, जो पृथ्वी का चक्कर लगाकर वापस आए, यह देखकर चकित रह गए। उन्होंने कहा, “गणेश, तुमने तो पृथ्वी का चक्कर भी नहीं लगाया, फिर भी तुम विजेता कैसे हो सकते हो?”

गणेश मुस्कुराए और बोले, “पिताजी और माताजी ही मेरे लिए पूरे ब्रह्मांड हैं। उनकी परिक्रमा करना ही पृथ्वी और ब्रह्मांड का चक्कर लगाने के समान है।”

भगवान शिव और माता पार्वती गणेश की इस बुद्धिमत्ता से प्रभावित हुए। उन्होंने घोषणा की कि गणेश इस प्रतियोगिता के विजेता हैं और उन्हें सबसे बुद्धिमान का खिताब दिया।

शिक्षा:
यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में हमें अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग करना चाहिए। सच्ची सफलता शारीरिक शक्ति से नहीं, बल्कि मानसिक क्षमता और समझदारी से मिलती है। 

पहेली का उत्तर : लड़के की माँ
=======================181

प्रार्थना:
ॐ एकदन्ताय विद्महे 
वक्रतुंडाय धीमहि 
तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात॥

अर्थ: हम भगवान गणपति, जिनके हाथी के दांत हैं और जो सर्वव्यापी है, उनको नमन करते हैं। हम भगवान गणेश जी से प्रार्थना करते हैं कि हमें अधिक बुद्धि प्रदान करें और हमारे जीवन को ज्ञान से रोशन कर दें। हम आपके सामने नतमस्तक होते हैं। 

मंत्र:
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य, येनात्मैवात्मना जितः। 
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे, वर्तेतात्मैव शत्रुवत्॥

अर्थः जो व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है, उसके लिए उसका मन मित्र के समान होता है। लेकिन जो अपने मन को वश में नहीं कर पाता, उसके लिए मन शत्रु के समान हो जाता है।

गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे! जो कार्य हम भगवान के नाम पर करते हैं, वह सर्वोत्तम होता है। जब तुम अपने कार्य को भगवान को समर्पित करके करते हो, तो वह कार्य सफल होता है और उसमें भगवान का आशीर्वाद होता है। चाहे वह छोटा सा कार्य हो या बड़ा, जब तुम उसे भगवान के नाम पर करते हो, तो वह काम पुण्य का कार्य बन जाता है। मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा अपने हर कार्य को भगवान को समर्पित करो, क्योंकि भगवान की मदद से हर कार्य सुचारु रूप से चलता है।”

पहेली:
हरी डिब्बी, पीला मकान उसमें बैठे कल्लू राम।

कहानी: लक्ष्मी की कृपा
एक समय की बात है, एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था और हर दिन उनकी पूजा करता था। लेकिन उसकी स्थिति बहुत कठिन थी। उसके पास न तो पर्याप्त भोजन था और न ही अपने परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए धन।

एक दिन, उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए कहा, “प्रभु, मैं आपके प्रति समर्पित हूं। कृपया मेरी कठिनाइयों का हल निकालें।” भगवान विष्णु उसकी प्रार्थना से प्रसन्न हुए और देवी लक्ष्मी से कहा, “यह ब्राह्मण हमारा सच्चा भक्त है। इसे अपनी कृपा का आशीर्वाद दो।”

देवी लक्ष्मी ब्राह्मण के पास प्रकट हुईं और कहा, “मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं। तुम्हें जो चाहिए, वह मांग लो।”

ब्राह्मण ने सोचा और कहा, “मां, मुझे इतना धन दे दो कि मैं अपनी जरूरतें पूरी कर सकूं और दूसरों की भी मदद कर सकूं।”

देवी लक्ष्मी ने कहा, “मैं तुम्हें धन का वरदान देती हूं, लेकिन याद रखना, मेरा आशीर्वाद उन्हीं के साथ रहता है जो इसे अच्छे कार्यों में लगाते हैं। अगर तुम धन का दुरुपयोग करोगे, तो मैं तुम्हारे पास नहीं ठहरूंगी।”

ब्राह्मण ने देवी लक्ष्मी के आशीर्वाद को स्वीकार किया और अपने जीवन को सुधारने के लिए धन का उपयोग किया। उसने न केवल अपनी जरूरतें पूरी कीं, बल्कि गांव के गरीबों और जरूरतमंदों की भी मदद की।

कुछ वर्षों बाद, ब्राह्मण अपने परिश्रम और अच्छे कार्यों के कारण गांव का सबसे सम्मानित व्यक्ति बन गया। देवी लक्ष्मी उसकी सच्चाई और ईमानदारी से खुश थीं और हमेशा उसकी मदद करती रहीं। 

शिक्षा:
यह कहानी हमें सिखाती है कि धन का सही उपयोग करना बहुत महत्वपूर्ण है। धन केवल हमारे सुख के लिए नहीं है, बल्कि इसका उपयोग दूसरों की भलाई के लिए भी होना चाहिए। सच्ची कृपा उन्हीं पर बनी रहती है, जो इसे ईमानदारी और अच्छे कार्यों में लगाते हैं।

पहेली का उत्तर : पपीता और बीज
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प्रार्थना:
सभी सुखी हो, सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो, सबका दुःख दुर हो, सबका वैर शांत हो। इस संसार मे रहने वाले सारे प्राणियो की पीड़ा समाप्त हो वे सुखी और शांत हो। चाहे वे जीव जल मे रहने वाले हो या स्थल मे या फिर गगन मे रहने वाले। सभी सुखी हो। इस पूरे ब्रह्माण्ड मे सभी दृश्य और अदृश्य जीवो का कल्याण हो। बह्मांड मे रहने वाले सभी जीव और प्राणी सुखी हो वे पीड़ा से मुक्त हो।

मंत्र:
सत्यं हि परमं धर्मं, धर्मं सत्यं प्रजापतिः। 
सत्यं हि परमं ब्रह्म, तस्मात्सत्यं न जायते॥

अर्थ: सत्य ही परम धर्म है, और सत्य से ही धर्म उत्पन्न होता है। सत्य ही परम ब्रह्म है, इसलिए सत्य कभी नष्ट नहीं होता।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! आस्था और विश्वास से कोई भी मुश्किल असंभव नहीं होती। जब तुम्हारे भीतर भगवान पर अडिग विश्वास होता है, तो हर समस्या आसान लगने लगती है। आस्था तुम्हें एक अजीब शक्ति देती है, जो किसी भी कष्ट या कठिनाई से जूझने की ताकत देती है। मैं चाहती हूं कि तुम हर स्थिति में अपनी आस्था बनाए रखो, क्योंकि भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास से तुम्हारे रास्ते में आई कोई भी कठिनाई आसान हो जाएगी।”

पहेली:
खड़ी करो तो गिर पड़े, दौड़ी मीलों जाए। 
नाम बता दो इसका, यह तम्हे हमें बिठाए।

कहानी: भगत सिंह का जुनून
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई महान शहीदों ने अपनी जान की आहुति दी, लेकिन भगत सिंह का नाम उनमें सबसे प्रमुख है। उनका जीवन एक ज्वाला की तरह था, जो स्वतंत्रता की आकांक्षा से जलता रहा और अंततः ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी जान न्योछावर कर दी। भगत सिंह की शहादत केवल एक स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा नहीं थी, बल्कि उन्होंने अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से भारतीय समाज को जागरूक किया और युवाओं को प्रेरित किया। उनका जुनून, उनके विचार और उनकी निडरता ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर बना दिया।

भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन: 
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के एक छोटे से गांव बंगा में हुआ था (अब पाकिस्तान में)। उनका परिवार एक समृद्ध और देशभक्त परिवार था। उनके पिता किशन सिंह संधू और चाचा अजित सिंह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल थे और वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। भगत सिंह का पालनपोषण इस वातावरण में हुआ था, जिसमें राष्ट्रीय स्वतंत्रता के प्रति गहरी श्रद्धा और सम्मान था।

उनके बाल्यकाल में ही भारत में कई राजनीतिक उथल-पुथल हो रही थी।

जलियांवाला बाग हत्याकांड, लाहौर में हिंदू-मुस्लिम दंगों के बाद भगत सिंह के दिल में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ गहरा आक्रोश भर गया। इस घटना ने उनके मन में ब्रिटिश शासन के प्रति घृणा को और भी बढ़ाया और उन्होंने ठान लिया कि वह इस अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज उठाएंगे।

भगत सिंह का शिक्षा जीवन बहुत ही रोचक था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लायलपुर में प्राप्त की और बाद में उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और पंजाब विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा जारी रखी। उनका रूझान हमेशा से ही क्रांतिकारी विचारों की ओर था और इसी कारण उन्होंने युवा अवस्था में ही राजनीति में रुचि लेना शुरू कर दिया। वह सशस्त्र क्रांति के पक्षधर थे और उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन को नकारते हुए हिंसक क्रांति का मार्ग अपनाया।

भारत में स्वतंत्रता संग्राम की दिशा:
भगत सिंह का युवा मन उस समय के सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों से प्रेरित था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विभाजन और ब्रिटिश साम्राज्य की निरंतर तानाशाही नीतियां उनके दिल में क्रांतिकारी विचारों को और मजबूत करती जा रही थीं। उन्होंने 'युवाओं के लिए' क्रांतिकारी आंदोलनों में शामिल होने का निश्चय किया।

1920 के दशक में भगत सिंह ने अपने विचारों को और अधिक स्पष्ट किया। वह कांग्रेस के अहिंसक आंदोलन से अलग हो गए और उन्होंने 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' (एचआरए) से जुड़कर सशस्त्र क्रांति की दिशा में कदम बढ़ाया। 

उनका मानना था कि जब तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष नहीं होगा, तब तक स्वतंत्रता प्राप्त करना संभव नहीं था।

भगत सिंह का असेंबली बम कांड:
1929 में भगत सिंह और उनके साथियों ने दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंका। उनका उद्देश्य किसी को मारना नहीं था, बल्कि केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध जताना था। उन्होंने बम फेंकने के बाद यह नारा दिया था, “इंकलाब जिंदाबाद!” उनका उद्देश्य यह था कि ब्रिटिश साम्राज्य को यह संदेश दिया जाए कि भारतीय युवा अब चुप नहीं बैठेंगे। यह घटना पूरे देश में एक बड़ा आंदोलन बन गई और भगत सिंह के विचारों को और अधिक समर्थन मिला।

भगत सिंह का यह कदम, जो एक सशस्त्र क्रांति की ओर बढ़ने का था, उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह कृत्य उनकी क्रांतिकारी सोच को स्पष्ट करता था, जिसमें उन्होंने अहिंसा को नकारा और कहा था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सशस्त्र संघर्ष आवश्यक है। इस घटना के बाद, भगत सिंह और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया।

भगत सिंह का अदम्य साहस और विचारधारा: 
भगत सिंह ने अपनी गिरफ्तारी के बाद भी अपनी क्रांतिकारी विचारधारा को नहीं छोड़ा। अदालत में उन्होंने न केवल अपने अपराध को स्वीकार किया, बल्कि उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ खुलकर अपनी विचारधारा व्यक्त की।

उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती देते हुए कहा, “हमारे लिए हमारी मातृभूमि की स्वतंत्रता सर्वोपरि है और इसके लिए हमें किसी भी बलिदान से डर नहीं है।”

भगत सिंह का यह साहस और निडरता उनके विचारों की दृढ़ता को दर्शाता था। उनका विश्वास था कि अगर भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करनी है, तो उसे बलिदान और संघर्ष के रास्ते पर चलना होगा। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर एक योजनाबद्ध तरीके से ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई क्रांतिकारी गतिविधियाँ कीं।

उनके विचारों में एक गहरी राजनीतिक समझ थी, जो उन्हें सिर्फ एक क्रांतिकारी नेता ही नहीं, बल्कि एक विचारक भी बनाती है। भगत सिंह ने अपने लेखों और पत्रों में यह साफ किया कि वे केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ नहीं थे, बल्कि वे एक ऐसे समाज की स्थापना चाहते थे, जिसमें समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे का भाव हो।

भगत सिंह की शहादतः
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी के फंदे को गले लगाया। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया। फांसी से पहले भी भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर यह संदेश दिया था कि उनका उद्देश्य केवल ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना नहीं था, बल्कि एक नए और समतामूलक भारत की स्थापना करना था । उनकी शहादत के बाद, भगत सिंह का नाम भारत में हर दिल में बस गया। उनके आदर्श, उनके विचार और उनका जुनून आज भी भारतीय समाज को प्रेरित, करता है। 

उनका जीवन यह सिखाता है कि जब किसी उद्देश्य के प्रति जुनून और समर्पण हो, तो व्यक्ति अपनी जान की भी परवाह नहीं करता और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है।

भगत सिंह का सशस्त्र क्रांति का संदेश: 
भगत सिंह ने यह सिखाया कि केवल सशस्त्र क्रांति के माध्यम से ही विदेशी शासकों को हराया जा सकता है। उनका यह संदेश आज भी भारतीय युवाओं को प्रेरित करता है कि जब उनके देश की स्वतंत्रता की बात आती है, तो उन्हें किसी भी बलिदान से डरना नहीं चाहिए। भगत सिंह का यह विश्वास था कि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना हर भारतीय का कर्तव्य है और यह संघर्ष तभी संभव है जब लोग एकजुट होकर अपना विरोध प्रदर्शन करें।

शिक्षा:
भगत सिंह का जीवन हमें यह सिखाता है कि जब उद्देश्य महान हो, तो उस उद्देश्य के प्रति जुनून और समर्पण होना चाहिए। उनके संघर्ष और बलिदान ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी और उनके विचार आज भी भारतीय राजनीति और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका जीवन हमें यह भी सिखाता है कि केवल क्रांति के माध्यम से ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है और इसके लिए हमें अपने विचारों को दृढ़ और स्पष्ट रखना चाहिए। भगत सिंह का जुनून न केवल उनके समय के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत रहेगा।

पहेली का उत्तर : साईकिल
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प्रार्थना:
1. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे (दुःखे), न दुभाया (दुःखाया) जाए या दुभाने (दुःखाने) के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।

मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे, ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दीजिए ।

2. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी धर्म का किंचितमात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाए या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।

मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाया जाए ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दीजिए।

3. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी या आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दीजिए।

4. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति न अनुमोदित किया जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।

5. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाए, न बुलवाई जाए या बोलने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।

कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोले तो मुझे, मृदु-ऋजु भाषा बोलने की शक्ति दीजिए।

6. हे भगवान! मुझे, किसी भी देहधारी के प्रति स्त्री, पुरुष या नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किंचितमात्र भी विषय-विकार संबंधी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किए जाएँ, न करवाए जाएँ या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।

मुझे, निरंतर निर्विकार रहने की परम शक्ति दीजिए।

7. हे भगवान! मुझे, किसी भी रस में लुब्धता न हो ऐसी शक्ति दीजिए।

समरसी आहार लेने की परम शक्ति दीजिए।

8. हे भगवान! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष, जीवित अथवा मृत, किसी का किंचितमात्र भी अवर्णवाद, अपराध, अविनय न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।

9. हे भगवान ! मुझे, जगत् कल्याण करने का निमित्त बनने की परम शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए।

मंत्र:
प्रेम मगन होइ रहहिं रघुनायक। 
जन हित हरष जनक नृप जायक॥

अर्थः श्री राम प्रेम में मग्न रहते हैं और सदैव प्रजा के हित के लिए कार्य करते हैं। जनक और अन्य राजाओं के लिए वे प्रेरणा और खुशी का स्रोत हैं।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! जब हम अपने जीवन में संतोष और आभार का भाव रखते हैं, तो भगवान हमें और अधिक आशीर्वाद देते हैं। भगवान का आशीर्वाद और प्रेम उन लोगों के साथ होता है जो जीवन में संतुष्ट रहते हैं और जो उन चीजों के लिए आभारी होते हैं, जो उन्हें प्राप्त हैं। मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा संतोष और आभार का अनुभव करो, क्योंकि यही तुम्हारी आत्मा को शांति और खुशी प्रदान करेगा, और तुम्हारा जीवन सच्ची समृद्धि से भरेगा।”

पहेली:
बिल्ली की पूँछ हाथ में, 
बिल्ली रहे इलाहाबाद में।

कहानी: चंद्रशेखर आज़ाद की निडरता
चंद्रशेखर आज़ाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महान क्रांतिकारी के रूप में दर्ज है। उनका जीवन देश की आज़ादी के लिए संघर्ष और बलिदान की प्रेरणा है। उन्होंने अपनी शहादत से यह सिद्ध कर दिया कि निडरता और आत्मविश्वास से हर कठिनाई का सामना किया जा सकता है। उनका जीवन उन सभी युवाओं के लिए एक आदर्श है, जो देश की सेवा में अपनी जान देने के लिए तैयार हैं।

प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा:
चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनका परिवार साधारण था, लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें अच्छे संस्कार और शिक्षा दी। जब वे केवल 14 वर्ष के थे, तब उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहली बार आवाज उठाई। उन्होंने महात्मा गांधी की असहमति के बावजूद असहमति आंदोलन में भाग लिया और गिरफ्तार हो गए। यही वह पल था जब उन्होंने अपने जीवन की दिशा बदल दी और अपने आप को क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न किया।

क्रांतिकारी संगठनों से जुड़ना: 
आज़ाद ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रचनात्मक आंदोलन के बजाय सशस्त्र क्रांति को अपनाया। वे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के साथी बने और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) से जुड़े।

उनका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करना था और इसके लिए उन्होंने कई योजनाएं बनाई। उनका आदर्श “जय हिंद” और “इंकलाब जिंदाबाद” था, जो आज भी हमारे दिलों में गूंजता है।

आज़ाद की निडरता और उनका आदर्श: 
आज़ाद का जीवन निडरता का प्रतीक था। वे किसी भी हालत में अंग्रेजों के सामने झुके नहीं। चंद्रशेखर आज़ाद का एक सिद्धांत था कि “मैं अंग्रेजों के सामने कभी झुका नहीं, चाहे मेरी जान चली जाए।” उन्होंने अपने हर संघर्ष में यह सिद्ध कर दिया कि किसी भी परिस्थिति में खुद को डर के बजाय साहस से प्रेरित करना चाहिए।

आज़ाद का सबसे प्रसिद्ध कार्य लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में उनके कार्यों का भाग होना था। उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर कई जटिल मिशनों को पूरा किया, जिनमें से एक मिशन 1928 में हुआ, जब उन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का प्रतिशोध लेने के लिए सैंडर्स को मारा।

शहादत और अविस्मरणीय योगदानः
आज़ाद को अंततः 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद में घेर लिया गया। जब पुलिस ने उन्हें घेर लिया और आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया, तो चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा, “मैं स्वतंत्रता के लिए मरकर भी वीरता से मरूंगा।” उन्होंने अपने पिस्तौल से खुद को गोली मारकर शहादत दी। उनके इस साहस और निडरता ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद बना दिया।

आज़ाद की शहादत ने यह साबित किया कि असली क्रांतिकारी वे होते हैं जो अपने कर्तव्य और लक्ष्य से कभी नहीं मुड़ते। उनके अदम्य साहस और निडरता ने भारत के युवाओं को प्रेरित किया और आज़ाद का नाम भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में हमेशा अमर रहेगा।

पहेली का उत्तर : पतंग
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गीता सार:
क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है। 
 
जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाये थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आये, जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं से दिया। जो लिया इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया। खाली हाथ आए, खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यह प्रसन्नता ही तुम्हारे दुःखों का कारण है।

परिवर्तन ही संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ो के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो, विचार से हटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो? तुम अपने आपको भगवान् के अर्पित करो। यह सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है, वह भय, चिन्ता शोक से सर्वदा मुक्त है। 

जो कुछ तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। इसी में तू सदा जीवन-मुक्त अनुभव करेगा।

मंत्र: 
यदा मनो निष्ठा धर्मे, सर्वशक्तिस्वरूपिणि। 
अविभागे प्रतिष्ठेत, तदा योगस्य सिद्धिता।।

अर्थ: जब मन पूरी तरह से धर्म में निष्ठा से जुड़ जाता है और उस परम शक्ति के रूप में स्थिर हो जाता है, तब योग की सिद्धि प्राप्त होती है।

गर्भ संवाद:
“मरे प्यारे बच्चे! कर्म ही सबसे बड़ी पूजा है। भगवान हमें यह सिखाते हैं कि जब हम अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाते हैं, तो वह भी पूजा के समान होता है। अगर हम किसी भी कार्य को श्रद्धा और निष्ठा से करते हैं, तो वह भगवान के प्रति सच्ची भक्ति होती है। मैं चाहती हूं कि तुम हर कार्य में पूर्ण निष्ठा और समर्पण से लगो, क्योंकि यही तुम्हारी सच्ची पूजा होगी। तुम्हारे अच्छे कर्म ही तुम्हारी वास्तविक पूजा हैं।”

पहेली:
नया खजाना घर में आया, 
डब्बे में संसार समाया। 
नया करिश्मा बेजोडी का 
नाम बताओ इस योगी का।

कहानी: सर्द हवाओं का आलिंगन
यह कहानी एक छोटे से गाँव की है, जो घने जंगलों के पास स्थित था। वहाँ हर साल सर्दी का मौसम बहुत कठोर होता था, और ठंडी हवाएँ गाँव के ऊपर से तेज़ी से गुजरती थीं। इन सर्द हवाओं के कारण गाँव वाले अक्सर परेशान रहते थे। खेतों में काम करना मुश्किल हो जाता था और घरों में गर्मी बनाए रखने के लिए लकड़ी और कोयले का इस्तेमाल बहुत बढ़ जाता था। लेकिन इस सर्दी में एक विशेष बात थी, कि गाँव के बच्चों के लिए यह मौसम किसी साहसिक यात्रा से कम नहीं था।

गाँव के एक छोटे से लड़के का नाम था अजय। अजय को सर्द हवाएँ बहुत पसंद थीं। वह अक्सर जंगल के किनारे पर बैठकर सर्द हवाओं का आनंद लिया करता था। उसके लिए यह हवाएँ जैसे जीवन के हर पहलू को समझने का एक माध्यम थीं। वह अक्सर सोचता, “ये हवाएँ इतनी सर्द क्यों होती हैं? क्यों यह हर साल आती हैं?”

एक दिन जब अजय जंगल में बैठा था, तभी एक वृद्ध आदमी, जो गाँव के सबसे बड़े विद्वान माने जाते थे, उसके पास आए। वह आदमी नाम से 'भानु' था। भानु ने अजय से पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो, बच्चे?”

अजय ने जवाब दिया, “मैं इन सर्द हवाओं को महसूस कर रहा हूँ, दादा। ये हवाएँ बहुत अजीब हैं। कभी यह इतनी सर्द हो जाती हैं कि हम ठंड से कांपने लगते हैं, और कभी ऐसा लगता है जैसे यह हमें अपने आलिंगन में ले लेती हैं।”

भानु मुस्कराए और बोले, “यह सर्द हवाएँ दरअसल हमें जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण पाठ देती हैं। ये हवाएँ कभी ठंडी और कड़क होती हैं, और कभी नर्म और सुखद। ऐसा ही जीवन होता है। जीवन में कभी हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, और कभी हमें शांति और संतुष्टि मिलती है। लेकिन दोनों ही अवस्थाएँ हमें किसी न किसी तरीके से सिखाती हैं।”

अजय ने ध्यान से सुना और भानु से पूछा, “लेकिन दादा, इन सर्द हवाओं से हमें क्या सीखना चाहिए ?”

भानु ने उत्तर दिया, “ये हवाएँ हमें यह सिखाती हैं कि जीवन के किसी भी क्षण में हम खुद को अपने हालात से अलग नहीं कर सकते। जब जीवन में कठिन समय आता है, तो हमें उसे स्वीकार करना होता है, जैसे इन हवाओं को हम नहीं रोक सकते। लेकिन जैसे ही समय बदलता है, हम फिर से अपने रास्ते पर आगे बढ़ते हैं, क्योंकि हर कठिनाई के बाद सुख और शांति का समय भी आता है।”

अजय ने भानु की बातों को गहराई से समझा। वह अब महसूस कर रहा था कि जीवन में कठिन परिस्थितियाँ आते-जाते रहती हैं, लेकिन हमें उन्हें स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। हवाओं की तरह जीवन भी निरंतर बदलता रहता है और हमें उसका स्वागत करना चाहिए।

अजय अब हर सर्दी के मौसम में हवाओं को महसूस करता और उनकी बदलती शीतलता और ठंडक को समझता। वह जानता था कि इन हवाओं में एक गहरी सीख छिपी हुई है: जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन हमें खुद को कभी भी उन बदलावों से हतोत्साहित नहीं होने देना चाहिए।

शिक्षा:
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ हमें मजबूत बनाती हैं। जैसे सर्द हवाएँ कभी शीतल तो कभी ठंडी होती हैं, वैसे ही जीवन में भी सुख और दुख आते रहते हैं। हमें दोनों ही परिस्थितियों को स्वीकार करना चाहिए और हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए।

पहेली का उत्तर : टेलीविजन
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प्रार्थना:
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं 
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । 
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं। 
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

अर्थ: मैं ऐसे सर्वव्यापी भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूं जिनका स्वरूप शांत है। जो शेषनाग पर विश्राम करते हैं, जिनकी नाभि पर कमल खिला है और जो सभी देवताओं के स्वामी हैं।
जो ब्रह्मांड को धारण करते हैं, जो आकाश की तरह अनंत और असीम हैं, जिनका रंग नीला है और जिनका शरीर अत्यंत सुंदर है।
जो धन की देवी लक्ष्मी के पति हैं और जिनकी आंखें कमल के समान हैं। जो ध्यान के जरिए योगियों के लिए उपलब्ध हैं।
ऐसे श्रीहरि विष्णु को नमस्कार है जो सांसारिक भय को दूर करते हैं और सभी लोगों के स्वामी हैं।

मंत्र:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

भावार्थ: हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का पालन-पोषण करते है उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें। जिस प्रकार से एक ककड़ी अपनी बेल से पक जाने के पश्चात् स्वतः की आज़ाद होकर जमीन पर गिर जाती है उसी प्रकार हमें भी इस बेल रुपी सांसारिक जीवन से जन्म मृत्यु के सभी बन्धनों से मुक्ति प्रदान कर मोक्ष प्रदान करें।

गर्भ संवाद: 
— मेरे प्यारे शिशु, मेरे राज दुलार, मैं तुम्हारी माँ हूँ.......माँ !

— मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम मेरे गर्भ में पूर्ण रूप से सुरक्षित हो, तुम हर क्षण पूर्ण रूप से विकसित हो रहे हो।

— तुम मेरे हर भाव को समझ सकते हो क्योंकि तुम पूर्ण आत्मा हो।

— तुम परमात्मा की तरफ से मेरे लिए एक सुन्दरतम तोहफा हो, तुम शुभ संस्कारी आत्मा हो, तुम्हारे रूप में मुझे परमात्मा की दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, परमात्मा ने तुम्हें सभी विलक्षण गुणों से परिपूर्ण करके ही भेजा है, परमात्मा की दिव्य संतान के रूप में तुम दिव्य कार्य करने के लिए ही आए हो। मेरे बच्चे! तुम
ईश्वर का परम प्रकाश रूप हो, परमात्मा की अनंत शक्ति तुम्हारे अंदर विद्यमान है, ईश्वर का तेज तुम्हारे माथे पर चमक रहा है, परमात्मा के प्रेम की चमक तुम्हारी आँखों में दिखाई देती है, तुम ईश्वर के प्रेम का साक्षात भण्डार हो, तुम परमात्मा के एक महान उद्देश्य को लेकर इस संसार में आ रहे हो, परमात्मा ने तुम्हें इंसान रूप में इंसानियत के सभी गुणों से भरपूर किया है।

— तुम हर इंसान को परमात्मा का रूप समझते हो, और सभी के साथ प्रेम का व्यवहार करते हो, तुम जानते हो अपने जीवन के महानतम लक्ष्य को, तुम्हें इस संसार की सेवा करनी है, सभी से प्रेम करना है, सभी की सहायता करनी है, और परमात्मा ने जो विशेष लक्ष्य तुम्हें दिया है, वह तुम्हें अच्छे से याद रहेगा।

— परमात्मा की भक्ति में तुम्हारा मन बहुत लगता है, तुम प्रभु के गुणों का गायन करके बहुत खुश होते हो, तुम्हारे रोम-रोम में प्रभु का प्रेम बसा हुआ है। स्त्रियों के प्रति तुम विशेष रूप से आदर का भाव अनुभव करते हो, सभी स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखते हो।

— तुम्हारा उद्देश्य संसार में सबको खुशियाँ बाँटना है, सब तरह से आजाद रहते हुए तुम सबको कल्याण का मार्ग दिखाने आ रहे हो, परमात्मा से प्राप्त जीवन से तुम पूर्ण रूप से संतुष्ट हो, तुम सदैव परमात्मा के साये में सुरक्षित हो।

— मानव जीवन के संघर्षो को जीतना तम्हें खूब अच्छी तरह से आता है, जीवन के प्रत्येक कार्य को करने का तुम्हारा तरीका बहुत प्यारा है, जीवन की हर परेशानी का हल ढूँढने में तुम सक्षम हो, तुम हमेशा अपने जीवन के परम लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहोगे।

— मेरी तरह तुम्हारे पिता भी तुम्हें देखने के लिए आतुर हैं, मेरा और तुम्हारे पिता का आशीष सदैव तुम्हारे साथ है।

— यह पृथ्वी हमेशा से प्रेम करने वाले अच्छे लोगों से भरी हुई है, यह सृष्टि परमात्मा की अनंत सुंदरता से भरी हुई है, यहाँ के सभी सुख तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, गर्भावस्था का यह सफर तुम्हें परमात्मा के सभी दैविक संस्कारों से परिपूर्ण कर देगा।

—घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।

गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे! जीवन के हर पल को आशीर्वाद के रूप में देखो। भगवान ने हमें हर दिन एक नई शुरुआत के लिए दिया है, और यह हमारा कर्तव्य है कि हम उस दिन को पूरी तरह से जीने की कोशिश करें। जब तुम हर दिन को आशीर्वाद मानते हो, तो तुम्हारा दृष्टिकोण सकारात्मक हो जाता है और तुम हर काम में खुशी और समर्पण से लगे रहते हो। मैं चाहती हूं कि तुम हर दिन को भगवान का दिया हुआ उपहार मानकर जियो, क्योंकि यही तुम्हें संतुष्टि और आंतरिक शांति देगा।”

पहेली:
चाम मांस वाके नहीं नेक, 
हाड़ मास में वाके छेद। 
मोहि अचंभो आवत ऐसे, 
वामे जीव बसत है कैसे।।

कहानी: नील गगन का संदेश
एक दूर-दराज के गाँव में लोग अपने दिन-प्रतिदिन के काम में व्यस्त रहते थे। यह गाँव बहुत ही शांत था और यहाँ के लोग प्रकृति के साथ गहरा संबंध रखते थे। इस गाँव में एक छोटा लड़का था, जिसका नाम था ईशान। ईशान को आकाश और तारे देखने का बहुत शौक था। वह हमेशा रात के समय अपने आंगन में जाकर आकाश की ओर देखता और सोचता, “यह नीला आकाश क्यों इतना विशाल है? क्या इसके अंदर कोई रहस्य है?”

एक दिन ईशान ने अपने दादी से पूछा, “दादी, आकाश इतना विशाल क्यों है? क्या यह सिर्फ नीला है या इसमें कोई संदेश छुपा है?”

दादी मुस्कराईं और बोलीं, “ईशान, नीला आकाश हमें बहुत कुछ सिखाता है। यह आकाश हमें यह संदेश देता है कि हमें जीवन में कभी भी अपनी सीमाओं को नहीं स्वीकारना चाहिए। यह आकाश असीम है, जैसे जीवन भी। तुम सोचते हो कि आकाश का कोई अंत नहीं है, लेकिन जैसे तुम आकाश के बारे में और जानने का प्रयास करते हो, वैसे ही जीवन भी तुम्हारे लिए एक निरंतर खोज है।”

ईशान ने दादी की बातों को ध्यान से सुना और रात को फिर से आकाश की ओर देखा। उसने महसूस किया कि आकाश न सिर्फ नीला था, बल्कि उसमें अनगिनत तारे भी थे।

तारे, जो हमें जीवन में उम्मीद और दिशा दिखाते हैं। आकाश की तरह जीवन भी कभी थमता नहीं, बल्कि यह निरंतर फैलता रहता है, हमें नए अवसरों और अनुभवों के लिए खुला छोड़ता है।

अगले दिन, ईशान ने आकाश के नीचे खड़े होकर निर्णय लिया कि वह कभी अपनी सीमाओं को स्वीकार नहीं करेगा। जैसे आकाश कभी सीमित नहीं होता, वैसे ही उसे भी अपनी संभावनाओं को हमेशा विस्तृत रखना होगा। वह जानता था कि जीवन में जो कुछ भी प्राप्त करना है, उसके लिए अनंत संघर्ष और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि उसे अपनी यात्रा कभी खत्म नहीं करनी थी, क्योंकि हर दिन नया अवसर और नई दिशा लेकर आता है।

शिक्षा:
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में हमेशा नई संभावनाएँ होती हैं, और हमें कभी भी अपनी सीमाओं को स्वीकार नहीं करना चाहिए। जैसे आकाश अनंत है, वैसे ही हमारी क्षमताएँ भी अनंत हैं। हमें हर दिन नए अवसरों को स्वीकार करते हुए अपनी यात्रा जारी रखनी चाहिए।

पहेली का उत्तर : पिंजड़ा
======================== 186

प्रार्थना:
सभी सुखी हो, सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो, सबका दुःख दुर हो, सबका वैर शांत हो। इस संसार मे रहने वाले सारे प्राणियो की पीड़ा समाप्त हो वे सुखी और शांत हो। चाहे वे जीव जल मे रहने वाले हो या स्थल मे या फिर गगन मे रहने वाले। सभी सुखी हो। इस पूरे ब्रह्माण्ड मे सभी दृश्य और अदृश्य जीवो का कल्याण हो। बह्मांड मे रहने वाले सभी जीव और प्राणी सुखी हो वे पीड़ा से मुक्त हो।

मंत्र:
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

अर्थः सज्जनों की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में प्रकट होता हूँ।

गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु, मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ हूँ …… माँ!

— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ महानतम गुणों की याद दिला रही हूँ जो तुम्हें परमात्मा का अनमोल उपहार हैं।

— प्रेम स्वरूप परमात्मा का अंश होने के कारण तुम्हारा हृदय भी प्रेम से भरपूर है, तुम्हारी हर अदा में परमात्मा का प्रेम झलकता है।

— तुम्हारे हृदय में सम्पूर्ण मानवमात्र के प्रति समभाव है।

— तुम्हारा हृदय सबके लिए दया और करुणा से भरपूर रहता है।

— क्षमाशीलता के गुण के कारण सभी तुम्हारा सम्मान करते हैं, जिससे तुम्हारा स्वभाव और विनम्र हो जाता है।

— नम्रता तुम्हारा विशेष गुण है।

— मेरे बच्चे। तुम्हारा प्रत्येक कार्य सेवा-भाव से परिपूर्ण होता है।

— सहनशीलता तुम्हारा स्वाभाविक गुण है।

— धैर्यपूर्वक प्रत्येक कार्य को करना तुम्हारी महानता है।

— तुम्हारा मन आंतरिक रूप से स्थिर और शांत है।

— मेरे बच्चे! तुम बल और साहस के स्वामी हो।

— तुम अनुशासन प्रिय हो।

— कृतज्ञता का गुण तुम्हारे व्यवहार की शोभा बढ़ाता है।

— तुम अपनो से बड़ों को सम्मान और छोटों को प्रेम देते हो।

— तुम भाव से बहुत भोले हो लेकिन जरूरत पड़ने पर अपनी कठोरता भी दिखाते हो।

— तुम अपनो से छोटों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हो।

— तुम सत् और असत के पारखी हो।

— तुम्हारा व्यवहार चन्द्रमा के समान शीतल है।

— तुम सबसे इतना मीठा बोलते हो कि सभी तुम पर मोहित हो जाते हैं।

— तुम्हारा व्यक्तित्व परम प्रभावशाली है।

— तुम हमेशा सत्य बोलना ही पसंद करते हो।

— तुम हाजिर जवाबी हो।

— तुम्हारे मुख से निकला एक-एक शब्द मधुर और आकर्षक होता है।

— तुम मन, वचन और कर्म से पवित्र हो।

— घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है। तुम्हारे रूप में मुझे जैसे दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, तुम्हे पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। जल्द ही इस सुन्दर संसार में तुम्हारा आगमन होगा। तुम्हारा स्वागत करने के लिए सभी बेचैन हैं।

गर्भ संवाद:
“जब भी जीवन में कठिनाई आए, तो भगवान को अपने साथ महसूस करो। कठिन समय में जब तुम भगवान के रूप में आशीर्वाद और सहायता का अनुभव करते हो, तो तुम्हारी समस्या का समाधान अपने आप हो जाता है। भगवान हमें कठिनाइयों से पार करने के लिए ताकत देते हैं और वह हर स्थिति में हमारे साथ रहते हैं। मैं चाहती हूं कि तुम हर मुश्किल में भगवान का रूप देखो और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करो, क्योंकि उनका आशीर्वाद तुम्हें हर कदम पर मिलेगा।”

पहेली:
गोरी सुन्दर पातली, केहर काले रंग। 
ग्यारह देवर छोड़ कर चली जेठ के संग।।

कहानी: बुद्धिमान कुत्ता
किसी गांव में एक कुत्ता रहता था, जो अपनी चालाकी और समझदारी के लिए मशहूर था। वह गांव के हर घर की रखवाली करता और लोगों के साथ दोस्ताना व्यवहार करता था। उसकी सूझबूझ के कारण हर कोई उसकी तारीफ करता था। हालांकि, कुत्ते को अपनी बुद्धिमानी पर बहुत गर्व था।

एक दिन, गांव के बाहर के जंगल से एक लोमड़ी गांव में आई। वह चालाक और धूर्त थी और अपनी योजना से गांव में शिकार करने की फिराक में थी। उसने देखा कि गांव में हर जगह लोग कुत्ते की प्रशंसा कर रहे हैं। लोमड़ी को यह जानकर जलन होने लगी। उसने सोचा, “यह कुत्ता इतना बुद्धिमान कैसे हो सकता है? मैं तो उससे ज्यादा चालाक हूं। मुझे उसे हराना होगा और यह साबित करना होगा कि मैं सबसे चतुर हूं।”

लोमड़ी ने एक योजना बनाई। वह कुत्ते के पास गई और कहा, “सुनो कुत्ते भाई, मैंने सुना है कि तुम गांव के सबसे बुद्धिमान हो। लेकिन मैं इस बात पर यकीन नहीं करती। अगर तुम वाकई इतने बुद्धिमान हो, तो क्या तुम मेरी एक चुनौती स्वीकार करोगे?”

कुत्ता, जो अपनी तारीफ सुनकर खुश था, तुरंत बोला, “बिलकुल! मैं हर चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार हूं। बताओ, तुम्हारी चुनौती क्या है?”

लोमड़ी ने मुस्कुराते हुए कहा, “जंगल के बीच एक बड़ा तालाब है। उस तालाब में एक बत्तख रहती है, जिसे पकड़ना बहुत मुश्किल है। अगर तुम अपनी बुद्धिमानी से उस बत्तख को पकड़ लो, तो मैं मान जाऊंगी कि तुम मुझसे ज्यादा चतुर हो।”

कुत्ते ने चुनौती स्वीकार कर ली। अगले दिन, लोमड़ी और कुत्ता तालाब के पास पहुंचे। बत्तख तालाब के बीच आराम कर रही थी। कुत्ता बत्तख को पकड़ने के लिए तालाब में कूदने वाला था, लेकिन लोमड़ी ने उसे रोका और कहा, “अरे, क्या तुम पानी में बिना सोचे-समझे कूद जाओगे? अगर तुम ऐसा करोगे, तो बत्तख भाग जाएगी। तुम अपनी बुद्धिमानी का इस्तेमाल क्यों नहीं करते?”

कुत्ते ने लोमड़ी की बात सुनी और सोचा कि वह सही कह रही है। उसने तालाब के चारों ओर घूमकर बत्तख को डराने की कोशिश की, लेकिन बत्तख पानी में और गहराई तक चली गई। कुत्ते ने कई बार कोशिश की, लेकिन बत्तख तालाब के बीच से हिलने को तैयार नहीं थी।

लोमड़ी यह देखकर हंसने लगी और बोली, “तुम तो खुद को बुद्धिमान समझते हो, लेकिन एक साधारण बत्तख को पकड़ने में असफल हो रहे हो। लगता है तुम्हारी चतुराई बस गांव के लोगों तक ही सीमित है।”

कुत्ता इस बात से निराश हो गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने सोचा, “लोमड़ी मुझे कमजोर साबित करना चाहती है, लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।”

कुत्ते ने तालाब के किनारे एक छुपे हुए स्थान पर बैठकर इंतजार करना शुरू कर दिया। वह शांत रहा और बत्तख की गतिविधियों को ध्यान से देखने लगा। कुछ देर बाद, बत्तख को लगा कि कोई खतरा नहीं है। वह तालाब के किनारे की ओर आने लगी। जैसे ही बत्तख किनारे के पास पहुंची, कुत्ते ने तेजी से छलांग लगाई और उसे पकड़ लिया।

लोमड़ी यह देखकर चौंक गई। उसने सोचा कि कुत्ता जल्दी हार मान लेगा, लेकिन उसकी योजना उल्टी पड़ गई। कुत्ते ने अपनी सूझबूझ और धैर्य से बत्तख को पकड़ लिया।

लोमड़ी ने कुत्ते से कहा, “तुम वाकई बहुत चतुर हो। मैं अपनी हार मानती हूं। तुम्हारी चालाकी और धैर्य ने साबित कर दिया कि तुमसे मुकाबला करना आसान नहीं है।” 

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कठिनाइयों का सामना करने के लिए धैर्य और सही समय का इंतजार करना बहुत जरूरी है। जल्दबाजी में किए गए काम अक्सर असफल हो जाते हैं, लेकिन समझदारी और संयम से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है।

पहेली का उत्तर : अरहर की दाल
======================= 187

प्रार्थना:
मैं उमापति, देवगुरू, जो ब्रह्मांड के कारण हैं, को नमन करता हूँ। मैं उनको नमन करता हूँ जिनका आभूषण सर्प है, जो मृगधर हैं एवं जो सभी प्राणियों के स्वामी हैं। सूर्य, चंद्रमा और अग्नि जिनके तीन नेत्र हैं और जो विष्णु प्रिय हैं, मैं उन्हें नमन करता हूँ। मैं भगवान शंकर को नमन करता हूँ जो सभी भक्तों को शरण देने वाले हैं, वरदानों के दाता हैं एवं कल्याणकारी हैं।

मंत्र: (अर्थ): 
मनुष्य को स्वयं अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिए और स्वयं को अधोगति में नहीं ले जाना चाहिए। क्योंकि आत्मा ही मनुष्य का मित्र है और आत्मा ही शत्रु है।

गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु, मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ हूं…… माँ!

— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ भौतिक गुणों की याद दिला रही हूँ जो तुम्हे परमात्मा का अनमोल उपहार हैं।

— परम तेजस्वी ईश्वर का अंश होने के कारण तुम्हारे मुख पर सूर्य के समान दिव्य तेज और ओज रहता है।

— तुम्हारे नैन-नक्श तीखे और बहुत सुन्दर है, तुम्हारा सुन्दर मुखड़ा सबको बहुत प्यारा लगता है।

— तुम्हारे चेहरे का रंग गोरा और सबका मन मोह लेने वाला है।

— तुम्हारी हर अदा सुन्दरतम ईश्वर की झलक लिए हुए है, तुम्हारा माथा चौड़ा है, तुम्हारी आँखें बड़ी है, तुम्हारी भौहें तीर के आकार की तरह बड़ी है, तुम्हारी पलकें काली और बड़ी हैं।

— तुम्हारे होंठ फूल की तरह कोमल और सुन्दर हैं, तुम्हारे चेहरे पर हर पल एक मधुर मुस्कान छाई रहती है।

— तुम्हारी बुद्धि कुशाग्र है, तुम्हारी वाणी मधुर और सम्मोहन करने वाली है।

— तुम बहुत अच्छे खिलाडी हो, तुम्हारा शरीर तंदुरुस्त और फुर्तीला है। (किसी विशेष खेल के प्रति शिशु के मन में प्रतिभा विकसित करनी हो तो यहाँ कह सकते हैं)

— तुम बहुत सुंदर दिखते हो, बड़े होने पर भी तुम्हारी सुंदरता और निखरती जाएगी।

— तुम्हारी हर अदा बहुत निराली और अनोखी है।

— घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है। तुम्हारे रूप में मुझे जैसे दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, तुम्हे पाकर में बहुत प्रसन्न हूँ, जल्द ही इस सुन्दर संसार में तुम्हारा आगमन होगा। तुम्हारा स्वागत करने के लिए सभी बेचैन है।

गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे! भगवान की भक्ति में वह शांति और सुकून होता है जो किसी भौतिक वस्तु से प्राप्त नहीं हो सकता। जब तुम भगवान के साथ अपने रिश्ते को मजबूत करते हो, तो तुम्हारी आत्मा को शांति मिलती है। भगवान की भक्ति से हमें हर प्रकार की मानसिक और भावनात्मक परेशानी से मुक्ति मिलती है। मैं चाहती हूं कि तुम भगवान की भक्ति में समय बिताओ, क्योंकि यही तुम्हारे जीवन को शांति, संतुलन और सौम्यता से भर देगा।”

पहेली:
ऊपर से एक रंग हो और भीतर चित्तीदार। 
सो प्यारी बातें करे फिकर अनोखी नार।।

कहानी: खरगोश और हाथी का संवाद 
एक बार की बात है, जंगल में एक छोटा सा खरगोश और एक विशाल हाथी रहते थे। हाथी अपनी ताकत और बड़े आकार के लिए जाना जाता था, जबकि खरगोश अपनी तेज गति और चतुराई के लिए मशहूर था। हालांकि, दोनों में कभी ज्यादा बातचीत नहीं होती थी क्योंकि हाथी खुद को जंगल का सबसे ताकतवर मानता था और छोटे जानवरों को महत्व नहीं देता था।

एक दिन, जंगल में पानी की भारी कमी हो गई। सभी जल स्रोत सूखने लगे और जानवरों को अपनी प्यास बुझाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ा। हाथी जो बहुत बड़ा था, को पानी की ज्यादा जरूरत थी। उसने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए कई छोटे जानवरों को पानी के स्रोत से भगा दिया। खरगोश ने यह देखा और सोचा कि हाथी को अपनी ताकत का घमंड है।

खरगोश ने हाथी से बात करने की योजना बनाई। वह हाथी के पास गया और कहा, “अरे हाथी भाई, क्या तुम जानते हो कि इस जंगल में एक ऐसा जानवर भी है जो तुमसे ज्यादा ताकतवर है?”

हाथी ने हंसते हुए कहा, “तुम मजाक कर रहे हो, छोटे खरगोश। इस जंगल में मुझसे बड़ा और ताकतवर कोई नहीं है। कौन है वह जानवर? मुझे उसका नाम बताओ।”

खरगोश ने चालाकी से जवाब दिया, “अगर तुम मेरे साथ चलो, तो मैं तुम्हें उस जानवर से मिलवा सकता हूं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि तुममें इतनी हिम्मत है कि तुम उसका सामना कर सकोग़।”

हाथी को यह सुनकर गुस्सा आया और उसने कहा, “मुझे किसी का डर नहीं है। चलो, मुझे उस जानवर से मिलवाओ। मैं उसे दिखा दूंगा कि इस जंगल का असली राजा कौन है।”

खरगोश हाथी को जंगल के एक बड़े झरने के पास ले गया। वहां झरने के साफ पानी में हाथी का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा था। खरगोश ने कहा, “वह देखो! वह जानवर जो तुमसे भी बड़ा और ताकतवर है।”

हाथी ने जैसे ही झरने में अपना प्रतिबिंब देखा, उसे लगा कि यह कोई दूसरा हाथी है। उसने जोर से चिंघाड़ मारी, लेकिन जैसे ही उसकी आवाज गूंजी, झरने में भी वही आवाज वापस गूंजी। हाथी को लगा कि वह दूसरा हाथी भी उसे चुनौती दे रहा है।

हाथी ने अपनी ताकत दिखाने के लिए झरने के पानी में जोर से सूंड मारी, लेकिन पानी के छींटे उसके ऊपर ही आ गए। उसने कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार उसे ऐसा ही लगा कि दूसरा हाथी भी उसी की तरह ताकतवर है।

खरगोश यह सब देखकर मुस्कुराकर बोला, “हाथी भाई, तुमने देखा? ताकत ही सब कुछ नहीं होती। कभी-कभी, बुद्धिमानी और समझदारी ही असली ताकत होती है। तुमने अपनी ताकत के घमंड में दूसरों को पानी से दूर किया, लेकिन यह तुम्हारी गलती थी।”

हाथी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने खरगोश से माफी मांगी और कहा, “तुमने मुझे एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया है। अब मैं दूसरों के प्रति दयालु रहूंगा और अपनी ताकत का इस्तेमाल सिर्फ अच्छे कामों के लिए करूंगा।”

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि ताकत का घमंड करना गलत है। असली ताकत समझदारी और दया में होती है। जो व्यक्ति दूसरों की भलाई के लिए काम करता है, वही सच्चा और महान बनता है।

पहेली का उत्तर : सुपारी
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सप्तश्लोकी गीता 
श्री भगवान ने कहा— अनुभव, प्रेमाभक्ति और साधनों से युक्त अत्यंत गोपनीय अपने स्वरूप का ज्ञान मैं तुम्हें कहता हूं, तुम उसे ग्रहण करो। 
मेरा जितना विस्तार है, मेरा जो लक्षण है, मेरे जितने और जैसे रूप, गुण और लीलाएं हैं—मेरी कृपा से तुम उनका तत्व ठीक-ठीक वैसा ही अनुभव करो। 
सृष्टि के पूर्व केवल मैं-ही-मैं था। मेरे अतिरिक्त न स्थूल था न सूक्ष्म और न तो दोनों का कारण अज्ञान। जहां यह सृष्टि नहीं है, वहां मैं-ही-मैं हूं और इस सृष्टि के रूप में जो कुछ प्रतीत हो रहा है, वह भी मैं ही हूं और जो कुछ बचा रहेगा, वह भी मैं ही हूं। 
वास्तव में न होने पर भी जो कुछ अनिर्वचनीय वस्तु मेरे अतिरिक्त मुझ परमात्मा में दो चंद्रमाओं की तरह मिथ्या ही प्रतीत हो रही है, अथवा विद्यमान होने पर भी आकाश-मंडल के नक्षत्रो में राहु की भांति जो मेरी प्रतीति नहीं होती, इसे मेरी माया समझना चाहिए। 
जैसे प्राणियों के पंचभूतरचित छोटे-बड़े शरीरों में आकाशादि पंचमहाभूत उन शरीरों के कार्यरूप से निर्मित होने के कारण प्रवेश करते भी है और पहले से ही उन स्थानों और रूपों में कारणरूप से विद्यमान रहने के कारण प्रवेश नहीं भी करते, वैसे ही उन प्राणियों के शरीर की दृष्टि से मैं उनमें आत्मा के रूप से प्रवेश किए हुए हूं और आत्म दृष्टि से अपने अतिरिक्त और कोई वस्तु न होने के कारण उन में प्रविष्ट नहीं भी हूं। 
यह ब्रह्म नहीं, यह ब्रह्म नहीं— इस प्रकार निषेध की पद्धति से और यह ब्रह्म है, यह ब्रह्म है— इस अन्वय की पद्धति से यही सिद्ध होता है कि सर्वातीत एवं सर्वस्वरूप भगवान ही सर्वदा और सर्वत्र स्थित है, वही वास्तविक तत्व है। जो आत्मा अथवा परमात्मा का तत्व जानना चाहते हैं, उन्हें केवल इतना ही जानने की आवश्यकता है।
ब्रह्माजी! तुम अविचल समाधि के द्वारा मेरे इस सिद्धांत में पूर्ण निष्ठा कर लो। इससे तुम्हें कल्प-कल्प में विविध प्रकार की सृष्टि रचना करते रहने पर भी कभी मोह नहीं होगा।

मंत्र:
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। 
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

अर्थः हे भगवान गणेश! आप विशालकाय और सूर्य के समान तेजस्वी हैं। हमारे सभी कार्य बिना विघ्न के पूरे करें।

गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ ‍ हूं…… माँ!

— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ महानतम गुणों की याद दिला रही रही हूँ जो तुम्हे परमात्मा का अनमोल उपहार है।

— मेरे बच्चे! तुम्हारे मस्तिष्क में अपार क्षमता है। तुम्हारी बुद्धि तीव्र है।

— तुम आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक जैसी क्षमता लेकर आ रहे हो। तुममे कठिन से कठिन समस्या को सुलझाने की योग्यता है।

— तुम रामानुजन जैसी गणित के सवालों को हल करने की क्षमता रखते हो।

— विवेकानंद जैसी महान प्रतिभा है तुममें।

— तुम्हारी याददाश्त बहुत अच्छी है, जो बात तुम याद रखना चाहो तुम्हें सदा याद रहती है।

— तुम्हारी एकाग्रता कमाल की है। जिस काम पर तुम फोकस करते हो उसमें बेहतरीन परिणाम लेकर आते हो।

— कोई भी विषय, कोई भी टॉपिक तुम्हारे लिए कठिन नहीं, हर विषय को अपनी लगन से, परिश्रम से तुम सरल बना लेते हो।

— तुम्हारे भीतर अनंत संभावनाएं छुपी हुई है।

— तुम्हें म्यूजिक का बहुत शौक है, तुम सभी वाद्य यंत्र बजाना जानते हो। ढोलक, गिटार, तबला, हारमोनियम, तुम बहुत अच्छे से बजा सकते हो।

— तुम्हारा दिमाग बहुत तेज चलता है। मुश्किल से मुश्किल समस्या का भी तुम बड़ी आसानी से हल निकाल लेते हो।

— तुम्हारी वाणी में मिठास है। तुम एक बहुत अच्छे गायक हो। जब तुम गाते हो तो सभी मंत्रमुग्ध हो जाते है।

— तुम्हें पढ़ाई में सभी सब्जेक्ट अच्छे लगते है। जो भी पढ़ते हो बड़ी आसानी से याद हो जाता है

गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे! जब तुम भगवान पर विश्वास रखते हो, तो जीवन के हर पहलू में आशा और उम्मीद बनी रहती है। भगवान के समय पर हर चीज सही होती है, और जब तुम उनके मार्ग पर चलते हो, तो वह तुम्हें सही दिशा में ले जाते हैं। मैं चाहती हूं कि तुम हर परिस्थिति में भगवान के समय पर विश्वास करो, क्योंकि उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन तुम्हारे लिए सर्वोत्तम होगा।”

पहेली:
बाल नुचे कपड़े फटे मोती लिए उतार। 
यह बिपदा कैसी बनी जो नंगी कर दई नार।।

कहानी: परिवार का सम्मान
किसी गांव में रहने वाले रामलाल का परिवार अपनी ईमानदारी और सम्मान के लिए पूरे गांव में जाना जाता था। रामलाल एक साधारण किसान थे, लेकिन उनकी सत्यनिष्ठा और आदर्शों के कारण हर कोई उनकी तारीफ करता था। उनके दो बेटे, अजय और विजय और एक बेटी सीमा थीं। तीनों बच्चे पढ़ाई में अच्छे थे और अपने माता-पिता का आदर करते थे।

एक दिन गांव में एक नई पंचायत बनी। पंचायत का मुखिया श्याम, अपनी चालाकी और झूठी बातों के लिए मशहूर था। उसने पंचायत के माध्यम से गांव की जमीनों को हड़पने की योजना बनाई। जब यह बात रामलाल को पता चली, तो उन्होंने इसका विरोध करने का फैसला किया।

श्याम ने रामलाल को धमकाते हुए कहा, “तुम एक साधारण किसान हो। तुम्हारे जैसे लोग मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। अगर तुमने मेरे खिलाफ आवाज उठाई, तो तुम्हारे परिवार का नाम खराब कर दूंगा।”

रामलाल को यह सुनकर दुख हुआ, लेकिन उन्होंने पीछे हटने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपने बच्चों को समझाया, “हमारा परिवार सच्चाई और ईमानदारी के लिए जाना जाता है। हमें किसी के डर से अपने आदर्शों को छोड़ना नहीं चाहिए।”

अजय और विजय ने पिता की बात मानी और उनके साथ खड़े हो गए। उन्होंने गांव के अन्य ईमानदार लोगों को एकजुट किया और श्याम की साजिश को उजागर किया। पंचायत की बैठक में, रामलाल ने सबके सामने श्याम की धोखेबाजी के सबूत पेश किए।

श्याम का सच सबके सामने आ गया। गांव वालों ने रामलाल और उनके परिवार की हिम्मत और ईमानदारी की तारीफ की। रामलाल ने अपने बच्चों से कहा, “हमने सिखाया था कि परिवार का असली सम्मान सत्य और ईमानदारी में है। आज तुमने इसे साबित कर दिया।”

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चाई और ईमानदारी से परिवार का सम्मान बढ़ता है। कठिन समय में भी अपने मूल्यों पर कायम रहना हमें दूसरों की नजरों में श्रेष्ठ बनाता है।

पहेली का उत्तर : भुट्टा (छल्ली)
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