तस्वीर - भाग - 3 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • विंचू तात्या

    विंचू तात्यालेखक राज फुलवरेरात का सन्नाटा था. आसमान में आधी...

  • एक शादी ऐसी भी - 4

    इतने में ही काका वहा आ जाते है। काका वहा पहुंच जिया से कुछ क...

  • Between Feelings - 3

    Seen.. (1) Yoru ka kamra.. सोया हुआ है। उसका चेहरा स्थिर है,...

  • वेदान्त 2.0 - भाग 20

    अध्याय 29भाग 20संपूर्ण आध्यात्मिक महाकाव्य — पूर्ण दृष्टा वि...

  • Avengers end game in India

    जब महाकाल चक्र सक्रिय हुआ, तो भारत की आधी आबादी धूल में बदल...

श्रेणी
शेयर करे

तस्वीर - भाग - 3

अगले दिन अष्टमी का दिन था, सुबह से ही अनुराधा के घर बड़ी धूमधाम थी। बहुत लोग आए हुए थे। पूजा का कमरा अगरबत्ती की खुशबू से महक रहा था। फूलों की मालायें भी अपनी सुंदरता से कमरे में चार चाँद लगा रही थीं। मंदिर में माँ दुर्गा की बहुत ही सौंदर्य और श्रृंगार से भरी मूर्ति विराजमान थी। श्लोकों की ध्वनि और हवन के धुएँ से मानो पूरा घर पवित्र हो रहा था।

एक तरफ़ खाने की तैयारी भी चल रही थी। खीर, पूरी, कचौरी और आलू टमाटर की सब्जी, जो बच्चों को बहुत पसंद आती है सबका इंतज़ाम था। श्लोका भी आई हुई थी। अनुराधा और उसकी सासू माँ अवंतिका ने मिलकर कन्याओं को आसन पर बिठाया। परात में एक-एक करके सभी कन्याओं के पांव धोये तथा उस पानी को उन्होंने अपने माथे पर भी लगाया।

यह सब देखकर श्लोका बहुत दंग थी परंतु उसे यह सब बहुत अच्छा लग रहा था। उसके बाद उन सभी कन्याओं को कुमकुम का टीका लगाया गया। उनके ऊपर अक्षत छिड़के गए। इसके बाद माँ दुर्गा का नाम लेकर उनकी जय-जय कार पूरे वातावरण में गूंज गई।

अब कन्या भोज की बारी थी, सभी कन्याओं से भोजन करने का आग्रह किया गया। बच्चियों ने बड़े ही चाव से भोजन ग्रहण किया। भोजन के बाद सभी को फल और पैसों की दक्षिणा भी मिली, फिर सभी कन्याएँ अपने-अपने घर चली गईं।

इस तरह की पूजा और कन्या भोजन अनुराधा के घर हर वर्ष ही मनाया जाता था। छोटी-छोटी इन कन्याओं को बिल्कुल माता जी का रूप ही माना जाता था।

श्लोका का परिवार केवल एक वर्ष के लिए ही वहाँ आया था। इस एक वर्ष में श्लोका को दो बार कन्या भोजन के लिए बुलाया गया क्योंकि साल में दो बार माता जी का आगमन होता है। इस तरह से एक साल में दो बार श्लोका को कन्या भोज में शामिल होने का मौका मिला था।

वंदना तो नौकरी करती थी, इसलिए उसे किसी के साथ जुड़ने का समय कम ही मिलता था। श्लोका भी कभी कन्या भोज के अलावा अनुराधा के घर नहीं गई थी क्योंकि वहाँ उसके साथ खेलने वाला कोई नहीं था।

देखते-देखते पूरा वर्ष बीत गया और वंदना के पति अतुल का तबादला हो गया। अपने परिवार के साथ वे सब दूसरे शहर रहने चले गए। इधर अनुराधा के घर उसी तरह हर वर्ष देवी स्थापना और कन्या भोज होता रहा । एक दो बार उन्हें श्लोका की याद अवश्य आई किंतु बीतते समय के साथ यादों का सिलसिला भी  बीत गया। अनुराधा जल्दी ही श्लोका और वंदना के परिवार को भूल गई। जैसे राह चलते-चलते किसी से मुलाकात हो जाती है बस फिर वह मुलाकात वहीं पर समाप्त हो जाती है। ठीक वैसे ही यह जान पहचान भी मानो बीते वक़्त की भेंट चढ़ गई। समय बीत रहा था और श्लोका भी धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी।

इधर अनुराधा का परिवार इस समय आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। उसके पति सुरेश को उनके धंधे में काफ़ी घाटा हो गया था और शेयर बाज़ार में लगाये पैसों में भी भारी गिरावट आ गई थी। इस वज़ह से उन्होंने अपने पैतृक घर जो कि बहुत बड़ा था उसे बेचने का मन बना लिया।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः