दो दिलों का मिलन - भाग 3 Lokesh Dangi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दो दिलों का मिलन - भाग 3



समय बीतता गया, और लोकेश और मुस्कान की मुलाकातें बढ़ती गईं। बाग अब सिर्फ एक स्थान नहीं था, बल्कि एक ऐसी जगह बन गई थी, जहाँ उनके रिश्ते ने धीरे-धीरे अपनी जड़ें मजबूत करना शुरू किया था। दोनों एक-दूसरे से और भी करीब होते जा रहे थे, और उनकी बातचीत अब सिर्फ समस्याओं तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे अपने सपनों, इच्छाओं और भविष्य के बारे में भी बात करने लगे थे।

एक शाम, जब सूरज धीरे-धीरे अस्त हो रहा था और बाग में हल्का सा सर्द मौसम था, लोकेश और मुस्कान बेंच पर बैठे हुए थे। उनके चारों ओर बाग के रंग-बिरंगे फूलों से उठती महक और ठंडी हवा के झोंके के बीच एक शांत माहौल था।

"तुमने कभी सोचा है," मुस्कान ने अचानक पूछा, "कि हम दोनों कितनी अलग-अलग दुनिया से आते हैं, फिर भी हमारे बीच एक ऐसा रिश्ता बन गया है?"

लोकेश ने मुस्कान की ओर देखा, उसकी आँखों में एक गहरी समझ थी। "हां, मैंने सोचा है। कभी-कभी लगता है कि हम दोनों अलग-अलग रास्तों पर चल रहे थे, लेकिन शायद अब हमें एक-दूसरे से मिलने की जरूरत थी, ताकि हमारी दुनिया थोड़ी और सुंदर हो सके।"

मुस्कान ने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाया। "सच कहा तुमने। लेकिन कभी-कभी मुझे डर लगता है, लोकेश। डर यह कि क्या हम दोनों यह रिश्ता सही तरीके से निभा पाएंगे?"

लोकेश ने उसकी चिंता को महसूस किया और उसकी हाथों को हल्के से पकड़ लिया। "मुस्कान, मैं जानता हूँ कि रिश्ते कभी आसान नहीं होते। लेकिन अगर हम दोनों एक-दूसरे का साथ दें, तो मुझे यकीन है कि हम किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं।"

मुस्कान ने उसकी आँखों में देखा, और उसकी घबराहट कुछ कम हुई। "तुम सच में मेरे लिए बहुत खास हो, लोकेश।"

"तुम भी," लोकेश ने जवाब दिया, "मुझे लगता है कि हमें कुछ और समय एक-दूसरे के साथ बिताना चाहिए। हम दोनों के लिए यह बहुत जरूरी है।"

फिर वे कुछ देर चुपचाप बैठे रहे, सूरज की रोशनी में रंग बदलते हुए आसमान को देखते हुए। यह उनका पहला मौका था, जब वे दोनों एक-दूसरे से अपनी भावनाओं को पूरी तरह से साझा कर रहे थे। और उस पल में, ऐसा लगा जैसे उनका रिश्ता किसी नए मोड़ पर पहुंच चुका हो।

लेकिन तभी, बाग के उस शांतिपूर्ण माहौल में अचानक एक फोन की घंटी सुनाई दी। मुस्कान ने अपने बैग से फोन निकाला, और जैसे ही उसने स्क्रीन पर नाम देखा, उसका चेहरा कुछ उदास हो गया। लोकेश ने देखा और फौरन पूछा, "क्या हुआ, मुस्कान?"

मुस्कान ने फोन उठाया, और एक हल्का सा हिचकिचाते हुए कहा, "यह मेरे परिवार से है। मुझे लगता है, उन्हें मेरी ज़रूरत है।"

लोकेश ने उसकी तरफ देखा और उसकी आँखों में चिंता का भाव देखा। "क्या सब ठीक है?"

मुस्कान ने हल्का सा सिर झुकाया। "कुछ ठीक नहीं है। परिवार में और भी समस्याएँ बढ़ रही हैं। मुझे लगता है, मुझे घर वापस जाना होगा।"

लोकेश ने गहरी सांस ली, फिर मुस्कान के कंधे पर हल्का सा हाथ रखा। "मुस्कान, अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हें घर जाना चाहिए, तो तुम्हें जाना चाहिए। मैं समझता हूँ।"

मुस्कान ने एक लंबी सांस ली और फिर फोन पर जवाब दिया। "हलो," वह धीरे से बोली, "मैं कुछ देर में घर पहुँचती हूँ।" फिर उसने फोन काट दिया और लोकेश की ओर देखा। "मुझे लगता है, अब मुझे जाना होगा।"

लोकेश ने सिर झुकाया और कहा, "तुम ठीक हो, मुस्कान। तुम हमेशा मजबूत रही हो, और मैं जानता हूँ कि तुम इस बार भी अपनी समस्याओं का सामना कर सकोगी।"

मुस्कान ने धीरे से मुस्कराया और लोकेश के हाथ को हल्के से थामा। "धन्यवाद, लोकेश। तुम्हारी मदद और तुम्हारी समझ के लिए मैं हमेशा आभारी रहूँगी।"

"हमेशा," लोकेश ने कहा, "मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, मुस्कान।"

मुस्कान ने उसे आखिरी बार देखा और फिर बाग से बाहर जाने लगी। लोकेश ने उसकी दिशा में देखा, और उसकी आँखों में एक हल्की सी उदासी थी। वह जानता था कि मुस्कान को अपनी समस्याओं का हल ढूँढने के लिए कुछ समय चाहिए, लेकिन उसने यह भी जाना कि इस रिश्ते में केवल समय और समझ की ही नहीं, बल्कि एक दूसरे के लिए सच्चे समर्थन की भी जरूरत है।

जारी....