दो दिलों का मिलन - भाग 7 Lokesh Dangi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दो दिलों का मिलन - भाग 7

अचानक आई दूरी

मुस्कान के जाने के बाद, लोकेश की ज़िंदगी में एक अजीब सा सूनापन आ गया था। पहले जहाँ बाग में उसकी हंसी गूंजती थी, अब वहाँ सिर्फ ठंडी हवा बहती थी। हर शाम वह उसी बेंच पर बैठता, जहाँ कभी मुस्कान उसके साथ बैठा करती थी, और उसकी बातें कानों में गूंजने लगतीं।

पहले वे घंटों बातें किया करते थे, लेकिन अब दिनभर फोन पर सिर्फ दो-चार औपचारिक बातें होतीं। मुस्कान अपनी ट्रेनिंग में व्यस्त थी और लोकेश अपने काम में। लेकिन सच्चाई यह थी कि दोनों ही एक-दूसरे को बुरी तरह मिस कर रहे थे।

एक दिन, मुस्कान ने वीडियो कॉल किया।

"कैसे हो, लोकेश?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा, लेकिन उसकी आँखों में थकान झलक रही थी।

"मैं ठीक हूँ," लोकेश ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की। "तुम कैसी हो?"

"बहुत थक गई हूँ," मुस्कान ने कहा। "यहाँ ट्रेनिंग बहुत कठिन है, लेकिन मैं सीख रही हूँ।"

"मैं जानता हूँ कि तुम कर सकती हो," लोकेश ने कहा। "तुम हमेशा से मजबूत रही हो।"

मुस्कान मुस्कुराई, लेकिन फिर अचानक उसकी आवाज़ धीमी हो गई। "लोकेश, कभी-कभी बहुत अकेलापन महसूस होता है।"

"मुझे भी," लोकेश ने धीरे से कहा।

दोनों के बीच चुप्पी छा गई। यह चुप्पी ही बता रही थी कि वे दोनों कितना कुछ कहना चाहते थे, लेकिन कह नहीं पा रहे थे।

रिश्ते में तनाव की शुरुआत

धीरे-धीरे, उनकी बातचीत में बदलाव आने लगा। पहले जहाँ वे घंटों फोन पर बातें करते थे, अब उनके बीच संक्षिप्त और औपचारिक बातें ही होतीं।

एक शाम, जब लोकेश ने फोन किया, तो मुस्कान ने जल्दी से जवाब दिया, "लोकेश, मैं बाद में बात करती हूँ, बहुत काम है।"

"अच्छा, कोई बात नहीं," लोकेश ने कहा, लेकिन भीतर से उसे बहुत बुरा लगा।

ऐसा कई बार हुआ। मुस्कान व्यस्त थी, और लोकेश को महसूस होने लगा कि वह उसकी प्राथमिकता नहीं रही।

एक दिन, उसने हिम्मत करके पूछा, "मुस्कान, क्या हमारे रिश्ते में कुछ बदल रहा है?"

मुस्कान थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, "नहीं, लोकेश। बस यहाँ का माहौल बहुत अलग है, और मैं खुद को ढालने की कोशिश कर रही हूँ।"

"मुझे समझ में आता है," लोकेश ने कहा, लेकिन उसका दिल भारी हो गया।

उसे लगने लगा कि वह धीरे-धीरे मुस्कान से दूर होता जा रहा है।

नए लोग, नई परिस्थितियाँ

मुस्कान की ट्रेनिंग के दौरान उसकी मुलाकात नए लोगों से हुई। उनमें से एक था आदित्य—एक समझदार और आत्मविश्वासी लड़का, जो नर्सिंग में काफी अच्छा था।

आदित्य और मुस्कान अक्सर एक साथ ट्रेनिंग करते, असाइन्मेंट्स में मदद करते, और कभी-कभी कॉफी पीने भी चले जाते। यह सब बिल्कुल सामान्य था, लेकिन लोकेश के लिए यह आसान नहीं था।

एक दिन, जब लोकेश ने मुस्कान से वीडियो कॉल किया, तो उसने पीछे से आदित्य की आवाज़ सुनी।

"अच्छा मुस्कान, मैं चलता हूँ, कल मिलते हैं," आदित्य ने कहा।

लोकेश के कान खड़े हो गए।

"यह कौन था?" उसने तुरंत पूछा।

मुस्कान ने सहजता से जवाब दिया, "ओह, यह आदित्य है। मेरा ट्रेनिंग पार्टनर। बहुत अच्छा लड़का है, बहुत हेल्पफुल भी।"

"अच्छा," लोकेश ने कहा, लेकिन उसके दिल में हल्का सा खटक उठा।

उसने खुद को समझाया कि वह ज्यादा सोच रहा है, लेकिन उसके अंदर हल्का सा शक घर करने लगा था।

शक और असुरक्षा

समय के साथ, लोकेश को लगने लगा कि मुस्कान उससे धीरे-धीरे दूर हो रही है। पहले जहाँ वह हर छोटी-बड़ी बात उससे साझा करती थी, अब वह बस सतही बातें करती थी।

एक दिन, उसने हिम्मत करके पूछ लिया, "मुस्कान, क्या तुम्हें लगता है कि यह दूरी हमें बदल रही है?"

मुस्कान ने एक पल के लिए सोचा, फिर कहा, "लोकेश, मैं नहीं चाहती कि हमारे बीच कोई गलतफहमी हो। मैं जानती हूँ कि हम पहले जितना समय साथ नहीं बिता पा रहे, लेकिन मैं तुम्हें अब भी उतना ही प्यार करती हूँ। बस यहाँ का माहौल बहुत व्यस्त कर देता है।"

"मुझे तुम्हारी बात समझ में आती है," लोकेश ने कहा। लेकिन फिर भी, उसका दिल आश्वस्त नहीं था।

उसे लग रहा था कि मुस्कान की ज़िंदगी में आदित्य की मौजूदगी कहीं न कहीं उसे बदल रही थी। वह पहले जितना उत्साहित होकर लोकेश से नहीं मिलती थी, उसकी आवाज़ में पहले जैसी गर्माहट नहीं थी।

संघर्ष का बढ़ना

फिर एक दिन, लोकेश और मुस्कान के बीच पहली बड़ी बहस हुई।

"मुस्कान, क्या तुम मुझसे दूर जा रही हो?" लोकेश ने सीधा सवाल किया।

"लोकेश, यह क्या सवाल है?" मुस्कान झुंझला गई।

"मैं देख सकता हूँ कि चीजें बदल रही हैं, मुस्कान। पहले हम हर दिन घंटों बातें करते थे, अब मुश्किल से कुछ मिनट निकालते हो। क्या तुम सच में अब भी मुझसे उतना ही प्यार करती हो?"

मुस्कान ने गहरी सांस ली। "लोकेश, यह सिर्फ परिस्थितियाँ हैं। मैं अब भी तुम्हें प्यार करती हूँ, लेकिन मेरी ज़िंदगी में और भी चीज़ें हैं जिन पर ध्यान देना ज़रूरी है। क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें धोखा दे रही हूँ?"

लोकेश कुछ नहीं बोला। वह चाहता था कि ऐसा न सोचे, लेकिन कहीं न कहीं उसके मन में यह सवाल उठने लगा था।

"अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है, तो यह हमारे रिश्ते के लिए अच्छा संकेत नहीं है," मुस्कान ने कहा।

"मैं भरोसा करता हूँ, लेकिन कभी-कभी लगता है कि मैं तुम्हें खो रहा हूँ," लोकेश ने धीरे से कहा।

"तुम मुझे खो नहीं रहे हो, लोकेश। बस मुझे थोड़ा वक्त दो।"

लोकेश ने सिर हिलाया, लेकिन अंदर से वह जानता था कि उनका रिश्ता अब पहले जैसा नहीं रहा।

अब आगे क्या होगा?

1. क्या मुस्कान और आदित्य की दोस्ती कोई नया मोड़ लाएगी?


2. क्या लोकेश अपनी असुरक्षा पर काबू पा पाएगा या यह उनके रिश्ते को और बिगाड़ देगा?


3. क्या यह दूरी वास्तव में उनके रिश्ते को तोड़ने वाली है, या फिर वे इससे और मजबूत होंगे?



अब कहानी उस मोड़ पर है, जहाँ एक छोटी सी ग़लतफहमी बड़ा रूप ले सकती है।