श्रापित Aarti Garval द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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श्रापित

मनोहरपुर का नाम सुनते ही लोगों के चेहरे पर अजीब सी घबराहट आ जाती थी। यह शहर अपनी पुरानी हवेलियों, वीरान गलियों और रहस्यमयी घटनाओं के लिए कुख्यात था। इन सब में सबसे ज्यादा बदनाम थी चंद्रिका हवेली। कई दशकों से यह हवेली वीरान थी, और इसके बारे में यह अफवाह थी कि जो भी वहां रात बिताने गया, वह कभी लौटकर नहीं आया।

कई खोजी पत्रकारों ने इस हवेली की सच्चाई जानने की कोशिश की, लेकिन या तो वे वापस नहीं लौटे या लौटे तो कुछ कहने की हालत में नहीं थे।

नेहा शर्मा, एक साहसी और प्रसिद्ध खोजी पत्रकार थी। उसे चुनौतियों से खेलना पसंद था। जब उसे चंद्रिका हवेली के रहस्यों के बारे में पता चला, तो उसने खुद इसे सुलझाने का फैसला किया। लेकिन इस बार वह खुद को ऐसे रहस्य में फंसा बैठी, जिससे निकल पाना आसान नहीं था।

नेहा ने उस दिन ऑफिस में एक बड़ी स्टोरी खत्म की थी और थकी हुई अपनी मेज पर सिर टिकाए हुए थी। तभी एक औरत ने दरवाजे पर दस्तक दी।

"मेरी मदद कीजिए..... मुझे बचा लीजिए, सिर्फ आप ही है जो मुझे बचा सकती है।" उसने थकी हुई आवाज़ में कहा।

"अगर सच्चाई जानने का हौसला है, तो आज रात चंद्रिका हवेली पहुँचो," एक गहरी और अजनबी आवाज़ ने कहा।

"आप कौन हैं? और किससे खतरा है तुम्हें? - नेहा ने  कहा 

" चंद्रिका हवेली..... मेरी बच्ची..... मेरी बच्ची है वहां पर..... जल्दी-जल्दी हमारी मदद कीजिए...." - उस औरत ने घबराते हुए कहा

आज रात 12 बजे वहाँ पहुँच जाना.... कहते कहते वह औरत वहां से घबराती हुई भाग गई।

नेहा कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गई। उसे लगा कि यह कोई मज़ाक है। लेकिन मन के एक कोने में जिज्ञासा ने घर कर लिया। उसने चंद्रिका हवेली के बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया।

उसे पता चला कि हवेली किसी समय चंद्रिका देवी की थी, जो बहुत शक्तिशाली रानी थीं। लेकिन उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। उनके परिवार के सभी लोग कुछ ही समय में गायब हो गए, और तब से हवेली को भूतिया मान लिया गया।

रात के 11:30 बजे नेहा अपनी गाड़ी से हवेली की ओर रवाना हुई। चारों ओर घना अंधेरा था, और रास्ता सुनसान। हवेली के पास पहुँचते ही उसे महसूस हुआ कि माहौल अजीब सा है। हवेली के बाहर एक बड़ा सा लोहे का गेट था, जिस पर बेलों ने अपनी पकड़ बना ली थी।
नेहा ने गेट खोला और अंदर कदम रखा। जैसे ही उसने हवेली की दहलीज़ पार की, उसे लगा कि किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने पलटकर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।

हवेली के अंदर का दृश्य डरावना था। चारों ओर जाले, टूटे फर्नीचर, और दीवारों पर अजीबोगरीब पेंटिंग्स थीं। एक तस्वीर में चंद्रिका देवी का चेहरा बना था। उनकी आंखें ऐसी लग रही थीं जैसे नेहा को घूर रही हों।
हॉल के बीच में एक पुरानी टेबल पर एक मोमबत्ती जल रही थी। नेहा को लगा कि कोई उसका इंतजार कर रहा है। तभी उसे ऊपर की मंज़िल से किसी के कदमों की आवाज़ सुनाई दी।

"कौन है वहाँ?" नेहा ने जोर से पूछा।
कोई जवाब नहीं आया।

नेहा ने हिम्मत जुटाई और हवेली की तलाशी शुरू की। तभी उसकी नजर दीवार पर बने एक अजीब निशान पर पड़ी। उसने ध्यान से देखा और पाया कि वहाँ एक गुप्त दरवाजा था।
दरवाजा खोलते ही उसे एक संकरी सीढ़ी दिखाई दी, जो नीचे तहखाने की ओर जा रही थी। सीढ़ियों पर हर कदम के साथ, उसे ठंड बढ़ती महसूस हुई।

तहखाने में पहुँचकर नेहा को एक बक्सा दिखा। उसने बक्सा खोला, तो उसमें से एक पुराना सोने का हार और खून से सना कपड़ा निकला। बगल में रखे पुराने पत्र को पलटने पर नेहा को चौंकाने वाले तथ्य पता चले।

पत्र में लिखा था कि चंद्रिका देवी की हत्या उनके ही परिवार ने की थी, क्योंकि वह हवेली के खजाने को हथियाना चाहते थे। चंद्रिका ने मरने से पहले अपने हत्यारों को श्राप दिया था कि कोई भी इस खजाने को नहीं पा सकेगा।
तभी नेहा को किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। वह तुरंत अलर्ट हो गई। आवाज़ तहखाने के कोने से आ रही थी।

जैसे ही नेहा ने उस कोने में कदम रखा, एक परछाई उसके सामने खड़ी हो गई।

"तुम यहाँ क्यों आई हो?" परछाई ने फुसफुसाते हुए पूछा।

नेहा ने साहस दिखाते हुए कहा, "तुम कौन हो?"
परछाई हँसने लगी। "मैं चंद्रिका हूँ। यह हवेली मेरा बदला लेने का इंतजार कर रही है।"

नेहा को समझ में आ गया कि यह कोई आत्मा नहीं, बल्कि किसी इंसान की चाल है। उसने अपनी टॉर्च चालू की और परछाई के पीछे छुपे एक आदमी को देखा। वह आदमी हवेली का चौकीदार निकला। उसने हवेली की रहस्यमयी कहानियों का फायदा उठाकर खजाने को अपने कब्जे में करने की योजना बनाई थी।

नेहा ने पुलिस को बुलाया और चौकीदार को गिरफ्तार करवाया। साथ ही उसने चंद्रिका देवी की कहानी को पूरी दुनिया के सामने लाने का निर्णय किया।


साथ ही साथ उसके मन में घूम रहा था एक ही सवाल.... आखिर मुझे इस हवेली तक लाने वाली वह औरत कहीं......