छूत के डर से घर वालों ने मां को छत वाला कमरा दे रखा था ।
हम नीचे वालों को इस कड़े आदेश के साथ,ऊपर अब कोई नहीं जाएगा ।
मां के पास केवल बहन बनी रहती थीॅ ।
वह हम पांचों भाइयों से बड़ी हैं । बल्कि मेरे और उन के बीच बारह साल का अंतर है।
मां के तपेदिक के कारण वह अपने तेइसवें साल में भी ब्याही न गयीं थीं।
दादी की नज़र बचा कर मैं अक्सर छत पर पहुंच जाता ।
मां मुझे देखते ही अपनी खांसी दबाने की चेष्टा करतीं और बहन अपने मुंह पर बांधा गया रुमाल खोल कर अपने हाथ साबुन से धोने लगतीं, उधर ही दूर रहो। मैं अभी आती हूं।
बहन के संग मेरा समय बहुत अच्छा कटता। चारों भाई मुझ से बड़े हैं और अपने खेलों या बातचीत में मुझे शामिल न होने देते। जब कि बहन मुझ से बहुत प्यार करतीं।उन की संंगति में छत की दीवार से सट कर पूरे गांव का नज़ारा देखना मुझे बहुत भाता।
हमारे गांव में बहुत कम मकान हमारे मकान की तरह तिमंजिले हैं । हमारा मकान हमारे दादा ने सन इक्यावन में बनवाया था। इधर सरकारी ग्रामीण बैंक के खुलने से हमारी साहूकारी को एक ज़ोरदार धक्का ज़रूर लगा था,वरना हमारी पुश्तैनी साहूकारी एक लंबे समय तक बड़ी मज़बूत रही थी।
‘’आज क्या ढूंढेगे?” बहन जैसे ही मेरे पास पहुंचतीं,मैं अपनी मौज में बहने लगता।
एक दिन बहन सरकारी स्कूल के लड़कों के खेल का मैदान सुझातीं, तो दूसरे दिन ग्रामीण बैंक का दफ़्तर तो तीसरे दिन बरगद के पेड़ पर बन रहे नए घोंसले।
उस दिन जब मैं छत पर पहुंचा तो दूसरे दिनों की तरह बहन का मुंह बंधा न रहा,खुला रहा।
बल्कि मुझे देखते ही उन्हों ने एक नए रुमाल से पहले अपना मुंह ढका और फिर मेरे पास आयीं।
“क्या बात है?” मैं घबरा गया।
बहन फफक-फफक कर रो पड़ीं।
“ क्या मां मर रहीं हैं?” मैं ने पूछा।
“नहीं,” बहन ने सिर हिलाया।
“ फिर? बताएं क्या बात है?”
“ परसों डाक्टरनी ने मेरी बांह पर एक टीका लगाया था,”अपनी कमीज़ को बहन ने अपनी बांह की ओर थोड़ी पीछे को सरकाई और अपनी बांह मुझे सामने से दिखाने लगीं।
“आप की बांह तो बहुत सूजी हुई है,” मैं ने कहा,” और लाल भी पड़ गयी है…..”
“ हां,” बहन की हिचकियां बंधने लगीं,” डाक्टरनी ने कहा था, अगर मुझे तपेदिक होगा तो टीके वाली जगह लाल पड़ेगी और सूजन दिखाएगी…”
“ अब क्या होगा?” मेरी ज़ुबान खुश्क हो चली।
“मां की तरह मैं भी अब जल्दी मर जाऊंगी।”
“ मां को जब मरना हो, मरें, ” अन्य घर वालों की तरह मैं भी मां से नफ़रत करता था – हरदम खांसतीं और थूकतीं मां को प्यार करना बहुत मुश्किल था —,”मगर आप को नहीं मरना चाहिए, कभी नहीं मरना चाहिए….”
“ मां के लिए ऐसा बोलोगे?” गुस्से से बहन रोना भूल गईं,” मां बेचारी का दुख तो मेरे दुख से बहुुत बड़ा है।”
“कैसे?” मैं सहम गया।
“ बेचारी बीमार क्या हुईं,सभी घर वालों ने उन्हें अलग फेंक दिया। उन्हें पूछना छोड़ दिया।भूल गए सब। उन्हीं सब की सेवा करते हुए मां बेचारी की आधी से ज़्यादा उम्र बीती थी।मगर नहीं,मां का इलाज कराने की बजाय उन्हें इधर ऊपर टांग दिया….”
“ डाक्टरनी आती तो हैं,हर मंगलवार को मां को देखने…..”
“ वह कहती हैं पूरे इलाज के लिए पहले थूक की पूरी जांच होनी चाहिए,फेफड़ों का एक्सरे
होना चाहिए और यह सब शहर के अस्पताल के काम हैं,सप्ताह में एक बार देखने आई डाक्टरनी के नहीं….”
“मैं बाबू जी से कहूंगा,” मैं ने संकल्प किया,” मैं बाबू जी से कहूंगा। अभी कहता हूं। आप का और मां का इलाज होगा। ज़रूर होगा। पूरा इलाज होगा…..”
मेरी ज़िद पर बाबू जी ने पहले तो कोई ध्यान न दिया मगर जब मैं ने स्कूल जाना छोड़ दिया,सब खाना-पीना छोड़ दिया,तो तीसरे दिन बाबू जी ने मुझे आवाज़ दी ,” बृजलाल आओ।
ऊपर चलते हैं। बिटिया और तुम्हारी मां को शहर ले जाने के लिए तैयार करते हैं। तुम्हारी बात टालना मेरे लिए बहुत मुश्किल है ……”
खुशी से मैं बाबू जी से चिपक कर रोने लगा।
शहर के डाक्टरों ने बहन को आठ सप्ताह ही में ठीक कर दिया। उन की बीमारी शुरू ही में पकड़ ली गयी थी और उस पर काबू पाना आसान रहा था।
अलबत्ता मां को ठीक होने में अभी समय लगेगा।
मगर वह ठीक हो जाएंगी, ज़रूर ठीक हो जाएंगी,बहन का कहना है,वह ठीक हो भी रहीं हैं,और उन के ठीक होते ही बहन उन के साथ गांव लौट आएंगी।