भैया का गीता ज्ञान Paresh Dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भैया का गीता ज्ञान

भैया के  आदेशानुसार ,जैसे हर त्यौहार,देव-महापुरुष जयंतीया व बड़े नेताओं के शहर आगमन पर कुछ न कुछ आयोजन किया जाता है,आज  भी सड़क का एक भाग पूरी  तरह रोक कर तम्बू  तान दिया था , मार्ग के दोनो ओर डिवाइडर पर लगे विज्ञापन बोर्डों , व बस्ती के अंदर तक ,भैया की मनोहरी छवि के  साथ बबलू पण्डित  स्वंय व अन्य साथियों के बडे बडे फ्लेक्स बेनर से पाट दिए गए थे, ध्वनि  बिस्तारक यंत्रों  द्वारा आकाश गुंजा देने वाली  तैयारियों के अंतिम निरीक्षण के लिए अपनी बबलू गले मे भैया के नाम का दुप्पट्टा  डाले मोटरसाइकिल से सभा स्थल  पहुंचा।पब्लिक को रास्ता बंद होने की बिना किसी पूर्व सूचना दिये पुलिस जवान सिटी  बजा यू  टर्न कर  वापस भेज रहे थे,वैकल्पिक रास्ता ढूंढने की जिम्मेदारी हमेशा की तह जनता की ही थी , बबलू को देख ड्यूटी इंसपेक्टर ने अभिवादन  किया और बेरियर  हटा जाने  बन रहे स्टेज की ओर जाने दिया। पांडाल का  मुआयना करते हुए ,वापस मोटरसाइकिल के पास लौटते हुए बबलू व साथी रोड डिवाइडर के उस  पार   बेतरतीब गुथमगुथा  हुए ट्रेफिक में परेशान लोगों को देख ठिठोली करने लगे।  दोनो दिशाओं से आने वाले ट्रेफिक के एक ही तरफ हो जाने से , पैदल , सायकल , ई  रिक्शा, स्कूल बस, ,महंगी इस यू व्ही से लगाकर, एम्बुलेंस में सवार,  बच्चे, मरीज, कर्मचारी, लाडली लक्ष्मियाँ, व बहने ,मजदूर सभी DJ व लाउड स्पीकर पर भैया व आने वाले राष्ट्रीय नेता के गुणगान   व हॉर्न की कर्कश आवाज़ों से परेशान अपने  जरूरी काम  पर पहुँचने की जद्दोजहद में हैरान परेशान  थे, " आपदा में अवसर" ढूंढ कुछ आवारा  ट्रेफिक में  फँसी युवतियों व महिलाओं से छेड़छाड़ कर  " समय का सदुपयोग भी करने लगे थे।,अचानक  बबलू की नजर  स्कूटी पर बच्ची को लिए एक युवती पर पड़ी ,  लोगों की परेशानी से  निर्लिप्त  बबलू  अचानक जैसे नींद से जागा,सभी  साथियों  व   अभी तक निष्क्रिय पुलिस जवानों के साथ मिल ट्रेफिक क्लियर करने या उस लड़की को बाहर बाहर निकलवाने में लग गया, अचानक  इस परिवर्तन पर अचंभित एक भाई को दूसरे ने बताया  बबलू भैया  की "पुरानी पार्टी" है , आधे घण्टे की कोशिशों के बाद ट्राफिक सुचारू करवाने  के बाद , लड़की से कृतज्ञता  या धन्यवाद की जगह  मिले जलती  नजरों के उलाहने ने बबलू का मूड खराब  कर दिया।

*****

कुछ देर बेमन से पंडाल की  व्यवस्था के बाकि  काम करवाने की कोशिश के बाद सब कुछ छोड़ बबलू  उचाट मन के साथ भैया के कार्यालय पहुंचा, सीधे अंदर जा ही रहा था कि तैनात सिक्योरिटी ने अंदर  जाने से रोक दिया , बबलू ने तमक कर  भाषा विशेषणों के साथ पूछा " मुझे नहीं पहचानता क्या?, ,    बबलू भैया  क्यों गर्म हो रहे हो  भैया ने आपको ही विशेष रूप से इंतजार  करने के लिए कहा है , हँसते हुए  जवाब मिला।

सफल राजनेताओं को डिग्रीधारी ज्ञानी लोग भले ही अनपढ़ समझे लेकिंन बिना  किसी डिग्री के इन्हें  "ह्यूमन सायकोलोजी" व " "ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट"में महारथ  होती है, भैया  जानबूझकर बबलू को  इंतजार  करवाना चाहते थे ताकि वो क्षणिक उद्वेग से निकले, साथ ही भैया के सामने उसकी हैसियत  का भी एहसास हो; लेकिन बबलू  सोचते सोचते  जिंदगी की गलियों में और ज्यादा पीछे चलता चला गया, किसी समय वो  कालेज में क्लास वन   न सही पर  क्लास टू  आफिसर होने लायक तो मन ही जाता था,  इतनी देर में रिवर्स गियर में घूमते उसके  दिमाग में  स्वयं भोगी  व आम जनता से जुड़ी रोजमर्रा की परेशानियां  व व्यवस्था पर प्रश्न जिंदा होने लगे, उसने सोच लिया बस अब ये भैया गिरी   नहीं हो पाएगी।

आधे -पोन  घंटे बाद अंदर " भैया" ने बबलू को अंदर बुलाया ।" जल्दी  बोल ऐसी  क्या  नई बात हो गई  कि  जरूरी काम छोड़ यहां रोने चला आया है""  भैया  रोज -रोज  हमारे शक्ति प्रदर्शन से लोगों को परेशान देख अब मन  घबराने  लगा है , हाथ पांव  काम नहीं  कर रहे है, मन मे ग्लानि हो रही है, मुझसे अब  ये काम नही होगा, आप तो कोई नोकरी दिलवा दो ,या कोई  छोटा मोटा धंधा कर  लूँगा"।

भैया बोले:  "तेरे यहाँ आने से पहले ही  मुझे पता  है , लड़की वो भी दूसरे की पत्नी के मोह  मे तू अपना अच्छा भला काम छोड़ रहा है हो ,  तेरी जगह  कोई और होता तो मै  बाहर से ही चलता कर देता , ऐसे " गोदी के के लाड़ " पालता रहता तो शहर  चलाने  की जगह  मंदिरों   भजन गाता रहा जाता , लेकिन मैंने तेरे  पिताजी के साथ राजनीति शुरू करी थी व  उससे सीखा भी था , कोरी सिद्धान्तों  की बातों  ने ही उसने लोगो को दुश्मन बनाया व असमय चला  गया , पुराने  पारिवारिक  सम्बंध होनेके कारण तू  मेरा खास   प्रिय है , इसलिए  मै तुझे समझाने  की कोशिश कर रहा हूँ।" तुझ जैसे समर्पित कार्यकर्ता को बेवक़्त ये ज्ञान  हुआ है, तुझसे ये उम्मीद नही है , ये निर्णय न तो अच्छा जीवन देने वाला है और न ही  नाम  करने वाला है ,  छोटी मोटी बाते तो चलती रहती है , दिल की भावनाएं छोड़  दिमाग से काम ले और काम में लग जा ।"

तू जिस भीड़ को देखकर  उदास हो रहा है और ज्ञान की  बातें कर रहा है  वो  वो खुद  चुनाव में हमको  बार -बार विजय दिल रही है, और ऐसा तो नहीं है कि शहर में कभी किसी काल में सड़के रोककर ये सब , जुलूस -जलसे न हुए हो, या ये अव्यस्था नहीं थी और न ही ऐसा है कि आगे भी नहीं रहेगी,"

लेकिन भैया जो पहले नही था उसी व्यवस्था को सुधारने  के लिये तो लोगो ने हमको वोट दिए थे,, हमेशा ऐसा ही होता है कि जनता परिवारवाद से छुटकारा, ईमानदार नेतृत्व, व्यवस्था  बदलने, अच्छी कानून व्यवस्था , सड़कों, स्कूल , अस्पताल के लिए सरकारें  बदलती है  लेकिन सत्ता मिलते ही " दल" के बड़े  नेताओं के करिश्माई व्यक्तित्व ,चाणक्य  नीति,धार्मिक- जातिगत गणित ,बूथ मैनेजमेंट , सरकारी योजनाओं  आदि  की बाते होने लगती है और  फिर वही  सरकारी शिष्टाचार ,अव्यवस्था,  बार -बार खराब होकर या बनने के बाद कोई लाइन डालने के लिए  बनने वाली  सड़के, सरकारी पैसों से बनी सड़को, पुलों, व फुटपाथ पर या तो  दुकानदारों या ठेले वालो का अतिक्रमण,  खेती की जमीनें खरीदकर उनके आस पास  नई सड़कों की योजनाओं की घोषणा के नाम पर वैध-अवैध  कालोनियों का कारोबार ,एक बार सरकार  चुन लेने के बाद आम जनता के पास बचता भी क्या है ? "

भैया : "लगता है तू तेरे किसी डिग्रीधारी  फ्रस्ट्रेटेड दोस्त के साथ ज्यादा रह लिया है, अरे  हमने तो "सबका साथ सबका विकास" किया है, नदियों की सफाई और सौंदर्यीकरण किया है, चौड़ी-चौड़ी सड़के बनवाई है,मन्दिरों को भव्य बनाया है , थोड़े थोड़े दिनों अतिक्रमण व  अवैध निर्माण हटाने की मुहिम  चलवाते है, यातायात सप्ताह मनाते है, प्रायवेट स्कूल से अच्छे स्मार्ट स्कूल बनाये है, चुनाव भी हमारे देश मे निष्पक्ष होते है, जबकि परिवारवाद व जागीरी के आरोप लगाने वाली जनता  स्वयं की सहकारी ,समाजिक यहाँ तक कि साहित्यिक व तकनीकी  संस्थाओं में भी लोग बरसों बिना चुनाव,फर्जी वोटिंग या सर्वसम्मति जैसे हथकंडों के नाम पर कब्जा जमाए रहते है ,ऐसी जनता क्या पारदर्शिता और ईमानदारी की बात करेगी उनको तो देश की चुनाव प्रणाली का आभारी होना चाहिए।जनता खुद जवाबदार न बने तो सरकार क्या क्या करेगी  ?, वैसे भी  हर काम के साथ कुछ न कुछ सहन करना पड़ता है, जैसें आग के साथ धुँआ उठता ही है।"  

बबलू के कहना तो छत था कि  , गन्दे नालों को नदी मान सफाई व पुनर्जीवित करने का अंतहीन काम कई सालों से  जारी है इसमें लगा पैसा हर बरसात की बाढ़ के साथ बाह जाता है,  मन्दिर अब शांति व  आध्यात्मिक अनुभूति  अनुभव बाले स्थान की जगह, डी जे भजन, स्वचालित इलेक्ट्रिक नगाड़ों के शोर वाले व्यवसायिक धार्मिक पर्यटन स्थल होते है रहे है,   शहर की पुरानी विरासत  खत्म कर  सड़के बनी तो है मगर हर थोड़ी दूरी पर किसी  मंदिर, मजार, मस्जिद, के  कारण  बोटल नेक है,  फिर सड़क की चौड़ाई बढ़ते ही दोनों ओर कमर्शियल्स  इमारते बन गई, दुकाने सम्पूर्ण  फुटपाथ पर है ,वाहनों की पार्किंग सड़क पर , जहाँ ये नहीं है वहाँ  ठेले,रेहड़ी , बेंड , फूल, परदे- कालीन वाले काबिज है, कुछ  दुकानें तो  दाये बाये मोड़ तक रोक देती है ,लेकिन  दुकानों पर लगा झंडा और मालिक के गले का दुपटटा हर लायसेंस / नियम पर भारी है ।

 कुछ गली-मोहल्ले जहाँ के पोस्टरों में भले भैया ही मुस्करा रहें हो पर भैया और हमारी  पार्टी को  कभी नाम मात्र भी वोट नहीं  मिलते वहाँ और भी हालत खराब है, कुकरमुत्ते की तरह उगीं  ऑटो गेरेज, अंडे चिकन मटन आदि की दुकानें,  सड़क पर पार्क ऑटो रिक्शा, बसूली के लिए जान बूझकर वाहनों से टकराते बच्चे,  धीरे धीरे  आम लोगों के लिए रास्ते तक बंद कर देते है ।

यातायात सुधार के नाम पर भी हर बार कुछ चुनिंदा चौराहों पर फूल देने और डांसिंग कॉप की नोटंकी के साथ खत्म हो जाती है, जो ट्रैफिक पुलिस सौ-दोसौ मीटर के वन वे का पालन नहीं करवा पाती वही पुलिस गलियों में जाम से जुझकर खुले में सांस लेते चालक  के सामने , किसी न किसी कारण चालान काटने पर आमादा मिलती है , अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने  की याद तो प्रशासन व सरकार को हत्या या बलात्कार जैसी किसी वीभत्स घटने के बाद ही आती है।

सही नियम है तो हमेशा ही पालन  होना चाहिए  मुहिम का  तो मतलब ही नूरा कुश्ती है।

आजकल सरकारों  ने आय से दस-बीस गुना तक बजट बनाने की परम्परा बना ली है, घोषणाओं के चक्कर में जरूरी काम बरसों घिसटते रहते है। 

सरकारी स्कुलों को प्राइवेट से अच्छा बनाने के नाम पर चुनिंदा स्कुलों को महँगे पब्लिक स्कुलों की सुविधा युक्त करने कें लिए करोड़ों का बजट जबकि सेकड़ो स्कूल टपकती छतों व कमरों को कमी में चल रहे है,इनके रिपेयर रिनोवेशन के लिये जनता से वसूला टेक्स , ट्राफिक के फ्लो को रोकने वाले स्वागत द्वारों व सड़को के आसपास सजावट जैसे कामों में जो आवश्यकता होने पर टेंट वाले ज्यादा अच्छा कर सकते है,जाया हो रहा है।

भैया ने बबलू को सरकारी ठेकेदार बनाने की भी कोशिश थी, लेकि सरकारी ठेकेदारी या तो वो जमी जमाई बड़ी कंपनियां कर पा रही थी, जो खुद सरकारें बदलने में सक्षम हैं या जिनको जमा अतिरिक्त धन को बैलेंस शीट में बैलेंस करने के लिए  करने के लिये काम बताना हो, स्वरोजगार के लिये जरुरत मन्द युवा तो काम करने के बाद लाल फीता शाही के चक्कर में, विलम्बित भुगतान की राह देखते मूलधन भी खोकर लौट के बुध्धु घर को आये वाली स्थिति  में थे ,फिर भैया का नाम सुनकर खड़े हो जाने वाले अफसरों व बाबुओं के चक्कर लगाना बबलू  को रास  नहीं आया।

सरकारी विभागों में भैया का प्रतिनिधि होने से "बबलू" को व्यवस्था की अच्छी जानकारी  हो गई थी , लेकिन ये सब छोड़ बोला "भैया आपके आशीर्वाद से  बस्ती में लोगो के काम  करवाने में सरकारी दफ्तरों का शिष्टाचार देख-समझ लिया है , लेकिन अभी तो  शोर, ट्रेफिक व अतिक्रमण  वाली बातों  से दिमाग ख़राब है, ये तो हम  सुधार न  ही सकते है,  बीच  शहर में सड़क रोकने की जगह मैदानों या स्टेडियम में भी तो ये कर सकतें  है?. 

भैया बोले:  प्रजातंत्र में "  जैसा राजा  वैसी प्रजा" नहीं होता बल्कि " जैसी जनता वैसा नेता होता है"  इतने सालों से शहर में जीत रहा हूँ तो लोगो  विश्वास होना चाहिए  कि जो मैं कर सकता हूँ हर कोई  वैसा  नहीं कर सकता,  हमारे यहाँ विश्वास  है  " समरथ को दोष नहीं  गोसाईं" , अगर मैं नियम पालन करने लगूँ तो  जनता और मेरे  विरोधी भी समझेंगे की मेरा दबदबा कम हक गया है,  तूने भी   देखा होगा कि ,राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक, धार्मिक, मनोरंजन, पत्रकारिता, या विधि क्षेत्र जो तथाकथित श्रेष्ठि वर्ग वे  और उनके  अनुचर ,आम आदमी पर रोब दिखाने ले लिए ,कभी कहीं लाइन में नहीं लगतें यहाँ तक की मंदिरों में भी परिवार सहित विशिष्ट दर्शन करते है, इनके वाहन  लव लश्कर सहित बीच सड़क में खड़े करते है , आम जनता कभी कोई विरोध नहीं करती बल्कि कभी भीड़ में किसी को देखकर पहचान ले तो वो अपने आप को कृतार्थ समझता है।

 "भय बिन होय न प्रीति",  को आदर्श मानते हुए  अंग्रेजों के जमाने से सरकारों ने आम जनता को इतने नियमों में बाँधा की कोई न कोई नियम टूटता रहे , औऱ व्यवस्था का विरोध करने में मन में कोई डर बना रहे मेरे प्रति लोगों की  प्रीति बनी रहे इसके लिए मैं खुद लोगो को नियम  तोड़ने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ, फिर सरकारी नियम पालन न करवाने के लिए अधिकारियों ने को आगाह करता हूँ, तुम लोगों   द्वारा उन अधिकारि देवता  को उपकृत करवाता हूँ  और अधिकारी  से तुम लोगों को उपकृत, इस प्रकार  एक दूसरे के स्वार्थ को सिद्ध की व्यवस्था में आर्थिक उन्नति करते हुए तुम लोग परम् कल्याण को प्राप्त हो जाते हो ।

ये एक तरह का राजनीतिक  यज्ञ है,यज्ञ की द्वारा बढ़ाए गए  अधिकारी  देवता तुम लोगों को बिन मांगे ही इच्छित फल  निष्चय ही देते रहते है ।यज्ञ से बचे  हुए फल   गरीब लोगों, को  भोजन-भंडारे , चुनाव के समय साड़ी व शराब  बाटने , इनकी कन्याओं का  बिवाह आदि में खर्च कर बाँटने से  सत्ता प्रसाद  अनन्त काल से  मेरे  ही पास  है।"

जिस भीड़ की परेशानी  देखकर  तू  काम छोड़कर आया है, उसे तो इस पंडाल या शोर का एक होकर विरोध करने का साहस नहीं है, हर कोई  अपनी दौड़ में आगे  निकलना चाहता है, और अगर कोई हिम्मत कर के आगे आया भी तो ये मुझे सामने देख ये लोग ही उसे ही विध्न सन्तोषी बता मेरे कामों बखान करने लगेंगे।जिन  मरे हुए लोगो के  बुझे चेहरे देख तू   मुझसे दूर जा रहा है , इनको हम न होंगे तो कोई दूसरा आकर मारेगा, इनके जीवन का लक्ष्य मिलजुलकर आगे बढ़ना  नहीं है बल्कि अपने ही सगे बन्धु-बांधवों औऱ मित्रों से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करना है, स्वयं की खुशी से ज्यादा, दूसरों का दर्द इनको खुशी देता है। 

कहने को तो सब नेताओं को हर बुराई का कारण मानते है लेकिन  यदि  मै किसी के यहाँ प्रकट हो जाऊं तो व्यक्ति  परिवार सहित  खुद को धन्य समझता है मेरे साथ तस्वीरों को  सोशल मीडिया पर स्टेटस डाल सबको अपना प्रभाव बताया करता है। 

इनमें से हर वर्ग के लोग  किसी न किसी कार्यवश मेरे पास आते ही रहते है ,जो भी मेरे पास आकर शिष्टाचारवश मान सम्मान में मुझे भेंट देते है, वो में ग्रहण करता हूँ, जो जो सकाम भक्त जिस  जिस अधिकारीदेवता के स्वरुप को श्रद्धा से  पूजना चाहता है , उस उस  भक्त की  श्रद्धा  को मै  उसी अधिकारी देवता के प्रति स्थिर करता हूं, वह पुरुष उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है  और उस देवता से मेरे  ही विधान किये हुए उन इच्छित भोगों को निःसन्देह प्राप्त करता है" 

 यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त हो मुझको भजता है तो  वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो  जाता है व सदा रहने वाली परम् शांति को प्राप्त होता है।

निम्न मध्यवर्ग से पढ़ाई- लिखाई कर किसी तरह  मध्यवर्ग में पँहुचे  कुछ बुद्धिजीवी किस्म  के लोग  जो किसी विचारधारा से बंधने के बजाय  खुद को विचारक  व  राजनेताओं को अनपढ़ समझते  है वे खुद के किसी काम के लिए तो मेरे पास नहीं  आते , लेकिन  खुद को समाजसेवी जान  सरकारी योजनाओं में सुधार के लिए इनमें से जो कोई मेरे पास अपना विचार लेकर आता है मै स्वंय उसका स्वागत करता हु, एक दो अखबारों में खबर आने से व सोशल मीडिया पर खुद का प्रचार कर मिलने वाली लाइक व कमैंट्स से इनकी यशेषणा शांत हो जाती है, फिर व्यावसायिक इर्ष्यावश उनके ही क्षेत्र का कोई व्यक्ति मेरे पक्ष में खड़ा हो जाता है इसलिए ऐसे बुद्धिजीवी लोगों का काम इनके वाट्स एप ग्रुप पर बौद्धिक जुगाली करना भर होता है , इनसे मुझे कोई सरोकार भी नहीं है क्योंकि इनमें से कई तो चुनाव में वोट तक नहीं डालते , इनको किसी जुमले , लालच या सामाजिक धार्मिक डर दिखाकर  भेड़चाल में हाँक नही सकता है,इसलिए इनका काम दिन रात मेहनत कर सरकार को टैक्स देना है ,जिसको सभी सरकारें  गरीबों में मुफ्त बाँट अपने वोट बैंक पक्का करने के लिए करती  है।

वैसे तो तू शहर में मेरे प्रभाव से परिचित  है, लेकिन तेरे मन के भृम की स्थिति में एक  बार  फिर से सुन - इस शहर में जो भी है मेरे  ही कारण  है , तू तो समझ नगर पालिका में महापौर मैं हूँ, प्रशासनिक  व्यवस्था में  कलेक्टर  मैं हूँ,  कानून व्यवस्था  बनाये रखने वाली पुलिस में  महानिरीक्षक मैं  हूँ।सरकारी इमारतों का  सड़क व पुलों व शहर की प्लानिंग करने वाला आर्किटेक्ट , इंजीनयर भी मैं ही हूँ, बड़े बड़े अस्पतालों,स्कुलों व कालेजों का  डायरेक्टर मै हूँ,बसों का मालिक, सड़को पर ठेले वाला, दूकानों का  बाहर तक निकला सामान भी मैं ही हूँ।

तू समझ प्रिंट मिडिया में अखबारों के संपादक की कलम मैं हूँ,टी वी चैनलों  का कैमरा और माइक  मैं हूँ, पत्रकारों - लेखकोँ का विचार मैं हूँ,आर्किटेक्ट, इंजीनियरों के कंप्यूटर का कीबोर्ड-माउस मैं हु, न्याय की मूर्ति का तराजू भी मैं ही हूँ,  जो जो भी है सब मुझमे और मैं उनमें  हूँफिर भी  तुझे  विश्वास न हो तो तू  मेरे ये सब  रूप साक्षात देख, इतना कहकर भैया उठ खड़े हुए और साथ आने का इशारा किया।

भैया का विराट रूप दिखाने के लिए उनके  होम थिएटर  में   विभिन्न समारोहों की वीडियो फ़िल्म चालू की  गई बबलू ने देखा , अलग अलग जगह , बड़े बड़े अधिकारी,उद्योगपति, बिल्डर्स, कॉलोनाइजर्स, दृश्य व प्रिंट मीडिया समूह के मालिक, एंकर, शिक्षा संस्थानों के मालिक, अखबारों में सरकारी योजनाओं आलोचना करने वाले  तकनीकी विशेषज्ञ , लेखक, पत्रकार, कथावाचक , विपक्ष के नेता, सब भैया के आगे नतमस्तक हो स्वागतातुर हैं, विषय राजनीति हो, मनोरंजन, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, साहित्य, या समाज सेवा हर जगह भैया ही मुख्य अतिथि  है, अपवाद स्वरूप कहीं कही  उम्रदराज विषय विशेषज्ञ या धार्मिक सन्त भैया  से हार, शॉल, श्रीफल प्राप्त    कर सन्मानित हो खुद को कृतार्थ मान रहे है।

इन सबको देख बबलू को घबराहट से पसीना छूटने लगा, हाथ जोड़कर वीडियो फ़िल्म बन्द करने को कहा।

भैया फिर बोले , मैने  अपनी ओर से तुझे समाज व राजनीति के बारे में समझा दिया  है  तू अब भी ये सब छोड़ना चाहता है तो मैं रोकूंगा नहीं मेरा काम तो हो ही जायेगा लेकिन तू बस्ती में ठोकरे खाएगा  जो पहले तुझसे डरते थे ,और हर काम के लिए तेरे पास आते थे,वों तेरी तरफ देखेंगे भी नहीं ,तेरे विरोधी लोग तेरे सामर्थ्य की निंदा करते हुए तुझे बहुत से  न कहने योग्य वचन भी कहेंगे इससे अधिक दुःख और क्या होगा ,तू तो तेरा काम कर और फल की चिंता कर, आम खा पेड़ मत गिनने लग  

जैसे  नदियों का पानी पूरे भरे समुद्र में उसको विचलित न करते हुए समा जाते है , वैसे ही लोगों दुःख सुख  बगैर असर करे जिस कार्यकर्ता के पेट में  स्वार्थसिध्दि समा जाती  है , वही आगे चलकर  बड़ा नेता बनता है, जनता के सुख:दुख में  दुःखी  या खुश होने वाला नहीं ।

तू जैसा कर रहा है मेर काम निरन्तर करता रहा  , मुझमे  ही विश्वास रख, मेरा भक्त बन ,मुझको प्रणाम कर  मेरे नाम का दुप्पटा  पहन,जबजब मेरी या मेरे परिवार में किसी का जन्मदिन हो ,कोई त्यौहार हो मेरी तस्वीरों के पोस्टर से शहर पाट दे, मेरा नाम जपने से तेरे सारे कष्ट अपने आप दूर ही जायेंगे।

अगर तू बुद्धिजीवी  बन ये सब काम  नहीं करेगा तो तेरी कीर्ति नष्ट हो जाएगी, लोग जो तुझे दबंग कहते है व  नकारा , आवारा कहने लगेंगे, जो  थानेदार स्वयं  तेरे निवास आकर काम करते है ,तुझे  रोज रोज थाने के बुलवाएँगे , छोटे छोटे कामों के लिए सरकारी काम करवाने मे तेरा जीवन नष्ट हो जाएगा ।मुझसेअलग होने के  तेरा ही नुकसान  होगा , दिन भर की चाकरी के बाद भी  महीनें में इतना नही कमा पाएगा जितना सरकारी दफ्तरों में चक्करों से परेशान लोगो  लोगो के तीन  चार काम करवाके बैठे ठाले कमा लेता है , आसपास  दबदबा खतम अलग होगा,अगर तू कोई धंधा भी करेगा तो सड़क पर चाय बेचने या पकोड़े तलने के अलावा क्या काम करेगा?,फिर इसी व्यबस्था में दूसरी ओर पहुँच के मेरे  पास आएगा।

बबलू  समझ गया कि भैया  किसी न किसी  रुप या नाम से सर्वत्र व्याप्त है और वो अर्जुन नहीं है बल्कि अभिमन्यु की तरह व्यवस्था के चक्रव्यूह में फंसा है जिसमें से निकलनें की कोशिश खुद व परिवार आजीवन संघर्ष में धकेलने है।

भैया के चरण स्पर्श कर बबलू बोलें भैया मेरा भृम दूर हो चुका है, मैं तो आपकी  छाया में ही ठीक हूँ, जहाँ आप है वही विजय हैं इतना कहकर उसने जेब मे से फेंकने के लिए रखा भैया नामी दुपट्टा गले में ओढ़ा और मोटरसाइकिल की स्टार्ट कर सड़क प्रवेश निषेध वाली दिशा में होते हुए कल होने वाली सभास्थल पर तेजी से चल पड़ा।*****

परेश दुबे

766 सुदामा नगर,

इंदौर