मुक्त - भाग 7 Neeraj Sharma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुक्त - भाग 7

            मुक्त ----(7) 

       उपन्यास की कहानी एक दवन्द मतलब ( मानसिक जंग ) है। जो बढ़ती तब  है, ज़ब कार साज एक नया आदमी एक पात्र दानिश उसकी जिंदगी मे भेजता है, कुछ खोये होये को जांचने का सबक देने के लिए।

" हसते हुए दानिश ने कहा ---" युसफ तुम कितने भोले हो, वो तुम्हे कितना चाहता होगा। " 

युसफ एकाएक चुप था " कौन, अंकल। " दानिश एक दम चुप हो गया, बोला " तुम्हे करसाज ये दो जहा का वाली कितना चाहता होगा... "  युसफ मानो इतना सुनकर खुश हुआ, पूछो मत ---" सच मे, अंकल " दानिश ने मासूम सा चेहरा बना कर कहा, "आपना मानते हो, -- मुझे " युसफ ने कहा --" बिलकुल " दानिश बोला, मुझे तुम बड़ा भईया बोला करो। " ये सुन कर युसफ चुप सा हो गया।

दानिश ने कहा, " तुम बोले नहीं कुछ, युसफ। " उसकी आँखे नम देख कर दानिश का दिल जोर से धड़का। "कया हुआ, युसफ --आँखे नम कयो की।" युसफ ने सिसकी लीं, " मै कार साज पे हैरान हू, जो आपने है, वो अजनबी है, जो अजनबी है वो आपने बनने के लिए आतुर है। " दानिश समझ गया, कि इस लडके की दिमाग़ की फकीरी नाड़ी किस हद तक काम करे है। " हाँ दानिश ये मेरे पास अखरोट की गिरी और बादाम है, लो मुठी मे पकड़ो, और खाओ। " युसफ ने कहा " बड़े भाई इस छे पर मेरा हक़ नहीं है, रिश्ता पकड़ से रखुगा। " दानिश ने कहा, " कयो मै तेरे सामने खाऊ तो तुम छोटे भाई के नाते बैठे रहोगे, कया.... " दानिश उस  कारसाज की बनाये तोफे को यूँ ही नहीं जाने देना चाहता था, जिसको अंदर से बदगी का रस मिला हो। " ठीक है " उसने गिनती के चार पांच गिरी उठाये थे। और दानिश ने पूछा, " कब से लग्न लगी... हकीकी। " 

                       " इसका कोई नहीं बता सकता " युसफ ने जयादा बात नहीं करनी चाही। " मेरे दो बड़े घर शहर खोसता मे, एक जहा है, ज़ब मन करे मेरे साथ चल पड़ना। तुम्हे गाड़ी मे छोड़ जाउगा। ले भी जाउगा। " दानिश ने डायरी से नंबर दिया टेलीफोन का।

                          दानिश ने कहा "--दिसबर महीना है, एक रजायी मैंने भराई थी। एक कबल था, तेरे अबू के लिए था, सब। उन्होने मुझे कहा था। पर मे विदेश चला गया तो बस।" युसफ सुन कर चुप कर गया। सोचने लगा " तू खुदा बहुत ख़याल रखता है, आपने बंदो का... वाह तेरी क़ायनात... "  दानिश कहता हुआ उठा, " एक दफा तेरे अब्बा के साथ घर गया था, मुझे मालम है तेरा घर। " युसफ बस मुस्करा पड़ा। 

                        बस शाम होने को थी। परिंदे चिहालत करते उड़ते हुए घोसलों को जा रहे थे। आसमान पर गहरा गहरा जैसे धुआँ जा तूफान की मिटी चढ़ी हुई थी। उसने पुरे समय से इजाजत ले कर दानिश से घूमवदार सीढिया चढ़नी शुरू की। कुत्ता (दरवेस ) भूक रहा था... जैसे पता नहीं कया हो। दानिश जा चूका था। और वो इतना जान चूका था, कि ये शक्श कियामत के दिन उसे जरूर बचा लेगा। पता नहीं कयो, उसको ऐसा लग रहा था। मस्जिद का स्पीकर चालू हो चूका था।....... कमरे मे रोशनी बलबो की हो चुकी थी।

         ( चलदा )                  नीरज शर्मा 

                                शहकोट, ज़िला जालंधर 

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