मुक्त - भाग 3 Neeraj Sharma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुक्त - भाग 3

--------मुक्त -----(3) 

       खुशक हवा का चलना शुरू था... आज किसी के बहुत करीब सुन ने का सकून मस्जिद से युसफ खान का था। जो लियाकत से खुदा की बदगी मे लीन था। समय सुबह का चौथा पहर खत्म था.... घूममावदार सीढ़ी चढ़ने से एक अलग सा सकून था।

ये सकून एक अलग सा पहली वार युसफ ने लिया था।

घुटनो के बल बैठे  रहना, कितना रिजके सिदक दे रहा था। कितना ख़ुश था। खुदा  का दर्ज कलमे को लोगों मे जिक्रे - बया करना। दिल धड़क रहा था। मुँह पे अलैदा जोश और नूर था। इतना समय दिया उसने की मजा आ गया। बहुत बे खूब जिक्र किया गया उसके जिक्रे खुदा की एक एक लफज़ी बयानी कया खूब थी। युसफ खान ने दिल जान से खुदा की मोहबत बया की थी।

      उसके स्वर मे एक लचीला पन था, जैसे ढेरों गुलाब से इस्तिक़बाल किया हो....जरूर उसके दिल की धड़कनो मे खुदा की सूरत बिराजती होंगी... कितना जोर था कभी आ जाता उसके माहौल की पेशगी मे.....मतलब खुदा की बदगी मे कोई उसका हमनवाज़ कभी  नराज नहीं होने देता। वो कारजसाज है। हर ख़याल उसका है.. बहुत चाहते  ऐसी होती है जो कभि वो भी नहीं भूल सकता। हर ख़याल मरतबी  वो हर शक्श की तमना रखे है... कितना धयान रखे है।  मालिक कराजसाज  है।

                     वापिस युसफ की घर की और रवानगी  थी। आज वो इतना खुश था, शायद वो किसी को कैसे बताएगा। उबड़ खूबड़ स्ट्रीट दिल की धड़कन  को दुगना कर देती थी। आधे घंटे का राह आज दस मिट मे तेह हो गया... कैसे.. खुशी के आलम मे पता ही नहीं चला। मुकदर और नसीब दोनों बंदगी के  सिरेताज़ बादशाह है... जनाब कभी खाने बात पड़े तो बताना... खुद ही मुस्करा दिया, युसफ खान.....

                                        -------" अब्बा जान " एक गम का सागर टूट गया। आँखो का बांध  टूट गया... "ओ नहीं अब्बा " युसफ ने घुटने टेक दिए। अब्बा जान खाक मे खाक हो गए थे... रीती रिवाजो का लम्मा सिन सिला चला। मशगुल नहीं हुए, आपने युसफ मिया....

जैसे अब्बा को मुस्कान बतानी थी और सुने बिना ही वो दुनिया से रुखसत हो गए। कैसा भभर था... कैसी लहरे थी, कैसा रुदन था, सब कुछ टूट गया लगा... हाल बेहाल, मुलाल ही  मुलाल, अश्क़ ही अश्क़... रुखसार का सुख जाना..... 

                      दो भाई की बेगम जो बड़े थे.... इतने भी बड़े नहीं, कि युसफ उसको पैरी हाथ लगा देता... वैरी सॉरी हिंदू मे फिर भी ये तालीम दी जाती है, मुसलमानो को पठानो को तालीम मे कुछ शहरे- रियत अंदाज सिखाये जाते है... बोलनी मे कितना मीठा तसबूर से भरा लहजा बयान होता है। गम को भी बड़ी शिदत से बयान कर जायेगे। सागर मे जैसे कोई डूब गया हो, करोड़ो का कोई हकीकी जहाज..... परिवार मे दो भाई बड़े, बेगमे  बच्चे रहमो कर्म मे दोनों के छे थे। अब समझाऊ... पांच बच्चे बड़े के, एक गोद दिया हुआ था। छोटे भाई की बेगम को... वो ये समझ लो जी, वो बेगम रस्तोगी की बड़ी रियास्त से, युसफ की कायदा से देखा जाये तो बारीकी से हम  बराबर उम्र की थी.. इसके पीछे भी कहानी शब्दों से परो लयी जाएगी... देखो कब... ( मेरा फोन टच है, जो बहुत जयादा हेंक कर रहा है, मुश्किल से लिख पाया हुँ।)

(चलदा )-----------------------------------   "नीरज शर्मा "

                                                  " शहकोट, (144702 )