एक अभिब्यकती श्री राम कृपा मानस और प्रभु श्री राम के प्रति : प्रदीप ठाकुर l
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हमारी "श्री राम कृपा मानस" मे श्री राम नाम के महिमा अद्भुत, अदृश्य छिपी हुई है और यह गरिमामयी धर्मग्रन्थ की उपयोगिता और महत्ता तब तक बनी रहेगी जब तक प्रभु श्री राम की इस धरा पर नाम जपा जायेगा और प्रभु श्रीराम के कृपा तब तक बरसती रहेगी जब तक सूरज और चाँद चमकती रहेगी l
साथ ही साथ यह भी कहना औचित्य और ध्रुब सत्य मना जायेगा कि जहाँ श्री राम का जयगान होते वहां पवन पुत्र हनुमान का उपस्थिति अनिवार्य है l
हमारे लिए यह पवित्र "श्री राम कृपा मानस" स्वाभिमान भरी हैl
श्री राम का नाम का यश, कृति बखान की गई है क्योंकि इसके एक एक शब्दों में, एक एक चोपाई और दोहों में श्री राम का तेज और मर्यादित जीवन शैली की तत्व छिपी है और इन्शानियत के श्रेष्ठ कर्तब्य मे से सर्वोतम तप है श्री राम के नाम का निरंतर सुमिरन l
हमें गर्व है कि हम सभी प्रभु श्री राम के उपाशक हैँ और पल पल श्री राम हमारी रक्षा करते हैँ l निज संघर्षमई जीवन को परिभाषित कर है इन्शान को मार्गदर्शन करते रहते हैँ l धन्य हैँ मान भर्ती कि धरती जिस पर प्रभु अवतरित हुए और हम इस पवित्र धरती पर जन्म लेने का गौरव प्राप्त किये हैl
ब्रम्ह देव द्वारा सृस्टि की रचना भी अधूरी है, प्रभु श्री राम के बिना l फिर हम कैसे श्री राम के नाम जपे बिना सुखी और इन्शान बन सकते हैनल राम नहीं तो काम नहीं l राम नहीं तो धर्म नहीं l धर्म नहीं तो जीवन नहीं l
जीवन नहीं तो मुक्ति नहीं l मुक्ति नहीं तो जीवन ब्यर्थ है l मानव जीवन धिक्कार है जिसके मुख में श्री राम का नाम नहीं l
राम का नाम नहीं ll आचार्य प्रदीप ठाकुर ll
एक कालजयी अभिब्यक्ति - “श्री राम-कृपा मानस”-प्रदीप ठाकुर, पटना, बिहार तथा कथा वाचिका हीना बेन कनानी, देव भूमि द्वारिका, गुजरात द्वारा रचित कलियुग की अति पावन काब्य रचना के रूप में सदा राम भक्तों तथा सनातनियों द्वारा स्वीकार की जाएगी I I
- “श्री राम-कृपा मानस” ग्रह
क्लेश निवारण और सुख संपत्ति दायक मंत्र
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
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जब-जब श्री रामचंद्रजी मनुष्य शरीर धारण करते हैं , भक्तों के लिए बहुत सी लीलाएँ करते हैं॥
" आचार्य प्रदीप ठाकुर, मिथिलापुत्र तथा गुजरात कथा वाचिका हीना बेन कनानी के अद्भुत राम भक्ति मय विचारधारा के जरिये यह उत्कृष्ट एक अद्भुत रचना "श्री राम कृपा मानस" की शुरुआत इन श्लोकों से किया है जो कलियुग में सभी पाठकों और भक्तों को शुभ फल देना वाला सिद्ध होगी जिसकी पूर्ण अभिलाषा है।।" प्रदीप ठाकुर, तथा कथा वाचिका हीना बेन कनानी द्वारा अति पावन श्री राम कृपा रूपी प्रशाद अति सहज और सरल हिंदी भाषा में समस्त विश्व पटल पर परोसा गया है I रम् का अर्थ है रमना या समा जाना और घम का अर्थ है-ब्रह्मांड का खाली स्थान I इस तरह राम का अर्थ है सकल ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व यानी चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्म. शास्त्रों में लिखा है-“रमन्ते योगिनः अस्मिन सा रामं उच्यते” अर्थात, योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते हैं I I
राम नाम एक चमत्कार है। यह शुद्ध जादू है। मेरा मानना है कि राम नाम से सब कुछ संभव है। मैंने इसका अनुभव किया है। राम नाम बोलना तो आसान है लेकिन इस पर टिके रहना मुश्किल है। एक बार जब आप राम नाम लेना शुरू कर देते हैं, तो यह आपकी ज़रूरतों और पूर्ति को अपने कब्जे में ले लेता है, आपको बस यह देखना होता है कि आप भूल न जाएँ, जो आसान नहीं है (स्पष्ट रूप से आसान लगता है)। राम नाम जपने से आप किसी भी देवता को प्रसन्न कर सकते हैं जिसकी आप मानसिक रूप से पूजा करते हैं।राम सर्वशक्तिमान ईश्वर का सार्वभौमिक नाम है I राम सच्चिदानंद है..... हम महसूस करें... राम हम मे ही है I "प्रभु श्री राम का नाम लिखना, बोलना भवसागर से पार तो लगाता ही है साथ ही यह भक्तों को समस्त प्रकार के दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति प्रदान करता है।" ****** रचनाकार की भूमिका :-*****
यह है कलियुग की अद्भुत रचना महान। जिसे रचा है आचार्य प्रदीप और साध्वी हीना द्वेय महान।
श्री राम जी की महिमा, राम जी की भक्ति और वाणी श्री राम कृपा मानस की सुनियों अद्भुत चोपाई।
जपो मन से , राम सिया राम। जपो ध्यान से, राम सिया राम। । त्रेता में जन्मे प्रभु श्री राम,
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए प्रभु श्री राम। अद्भूत सुंदर छवि श्री राम की, उनसे भी मधुर नाम जप श्री राम की।
हमारे राम, तुम्हारे राम, सुख- दुख में रामे राम। राम भरोसो राम बल, राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल, मांगत तुलसीदास॥ तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार।
राम नाम की महिमा ऐसी,वेद पुराण सुनाते हैं। इंसान की बात तुम छोड़ो, पत्थर भी तर जाते हैं।
नाम प्रभु का लेले बन्दे, ये ही एक सहारा है। रिश्ते नाते छूटे जग में, वो न छूटे जो हमारा है।।
राम नाम की महिमा ऐसी, वेद पुराण सुनाते हैं। इंसान की बात तुम छोड़ो, पत्थर भी तर जाते हैं।।
दो नाम का अक्षर है "राम" परशक्ति अपरमपार है। जप ले नाम तू मेरे प्रभु का, तेरा बेड़ा पार है ।।
राम नाम की महिमा ऐसी, वेद पुराण सुनाते हैं। इंसान की बात तुम छोड़ो, पत्थर भी तर जाते हैं। ।
बड़े भाग्य से नर तन पाया, तब धरती पर आते हैं।
जिव्हा कर लो अपनी पावन, "अरुण " श्री राम नाम भजन ये गाते हैं।
राम नाम की महिमा ऐसी, वेद पुराण सुनाते हैं। इंसान की बात तुम छोड़ो, पत्थर भी तर जाते हैं।
कलियुग की है यह महान रचना, राम नाम की महिमा गान। कृपा श्री राम की चर्चा करते है हम II
"कलियुग केवल नाम अधारा ,सुमिर सुमिर भव उतरहि पारा" राम नाम लिखने और जप करने में जो आत्मा को शान्ति और आनंद मिल रहा है उसका शब्दों में वर्णन नही कर सकते । जय श्री राम I
प्रभु का स्मरण करते हुए लिखना मन को अत्यधिक प्रसन्नता व शांति देता है। राम नाम लिखना बहुत ही पुण्य का कार्य है जिन पर प्रभु श्रीराम की कृपा होती है वही लोग लिख पाते है राम जी बहुत ही सरल है वे भक्तो के सारे कष्ट हर लेते है I राम राम लिखने से सर्वपापों का नष्ट हो जाता है और इसको लिखने का कोई समय निर्धारित नहीं किया गया है । राम राम लिखना मुझे ऐसा लगता है राम जी मेरे जी मेरे सामने बैठे हैं। मुझे ऐसा महसूस होता है राम जी की बहुत कृपा है ।। हमारी दुनिया ही बदल गई अब हम सबको सिर्फ राम नाम के अलावा और कुछ नहीं दिखता राम नाम ने हमारी जिंदगी बदल दी I हमारे सारे काम श्री सीताराम जी की कृपा से कुशल से सफल हो जाते हैं I राम नाम में श्रृष्टि समाई है।
राम नाम लेखन से हमें अपार सुख की अनुभूति होती है हमे प्रभु श्री राम जी की आशिर्वाद प्राप्त है महसूस होती है I
प्रभुजी से यही प्रार्थना है कि यह क्रम निर्विघ्न रूप से मेरे जीवन के अंतिम पलों तक निरंतर जारी रहे! श्री राम जी से यही प्रार्थना है कि वे हमें सपरिवार "अपने" और श्री 'हनुमानजी' के श्रीचरणों के दर्शन दे कर शीघ्रातिशीघ्र हमें सपरिवार कृतार्थ करें।
राम नाम जपना श्री राम के सभी सत्य राम नाम में ही समाहित है I राम नाम लिखना व जप करना परिवार के कुल को तारने वाला मंत्र है जितना ज्यादा हो सके राम नाम लिखिये I प्रभु श्री राम की कृपा सदैव हम सभी पर बनी रहे और निरंतर उनका स्मरण करते रहें I
धर्म शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि राम नाम की अपार महिमा होती है और राम के नाम का जाप करने से जीवन के सभी कष्टों का निवारण किया जा सकता है I
राम नाम का जाप किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन रामनवमी के दिन राम का नाम राम नवमी के दिन कागज पर लिखने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। राम को किसी ने जान नही पाया और जिसने जान लिया उसने बता नही पाया । सोई जानहि जेहि देहु जनाई !!
राम राम राम राम नाम तारकम् , राम कृष्ण वासुदेव भक्ति मुक्ति दायकम् राम राम राम राम नाम तारकम् ,राम कृष्ण वासुदेव भक्ति मुक्ति दायकम्
जानकी मनोहरम सर्वलोक नायकम् , शङ्करादि सेव्यमान पुण्यनाम कीर्तनम्
राम राम राम राम नाम तारकम् , राम कृष्ण वासुदेव भक्ति मुक्ति दायकम्
वीरशूर वन्दितं रावणादि नाशकम् , आञ्जनेय जीवनाम राजमन्त्र रुपकम्
राम राम राम राम नाम तारकम् , राम कृष्ण वासुदेव भक्ति मुक्ति दायकम् जय श्री राम राम राम राम I जय श्री राम राम राम राम I जय श्री राम राम राम
जय श्री सीताराम!जय श्री राम ! जय श्री सीताराम!जय श्री राम! जय सियाराम !
भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। मान्यता है कि प्रभु श्री राम का नाम लेते ही जीवन की सभी विघ्न-बाधाएं हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं। वहीं यदि आप प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको प्रभु श्री राम के कुछ चमत्कारी मंत्रों का जाप करना चाहिए। धार्मिक शास्त्र के अनुसार, श्री राम मंत्र का जाप करने से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है और जीवन से विघ्न-बाधाओं का अंत होता है।।
"ॐ श्री रामाय नमः॥"
"श्री राम जय राम जय जय राम॥*"श्री राम जय राम जय जय राम॥* "श्री राम जय राम जय जय राम॥ "श्री राम जय राम जय जय राम॥
ॐ दशरथये विद्महे सीतावल्लभय धीमहि, तन्नो राम प्रचोदयात्॥*
(प्रथम भाग- श्री राम कृपा -- गुणगान फल लागी )>>>>>
"ॐ श्री परमात्मनेय नमः।।"
“श्री राम-कृपा मानस”-1
"कनक भूतादिक राम सहाय, तब पद पंकज शीश नमाय।।"
"कर जोरी विनती तब किन्हा। प्रदीप हीना द्वय हीए तब राम समाना।"
अति पावन,अति सहज श्री राम कृपा पाना ,
सकल ब्रम्हांड, कण कण में बिराजत श्री राम I"
"यह श्री राम कृपा मानस जे उत्तम गावहि, श्री प्रभु पद पकज कृपा सोई जन पाहही।।"
"श्री राम नाम शब्द अति सहज,
श्री हनुमंत लाल के अति सुहाई।*
"जाको मुख श्री राम जपत है।
जन्म जन्म के पाप ताप सब मिटत है।"
"श्री राम नाम सत्य वचन जपे जेहि क्षण माही।*
"उनके हृदय के संताप मिटे तत क्षण माही।।"
परम कृपा स्वरूप है परम प्रभु श्री राम।
जन पवन परमात्मा, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।
परम पुरुष सुख धाम बसती हैं श्री राम।
सुखदा है शुभ कृपा शक्ति शांति स्वरूप।
है ज्ञान आनंद मयी श्री राम कृपा अनूप।
परम पुण्य प्रतीक है, परम ईश राम का नाम।
तारक मंत्र शक्ति स्वरूप बीजाक्षर हैं श्री राम।।
साधक साधन साधिए समझ सकल शुभ सार।
वाचक वाच्य एक है, निशित धार विचार।
मंत्रमय ही मानिए, इष्ट देव भगवान।
देवालय है राम दरबार, राम शब्द गुण खान।
राम नाम अराधिए, भीतर भर ये भाव।।
देव दया अवतरण का पाइए राम सुखधाम।
देव दया शक्ति का, सहस्त्र कमल में मिलाप।।
हो सत्पुरुष संयोग से, सर्व नष्ट हों पाप।
करते हम हैं वंदना, नत सिर बारंबार।।
तुझे दी परमात्मन , मंगल शिव शुभकार।
ज्योतिर्मय जगदीश हे, तेजोमय अपार।।
परम पुरुष पवन परम, तुझको नमस्कार।
सत्यज्ञान आनंद के, परम धाम श्री राम।।
पुलकित हो मेरा जीवन, तुझे हो स्वीकार बहु प्रणाम।
परमात्मा श्री राम ,परम सत्य, प्रकाश रूप श्री राम ।।
परम ज्ञानंदस्वरूप, सर्वशक्तिमान।
एके वा द्वितीय परमेश्वर परम पुरुष महान।।
दयालु देवाधिदेव हैं मर्यादा श्री राम।
उनको बार बार प्रणाम, उनको बार बार प्रणाम।।
राम नाम जपने वाले को भय कहाँ? राम नाम सब तापों के निवृत्ति की औषधि है। शरीर के निकट आग भी जल के समान ठण्ढी प्रतीत होती
प्रभु श्री राम, श्री हनुमंत लाल, ऋषि बाल्मीकि तथा महान संत तुलसी दाश जी के चरणों में कोटि कोटि नमन ।
“श्री राम-कृपा मानस”-2
****श्री राम कृपा मानस चौपाई।****
शरण शरण श्री रघुराई। शरण शरण श्री रघुराई।
सुमिरन कर लो श्री राम का, तेरा जन्म सफल हो जायेगा।
होंगे भवसागर से नैया पार तेरा, वरना उमरिया बृथा बीत जायेगा।
श्री राम कृपा पाना है जग में, नित्य राम नाम की जप कर लो।।
काम क्रोध, मद लोभ को त्यागो, श्री राम से नेह लगालो,
जब तक मन तेरा मगन न होगा,छुटने का मायाजाल से जतन न होगा।
जपले रे मन नाम रघुराइ का। जपले रे मन नाम रघुराइ का।
रामामृत पद पावन वाणी, राम नाम धुन सुधा सामानी,
पावन पाठ है राम गन ग्राम, राम राम जप राम ही राम।।
परम सत्य परम विज्ञान,ज्योति स्वरूप राम भगवान,
परमानंद, सर्वशक्तिमान,राम परम है राम महान।।
अमृतवाणी नाम उच्चारन, राम राम सुख सिद्धिकारण,
अमृतवानी अमृत श्री नाम, राम राम मुद मंगल धाम।
अमृतरूप राम-गुण गान, अमृत-कथन राम व्याख्यान,
अमृत-वचन राम की चर्चा, अमृत रस सम गीत राम की ।।
अमृत मनन राम का जाप, राम राम प्रभु राम अलाप,
अमृत चिंतन राम का ध्यान, राम शब्द में सूचि समाधान।
अमृत रसना वही कहवा, राम-राम, जहां नाम सुहावे,
अमृत कर्म नाम कमानी, राम-राम परम सुखदायी।
अमृत राम-नाम जो ही ध्यावे, अमृत पद सो ही जन पावे,
राम-नाम अमृत-रास सार,देता परम आनन्द अपार।
राम-राम जप हे माणा, अमृत वाणी मान।
राम-नाम मे राम को, सदा विराजित जान।।
राम-नाम मद-मंगलकारी, विध्ण हरे सब पातक हारी।
राम नाम शुभ-शकुण महान,स्वस्ती शांति शिव कल्याणी ।।
राम-राम श्री राम-विचार, मानी उत्तम मंगलाचार।
राम-राम मन मुख से गाना,मानो मधुर मनोरथ पाना ।।
राम-नाम जो जन मन ध्याये, उसमे शुभ सभी बस जावे।
जहां हो राम-नाम धुन-नाद, भागे वहा से विषम विषाद।।
राम-नाम मन-तप्त बुझावे, सुधा रस सीच शांति ले आवे,
राम-राम जपिये कर भाव, सुविधा सुविध बने बनाव।।
राम-नाम सिमरो सदा, अतिशय मंगल मूल।
विषम विकट संकट हरन, कारक सब अनुकूल ।।
जपना राम-राम है सुकृत, राम-नाम है नाशक दुष्कृत।
सिमरे राम-राम ही जो जन, उसका हो शुचित्र तन-मन।।
जिसमे राम-नाम शुभ जागे, उस के पाप-ताप सब भागे।
मन से राम-नाम जो उच्चारे, उस के भागे भ्रम भय सारे।।
जिस मन बस जाए राम सुनाम, होवे सोइ जन के पूर्णकाम,
चित में राम-राम जो सिमरे, निश्चय भव सागर से तारे श्री राम ।।
राम-सिमरन होव साहै, राम-सिमरन है सुखदायी।
राम सिमरन सब से ऊंचा, राम शक्ति सुख ज्ञान समूचा।।
राम-राम हे सिमर मन, राम-राम हे सिमर मन।।
राम-राम श्री राम, राम-राम श्री राम।भज,राम-राम हरि-नाम ।।
मात पिता बांधव सूत दारा, धन जन साजन सखा प्यारा।
अंत काल दे सके ना सहारा, राम-नाम तेरा तारण हारा।।
सिमरन राम-नाम है संगी, सखा स्नेही सुहिर्द शुभ अंगी,
यूग-यूग का है राम सहेला, राम-भगत नहीं रहे अकेला ।।
निर्जन वन विपद हो घोर, निबर्ध निशा तम सब ओर।
जोत जब राम नाम की जागे, संकट सर्व सहज से भागे।।
बाधा बड़ी विषम जब आवे, वैर विरोध विघ्न बढ़ जावे।
राम नाम जपिये सुख दाता, सच्चा साथी जो हितकर त्राता।।
मन जब धैर्य को नहीं पावे, कुचिन्ता चित्त को चूर बनावे।
राम नाम जपे चिंता चूरक, चिंतामणि चित्त चिंतन पूरक।।
शोक सागर हो उमड़ा आता, अति दुःख में मन घबराता,
भजिये राम-राम बहु बार, जन का करता बेड़ा पार ।।
करधी घरद्धि कठिनतर काल,कष्ट कठोर हो क्लेश कराल,
राम-राम जपिये प्रतिपाल, सुख दाता प्रभु दीनदयाल।।
घटना घोर घटे जिस बेर, दुर्जन दुखरदे लेवेँ घेर ,
जपिये राम-नाम बिन देर, रखिये राम-राम शुभ टेर।।
राम-नाम हो सदा सहायक, राम-नाम सर्व सुखदायक,
राम-राम प्रभु राम की टेक, शरण शान्ति आश्रय है एक।।
पूँजी राम-नाम की पाइये, पाथेय साथ नाम ले जाइये,
नाशे जन्म मरण का खटका, रहे राम भक्त नहीं अटका।।
राम-राम श्री राम है, तीन लोक का नाथ,
परम-पुरुष पावन प्रभु, सदा का संगी साथ।।
यज्ञ तप ध्यान योग ही त्याग, वन कुटी वास अति वैराग,
राम-नाम बिना नीरस जीवन , राम-राम जप तरिये लोक ।।
राम-जाप सब संयम साधन,राम-जाप है कर्म आराधन,
राम-जाप है परम-अभ्यास, सिम्रो राम-नाम सुख-रास।।
राम-जाप कही ऊंची करनी, बाधा विघ्न बहु दुःख हरनी,
राम-राम महा-मंत्र जपना, है सुव्रत नेम तप तपना।।
राम-जाप है सरल समाधि, हरे सब आधी व्याधि उपाधि,
रिद्धि-सिद्धि और नव-निधान, डाटा राम है सब सुख-खान।।
राम-राम चिन्तन सुविचार, राम-राम जप निश्चय धार,
राम-राम श्री राम-ध्याना, है परम-पद अमृत पाना।।
राम-राम श्री राम हरी, सहज पराम है योग,
राम-राम श्री राम जप, देता अमृत-भोग।।
नाम चिंतामणि रत्न अमोल, राम-नाम महिमा अनमोल,
अतुल प्रभाव अति-प्रताप, राम-नाम कहा तारक जाप।।
बीज अक्षर महा-शक्ति-कोष, राम-राम जप शुभ-संतोष,
राम-राम श्री राम-राम मंत्र, तंत्र बीज परात्पर यन्त्र।।
बीजाक्षर पद पद्मा प्रकाशे, राम-राम जप दोष विनाशे,
कुण्डलिनी बोधे, सुष्मना खोले, राम मंत्र अमृत रस घोले।।
उपजे नाद सहज बहु-भांत, अजपा जाप भीतर हो शांत,
राम-राम पद शक्ति जगावे, राम-राम धुन जभी रमावे ।।
राम-नाम जब जगे अभंग, चेतन-भाव जगे सुख संग,
ग्रंथि अविद्या टूटे भारी, राम-लीला की खिले फुलवारी ।।
पतित-पावन परम-पाठ, राम-राम जप योग,
सफल सिद्धि कर साधना, राम-नाम अनुराग ।।
तीन लोक का समझीये सार, राम-नाम सब ही सुखकार,
राम-नाम की बहुत बरदाई, वेद पुराण मुनि जन गाई ।।
यति सती साधू संत सयाने, राम नाम निष्-दिन बखाने,
तापस योगी सिद्ध ऋषिवर, जाप्ते राम-नाम सब सुखकर।।
भावना भक्ति भरे भजनीक, भजते राम-नाम रमणीक,
भजते भक्त भाव-भरपूर, भ्रम-भय भेद-भाव से दूर।।
पूर्ण पंडित पुरुष-प्रधान, पावन-परम पाठ ही मान,
करते राम-राम जप-ध्यान, सुनते राम अनहद तान।।
इस में सुरति सुर रमाते, राम राम स्वर साध समाते,
देव देवीगन दैव विधाता, राम-राम भजते गनत्राता।।
राम राम सुगुणी जन गाते, स्वर-संगीत से राम रिझाते,
कीर्तन-कथा करते विद्वान्, सार सरस संग साधनवान।।
मोहक मंत्र अति मधुर,राम-राम जप ध्यान,
होता तीनो लोक में, राम-नाम सकल गुन खान ।I
मिथ्या मन-कल्पित मत-जाल, मिथ्या है मोह-कुमद-बैताल,
मिथ्या मन-मुखिआ मनोराज, सच्चा है राम-राम जप काज।।
मिथ्या है वाद-विवाद विरोध, मिथ्या है वैर निंदा हाथ क्रोध
मिथ्या द्रोह दुर्गुण दुःख कहाँ, राम-नाम जप सत्य निधान ।।
सत्य-मूलक है रचना सारी,सर्व-सत्य प्रभु-राम पसारि।
बीज से तरु मक्कर से तार, हुआ त्यों राम से जग विस्तार।
विश्व-वृक्ष का राम है मूल, उस को तू प्राणी कभी न भूल ।।
साँस -साँस से सीमर सुजान, राम-राम प्रभु-राम महान ।
लय उत्पत्ति पालना-रूप, शक्ति-चेतना आनंद-स्वरुप ।
आदि अन्त और मध्य है राम, अशरण-शरण है राम-विश्राम ।
राम-राम जप भाव से, मेरे अपने आप,
परम-पुरुष पालक-प्रभु, हर्ता पाप त्रिताप I।
राम-नाम बिना वृथा विहार, धन-धान्य सुख-भोग पसार ।
वृथा है सब सम्पद सम्मान, होवतँ यथा रहित प्राण ।।
नाम बिना सब नीरस स्वाद, ज्योँ हो स्वर बिना राग विषाद ।
नाम बिना नहीं साजे सिंगार, राम-नाम है सब रस सार।।
जगत का जीवन जानो राम, जग की ज्योति जाज्वल्यमान ।
राम-नाम बिना मोहिनी-माया, जीवन-हीं यथा तन-छाया समान ।।
सूना समझीये सब संसार, जहां नहीं राम-नाम संचार ।
सूना जानिये ज्ञान-विवेक, जिस में राम-नाम नहीं एक ।।
सूने ग्रन्थ पंथ मत पोथे, बने जो राम-नाम बिन थोथी ।
राम-नाम बिन वाद-विचार, भारी भ्रम का करे प्रचार ।।
राम-नाम दीपक बिना, जान-मन में अंधेर,
रहे इससे हे मम-मन, नाम सुमाला फेर ।।
राम-राम भज कर श्री राम, करिये नित्य ही उत्तम काम ।
जितने कर्त्तव्य कर्म कलाप, करिये राम-राम कर जाप ।।
करिये गमनागम के काल, राम-जाप जो कर्ता निहाल ।
सोते जागते सब दिन याम, जपिये राम-राम अभिराम ।।
जाप्ते राम-नाम महा माला, लगता नरक-द्वार पै टाला ।
जाप्ते राम-राम जप पाठ, जलते कर्म बंध यथा काठ ।।
तान जब राम-नाम की तूती, भांडा-भरा अभाग्य भया फूटी ।
मनका है राम-नाम का ऐसा, चिंता-मणि पारस-मणि जैसा।।
राम-नाम सुधा-रस सागर, राम-नाम ज्ञान गुण- आगर ।
राम-नाम श्री राम-महाराज, भाव-सिंधु में है अतुल-जहाज।।
राम-नाम सब तीर्थ-स्थान, राम-राम जप परम-स्नान ।
धो कर पाप-ताप सब धुल, कर दे भया-भ्रम को उन्मूल ।।
राम जाप रवि-तेज सामान, महा-मोह-ताम हरे अज्ञान ।
राम जाप दे आनंद महान, मिले उसे जिसे दे भगवान् ।।
राम-नाम को सिमरिये, राम-राम एक तार ।
परम-पाठ पावन-परम, पतित अधम दे तार ।।
माँगूँ मैं राम-कृपा दिन रात, राम-कृपा हरे सब उत्पात ।
राम-कृपा लेवे अंट सँभाल, राम-प्रभु है जन प्रतिपाल ।।
राम-कृपा है उच्तर-योग, राम-कृपा है शुभ संयोग ।
राम-कृपा सब साधन-मर्म, राम-कृपा संयम सत्य धर्म ।।
मन में राम-धुन जब फिराना , मन वांछित सकल फल पाना ।
राम-नाम को मन में बसाना, सुपथ राम-कृपा है पाना ।।
राम नाम जपते रहो, जब तक घट घट मे प्राण ।
राम भजो, राम रटो, राम साधो, राम राम ॥
राम की महिमा का, कोई आर न कोई पार रे ।
लाख जतन किये, फिर भी न समझ संसार रे ।
राम के चरणों में मिले,इस जग के सारे धाम ।
राम भजो, राम रटो, राम साधो, राम राम ॥
तन में, मन में, और हृदय में, राम का गुणगान हो ।
हर घडी, हर पल, हर क्षण, राम का ही ध्यान हो ।
राम में ही मग्न रहे, भक्ति हो सुबह शाम ।
राम भजो, राम रटो, राम साधो, राम राम ॥
राम नाम जपते रहो, जब तक घट घट मे प्राण ।
राम भजो, राम रटो, राम साधो, राम राम ॥
रहूँ नाम में हो कर लीन, जैसे जल में हो मीन अड़ीन।
राम-कृपा भरपूर मैं पाऊँ, परम प्रभु को भीतर लाऊँ ।।
भक्ति-भाव से तब त्रेता युग लीन्ही राम तब ही अवतार ।।
भक्ति-भाव से भक्त सुजान, भजते राम-कृपा का निधान ।।
जपत निरंतर अभ्यास राम नाम धुन, सकल कष्ट मिटे जीवन के ।
राम-कृपा उस जन में आवे, जिस में आप ही राम बसावे ।।
कृपा प्रसाद है राम की देनी, काल-व्याल जंजाल हर लेनी ।
कृपा-प्रसाद सुधा-सुख-स्वाद, राम-नाम दे रहित विवाद ।।
प्रभु-पसाद शिव-शान्ति-दाता, ब्रह्म-धाम में आप पहुँचाता ।
प्रभु-प्रसाद पावे वह प्राणी, राम-राम जापे अमृत-वाणी ।।
औषध राम-नाम की खाईये, मृत्यु जन्म के रोग मिटाइये ।
राम-नाम अमृत रस-पान, देता अमल अचल निर्वाण । ।
राम-राम धुन गूँज से, भाव-भया जाते भाग ।
राम-नाम धुन ध्यान से, सब शुभ जाते जाग ।।
जपूँ मैं राम नाम पवित्र नाम, माँगूँ मैं राम-नाम महादान,
सकल संताप मिटत हैं क्षण में ,करता निर्धन का कल्याण । ।
देव-द्वार पर जनम का भूखा, भक्ति प्रेम अनुराग से रूखा,
पर हूँ तेरा-यह लिए टेर, चरण पारधे की राखियो मेर ।
अपना आप विरद-विचार, दीजिये भगवन! नाम प्यार ।
राम-नाम ने वे भी तारे, जो थे अधर्मी-अधम हत्यारे ।।
कपटी-कुटिल-कुकर्मी अनेक, तर गए राम-नाम ले एक ।
तर गए धृति-धारणा हीं, धर्म-कर्म में जन अति दीन ।
राम-राम श्री राम-जप जाप, हुए अतुल-विमल-अपाप ।
राम-नाम मन मुख में बोले, राम-नाम भीतर पट खोले ।।
राम-नाम से कमल-विकास, होवें सब साधन सुख-रास ।
राम-नाम घट भीतर बसे, सांस-साँस नस-नस से रसे । ।
सपने में भी न बिसरे नाम, राम-राम श्री राम-राम-राम ।।
राम-नाम के मेल से, साध जाते सब-काम ।
देव-देव देवी यादा, दान महा-सुख-धाम ।।
अहो मैं राम-नाम धन पाया, कान में राम-नाम जब आया,
मुख से राम-नाम जब गाया, मन से राम-नाम जब ध्याया,
पा कर राम-नाम धन-राशि, घोर-अविद्या विपद विनाशी I
बर्धा जब राम प्रेम का पूर, संकट-संशय हो गए दूर,
राम-नाम जो जापे एक बेर, उस के भीतर कोष-कुबेर,
दीन-दुखिया-दरिद्र-कंगाल, राम-राम जप होव निहाल ।।
हृदय राम-नाम से भरिये, संचय राम-नाम दान करिए ।
घाट में नाम मूर्ती धरिये, पूजा अंतर्मुख हो करिये ।।
आँखें मूँद के सुनिये सितार, राम-राम सुमधुर झनकार ।
उस में मन का मेल मिलाओ, राम-राम सुर में ही समाओ ।।
जपूँ मैं राम-राम प्रभु राम, ध्याऊँ मैं राम-राम हरे राम ।
सिमरूँ मैं राम-राम प्रभु राम, गाऊं मैं राम-राम श्री राम ।।
अमृतवाणी का नित्य गाना, राम-राम मन बीच रमाणा ।
देता संकट-विपद निवार, करता शुभ श्री मंगलाचार ।।
राम-नाम जप पाठ से, हो अमृत संचार ।
राम-धाम में प्रीति हो, सुगुण-गैन का विस्तार ।।
तारक मंत्र राम है, जिस का सुफल अपार ।
इस मंत्र के जाप से, निश्चय बने निस्तार ।।
बोलो राम, बोलो राम, बोलो राम राम राम
बोलो सीताराम, सीताराम, बोलो सीताराम राम राम।।
*******चौपाई।2।*******
कनक भूतादिक राम सनेही , तब जब लागी प्रभु राम कथा सुहाई I
राम कृपा सिंधु महिपारा, पार उतरती मानव जग सारा I
रहहि न कुमति जो जान गावत,श्री राम कथा तब अति प्रिय तब लागत तब लागत
# भावार्थ - प्रभु श्री राम से स्नेह करने वाला का ह्रदय कनक यानि चन्दन समान चहुँ दिशा में शीतलता प्रदान करने वाला होता है तथा जब प्रभु श्री राम कथा में लीन रहता है I राम कृपा सिंधु समान तेज भव सागर रहने वाला सभी प्राणी पार उतर जाते हैं I अर्थात भव बंधन और मोह माया से सहज ही मुक्ति पा जाते हैं I
शंकर सुमन केशरीनंदन , जापर कृपा रहहि प्रभु राम सदा सद क्षण ,
मम जपु प्रभु श्री राम दुहाई , कृपा मो पर कीन्हो सवाई I
कनक भूतादिक मन प्रफुलित भहहिं , सकल दुःख दूर करती श्री रघुराई
श्री राम नाम अति सहज जपत निरंतर , करू जोड़ी विनती तब करत सम भाई
सकल दुःख हरत श्री प्रभु रघुराई , जब तक जन सुमिरत प्रभु श्री राम नाम दुहाई I
मन चंचल अति भारी तापर रहत विपदा भारी, रहत दिनन के फेर ,
जो जन करत प्रभु नित्य पूजन मन लगन सा ,
ता पर रहत कृपा सब जन अधिकारी I
नित्य पढ़त , सुनत हैं मानष पाठ, जोई जन,
नित्य ध्यावत हैं श्री रघुराई , ता पर कोई संकट विपदा न आवहीं।
जो मन लगे प्रभु श्री रघु भजन में , ताहू दुःख दरिद्र ,
संताप हर लेंहीं क्षण माहीं,जापर रहे प्रभु कृपा बरसहिं,
ताको विलोकत न चिंता भारी
जा जन ध्यान करत प्रभु रघुराई , ताको रहत न कोनो शंका मन माहीं I I
जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करहिं सब कोई।
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया, तिनके ह्रदय बसहु रघुराया।।
# भावार्थ - जो कपट, दम्भ और माया से परे है, वो ही भगवान् श्री राम के कृपा पात्र है और जिन पर राम की कृपा है उन्हें कई सांसारिक दुःख छू तक नहीं सकता। परमात्मा जिसपर कृपा कर देते है उस पर तो सभी की कृपा अपने आप होने लगती है । कुछ भी प्रयत्न करने की आवश्यकता नही रहती !!
(तृतीय भाग > कर्म फल लागी )>>>>>
अर्थ न धर्म न कर्म रूचि, गति न चाहाहूँ निर्वाण
प्रेम भक्ति भाव बिन नर न पावत परम ज्ञान ,
शक्ति संतति बिलोकत माहीं , नर ह्रदय बसहिं श्री रघुबीर I
ध्यान धरत जो नित्य दिन , कृपा पवन पावक सहज सोबारुं दिन रेन
कहूं दिनन के फेर है जो जन नहीं भजत जय राम, श्री सीया राम भजन
जो नित्य भजत हैं जय राम श्री सीया राम भजन ,
वाको कस्ट मिटत क्षण माहीं , जो ध्यावे मन क्रम बचन लाहीं
जो जन जापे नित्य सिया राम नाम , सोई जन सहज प्रभु श्री राम चरण गति पावे ,
ताको ह्रदय श्री सीताराम बसत हैं, जो प्रभु श्री चरण नित्य रति उपजत हैं I I
संसार बहुधा देखत हैं जहाँ प्रेम न सुहाय , भक्ति करत न सोइ जन निज भाग्य पिराय
मन विस्मित होवत रहत ,माया जाल फन्दी पुनि विगह घिरत हैं ,
रोग ब्याधि, दुःख संताप सुनत है, मन रहत अति अधीर सोइ जन
श्री प्रभु चरण की ध्यान धरे जोई नर, पावत सुख संतति विनय के संग
मन व्याकुलता मिटत हैं जोई जन श्री राम नाम भक्ति नित्य करत हैं
श्री राम कृपा नर पर रहत सद क्षण सब पर एक समान
जो नर अभिमान, राग ,द्वेष , असंतोष त्यागत हैं, तापर प्रभु श्री राम कृपा बरसत हैं I
राम नाम के मेल से सध जाते सब काम , देव-देव देवे यदा दान महा सुख धाम I I
राम नाम ने वे भी तारे जो अधर्मी अधम हत्यारे, कपति कुटिल कुकुर्मि अनेक तर गए राम नाम ले एक I
राम नाम से कमल विकास, होवें सब साधन सुख-रास, सपने में भी न विसरे राम, राम राम श्री राम राम I
राम राम सुगुनी जन गाते कीर्तन कथा करते विद्वान्,होता तीनो लोक में, राम नाम गुन गानI I
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(चतुर्थ भाग > श्री राम कृपा मानस की चौपाई कर्म संकल्प सिद्धि लागी )>>>>
अकृतक कृत सकल मुख पावे, नाथ के दाश तब प्रभु कृपा पावे I
प्रभुता से मान बढे, लघुता से होय दिनन के फेर I
संतोष से समृद्धि बढे, असंतोष से दरिद्रता दिनन के फेर I
प्रभु श्री राम शरण मोहि डीजे कृपा सिंधु महीपार।।
राम विलोकत नर ताजे , भजे जो नाम रघुराई,
तापर सदा कृपा श्री राम को बरसें , वाको नहीं रहत कहु संदेह I
राम बसत हैं सकल गुण निधान प्रभु श्री राम जपत निरंतर ,
रहत भक्तन के अधीन ।।
कलियुग केवल नाम अधारा , रहत बसत सुमिरत श्री राम नाम सद क्षण
ताको ह्रदय प्रभु श्री राम बसत है ताको कौन करे विनाश ।
सकल अमंगल हित में बदल जात हैं जो सुमिरत श्री राम प्रभु के नाम ।।
यो देव् रूप यत्र तत्र सर्वत्र ब्याप्प्त हैं विश्व भुवनमा विवेश
यो औषधिक यो बनस्पतिषु यो सकल जीवशु जीवन आधार
तस्में श्री राम नाथाय नमो नमः तस्में श्री राम नाथाय नमो नमः :
यह अद्वैत प्रेम राम विन , मंगल कार्य न होय पूर्ण
जो विमुख राम सों तो राम भजन बिनु नर कार्य न सिद्ध होय
सर्व हितकारी , प्रकल्प सहज , यही जीव के आधार , जो नर भजे श्री राम गुण
ताको ह्रदय कहाँ पावत अमंगल विचारी ,
नित्य सहज मंगल ही मंगल होवत , सदा सुख आनंद पावत
यही भाति भक्ति , सत्संग जीवन से मिलत मंगलमय शुभत्व
जन मानष पावत हैं अद्वैत माधुर्य के आश
सकल मनोरथ सिद्ध होत हैं यही भक्ति भाव जन सेवा से
ताको ह्रदय विराजत श्री राम संग वेदहि सद क्षण राम अवतार
यही आशीष कहत है श्री वीर हनुमंत ।।
जहाँ स्वार्थ, मद लोभ बसती हैं जीवन के चित
तहँ जीव भटकत फिरे, दुखदायी योनियों के बीच ।।
जहाँ स्वार्थ है तहाँ जीव असुर रूप पावत हैं , रहत क्लेश हरदम
जहा निष्कामता , भक्ति भाव बसत हैं तहाँ नर मन सुरत्व ( देवत्य )जाग उठत हैं
असुर से सुर गति पावत हैं जग माहिं, सिद्ध स्वरुप जीवन मुक्त हो बैकुंठ पावत जात हैं ।।
सकल जीवन निज कर्म साधत, नित्य जप तप ,
पूजा नेम अचारा करत जोई जन ,
सोइ जन जीव के अंदर प्रभु श्री राम कृपा बसत हैं ।।
सकल कहावत बैकुंठ के अधिकारी I
यही भाति कौन संसय न रहे जिव जग माहीं ।।
सत्वगुणी विवेक , वैराग्य, व मोक्ष के प्रसाद पावत नित्य ।
सदा हित होवत तोहि जन जो जन रहत समीप संत, गुरु संकल्प छाया बनि ।।
सब तुम्हरे , तुम सभी के जग में , यही फैसले दिल से जो मिटत ।
निकलत ह्रदय के शूल और सोइ जन पावत।।
ताको ह्रदय प्रभु श्री राम बसत हैं मनवा शीतल होय ।
निज राग दोष छोड़ दे तो प्रेम करे सब कोय I I
यही भांति दरिद्रता दूर होवत, पावत बरकत भरपूर ।
दुःख संताप हरी लेवत हैं प्रभु श्री राम ।।
श्री राम राम जप सर्व शोभाग्य बर्णित ,शोभा सिंधु महापार।
भाव बंधन पाप हरति हैं क्षण माहीं, अधिबयधिहरा नित्य रामत्वा नमोस्तुते ।।
वेद - पुराण प्रगट भये, जस जापे श्री राम नाम ।
"प्रदीप " राम भगति बार मंगव सद क्षण ।।
सकल जिव चराचर जग माहीं पावत सुख, बृद्धि ब्यापत अन्नंत ।
शुभ मति गति को तेज प्रज्वलित बिसेख ।।
मिटत हिय को सकल अन्धकार , अज्ञान को प्रभाव क्षण माहीं ।
जीव कल्याणकारी, हितेषी बनत , मिटत दिनन के फेर I।।
शुभ कारज में सलग्न रहर , रहे सदैव अनुकूल विचार जो जन।
श्री हरी श्री राम रघुराई , अंतर्यामी बन रक्षा करत सोइ जन।
सिद्ध होत सकल मनोरथ , संकल्प जो ध्यान उर लाई ।।
प्रज्ञापराधो ही मूल सर्वरोगनाम , प्रज्ञापराधो ही मूल सर्वदोषाणाम I
(अर्थात सारे रोगों तथा दोषों का मूल है बुद्धि की नासमझी I।
जहाँ न समझी है वहां दुःख है और इसके विपरीत जहाँ समझ है
विवेक है वहां सुख का वाश है, समृद्धि, मान यश का वाश है ।।)
श्री राम नाम भजन से सकल रोग राग- द्वेष ईर्ष्या ,
वैमनस्य, कलह दूर होवत है सकल जिव -जग माहीं I
रहत ह्रदय चित शुद्ध , पावत जन्म मरण के चक्र से ,
पावत सोइ जन मुक्ति अति भारी I I
सकल जगत में पूजत , अमर होय जात हैं I
जो जन प्रभु श्री राम प्रिय रघुराई I I
विश्व वृक्ष का राम है मूल, उसको तू प्राणि कभी ना भूल,
सांस सांस से सिमर सुजान राम राम प्रभु राम महान I I
लय सुर उत्पति पालना रूप , शक्ति चेतना आनंद स्वरूप I
आदि अंत और मध्य है राम, अशरण शरण है राम विश्राम I
राम नाम जप भाव से , हृदय ध्याये निज आप I
परम पुरुष पलक प्रभु राम है हरता पाप त्रिताप I I
राम नाम बिना बृथा विहार ,धन धान्य सुख भोग पसार I
बृथा है सब सम्पदा सम्मान , होवे तन यथा रहित तब प्रान I I
राम बिना सब निरस स्वाद, ज्यों हो स्वर बिना राग विषाद,
राम बिना नहीं सजे श्रृंगार, राम नाम है सब रस सार I I
जगत का जीवन जानो राम , जग की ज्योति जाज्वल्यमान I
राम नाम बिना मोहिनी माया , जीवन-हिंन यथा तन छाया I I
सूना समझिए सब संसार , जहां नहीं राम नाम संचार ,
सुना जानिए ज्ञान विवेक, जिस में राम नाम नहीं एक I I
राम नाम दीपक बिना , जन- मन में रहे अंधेर I
रहे इससे है मम उज्वलित मन, नाम जो सुमाला फेर I I
राम राम भज कर श्री राम , करिये नित्य ही उत्तम काम I
जितने कर्तव्य कर्म कल्प , करिये राम राम कर जाप I I
पूर्ण होगी सकल मनोरथ ,जो संकल्प सिद्ध होवे तत्क्षण I
करिये गमनगमन के काल ,राम जप जो कर्ता निहाल I
सोते जगते सब दिन आठो याम, जपिये राम राम अभिराम,
जपते राम नाम महा माला, लगता नरक द्वार पर ताला I
जपते राम राम जप पाठ , जलते कर्मबंध यथा काठ I I
मनका है राम नाम का ऐसा, चिंता मणि, पारस मणि जैसा I
राम नाम सुधा-रस सागर , राम नाम ज्ञान गुण-आगर I I
राम राम सब तीर्थ स्थान ,राम राम जप सदा परम स्नान I
धोकर पाप-ताप सब धूल, कर दे भय-भ्रम को उनमूल I I
राम जप रवि तेज समान ,महा मोह-तम हरे अज्ञान ,
राम जप दे आनंद महान , मिलें उपयोग जैसे दे भगवान I I
राम नाम को सिमरिये ,राम राम एक तार ,
परम पाठ, पवन परम , पतित अधम दे तार I I
राम राम धुन गुंजन से, भव भय जाते भाग I
राम मन धुन ध्यान से , सकल शुभ जाते जाग I I
कृपा-प्रसाद हे राम की देनी, कल ब्याल जंजाल हर लेनी ,
कृपा-प्रसाद सुधा-सुख-स्वाद, राम नाम दे रहित विवाद I I
“मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहुं सा दसरथ अचिर बिहारी” I
(केवल मात्र इस मन्त्र को जपने से सम्पूर्ण रामायण के पाठ का फल मिलते हैं)
जय जय प्रभु श्री राम , राजा राम, राजा राम I I
जय जय प्रभु श्री राम , राजा राम राजा राम I I
जय जय प्रभु श्री राम , राजा राम राजा राम I I
जय जय प्रभु श्री राम , राजा राम राजा राम I I
I I ॐ नमो श्री रघुनाथाय सिताय पतिये नमो नमः I I
राम जी का प्रिय मंत्र -
सर्वार्थ सिद्धि श्री राम ध्यान मंत्र-
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः !
रोजाना इस मंत्र के जाप से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
ॐ राम ॐ राम ॐ राम ह्रीं राम ह्रीं राम श्रीं राम श्रीं राम - भगवान राम के इस मंत्र का उच्चारण करने वालों को चहुओर सफलता प्राप्त होती है. श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः - वैवाहिक जीवन में तनाव से गुजर रहे हैं तो भगवान राम के इस मंत्र का एक माला जाप करें।
रामचरितमानस की चौपाई “ अधम ते अधम अधम अति नारी तिन्ह महँ मैं मतिमन्द अघारी” का वास्तविक अर्थ है :- जँहा तक आपको पता होगा गोस्वामी श्री तुलसी रामचरितमानस रामायण के 34 वें श्लोक के बाद यह चौपाई आती है I I
यह चौपाई अरण्यकाण्ड से ली गई है!,इसके विषय मे बहुत सी भ्रान्तियाँ समाज से फैली हुई हैं I सबसे पहले हम यह जाने की अधम का मूल अर्थ नीच होता है!
अब इसके बाद सबसे ज्यादा जरुरी है इसकी पूरी चौपाई को जानने का क्यूँ तभी हम अच्छे से समझ पायेंगे की किस विषय मे कही गई है ,इस पंक्ति को लेकर ही सम्पूर्ण पूर्वानुमान और गलत नही सिद्ध कर सकते हैं!
चौपाई ऐसे है की जब शबरी प्रभु श्रीराम से हाथ जोडकर कहती है की:
पानि जोरि आगें भई ठाढी | प्रभुही बिलोकी प्रीति अति बाढ़ि ||
केहि बिधि अस्तुति करूँ तुम्हारी | अधम जाती मैं जड़मति भारी ||
अधम ते अधम अधम अति नारी | तिन्ह महँ मैं मतिमन्द अघारि ||
कह रघुपति सुनू भामिनी बाता | मानाउँ एक भागति कर नाता ||
ज़ाती पँति कुल धर्म बड़ाई | धन बल परिजन गुण चतुराई ||
भगति हीन नर सोहइ कैसा | बिनु जल बरिद देखिअ जैसा ||
नावधा भागती कहउँ तोहि पाहि | सावधान सुनू धरू मन माही ||
यहाँ पर भी ये बात “शबरी” द्वारा कही ज़ाती है. और ये कहते ही भगवान राम जी “शबरी” से कहते हैं. की हे – भामिनी. मेरी बात सुन. मैं तो केवल एक भक्ती ही का संबंध मानता हूँ I ज़ाती, पाँति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुरता – इन सबके होनेपर भी भक्ति से रहित मनुष्य कैसा लगता है. वैसे ही जैसे जलहिन बादल I I
देखिए ये सभी बातें संवाद के अंदर लिखी गई हैं इनको गहराई से जानना आवश्यक है --
तुलसीदास जी नारी के बारे में क्या कहते हैं वो देखिए बाल कांड के प्रारंभ में ही तुलसीदास जी सीता (नारी शक्ति के बारे में कहते है :-
“उद्भवस्थिति संहारकारिणी क्लेशहरिणीम्, सर्वश्रेयस्कारीं सीता नतोऽ हं रामवल्लभाम् ” I
व्याख्या :- उत्पत्ति स्थिति(पालन और संहार करनेवाली क्लेशों की हरनेवाली तथा संपूर्ण कल्यानो को करनेवाली श्री रामचंद्रजी की प्रियतमा श्री सीताजीको मैं नमस्कार करता हूँ I
यह चौपाई किसी भी कार्य की सफलता के लिए मंत्र के रूप में गणेश जी का मंत्र है :-
जो सुमिरन सिद्ध हुई ,गणनायक करिवर बदन करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि राशि शुभ गुण सदन।
जब् ते राम ब्याहि घर आए, नित नव मंगल मौद बधाए।
जब घर में लड़के की शादी हो, तब घर में रामायण करते समय यह चौपाई बोली जाती है हर दोहे के बाद ।
दीनदयाल विरद संभारी, हरउ नाथ मम संकट भारी।
यदि आप किसी भी मुसीबत में हो या कोई दुख है तो आप मंत्र के रूप में इस चौपाई का सिमरन कर सकते हैं।
जय जय गिरिवर राज किशोरी, जय महेश मुख चंद्र चकोरी,
जय गजबदन षडानन माता ,जगत जननी दामिनी दुति गाता।
मोर मनोरथ पूर्ण कीजे, बसउ सदा उर पुर सबहि के
यह चौपाई मंत्र के रूप में जब जिस लड़की की शादी हो तो वह गोरी के मंदिर में जाकर बोलती है। जिसको पति रूप में चाहती हो उसके लिए यह प्रार्थना की जाती है।
जो प्रभु दीनदयालु कहावा ,आरती हरन वेद जस गावा।
जपहि नामु जन आरत भारी ,मिटहि कुसंकट होहिं सुखारी।
यह चौपाई मंत्र के रूप में हर मुसीबत में बोली जाती है :-
न जानामि योगम जपं नैव पूजां, नतो हं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यम।
इस चौपाई से आप भगवान से यह कह सकते हैं कि मुझे कुछ नहीं आता। मैं कोई विधि नहीं जानता आपको सदा नमस्कार करता हूं। जो किसी भी मंत्र को, विधि को नहीं जानता वह सिर्फ भगवान के सामने सच्चे मन से इस मंत्र को जप सकता है।
जय जय सियाराम, जय जय श्री राम
अगर आप विश्वास के साथ यह आरती नित्य प्रतिदिन एकाग्र भाव से पाठ करेंगे तो निश्चय ही आपकी मुराद पूरी होगी।
**** प्रभु श्री राम आरती ****
अहो ! मैं राम नाम धन पायो , कण में राम नाम जब आयो I
मुख से राम नाम जब गायो, मन से राम नाम जब ध्याओ I
सपने में भी न बिसरे नाम , राम राम श्री राम राम राम I
जापे जब राम नाम धन राशि , घोर अविद्या बिपद बिनाशी I
बढ़ा जब राम प्रेम का पुर , संकट संशय हो जायो दूर I
श्री राम नाम जो जापे एक बेर, उस के भीतर रहे कोष कुबेर I
फिन दुखिया दरिद्र कंगाल, राम राम जापे होव निहाल I
ह्रदय श्री राम नाम से भरिये , संचय श्री राम नाम धन करिये I
घट में नाम मूर्ति धरिये सियाराम के ,पूजा अन्तर्मुख हो करिये I
आंख मूंद के सुनिए श्री राम नाम धुनि अति राम राम सुमधुर नाम I
उस में मन का मेल मिलाइये , राम नाम सुर में ही समाइये I
जपून मैं राम नाम प्रभु श्री राम , ध्याऊँ मैं राम राम हरे राम I
सिमरन मैं राम राम प्रभु राम , गाऊं मैं राम राम श्री राम I
राम राम यह अमृत वाणी का नित्य गान होत अति सुखकारी I
श्री राम राम मन बिच रमानी, देत संकट विशद निवार I
करत शुभ श्री मंगलाचार , पतित अधम होत सदा परम उबार I
श्री राम नाम जप पाठ से , हो अमृत नित्य संचार I
श्री राम -धाम में प्रीति हो , सगुन गण का होत विस्तार I
तारक मन्त्र श्री राम राम है , जिसका सुफल अपार यह मन्त्र के जाप से निश्चय बने निस्तार II
।।। इति।।।
*ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः त्रिष्टुभ (वैदिक छंद) :-*
वर्णानामर्थसङ्घानां रसानां छन्दसामपि।
मङ्गलानां च कर्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥१॥
भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥२॥
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥३॥
सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥४॥
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥५॥
यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुराः
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेव भाति हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्॥६॥
प्रसन्नतां या न गताभिषेकतःतथा न मम्लौ वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्रीरघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमङ्गलप्रदा॥७॥
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥१३॥
आर्तानामार्तिहन्तारं भीतानां भयनाशनं।
द्विषतां कालदण्डं तं रामचन्द्रं नमाम्यहम्॥१५॥
वैदेहीसहितं सुरद्रुमतले हैमे महामण्डपे
मध्ये पुष्पक आसने मणिमये वीरासने सुस्थितम्।
अग्रे वाचयति प्रभञ्जनसुते तत्त्वं मुनिभ्यः परं
व्याख्यातं भरतादिभिः परिवृतं रामं भजे श्यामलम्॥१७॥
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥
ॐ श्रीसीता-लक्ष्मण-भरत-शत्रुघ्न-हनुमत्समेत-
श्रीरामचन्द्र-परब्रह्मणे नमः॥
****श्री राम कृपा नाम जपं कीर्तनम्****
१. शुद्धब्रह्मपरात्पर राम।
२. कालात्मकपरमेश्वर राम॥
३. शेषतल्पसुखनिद्रित राम।
४. ब्रह्माद्यमरप्रार्थित राम॥
५. चण्डकिरणकुलमण्डन राम।
६. श्रीमद्दशरथनन्दन राम॥
७. कौशल्यासुखवर्धन राम।
८. विश्वामित्रप्रियधन राम॥
9. शुद्धब्रह्मपरात्पर राम।
10. कालात्मकपरमेश्वर राम॥
11. कौशिकमखसंरक्षक राम।
12. श्रीमदहल्योद्धारक राम॥
13. गौतममुनिसम्पूजित राम।
14. सुरमुनिवरगणसंस्तुत राम॥
15 . सकलजीवसंरक्षक राम।
16 . समस्तलोकाधारक राम॥
17. शुद्धब्रह्मपरात्पर राम।
18. कालात्मकपरमेश्वर राम॥
19. आयोध्यकजनमुक्तिद राम।
20 विधिमुखविबुधानन्दक राम॥
21. तेजोमयनिजरूपक राम।
22. संसृतिबन्धविमोचक राम॥
23. धर्मस्थापनतत्पर राम।
24. भक्तिपरायणमुक्तिद राम॥
25. शुद्धब्रह्मपरात्पर राम।
26. कालात्मकपरमेश्वर राम॥
27. सर्वचराचरपालक राम।
28. सर्वभवामयवारक राम॥
29. वैकुण्ठालयसंस्थित राम।
30. नित्यानन्दपदस्थित राम॥
*****श्री राम मंगलाचरण वाणी*****
राम राम राम जय राजा राम।
राम राम राम जय सीता राम॥
सीताराम जय राजाराम। राजाराम जय सीताराम॥
राम राम जय राजा राम। राम राम जय सीता राम॥
सीता राम जय राजा राम। राजा राम जय सीता राम॥
भयहर मङ्गल दशरथ राम। जय जय मङ्गल सीता राम॥
मङ्गलकर जय मङ्गल राम। सङ्गतशुभविभवोदय राम॥
आनन्दामृतवर्षक राम।
आश्रितवत्सल जय जय राम॥ रघुपति राघव राजा राम।
पतितपावन सीता राम॥ पतितपावन सीता राम॥
स्तवः कनकाम्बर कमलासनजनकाखिल- धाम ॥
सनकादिकमुनिमानससदनानघ भूम ॥
शरणागतसुरनायकचिरकामित काम। धरणीतलतरण दशरथनन्दन राम ॥
पिशिताशनवनितावधजगदानन्द राम। कुशिकात्मजमखरक्षण चरिताद्भुत राम ॥
धनिगौतमगृहिणीस्वजदघमोचन राम। मुनिमण्डलबहुमानित पदपावन राम ॥
स्मरशासन सुशरासन लघुभञ्जन राम। नर निर्जर जनरञ्जन सीतापति- राम ॥
कुसुमायु धतनुसुन्दर कमलानन राम। वसुमानित भृगु सम्भवमद मर्दन राम ॥
करुणा रस वरुणालय नत वत्सल राम। शरणं तव चरणं भवहरणं मम राम ॥
श्री रामप्रणामः
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥
रामाय रामचन्द्राय रामभद्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥
श्रीहनुमत्प्रणामः
यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम्।
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्॥७॥
****श्री राम रघुनाथ भजनम्****
गुरु कृपाञ्जन पायो मेरे भाई ।राम बिना कछु जानत नाहीं ॥
अन्दर राम बाहिर राम । जहँ देखौं तहँ रामही राम ॥
जागत राम सोवत राम । सपन में देखौं राजा राम ॥
प्रेममुदित मन से कहो राम राम राम । श्रीराम राम राम, श्रीराम राम राम॥
पाप कटे, दुःख मिटे, लेत रामनाम। भव-समुद्र सुखद नाव एक राम नाम॥
परम शान्ति-सुख-निधान नित्य रामनाम। निराधार को आधार एक राम नाम॥
परम गोप्य, परम इष्ट मन्त्र रामनाम। सन्त-हृदय सदा बसत एक राम नाम॥
महादेव सतत जपत दिव्य रामनाम । कासि मरत मुक्त करत,कहत राम नाम I
माता पिता बन्धु सखा सबहि राम नाम । परम भक्त -जनन जीवन धन एक रामनाम ॥
**भगवान शिव द्वारा प्रभु श्रीराम की स्तुति (संकलित अंश)**
जय राम रमारमनं समनं । भवताप भयाकुल पाहि जनं ।।
अवधेश सुरेश रमेश बिभो । सरनागत मागत पाहि प्रभो ॥1॥
दससीस बिनासन बीस भुजा । कृत दूरि महा महि भूरि रुजा ।।
रजनीचर बृंद पतंग रहे ।सर पावक तेज प्रचंड दहे ॥2॥
महि मंडल मंडन चारु तरं । धृत सायक चाप निषंग बरं ।।
मद मोह महा ममता रजनी । तम पुंज दिवाकर तेज अनी ॥3॥
मनजात किरात निपात किए । मृग लोग कुभोग सरेन हिए ।।
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे । बिषया बन पावँर भूलि परे ॥4॥
बहुरोग बियोगन्हि लोग हए । भवदंघ्रि निरादर के फल ए ।।
भव सिँधु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते ॥5॥
अति दीन मलीन दुखी नितही । जिन्हके पद पंकज प्रीति नहीँ ।।
अवलंब भवंत कथा जिन्ह केँ । प्रिय संत अनंत सदा तिन्हके ॥6॥
नही राग न लोभ न मान मदा । तिन्ह के सम वैभव वा बिपदा ।।
एहि ते तव सेवक होत मुदा । मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ॥7॥
करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ । पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ ।।
सम मानि निरादर आदरही । सब संत सुखी बिचरंति मही ॥8॥
मुनि मानस पंकज भृंग भजे । रघुबीर महा रनधीर अजे ।।
तव नाम जपामि नमामि हरी । भव रोग महागद मान अरी ॥9॥
गुन सील कृपा परमायतनं । प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं ।।
रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं । महिपाल बिलोकय दीनजनं ॥10॥
******दोहा ******
बार बार बर मागहुँ हरषि देहु श्रीरंग । पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ॥
बरनी उमापति राम गुन हरषि गये कैलास ।
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुख प्रद बास ॥
परमात्मा के जिस नाम में रुचि हो, जो अपने मन को रुचिकर हो उसी नाम की परमात्मा की भावना से बारम्बार आवृत्ति करने का नाम 'जप' है। जप की शास्त्रों में बड़ी महिमा है। जप को यज्ञ माना है और श्री गीताजी में भगवान के इस कथन से कि 'यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि' (यज्ञों में जप-यज्ञ मैं हूँ) जप का महत्त्व बहुत ही बढ़ गया है। जप के तीन प्रकार हैं-साधारण, उपांशु और मानस। इनमें पूर्व-पूर्व से उत्तर-उत्तर दस गुणा अधिक फलदायक है। भगवान मनु कहते हैं–
विधियज्ञाज्जपयज्ञो विशिष्टो दशभिर्गुणैः।
उपांशुः स्याच्छतगुणः साहस्रो मानसः स्मृतः॥
दर्श-पौर्णमासादि विधि यज्ञों से (यहाँ मनु महाराज ने भी विधि यज्ञों से जप-यज्ञ को ऊँचा मान लिया है) साधारण जप दस श्रेष्ठ है, उपांशु-जप सौ गुणा श्रेष्ठ है और मानस-जप हजार गुणा श्रेष्ठ है।
जो फल साधारण जप के हजार मन्त्रों से होता है वही फल उपांशु जप के सौ मन्त्रों से और मानस-जप के एक मंत्र से हो जाता है। उच्च स्वर से होने वाले जप को साधारण जप कहते हैं (परंतु यह कीर्तन नहीं है)। जिसमें जिह्वा और ओष्ठ तो हिलते हैं, परंतु शब्द अंदर ही रहता है वह उपांशु जप है और जिसमें न जीभ के हिलाने की आवश्यकता होती है और न होठ के, वह मानसिक जप कहलाता है। उच्च स्वर से उपांशु उत्तम और उपांशु से मानसिक उत्तम है। यह जप की विधि है, किसी भी देवता का कैसा ही मन्त्र क्यों न हो, यह विधि सबके लिये एक-सी है। परंतु भगवन्नाम-जप का तो कुछ विलक्षण ही फल होता है। यह नाम की अलौकिक महिमा है। दूसरे जपों में अनेक प्रकार के विधि-निषेध होते हैं, शुद्धि-अशुद्धि का बड़ा विचार करना पड़ता है, परंतु भगवन्नाम में ऐसी कोई बात नहीं।
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
'अपवित्र हो, पवित्र हो, किसी भी अवस्थामें क्यों न हो भगवान् पुण्डरीकाक्ष का स्मरण करते ही बाहर और भीतर की शुद्धि हो जाती है।' जल-मृत्तिका से केवल बाहर की ही शुद्धि होती है। परंतु भगवन्नाम अन्तर के मलों को भी अशेष रूप से धो डालता है, इसका किसी के लिये किसी अवस्था में भी कोई निषेध नहीं है।
पुरुष नपुंसक नारि वा जीव चराचर कोइ।
सर्व भाव भज कपट तजि मोहि परम प्रिय सोइ॥
कलिसन्तरणोपनिषद् -में नाम-जप की विधि और उसके फल का बड़ा सुन्दर वर्णन है, पाठकों के लाभार्थ उसे यहाँ उद्धृत किया जाता है।
हरिः ॐ।
द्वापरान्ते नारदो ब्रह्माणं जगाम कथं भगवन् गां पर्यटन कलिं सन्तरेयमिति ॥१॥
'द्वापर के समाप्त होनेके समय श्रीनारद जी ने ब्रह्माजी के पास जाकर पूछा कि 'हे भगवन्! मैं पृथ्वी की यात्रा करनेवाला कलियुग को कैसे पार करूं'॥ १ ॥
स होवाच ब्रह्मा साधु पृष्टोऽस्म सर्वश्रुतिरहस्यं गोप्यं तच्छ्रुणु येन कलिसंसारं तरिष्यसि।
भगवत आदिपुरुषस्य नारायणस्य नामोच्चारणमात्रेण निधूतकलिर्भवति ॥२॥
ब्रह्माजी बोले कि तुमने बड़ा उत्तम प्रश्न किया है। सम्पूर्ण श्रुतियों का जो गूढ़ रहस्य है, जिससे कलि संसार से तर जाओगे, उसे सुनो। उस आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चारण मात्र से ही कलि के पातकों से मनुष्य मुक्त हो सकता है॥२॥
नारदः पुनः पप्रच्छ। तन्नाम किमिति। स होवाच हिरण्यगर्भः।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥
इति षोडशकं नाम्नां कलि कल्मषनाशनम । नात: परतरोपाय सर्ववेदेषु दृष्यते॥
इति षोडशकलावृतस्य पुरुषस्य आवरणविनाशनम्।
ततः प्रकाशते परं ब्रह्म मेघापाये रविरश्मिमण्डलीवेति॥३॥
'श्री नारदजी ने फिर पूछा कि 'वह भगवान का नाम कौन-सा है?' ब्रह्मा ने कहा, वह नाम है-
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥*
'इन सोलह नामों के उच्चारण करनेसे कलि के सम्पूर्ण पातक नष्ट हो जाते हैं। सम्पूर्ण वेदों में इससे श्रेष्ठ और कोई उपाय नहीं देखने में आता। इन सोलह कलाओं से युक्त पुरुष का आवरण (अज्ञान का परदा) नष्ट हो जाता है और मेघों के नाश होने से जैसे सूर्य-किरण समूह प्रकाशित होता है वैसे ही आवरण के नाश से ब्रह्म का प्रकाश हो जाता है'॥ ३॥
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* इस मंत्र में भगवान के तीन नाम हैं हरि, राम और कृष्ण।' इनमें हरि शब्दका अर्थ है-'हरति योगिचेतांसीति हरिः' जो योगियोंके चित्तोंको हरण करता है वह हरि है। अथवा 'हरिर्हरति पापानि दुष्टचित्तैरपि स्मृतः। अनिच्छयापि संस्पृष्टो दहत्येव हि पावकः ॥' जैसे अनिच्छासे स्पर्श कर लेनेपर भी अग्नि जला देती है, इसी प्रकार दुष्टचित्तसे भी स्मरण किया हुआ जो हरि पापोंको हर लेता है उसे हरि कहते हैं। 'राम' शब्दका अर्थ है-'रमन्ते योगिनोऽस्मिन्निति रामः' जिसमें योगिगण रमण करते हैं, उसका नाम राम है, अथवा 'रमन्ते योगिनो ऽन्ते नित्यानन्दे चिदात्मनि । इति रामपदेनासौ परं ब्रह्म अभिधीयते॥' जिस अनन्त चिदात्मा परब्रह्ममें योगिगण रमण करते हैं वह है राम। 'कृष्ण' शब्द का अर्थ है 'कर्षति योगिनां मनांसीति कृष्ण:' जो योगियोंके चित्तको आकर्षण करता है वह कृष्ण है। अथवा 'कृषिर्भूवाचक: शब्दो णश्च निवृत्तवाचकः। तयोरैक्यं परं ब्रह्म कृष्ण इत्यभिधीयते।' कृषि भू याने सत्तावाचक है और ण निर्वृत्तिवाचक है, इन दोनोंकी एकता होनेपर परब्रह्म कृष्ण कहलाता है।
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पुनर्नारदः पप्रच्छ भगवन् कोऽस्य विधिरिति। तं होवाच नास्य विधिरिति।
सर्वदा शुचिरशुचिर्वा पठन् ब्राह्मण: सलोकतां समीपतां सरूपतां सायुज्यतामेति ॥ ४ ॥
नारदजी ने फिर पूछा कि 'हे भगवान! इसकी क्या विधि है?' ब्रह्माजी ने कहा
कि 'कोई विधि नहीं है। सर्वदा शुद्ध या अशुद्ध नामोच्चारण मात्र से ही सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य और सायुज्य मुक्ति मिल जाती है'॥४॥
*****नाम जपने का महत्ता ****
यदास्य षोडशकस्य सार्धत्रिकोटिर्जपति तदा ब्रह्महत्यां तरति। स्वर्णस्तेयात् पूतो भवति। वृषलीगमनात् पूतो भवति। सर्वधर्मपरित्यागपापात्सद्यः शुचितामाप्नुयात्।
सद्यो मुच्यते सद्यो मुच्यते इत्युपनिषत् ॥ ५॥
'ब्रह्माजी ब्रह्मा जी कहते हैं कि 'यदि कोई पुरुष इन सोलह नामों के साढ़े तीन करोड़ जप कर ले तो वह ब्रह्म हत्या, स्वर्ण की चोरी, शूद्र स्त्री-गमन और सर्व धर्म त्याग रूपी पापों से मुक्त हो जाता है। वह तत्काल ही मुक्ति को प्राप्त होता है' ॥५॥
*** प्रभु श्री राम आरती ***
अहो ! मैं राम नाम धन पायो , कण में राम नाम जब आयो
मुख से राम नाम जब गायो, मन से राम नाम जब ध्याओ
सपने में भी न बिसरे नाम , राम राम श्री राम राम राम
जापे जब राम नाम धन राशि , घोर अविद्या बिपद बिनाशी
बढ़ा जब राम प्रेम का पुर , संकट संशय हो जायो दूर
श्री राम नाम जो जापे एक बेर, उस के भीतर रहे कोष कुबेर
फिन दुखिया दरिद्र कंगाल, राम राम जापे होव निहाल
ह्रदय श्री राम नाम से भरिये , संचय श्री राम नाम धन करिये
घट में नाम मूर्ति धरिये सियाराम के ,पूजा अन्तर्मुख हो करिये
आंख मूंद के सुनिए श्री राम नाम धुनि अति राम राम सुमधुर नाम
उस में मन का मेल मिलाइये , राम नाम सुर में ही समाइये
जपून मैं राम नाम प्रभु श्री राम , ध्याऊँ मैं राम राम हरे राम
सिमरन मैं राम राम प्रभु राम , गाऊं मैं राम राम श्री राम
राम राम यह अमृत वाणी का नित्य गान करना होत अति सुखकारी
श्री राम राम मन बिच रमानी, देत संकट विशद निवार
करत शुभ श्री मंगलाचार , पतित अधम होत सदा परम उबार
श्री राम नाम जप पाठ से , हो अमृत नित्य संचार
श्री राम -धाम में प्रीति हो , सगुन गण का होत विस्तार
तारक मन्त्र श्री राम राम है , जिसका सुफल अपार
इस मन्त्र के जाप से निश्चय बने निस्तार II
।।। इति।।।
महादेव सतत जपत दिव्य रामनाम । कासि मरत मुक्त करत, कहत रामनाम
माता पिता बन्धु सखा सबहि रामनाम । भकत-जनन जीवनधन एक रामनाम ॥
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥*
'इन सोलह नामों के उच्चारण करनेसे कलि के सम्पूर्ण पातक नष्ट हो जाते हैं।
सम्पूर्ण वेदों में इससे श्रेष्ठ और कोई उपाय नहीं देखने में आता। इन सोलह कलाओं से
युक्त पुरुष का आवरण (अज्ञान का परदा) नष्ट हो जाता है और मेघों के नाश होने से जैसे सूर्य-किरण समूह प्रकाशित होता है वैसे ही आवरण के नाश से ब्रह्म का प्रकाश हो जाता है'॥ ३॥
ब्रह्माजी ने कहा कि 'कोई विधि नहीं है। सर्वदा शुद्ध या अशुद्ध नामोच्चारण मात्र से ही सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य और सायुज्य मुक्ति मिल जाती है'॥४॥
यदास्य षोडशकस्य सार्धत्रिकोटिर्जपति तदा ब्रह्महत्यां तरति। स्वर्णस्तेयात् पूतो भवति।
वृषलीगमनात् पूतो भवति। सर्वधर्मपरित्यागपापात्सद्यः शुचितामाप्नुयात्।
सद्यो मुच्यते सद्यो मुच्यते इत्युपनिषत् ॥ ५॥
'ब्रह्माजी ब्रह्मा जी कहते हैं कि 'यदि कोई पुरुष इन सोलह नामों के साढ़े तीन करोड़ जप कर ले तो वह ब्रह्म हत्या, स्वर्ण की चोरी, शूद्र स्त्री-गमन और सर्व धर्म त्याग रूपी पापों से
मुक्त हो जाता है। वह तत्काल ही मुक्ति को प्राप्त होता है' ॥
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥
संकलित / संग्रह किया हुआ ।
श्रीगणेशायनम: । अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद् हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
अर्थ : इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्रके रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमानजी कीलक शदृष्य है तथा श्रीरामचंद्रजी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जपमें विनियोग किया जाता है ।
॥ अथ श्रीरामचंद्रजी ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
अर्थ : ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्ध पद्मासनकी मुद्रामें विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलके समान स्पर्धा करते हैं, जो बायें ओर स्थित सीताजीके मुख कमलसे मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारोंसे विभूषित तथा जटाधारी श्रीरामका ध्यान करें ।
॥ इति ध्यानम् ॥
****श्री राम शिस्टाचार मंगलाचरण वाणी****
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
अर्थ : श्री रघुनाथजीका चरित्र सौ कोटि विस्तारवाला हैं । उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करनेवाला है ।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
अर्थ : नीले कमलके श्याम वर्णवाले, कमलनेत्रवाले , जटाओंके मुकुटसे सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्रीरामका स्मरण कर,
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
अर्थ : जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथोंमें खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसोंके संहार तथा अपनी लीलाओंसे जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीरामका स्मरण करता हूं I
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
अर्थ : मैं सर्वकामप्रद और पापोंको नष्ट करनेवाले राम रक्षा स्तोत्रका पाठ करता हूं । राघव मेरे सिरकी और दशरथके पुत्र मेरे ललाटकी रक्षा करें ।
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
अर्थ : कौशल्या नंदन मेरे नेत्रोंकी, विश्वामित्रके प्रिय मेरे कानोंकी, यज्ञरक्षक मेरे घ्राणकी और सुमित्राके वत्सल मेरे मुखकी रक्षा करें ।
जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
अर्थ : विद्यानिधि मेरी जिह्वाकी रक्षा करें, कंठकी भरत-वंदित, कंधोंकी दिव्यायुध और भुजाओंकी महादेवजीका धनुष तोडनेवाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें ।
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
अर्थ : मेरे हाथोंकी सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदयकी जमदग्नि ऋषिके पुत्रको (परशुराम) जीतनेवाले, मध्य भागकी खरके (नामक राक्षस) वधकर्ता और नाभिकी जांबवानके आश्रयदाता रक्षा करें ।
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
अर्थ : मेरे कमरकी सुग्रीवके स्वामी, हडियोंकी हनुमानके प्रभु और रानोंकी राक्षस कुलका विनाश करनेवाले रघुकुलश्रेष्ठ रक्षा करें ।
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
अर्थ : मेरे जानुओंकी सेतुकृत, जंघाओकी दशानन वधकर्ता, चरणोंकी विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले और सम्पूर्ण शरीरकी श्रीराम रक्षा करें ।
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
अर्थ : शुभ कार्य करनेवाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धाके साथ रामबलसे संयुक्त होकर इस स्तोत्रका पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं ।
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
अर्थ : जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाशमें विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेशमें घूमते रहते हैं , वे राम नामोंसे सुरक्षित मनुष्यको देख भी नहीं पाते ।
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
अर्थ : राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामोंका स्मरण करनेवाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता, इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनोंको प्राप्त करता है ।
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
अर्थ : जो संसारपर विजय करनेवाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं ।
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
अर्थ : जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवचका स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञाका कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगलकी ही प्राप्ति होती हैं ।
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५ ॥
अर्थ : भगवान् शंकरने स्वप्नमें इस रामरक्षा स्तोत्रका आदेश बुध कौशिक ऋषिको दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागनेपर उसे वैसा ही लिख दिया |
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
अर्थ : जो कल्प वृक्षोंके बागके समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियोंको दूर करनेवाले हैं और जो तीनो लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं ।
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
अर्थ : जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमलके (पुण्डरीक) समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियोंकी समान वस्त्र एवं काले मृगका चर्म धारण करते हैं ।
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
अर्थ : जो फल और कंदका आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथके पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ।
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
अर्थ : ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियोंके शरणदाता, सभी धनुर्धारियोंमें श्रेष्ठ और राक्षसोंके कुलोंका समूल नाश करनेमें समर्थ हमारा रक्षण करें ।
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
अर्थ : संघान किए धनुष धारण किए, बाणका स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणोसे युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करनेके लिए मेरे आगे चलें ।
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
अर्थ : हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथमें खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्थावाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें ।
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
अर्थ : भगवानका कथन है कि श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघु उत्तम स्वरुप हैं I
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
अर्थ : वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरुषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का सकल गुणा निधान स्वरुप हैं श्री राम I
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
अर्थ : नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करनेवालेको निश्चित रूपसे अश्वमेध यज्ञसे भी अधिक फल प्राप्त होता हैं इसमें न किसी प्रकार का संसय है ।
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
अर्थ : दूर्वादलके समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीरामकी उपरोक्त दिव्य नामोंसे स्तुति करनेवाला संसारचक्रमें नहीं पडता ।
रामं लक्ष्मणं पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
अर्थ : लक्ष्मण जीके पूर्वज , सीताजीके पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणाके सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथके पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावणके शत्रु भगवान् रामकी मैं वंदना करता हूं।
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
अर्थ : राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजीके स्वामीकी मैं वंदना करता हूं।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
अर्थ : हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरतके अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
अर्थ : मैं एकाग्र मनसे श्रीरामचंद्रजीके चरणोंका स्मरण और वाणीसे गुणगान करता हूं, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धाके साथ भगवान् रामचन्द्रके चरणोंको प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणोंकी शरण लेता हूं |
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
अर्थ : श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं ।इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवामें किसी दुसरेको नहीं जानता ।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥ ३१॥
अर्थ : जिनके दाईं और लक्ष्मणजी, बाईं और जानकीजी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथजीकी वंदना करता हूं ।
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
अर्थ : मैं सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर तथा रणक्रीडामें धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणाकी मूर्ति और करुणाके भण्डार रुपी श्रीरामकी शरणमें हूं।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३४॥
अर्थ : जिनकी गति मनके समान और वेग वायुके समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूतकी शरण लेता हूं ।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३५॥
अर्थ : मैं कवितामयी डालीपर बैठकर, मधुर अक्षरोंवाले ‘राम-राम’ के मधुर नामको कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयलकी वंदना करता हूं ।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३६॥
अर्थ : मैं इस संसारके प्रिय एवं सुन्दर , उन भगवान् रामको बार-बार नमन करता हूं, जो सभी आपदाओंको दूर करनेवाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करनेवाले हैं ।
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३७॥
अर्थ : ‘राम-राम’ का जप करनेसे मनुष्यके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं । वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं । राम-रामकी गर्जनासे यमदूत सदा भयभीत रहते हैं ।
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३८॥
अर्थ : राजाओंमें श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजयको प्राप्त करते हैं । मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामका भजन करता हूं। सम्पूर्ण राक्षस सेनाका नाश करनेवाले श्रीरामको मैं नमस्कार करता हूं । श्रीरामके समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं । मैं उन शरणागत वत्सलका दास हूं। मैं सद्सिव श्रीराममें ही लीन रहूं । हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें ।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३२॥
अर्थ : (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं । मैं सदा रामका स्तवन करता हूं और राम-नाममें ही रमण करता हूं ।
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥३९॥
अर्थ : इस प्रकार बुधकौशिकद्वारा रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण होता है ।
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥*
I I ॐ नमो श्री रघुनाथाय सिताय पतिये नमो नमः I I
**** कलयुग की लोकान्तकारी शुद्ध लोकाचरण सिद्धांत*****
जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम शरीर को साधन मानकर जीवन के कार्यक्रम का निर्माण करे।
एक सार्थक जीवन एक ऐसी रचना है जिसका संबंध जीवन के उद्देश्य, महत्व, पूर्ति और संतुष्टि से है। जबकि विशिष्ट सिद्धांत अलग-अलग होते हैं, दो सामान्य पहलू होते हैं: किसी के जीवन को समझने के लिए।
एक सफलता भरी संघर्ष और अद्भुत कामयाबी भरी उड़ान के लक्ष्य निर्धारण और उसके प्रति निज आस्था को एक निश्चित आयाम देने मात्र से समय परिणाम में बदल जाता है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है टी 20 विश्व कप के फाइनल में सूर्य कुमार का वह अद्भुत जीत हासिल करने की जुनून और जस्वा भरी वह कैच पकड़ना और समय को अपने टीम भारत के लिए अनुकूल बनाकर मैच का रुख साफ कर देना कि विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा राजे हमारा गायन को चरितार्थ कर दिखाना।
यह विश्वास है कि जीवन स्वयं सार्थक है। हमें पूर्ण उत्साह,संयम तथा आत्मविश्वास के साथ उपयुक्त साधन जुटाते रहना है, क्योंकि ऐसा करते हुए हम स्वयं ही साधन बन जाते है। यदि आत्मोन्नति करनी है तो भौतिकता के मार्ग को छोड़कर आध्यात्मिकता तथा आत्मविश्वास का मार्ग अपनाना चाहिए।
इस दृष्टिकोण के अनुसार, जीवन का अंतिम उद्देश्य अपने लक्ष्यों और रिश्तों में आनंद, संतुष्टि और आत्म संतुष्टि पाना है। इसमें प्रियजनों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना, ऐसी गतिविधियाँ और शौक अपनाना शामिल हो सकता है जो खुशी लाते हैं, और ऐसे लक्ष्यों की दिशा में काम करना जो पूर्णता की भावना लाते हैं। ईश्वर भी सदा कृपा बनाए रखते हैं और इतिहास बनाने का एक स्वर्णिम गौरव हासिल कर सकते हैं। अभाव में भी जीवन शैली को एक अनुशासन और कर्तव्य निस्ठ अनुसिलित जीवन जीना आपकी संस्कार , ज्ञान की पराकाष्ठा और महानता को दर्शाता है। यही जीवन की कटु सत्य और सफलता की दर्शन दर्शाता है। अर्थात सकारात्मक सोच, समय,संगठन, सुसंगती, संतुष्टि,सार्थक जीवन सदा सुखी जीवन जीने के अद्भुत पहलू हैं।।
एक सार्थक जीवन आमतौर पर निम्नलिखित से जुड़ा होता है या इसके द्वारा भविष्यवाणी की जाती है: सकारात्मक आत्म-दृष्टिकोण (जैसे, उच्च आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास)। खुद को अलग देखना (यानी, सकारात्मक तरीके से दूसरों से अलग)। आत्म-निरंतरता की भावना, जिसका अर्थ है अतीत और वर्तमान के बीच संबंध।। प्रदीप ठाकुर निवेदित।
रविवार के दिन राम जी को प्रसन्न करने के लिए 1 कटोरी में गंगाजल या पानी लेकर राम रक्षा मंत्र ऊं श्री ह्रीं क्लीं रामचंद्राय श्री नमः मंत्र का जाप करें. इसके बाद इस जल को घर के सभी कोने में छिड़क दें. इससे घर का वास्तु दोष , भूत-प्रेत, तंत्र बाधा आदि समाप्त हो जाते हैं. इस उपाय को ऑफिस-दुकान आदि में किया जा सकता है ।
I I ॐ नमो श्री रघुनाथाय सिताय पतिये नमो नमः I I
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ!!
अर्थात अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ॥ भवानीशंकरौ वन्दे !
भवानी शंकरो बन्दे श्रद्धाविश्वासरुपिणौ याभ्यांग बिना न पश्यन्ति सिद्धाः श्वानतः स्थमीश्वरम !
अर्थात श्रद्धा और विश्वाश के स्वरुप श्री पार्वती माता जी और देवाधिदेव श्री शंकर जी को हम वंदना करते हैं, जिनके कृपा के बिना सिद्धजन अपने अंतकरण में विराजित ईश्वर को नहीं देख सकते हैं ।
गणेश गणेश गणेशाय नमः लोकरक्षकम् , विनायकम् स्तुति महे । (संकल्पित अंश)
मुदकरथ मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् कलाधरवथम्सकं विलासि लोकरक्षकम्
अनायकैक नायकम् विनाशितैभा ध्याथकं नाथ शुभाशु नाशकम् नमामि थं विनायकम्
गणेश गणेश गणेशाय नमः
गणेश गणेश गणेशाय नमः
नाथेथरथी भीकरम नवोदितहरका भस्वरम नामथसुरारी निर्जराम नाथदिका पापदुद्धारम
सुरेश्वरं निधिश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं थ्वमाश्रये
परथपरं निरंतरम्
समस्त लोक शंकरम् निराश्र धायथ्य कुंजारम् दारेथरोदरम् वरम् वारे भवक्त्र मक्षरम्
कृपाकरं क्षमाकरं मुधकरं यशस्करं मनस्करं नमस्कृतम्
नमस्कारोमि भस्वरम्
गणेश गणेश गणेशाय नमः
गणेश गणेश गणेशाय नमः
अकिंच नर्थि मार्जनम चिरंथा नोक्थि भजनम पुरारि पूर्व नंदनम सुररि गरवा चर्वणम
प्रपंच नाश भीषणं धनंजयादि भूषणं कपोल दानावरणं भजे पुराण वर्णनम्
मुदकरथ मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् कलाधरवथम्सकं विलासि लोकरक्षकम्
अनायकैक नायकम् विनाशितैभा ध्याथकं नाथ शुभाशु नाशकम् नमामि थं विनायकम्
गणेश गणेश गणेशाय नमः
गणेश गणेश गणेशाय नमः
निथंथा कंथा धन्था कंथि मंथा कंथा कठमजम अचिन्त्य रूपा मंथहीन मंथराय क्रन्थानम्
हृदन्तरे निरन्तरम् वसंतमेव योगिनं थमेकदन्तः
थ्वमेवथं विचिन्था यमि संथाथम
मुदकरथ मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् कलाधरवथम्सकं विलासि लोकरक्षकम्
अनायकैक नायकम् विनाशितैभा ध्याथकं नाथ शुभाशु नाशकम् नमामि थं विनायकम्
गणेश गणेश गणेशाय नमः
गणेश गणेश गणेशाय नमः
गणेश गणेश गणेशाय नमः
गणेश गणेश गणेशाय नमः
मुदकरथ मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् कलाधरवथम्सकं विलासि लोकरक्षकम्
अनायकैक नायकम् विनाशितैभा ध्याथकं नाथ शुभाशु नाशकं नमामि थान विनायकम्
गणेश गणेश गणेशाय नमः
गणेश गणेश गणेशाय नमः
निथंथा कंठ धन्था कंथि मंथा कंथा कथामजम अचिंत्य रूप मंथहीन मंथराय क्रांतहनम्
ह्रदन्तरे निरंतरं वसंतमेव योगिनां थमेकदन्तः
थ्वमेवथं विचिन्तं यमि सन्ततः
मुदकरथ मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् कलाधरवथम्सकं विलासि लोकरक्षकम्
अनायकैक नायकं विनाशितैभा ध्याथकं नाथ शुभाशु नाशकं नमामि थान विनायकम्
गणेश गणेश गणेशाय नमः
गणेश गणेश गणेशाय नमः
गणेश गणेश गणेशाय नमः
गणेश गणेश गणेशाय नमः ।।। इति।।।
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सीताराम गुण ग्राम पुण्यारण्य विहारिणौ।
वन्दे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ।।
अर्थात श्रीसीताराम जी के गुण समूह(गुण ग्राम) रूपी पुण्य वन में सहज ही विहार करना जिनका स्वभाव है और जो विशुद्ध(अमल,दोष रहित) विज्ञान से परिपूर्ण हैं। मैं उन कवीश्वर महर्षि वाल्मीकि तथा कपिश्रेष्ठ हनुमानजी को सादर वंदन करता हूँ।
:::-प्रभु श्री राम नित्य चरण बन्दना! -:::
करता हूँ हम सब राम –भक्त मिल वंदना ,नित्य सिर नमाय बारम्बार !
तुम्हे देव परमात्मन! मंगल शिव शुभकार!
अंजलि पर मस्तक किये विनय भक्ति सम्पूर्ण !
प्रणाम मेरा तुम्हे होवै जग के नाथ स्वीकार !
दोनों कर को जोड़ी कर मस्तक घुटने टेक!
तुझ को प्रणाम मम , तुम्हे शत-शत कोटि अनेक !
पाप - हरण , मंगल- करण, चरण शरण का ध्यान !
नाथ करूँ प्रणाम हम सब राम –भक्त मिल , तुझको शक्ति निधान!
भक्ति - भाव , शुभ- भावना , मन में रहे भरपूर !
श्रद्धा से तुझको नमूँ , हम सब के राम हुजूर !
ज्योतिर्मय जगदीश हे तजो मय अपार !
परम पुरुष पवन परम , तुझको हो प्रणाम! तुझको हो प्रणाम!!
सत्यज्ञान आनंद के ,परम धाम श्री अयोध्याधाम !
पुलकित हो हम सब राम -भक्तों का मन , तुझे होवै बहु प्रणाम!!
प्रातः पाठ :-
परमात्मा श्री राम परम सत्य , प्रकाश स्वरुप
परम ज्ञाननंदस्वरूप , सर्वशक्तिमान
एके व द्वितीय परमेश्वर , परम पुरुष महान
दयालु देवाधिदेव है श्री राम , उनको बार -बार
नमस्कार !! बार -बार नमस्कार !!बार -बार नमस्कार!!
I I ॐ नमो श्री रघुनाथाय सिताय पतिये नमो नमः I I
न्यायप्रियता और सत्य के मार्ग पर चलने वाले हम सबके आराध्य मर्यादापुरूषोत्तम भगवान “श्री राम” “माता सीता” और परम भक्त , सेवक श्री हनुमंतलाल की जय जय हो !!
* भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक। सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिबेक!! भावार्थ:- हमारी यह अनमोल रचना सब गुणों से रहित है,इसमें बस,जगत्प्रसिद्ध एक गुण है। उसे विचारकर अच्छी बुद्धिवाले पुरुष और परम भक्त , सेवक पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव से एकाग्रचित होकर,जिनके निर्मल ज्ञान है,इसको नित्य पाठ करेंगें और सुनेंगे और श्री राम प्रभु और श्री हनुमंतलाल कृपा के अद्भुत फल पाएंगे ।
इस प्रकार मिथिलापुत्र " आचार्य प्रदीप ठाकुर, तथा गुजरात कथा वाचिका हीना बेन कनानी के अद्भुत राम भक्ति मय विचारधारा के जरिये एक उत्कृष्ट कलयुगी
अद्भुत रचना "श्री राम कृपा मानस" सम्पूर्ण होता है । ।
।।। श्री राम-कृपा मानस इति।।।