चुप - एक कहानी Neeraj Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चुप - एक कहानी

    मंजिले ( कहानी पुस्तक ) चुप एक मार्मिक कथा है, मैंने हजूम मे आने के लिए बीड़ा जो उठा लिया है, जानते हो, मन किसी का दुखी न होवें। 
ऑन लाइन सब से  कठिन पूर्ण नहीं है, मिलो, बाते करो, भारत के वो ग़रीबी परिवार से, जो आज भूखे सोये होंगे, कल काम मिलेगा या नहीं.... ये तुम सोचते हो, सोचो। कोई ऐसा नहीं सोचता, तुम शोसिल वर्कर हो, तो आपनी पत्नी  तो वैसे ही नहीं बोलती। " कहेगी वाह नया काम कसम से बाप दादा के वक़्त का चल रहा है, करो, खूब करो, आपना छोड़ दो " वो कोई ठीक थोड़ी कह रही है, बहुत ठीक कह रही है। सोचो। 
          मैंने सोचा, खूब सोचा.... मतलब से मतलब रखो। नाम अपुन का परसा है। 10 साल से काम कर रहा हु, प्रायवेट सेक्टर मे बिजली ठेकेदार। धंधा कभी मंधा नहीं। बोलो कयो ----" कितना भी कोई बोले, क्रोध मे, अपुन नहीं.... " सच मे बता रहा हु, सुलझाने का काम बस। बच्चे दो, बाल गोपाल। एडमिशन करा डाली। सरकारी स्कुल मे, पढ़ना आप है, स्कूल थोड़ी दे गा कुछ।
उस रात रोटी बाल, गोपाल ने तो चाचे घर खा लीं, पर हम मिया बीवी मारे गए। उसने कहा " बच्चे की जिल्द मार दोगे। " मैंने कहा, " इतनी फीस हम नहीं दे सकते, समझ गयी तुम "  बीवी का क्रोध सतवे आसमान पे, मेरा भी कम नहीं था। मैं विनोद के घर भोजन लाजबाब किया। उसने भी कौन सा कम किया। 
               चुप चलती रही। पर समय से अब खाना बनता गया। सरोज मिली ---" भाजी कम लड़ा करो, मेरे घर से टिफन मे आपकी पत्नी ने चार आमलेट खाये..."  जैसे उसने उस तारीख का जलूस निकाल दिया।" लड़ो मत, भाजी " वो मोटी सी दबी सी आवाज़ बोल के गयी। अभी पता नहीं कितनो को बता दिया होगा.... चलो मैंने कहा, उसे कुछ समझ पड़ गयी।
मेरा भी झंडा उखाड़ फेका, विनोद की पत्नी ने, 
" भाजी को कया हुआ, उस तारीख को, दो मुर्गे खा के सो गया। फिर इन्होने तेरी तरफ भेजा... "   वो आज भी चुप थी, मैंने भी शुक्र ही  किया था.... बिना बात के बोलना जैसे उसकी आदत थी। " गॉवर्मेट का स्कूल, पेपर हुए ही  नहीं, सीधे सेकंड क्लास मे, सुन कर मुझे तो ख़ुशी हुई, उसे बहुत दुख हुआ।
सब ने नतीजा पूछा, सब के बच्चे कान्वेंट मे थे, बस हमारे ही गॉवर्मेँट मे थे। घर चलाता या बच्चे पढ़ाता। कठिन था।
मेरी बहन के बच्चे " फर्स्ट क्लास मे " आपने कया बताऊ " यही बताओ, कि पेपर के बिना ही चमत्कार हुआ है... बताना, मैंने आमलेट बनबा के खाया था, उस दिन " मैंने जरा मिर्ची डाल के बोला।
वो कम थोड़े थी, " बोली मेरे आमलेटो से नहीं कुछ होयेया, तेरे जो दो मुर्गे शहीद हुए, बस उसका पुन प्रताप है " मैं इतनी जोर से हँसा के बस पूछो मत, लोगों के पेट मे बात काहे नहीं छुपती। सच मे बहुत दुख लगे।
                    आपनी पत्नी से  मैंने पूछा, " आगे से मत लड़ना, झगड़ना सारे शहर मे बात होंगी। -----
" वो बोली, लोगों को भी शर्म नाम की  कोई चीज  नहीं सै। " उसने पती की बाह मे बाह डाल लीं थी। बच्चे स्कूल गए हुए थे।
(चलदा )            /                        /                   /