मोती ओ का हार Ashish द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मोती ओ का हार

*"संघर्ष और निरंतरता की शक्ति"*

*एक बार बादलों की हड़ताल हो गई बादलों ने कहा अगले दस साल पानी नहीं बरसायेंगे।*

*ये बात जब किसानों ने सुनी तो उन्होंने अपने हल वगैरह पैक कर के रख दिये लेकिन एक किसान अपने नियमानुसार हल चला रहा था।*

*कुछ बादल थोड़ा नीचे से गुजरे और किसान से बोले क्यों भाई पानी तो हम बरसाएंगे नहीं फिर क्यों हल चला रहे हो?*

*किसान बोला कोई बात नहीं जब बरसेगा तब बरसेगा लेकिन मैं हल इसलिए चला रहा हूँ कि मैं दस साल में कहीं हल चलाना न भूल जाऊँ।* 

*अब बादल भी घबरा गए कि कहीं हम भी बरसना न भूल जाएं। तो वो तुरंत बरसने लगे और उस किसान की मेहनत जीत गई।* 

*जिन्होंने सब pack करके रख दिया वो हाथ मलते ही रह गए, सो लगे रहो भले ही परिस्थितियां अभी हमारे विपरीत है, लेकिन आने वाला समय निःसंदेह हमारे लिये अच्छा होगा।*

*कामयाबी उन्हीं को मिलती है जो विपरीत परिस्थितियों में भी मेहनत करना नहीं छोड़ते हैं।*

*जो पानी से नहाते है वो लिवास बदल सकते हैं*

*पर जो पसीने से नहाते है, वो इतिहास बदल सकते हैं*

उपरोक्त प्रसंग से निम्नलिखित शिक्षाएं मिलती हैं:

*1. परिस्थितियों से हार न मानें: प्रतिकूल परिस्थितियों में भी प्रयास करना बंद नहीं करना चाहिए। निरंतरता से ही सफलता संभव है।*

*2. दृढ़ निश्चय और धैर्य: कठिन समय में धैर्य और दृढ़ता बनाए रखना आवश्यक है। यह सफलता की ओर ले जाता है।*

*3. आशा और विश्वास बनाए रखें: कभी भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। समय चाहे कितना भी खराब हो, बेहतर दिनों की संभावना हमेशा बनी रहती है।*

*4. निरंतर अभ्यास का महत्व: किसी भी कार्य में निरंतर अभ्यास हमें उस काम में कुशल बनाए रखता है।*

*5. मेहनत का फल अवश्य मिलता है: मेहनत और लगन से किए गए कार्य का परिणाम हमेशा सकारात्मक होता है।*

*6. दूसरों के लिए प्रेरणा बनें: अपने कार्यों से दूसरों को प्रेरित करना भी एक महत्वपूर्ण पहलू है।*

*सत्संग का महत्व*

*एक आदमी ने सत्संग में सुना कि जिसने जैसे कर्म किये हैं उसे अपने कर्मों के अनुसार वैसे ही फल भी भोगने पड़ेंगे तो ये सुनकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ।*

*उसने सत्संग करने वाले संत जी से पूछा- संत जी ! अगर कर्मों का फल भोगना ही पड़ेगा तो फिर सत्संग में आने का क्या फायदा है?*

*संत जी ने एक ईंट की तरफ इशारा करके कहा- तुम इस ईंट को छत पर ले जाकर मेरे सर पर फेंक दो।*

*आदमी बोला- संत जी ! इससे तो आपको चोट लगेगी और दर्द भी होगा।*

*संत जी ने कहा- अच्छा। फिर उसे उसी ईंट के भार के बराबर का रुई का गट्ठा बांध कर दिया और कहा- अब इसे ले जाकर मेरे सर पर फैंकने से भी क्या मुझे चोट लगेगी? वो बोला- नहीं।*

*संत जी ने कहा- बेटा! इसी तरह सत्संग में आने से इंसान को अपने कर्मों का बोझ हल्का लगने लगता है और वो हर दुख तकलीफ को परमात्मा की दया समझकर बड़े प्यार से सह लेता है।*

*इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सत्संग के माध्यम से व्यक्ति जीवन में आने वाले दुःख और कष्टों को सहन करने की शक्ति प्राप्त करता है।* 

*सत्संग में ज्ञान और समझ प्राप्त होने के बाद व्यक्ति अपने कर्मों के परिणाम को सहजता और सकारात्मक दृष्टिकोण से स्वीकार करता है।*

*मुख्य बातें:*

*1. जीवन में संतुलन: सत्संग से व्यक्ति अपने मन और भावनाओं को संतुलित रखता है।*

*2. कष्टों की स्वीकृति: सत्संग हमें यह सिखाता है कि कष्टों को भगवान की इच्छा मानकर सहन करना चाहिए।*

*3. आत्मा का विकास: सत्संग आत्मा को शुद्ध करता है और जीवन को गहराई से समझने की क्षमता देता है।*

*4. सकारात्मकता: सत्संग व्यक्ति को नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक बने रहने की प्रेरणा देता है।*

*सार यह है कि सत्संग का उद्देश्य न केवल व्यक्ति को कर्मों का फल सहने में मदद करना है, बल्कि उसे जीवन के उच्चतम सत्य की ओर अग्रसर करना है।*

आशिष 

concept.shah@gmail.com