सपनों की राख Mr Hussain द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सपनों की राख

सपनों की राख एक ऐसी मार्मिक कहानी है, जो अंजलि की टूटे सपनों और समाज की रूढ़िवादी सोच के बीच के संघर्ष को उजागर करती है। यह कहानी न केवल एक लड़की की आवाज़ है, बल्कि उन लाखों बेटियों की दास्तान है, जिनके सपने परंपराओं और सामाजिक दबावों की बलि चढ़ जाते हैं। क्या बेटियों को भी अपने सपनों को पूरा करने का हक मिलेगा, या वे हमेशा बेड़ियों में जकड़ी रहेंगी?

 

### **सपनों की राख**  

 

गांव के शांत से कोने में एक छोटा सा घर था, जहां अंजलि अपनी दो छोटी बहनों और माता-पिता के साथ रहती थी। अंजलि गांव के सरकारी स्कूल की सबसे होनहार छात्रा थी। वह पढ़ाई में इतनी तेज थी कि हर बार पूरे स्कूल में पहला स्थान पाती। मास्टरजी हमेशा कहते, *"अंजलि, तुम पढ़ाई में इतनी होशियार हो, अगर तुम मेहनत करोगी तो एक दिन बड़ा नाम कमाओगी।"*  

 

अंजलि की आंखों में डॉक्टर बनने का सपना पल रहा था। वह चाहती थी कि वह गांव के लोगों का मुफ्त में इलाज करे। वह देखती थी कि गांव में जब कोई बीमार पड़ता, तो उन्हें शहर के डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता, और कई लोग तो पैसे की तंगी के कारण इलाज नहीं करवा पाते।  

 

लेकिन अंजलि के सपनों की राह आसान नहीं थी। उसका परिवार गरीब था, और उसके माता-पिता परंपरागत सोच वाले थे। अंजलि के पिता मानते थे कि बेटी को ज़्यादा पढ़ाने का कोई मतलब नहीं; आखिरकार, उसे शादी करके ससुराल जाना है।  

 

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#### **सपनों की पहली उड़ान**  

 

अंजलि ने जब बारहवीं की परीक्षा पास की, तो वह पूरे जिले में पहले स्थान पर आई। उसकी यह उपलब्धि पूरे गांव के लिए गर्व का विषय बन गई। स्कूल में उसके लिए एक छोटा सा समारोह भी रखा गया, जिसमें उसे सम्मानित किया गया। उस दिन अंजलि के सपनों को जैसे पंख लग गए। उसने घर आकर अपनी मां से कहा, *"माँ, मैं डॉक्टर बनना चाहती हूँ। मुझे आगे की पढ़ाई करने दो।"*  

 

मां ने सिर झुका लिया और धीरे से कहा, *"बेटी, तेरे पिताजी से बात करूंगी, लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह मानेंगे।"*  

 

अंजलि ने हिम्मत नहीं हारी। उसने पिता से बात की। *"बाबा, मुझे शहर के कॉलेज में दाखिला लेने दो। मैं डॉक्टर बनूंगी और हमारे गांव के लिए कुछ करूंगी।"*  

 

लेकिन पिता ने उसकी बात को झटक दिया। *"तू बहुत पढ़-लिख ली, अब तुझे अपनी मां के साथ घर के कामों में हाथ बंटाना चाहिए। तेरे लिए अच्छे घर से रिश्ता आया है। शादी कर, और अपना घर बसा।"*  

 

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#### **शादी का फैसला**  

 

अंजलि के सारे तर्क, सारी विनती बेकार हो गई। पिता ने समाज और इज्जत का हवाला देकर अंजलि की शादी तय कर दी। मां भी कुछ नहीं कर पाईं। शादी की तैयारियां शुरू हो गईं। अंजलि के सपने हर दिन उसकी आंखों के सामने बिखरते जा रहे थे।  

 

शादी के दिन जब अंजलि दुल्हन बनी और मंडप में बैठी, तो उसकी आंखों में आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। हर फेरे के साथ उसे महसूस हो रहा था कि उसके सपनों का एक हिस्सा राख में बदलता जा रहा है।  

 

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#### **ससुराल का नया जीवन**  

 

अंजलि का ससुराल उसके गांव से दूर एक और छोटे से गांव में था। वहां न तो बिजली की सही व्यवस्था थी, न ही पानी की। ससुराल में आते ही अंजलि पर घर के कामों की जिम्मेदारियां डाल दी गईं। सुबह से रात तक वह किचन, खेत और घर के दूसरे कामों में उलझी रहती।  

 

उसकी किताबें, जो उसने अपने साथ लाई थीं, अब अलमारी में बंद थीं। जब भी वह उन किताबों को देखती, उसकी आंखों में आंसू आ जाते। वह अपने बीते दिनों को याद करती, जब उसके सपनों में रंग भरे थे।  

 

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#### **घुटन और दर्द**  

 

अंजलि का पति एक साधारण किसान था। उसे पढ़ाई-लिखाई का महत्व समझ नहीं आता था। जब अंजलि ने उससे कहा कि वह पढ़ाई करना चाहती है, तो उसने यह कहकर मना कर दिया, *"गांव में लोग क्या कहेंगे? हमारी इज्जत का सवाल है। बहू घर के कामों के लिए होती है, किताबों के लिए नहीं।"*  

 

अंजलि के लिए हर दिन एक संघर्ष बन गया। वह भीतर से घुटने लगी। सपनों के टूटने का दर्द और समाज के बंधनों का बोझ उसे तोड़ता जा रहा था।  

 

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#### **समाज की सच्चाई**  

 

अंजलि ने अपने गांव और ससुराल के समाज को गौर से देखा। वहां हर दूसरी लड़की की कहानी उसकी जैसी थी। बेटियों को पढ़ने की आजादी नहीं थी। वे अपने सपनों को तिलांजलि देकर बस एक बंधन भरा जीवन जीने के लिए मजबूर थीं।  

 

एक दिन अंजलि की मां उससे मिलने आई। अंजलि ने अपनी मां से कहा, *"माँ, क्या बेटियों का सपना देखना गुनाह है? क्या हमारा अस्तित्व सिर्फ शादी और घर संभालने के लिए है? मेरे सपनों को आप सबने मिलकर कुचल दिया।"* मां के पास कोई जवाब नहीं था।  

 

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#### **अंजलि की कहानी का अंत**  

 

यह कहानी अंजलि के टूटे सपनों की दास्तान है। यह केवल अंजलि की नहीं, बल्कि उन लाखों बेटियों की कहानी है, जिनकी प्रतिभा, उनके सपने समाज की पुरानी परंपराओं और रूढ़ियों के कारण मिटा दिए जाते हैं।  

 

अंजलि के साथ जो हुआ, वह आज भी हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई है। बेटियों को पढ़ने और अपने सपनों को पूरा करने की आजादी मिलनी चाहिए। अगर समाज अपनी सोच नहीं बदलेगा, तो न जाने कितनी अंजलियां ऐसे ही घुटती रहेंगी।  

 

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संदेश:

कहानी का अंत यही सवाल छोड़ती है—क्या बेटियों के सपने देखना और उन्हें पूरा करना उनका अधिकार नहीं? समाज को यह समझना होगा कि बेटियां भी बेटों के बराबर हैं और वे भी अपनी पहचान बनाने की हकदार हैं। 

Written by Mr Hussain