आडंबर Deepak sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आडंबर

’मां कैसी लगीं? रेवती मेरे परिवार से आज पहली बार मिली है ।

“असुरक्षित और किसी अस्फुट दबाव से ग्रस्त,” किसी को भी पहली बार मिलने के बाद उस का विश्लेषण और व्याख्या करने को तत्पर रहने वाली रेवती तत्काल शुरू हो ली है, “अ टिपीकल पीपल प्लीज़र। एक ठेठ नमूना। तुम्हारे पिता और उन के परिवार के सभी सदस्यों को प्रसन्न रखने के वास्ते अपने को बिछाती हुई…….एक दास,एक दरबारी का आडंबर रचती हुई………”

हमारे संयुक्त परिवार में दादी हैं। तीन अनब्हाई बुआ हैं ।बड़ी बुआ एक सरकारी संस्थान में डिप्टी डायरेक्टर हैं। मंझली बुआ निजी एक संगीत संस्था में गायन सिखाती हैं और बहुत सुंदर गाती भी हैं ।और छोटी बुआ  मेेरे पिता की भांति भारतीय राजस्व सेवा के अन्तर्गत एक आयकर अधिकारी हैं। वरिष्ठता में मेरे पिता से चार साल आगे ।

“यह मां का विनय भाव है,” मैं उबल लिया हूं,”उन का बड़प्पन। तुम जैसी ‘आय एम इन्नफ़’,मुझे किसी की पुष्टि नहीं चाहिए  और ‘मी फ़र्स्ट’,पहले मैं, में यकीन रखने वाली लड़कियां विनयशीलता जैसे गुण का मूल्य नहीं आंक सकतीं। “

इन दिनों हम दोनों बेंगलुरू के निम्हांस में अपनी शोध कर रहे हैं । वह मानसिक स्वास्थ्य में तथा मैं तंत्रिका विज्ञान में।

“नहीं मैं ऐसा नहीं मानती । अभी कुछ ही दिन पहले हमें बताया गया कि मानसिक दबाव की प्रतिक्रियास्वरूप जो फ़ाइट,फ़्लाइट फ़्रीज़ (Fight flight freeze) के साथ अब फ़ौन( fawn) आन जुड़ा है तो इन जैसे लोगों के कारण ही, जो झगड़ने या भागने या ठिठुरने के स्थान पर लल्लो- चप्पो की युक्ति प्रयोग में लाया करते हैं। अपने को बचाए रखने के लिए,अपने को बनाए रखने के लिए …..”

“जिसे तुम लल्लो- चप्पो कह रही हो, वह उनका प्रेम भाव भी तो हो सकता है । मेरे माता- पिता ने प्रेम विवाह किया था….”

“कैसे? कब? मैं उन के बारे में यह सब ज़रूर जानना चाहूँगी…..” रेवती उत्सुक हो आयी है ।

2

“मेरे पिता सन 1990 के उन दिनों में मेरी मां से मिले थे जब बीच अगस्त में  प्रधान  मंत्री वी.पी. सिंह द्वारा मंडल कमीशन के सुझाव लागू करने की घोषणा ने पूरे देश में एक उग्र आंदोलन खड़ा कर दिया था। विशेषकर सवर्ण छात्र इस बात का सब से ज़्यादा विरोध कर रहे थे कि सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लिए अब सत्ताईस प्रतिशत आरक्षण रहा करेगा। जो दलित जाति व दलित जनजाति को पहले ही से मिल रहे साढ़े बाइस प्रतिशत आरक्षण से अलग था और इस प्रकार साढ़े उनचास प्रतिशत प्रत्याशी आरक्षण पाने के अधिकारी बनने जा रहे थे। बल्कि अगस्त के अंतिम सप्ताह के आते आते दस हज़ार की संख्या में छात्र संसद को घेरने के इरादे से सड़क पर उतर भी लिए थे,जिन्हें फिर पुलिस ने बलपूर्वक खदेड़ दिया था । किन्तु विरोध जारी रहा था । भूख हड़तालों और धरनों के साथ साथ छात्र सरकारी वाहनों तथा इमारतों को हानि पहुंचाने लगे थे ।”

“ तुम्हें वह अगस्त खूब याद है?” रेवती मुस्कराती है।

“ उस अगस्त का मेरे माता पिता से गहरा संबंध है। अपने पिता से जाना हूं।उस समय वह देेहली के एक निजी कालेज में पढ़ाने के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी के अन्तर्गत उसी  कोचिंग सेंटर में पढ़ने आया करते थे,जहां मां भी जाती थीं ।चंडीगढ़ में इतिहास के प्राध्यापक रहे मेरे नाना ने मां को यकीन दिला रखा था वह प्रतियोगितात्मक उस परीक्षा में ज़रूर सफल होंगी।जभी सितंबर में एक दिन इसी मंडल कमीशन के विरोध में देशबंधु कालेज के भूूख हड़ताल पर बैठे छात्रों में से राजीव गोस्वामी नाम के एक छात्र ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल कर आत्मदाह का प्रयास किया था जिस ने पूरे युवा वर्ग में खलबलीऔर भी उग्र कर दी थी। तख्तियों पर‘वी.पी सिंह मुर्दाबाद, मंडल कमीशन डाउन डाउन ‘लिख कर सैंकड़ो छात्र यही नारे लगाते हुए देहली के स्कूलों और कोचिंग सेंटरों को बंद कराने के आशय से उन पर हमले किए थे । कहीं कहीं तो वहां दाखिल हुए पिछड़े तथा दलित वर्ग के छात्रों को चिह्मित करते और उन्हें पीटते भी।”

“ निंदनीय। बेहद निंदनीय…… “

“मेरे  माता पिता का कोचिंग सेंटर भी अछूता न रहा था । उसी एक हमले के दौरान इस से पहले कि वे उपद्रवी पिछड़े वर्ग की मेरी मां को चिह्मित करते,मेरे पिता ने मेरी मां का हाथ पकड़ा था और उन्हें बाहर ले आए थे । बाहर भी भीड़तंत्र क्षीण न था । दुस्साहसी मेरे पिता तनिक नहीं घबराए थे और  बिना कहीं रुके मां के साथ रेलवे प्लेटफार्म पर पहुंच लिए थे । उन्हें चंडीगढ़ मेरे नाना के पास छोड़ने। और बिना कस्बापुर- निवासी अपने परिवार को कुछ बताए समझाए चंडीगढ़ की गाड़ी लगने तक मां के सामने अपना विवाह - प्रस्ताव भी रख दिए थे।”

“तुम्हारी मां का दास भाव उन्हें अवश्य भाया होगा……”

“यह तुम अपने खिलंदडेंपन में कह रही हो या निठुराई में?”मैं खीझा हूं।

“ इन दोनों में से एक में भी नहीं।केवल अनुमान लगा रही हूं । हां,तो तुम्हारे नाना ने उन के प्रस्ताव को कैसे लिया?”

“विवाह की शर्तें तय कर दीं : विवाह से पहले मां को प्रशासनिक परीक्षा में उत्तीर्ण होना होगा और विवाह जब होगा तो होगा भी कचहरी में,मेरे पिता के परिवार की उपस्थिति में ।”

“ मगर तुम्हारी मां …..”

“हां।प्रतियोगितात्मक प्रशासनिक परीक्षा में मां असफल रहीं थीं किंतु मेरे पिता सफल रहे थे और मां के संग अपने विवाह को लेकर पहले की भांति ही दृढ़ थे। मां की आत्म छवि को उन की इस असफलता ने जो ठेस पहुंचाई थी,उस से उन्हें उबारने के लिए मेरे नाना ने अपनी शर्तें वापस ले लीं थीं और मेरे पिता के कहने पर उन के बड़े ताऊ जी को मिलने के लिए कस्बापुर जाने के लिए तैयार हो गए थे।”

“ताऊ जी क्यों?”

“आकस्मिक हुई मेरे दादा की मृत्यु के बाद परिवार जभी से अब अपने निर्णय इन्हीं ताऊ जी की सलाह पर लिया करते। उस समय मेेरे पिता सातवीं कक्षा में थे,मेरी बड़ी बुआ मेरे दादा के दफ़्तर में नौकरी पकड़े थीं,मंझली बी ए में थीं और छोटी बारहवीं में। उन ताऊ जी ही से मैं ने जाना था मेरे नाना उन से अपनी उस पहली और अंतिम भेंट में उलझ लिए थे। परिवारों में स्थापित ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के विरोध में उन्हें इतिहास पढ़ा दिए थे। और ताऊ जी ने स्पष्ट शब्दों में विवाह के लिए अपनी हामी देने से इन्कार कर दिया था। बल्कि वह तो यह भी कहते हैं,मेरे नाना यदि कस्बापुर से लौटते समय अपनी बस के दुर्घटनाग्रस्त होने पर अपने प्राण गंवाए न होते तो यह विवाह कभी सम्पन्न न हुआ होता ।”

“तुम्हारे पिता सचमुच बहुत पक्के निकले…”

“बहुत पक्के। मां से विवाह किया और वह भी कचहरी में ।कुल जमा तेइस साल की उम्र में…”

“ तुम्हारी दादी और बुआ लोग ने फसाद नहीं किया?”

“ नहीं। बड़ी बुआ ने मेरे पिता को अपनी मनमर्ज़ी करने की छूट जो दे रखी थी।बिना अपने ताऊ जी से कुछ कहे- सुने……..”

“और तुम्हारी मां का परिवार?तुम्हारी नानी? तुम्हारे मामा मौसी लोग?”

“नानी तो बहुत पहले से ही नहीं थीं,चाचा-चाची ही को सब देखना था और मां को वह फूटी आंख न सुहाते थे और मामा दोनों उस समय छोटे थे,एक स्कूल में था और दूसरा कालेज में।”

“और वह भाइयों को चाचा- चाची के हवाले कर के कचहरी में जा खड़ी हुईं,मैरिज रजिस्टर पर अपने दस्तखत दर्ज करने । अब वे कैसे हैं ?कहां हैं ? तुम्हारी मां से मिलते जुलते हैं क्या?”

“ कोई खास नहीं। बड़े वाले मामा जल्दी ही एक छात्रवृति पा कर अमरीका रवाना जो हुए तो छोटे वाले को भी पास बुलवा लिए। दोनों अब वहीं रहते हैं,वहीं बस भी लिए हैं।”

“मैं समझ सकती हूं,” रेवती गम्भीर हो ली,” तुम्हारी मां से ज़रूर अप्रसन्न रहे होंगे।।अपनी उस किशोरावस्था में जब उन अनाथ रह गए लड़कों को एक सगे की सख्त जरूरत रही, तुम्हारी मां अपना अलग घर बना कर उन से विदा हो ली।और मेरा अनुमान है,तुम्हारी मां के स्वभाव में भी घालमेल तभी शुरू हुआ।”

“घालमेल? मतलब?” मैं चौंका हूं ।

“ इधर उन्हें संभालने वाले और आगे बढ़ाने वाले अपने पिता के न रहने पर आपके पिता में उन्हें पाने की तुम्हारी मां जल्दी में रहीं,और उधर भाइयों को छोड़ कर जब ससुराल में गयीं तो वहां उन्हें धांसू वातावरण मिला जहां सभी जन कमा रहे थे : उन्हीं के सिवा ।”

“तुम कहना क्या चाहती हो? “ मैं झल्लाहता हूं ।

“ तुम्हारी मां ने तब जान लिया उन का ‘प्रेम विवाह’ उन्हें किसी अदनवाटिका में नहीं लाया था और तुम्हारे पिता को पत्नी के रूप में  आज्ञापालक एक विनम्र स्त्री चाहिए थी जो उन्हें व उनके परिवार को सकारे । पूरी तरह। और अपने  लिए कुछ न चाहे। नौकरी तो बिल्कुल नहीं….”

“तुम टेढ़ा सोचती हो । विकृत सोचती हो….”

“तुम गहरे जाओगे तो तुम्हें मेरी सोच टेढ़ी नहीं लगेगी,विकृत नहीं लगेगी ।”