Nafrat e Ishq - Part 6 Umashankar Ji द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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Nafrat e Ishq - Part 6

पिछले अध्याय में:

शाम के सात बज चुके थे और ऑफिस में पार्टी का माहौल था, क्योंकि सभी कर्मचारियों को मैनेजर की तरफ से होटल में आयोजित एक जश्न में आमंत्रित किया गया था। अंजू ने सभी को होटल पहुंचने का संदेश दिया, और खुद मनीषा के साथ वहाँ जाने की तैयारी में थी। दोनों होटल में पहुंचीं, जहाँ एक भव्य स्वागत किया गया। इस होटल का नाम था 'शाइनिंग स्टार,' और यह कनॉट प्लेस में स्थित था।

वहीं, सहदेव और उसके दोस्त मनोज और आदित्य भी होटल में पहुंच चुके थे। पार्टी में आने से पहले उन्होंने मॉल से नए कपड़े खरीदे थे। इन कर्मचारियों में विभिन्न विभागों से लोग शामिल थे: प्रोजेक्ट मैनेजमेंट की शालिनी, पब्लिक रिलेशंस के करन, प्रोडक्शन की अंकिता, डेटा एनालिटिक्स का रोहित, और अन्य विभागों के लोग भी उपस्थित थे।

पार्टी का माहौल बना रहा, लेकिन कुछ ही देर में सबकुछ बदल गया। होटल में हुए एक झगड़े के बाद, सहदेव, मनोज और आदित्य अस्पताल पहुंच गए। मनीषा और अंजू भी वहां पहुंचीं, जहाँ मनीषा ने उन्हें उनकी बेवकूफी और झगड़े के लिए डांटा। इसी दौरान, सब इंस्पेक्टर भोला पांडे ने मनीषा से बातचीत की। पांडे की चुटीली बातें और उनका बेपरवाह अंदाज मनीषा को पसंद नहीं आया, लेकिन उसकी अनदेखी कर उन्होंने आदित्य और मनोज से सवाल-जवाब जारी रखे। 

अध्याय के अंत में, मनीषा ने आदित्य और मनोज से गंभीरता से सवाल किया कि झगड़ा इस स्थिति तक कैसे पहुंचा। आदित्य और मनोज एक-दूसरे की तरफ संकोच भरी नज़रों से देखने लगे, जैसे कुछ छुपा रहे हों। और जैसे ही मनोज कुछ कहने के लिए आगे बढ़ा, मनीषा का फोन बज उठा, शायद एक नया मोड़—जिससे कहानी का रहस्य और भी गहरा हो गया।

(अगले अध्याय में जारी...)


मनीषा ने फोन की स्क्रीन को देखा, अनदेखा करते हुए साइलेंट मोड पर डाल दिया और मनोज की तरफ गंभीरता से देखने लगी। उसकी आंखों में एक गहरी जिज्ञासा और सवाल झलक रहे थे, जैसे मनोज से सच उगलवाने का इरादा पक्का कर चुकी हो। मनोज ने गहरी सांस ली, उसकी नजरें झुकीं और उसने अपनी कहानी की शुरुआत की।

डेढ़ घंटे पहले...

पार्टी खत्म होने के बाद, सभी लोग होटल से बाहर निकल रहे थे। सहदेव लॉबी में खड़ा था, हाथ में मोबाइल लिए इधर-उधर देखता, मानो किसी का इंतजार कर रहा हो। तभी मनोज ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा, "अरे सहदेव, यहाँ क्यों खड़े हो? कोई लेने आने वाला है क्या?"

अभी सहदेव कुछ कहता, उससे पहले ही आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा, "भाई, लगता है सेटिंग जम गई है! और वही लेने आ रही होगी।"

सहदेव की हल्की सी हंसी उसके चेहरे पर दिखी, लेकिन उसकी नजरें थोड़ी असहज थीं। मनोज ने उसे थोड़ा चिढ़ाते हुए कहा, "यार, हमारी दोस्ती को इतने साल हो गए और तूने हमें कुछ नहीं बताया? क्या हमारी दोस्ती में इतनी दूरी है?"

बातों का लहजा थोड़ा गंभीर होता देख सहदेव ने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए जवाब दिया, "ऐसा कुछ नहीं है, बस कल्पना ने मुझे कुछ काम करने के लिए रोक लिया था। वह चाहती थी कि मैं उसे एडवर्टाइजमेंट के कुछ प्रोजेक्ट्स पर मदद करूं।"

तभी सहदेव की ओर कल्पना आती दिखाई दी। उसे देखकर आदित्य और मनोज ने एक-दूसरे की ओर देखा और फिर एक हल्की मुस्कान के साथ कल्पना को अभिवादन किया। कल्पना, जो एजेंसी में उनसे एक ऊंचे पद पर थी, हमेशा की तरह अपने आत्मविश्वास से भरे अंदाज में चल रही थी। 

कल्पना ने बिना समय बर्बाद किए सहदेव के पास पहुंचते ही एक फाइल उसके हाथ में थमाई और कहा, "ये प्रोजेक्ट पेपर हैं। इसके अंदर उन कंपनियों की लिस्ट है जो हमारे साथ एडवर्टाइजमेंट के लिए कांटेक्ट करने वाली हैं। इनसे जाकर पूछ लेना कि वो किस टाइप का प्रचार चाहते हैं और फिर उसके हिसाब से रिपोर्ट बना कर लाना।"

सहदेव ने सिर हिलाते हुए कहा, "ठीक है," और कागजों को फोल्ड कर अपनी जेब में डाल लिया। 

कल्पना ने एक बार फिर चारों तरफ देखा, मानो यह सुनिश्चित कर रही हो कि सब कुछ नियंत्रण में है। फिर उसने अपने हाथ में पकड़ा मोबाइल देखा और वापस चल दी। तभी एक चमकदार लाल कार आकर उसके सामने रुकी, दरवाजा खुला, और एक युवक बाहर निकला। 

यह कल्पना का बॉयफ्रेंड था, जो उसे लेने के लिए आया था। उसने मुस्कुराते हुए कल्पना की ओर हाथ बढ़ाया, और बिना किसी हिचकिचाहट के कल्पना ने उसका हाथ थाम लिया। दोनों को देख आदित्य और मनोज ने हल्के से एक-दूसरे की ओर देखा और हंसी रोकने की कोशिश की। सहदेव के चेहरे पर भी एक मुस्कुराहट थी, लेकिन यह मुस्कान कुछ और भी छुपा रही थी—शायद उसके दिल में छुपे कुछ अनकहे जज़्बात।

"वाह भाई, बड़ा राज़ रखता है तू," आदित्य ने चुटकी ली। 

सहदेव ने नज़रें घुमाते हुए जवाब दिया, "तुम्हें तो सब मज़ाक ही लगता है, लेकिन इस काम में मेरी जान निकल जाती है। कल्पना का हर एक काम समय पर पूरा करना पड़ता है, नहीं तो…"

मनोज ने बात को काटते हुए हंसी में कहा, "अरे यार, बॉस के चक्कर में पड़ने का यही तो नुकसान है। जब तुम दोनों का कुछ होगा, तब हमें जरूर बताना।"

इतना कहकर सभी हंसी में खो गए, लेकिन सहदेव के चेहरे पर हल्की सी उदासी भी थी, मानो वह इन सबके बीच में कहीं खोया हुआ था। शायद उसके दिल में कुछ ऐसी बातें थीं जो वह कह नहीं पा रहा था, और ये बातें उसे भीतर ही भीतर कचोट रही थीं।

मनोज, सहदेव, और आदित्य धीरे-धीरे दिल्ली की तंग गलियों में पैदल चल रहे थे। उनके पास बाइकें थीं, लेकिन वे अपनी महिला सहकर्मियों के लिए अपनी सवारी छोड़ गए थे। देर रात का समय था और ओला जैसी सुविधाएं भी उस इलाके में मिलना मुश्किल था। महिला सहकर्मियों में से एक बाइक चलाना जानती थी और उसने सफर को आरामदायक बनाने के लिए शर्ट-पैंट पहना हुआ था। मनोज और सहदेव को यकीन था कि जब वे सुबह ऑफिस पहुँचेंगे, तो उनकी बाइक की चाबी वापस हाथ में होगी, शायद बाइक की टंकी फुल भी मिल जाए।

चलते-चलते उन्हें लगभग 10-15 मिनट हो चुके थे। ठंडी हवा की हल्की लहरें उनके चेहरे को छू रही थीं और आसमान में चमकते तारे उन्हें एक दुर्लभ, साफ़-सुथरी दिल्ली की रात का आभास दे रहे थे। पॉल्यूशन इतना कम था कि चाँदनी साफ दिखाई दे रही थी। ये सब देखकर मनोज ने हंसते हुए कहा, "भाई, दिल्ली में इतने तारे देखना किसी अजूबे से कम नहीं है। लगता है आज किस्मत हम पर मेहरबान है।"

सहदेव ने हंसते हुए जवाब दिया, "बस, अब कोई कुत्ता पीछा करने लगे तो किस्मत को भूल जाएंगे।"

मस्ती-मजाक करते हुए वे अनजानी गलियों में मुड़ते-चलते जा रहे थे, रास्ता कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन तीनों को यकीन था कि वे किसी न किसी तरह बाहर निकल ही आएंगे। कुछ देर बाद वे एक अजीबोगरीब जगह पहुँचे जहाँ चारों ओर पुराने मकान थे। मकानों की बनावट से ऐसा लग रहा था जैसे वे 100-150 साल पुराने हों। कोई भी आधुनिक इमारत वहाँ नहीं थी। मकान छोटे, संकरे और खस्ताहाल थे, दीवारों पर जर्जर रंग और झुके हुए छज्जे अंधेरे में एक भूतिया माहौल बना रहे थे।

जैसे ही वे आगे बढ़े, अचानक एक तीखी आवाज़ सुनाई दी, मानो कोई चिल्ला रहा हो। पहले तो उन्होंने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया, आदित्य ने मजाक में कहा, "अरे, बेवड़े होंगे। वैसे भी दिल्ली की गलियों में रात को कौन शांत रहता है?"

लेकिन तभी उस शोर में एक लड़की की आवाज़ भी सुनाई दी। अब उनकी चाल धीमी हो गई और मनोज ने इशारा किया कि आवाज़ की दिशा में चलें। जैसे ही वे थोड़ी दूर और आगे बढ़े, उन्हें सामने का दृश्य साफ़ दिखाई देने लगा।

कुछ दूरी पर तीन आदमियों का एक झुंड खड़ा था और उनके सामने एक महिला और दो कम उम्र की लड़कियाँ खड़ी थीं। इन आदमियों का हाव-भाव और कपड़े देखकर ही यह अंदाज़ा हो गया कि उनका इरादा नेक नहीं था।

पहले व्यक्ति की उम्र लगभग 35-40 के आसपास थी। उसने काले रंग की शर्ट पहनी हुई थी, गले में मोटे मोतियों की चेन झूल रही थी, और हाथ में सिगरेट थी। उसकी आँखों में गुस्सा और उसकी चाल में गुंडागर्दी थी।

दूसरे व्यक्ति ने एक पुरानी, मैली कमीज़ और पैंट पहन रखी थी, और उसके हाथ में शराब की बोतल थी जिसे वह बार-बार अपने होठों से लगा रहा था। उसकी लड़खड़ाती चाल से ही स्पष्ट था कि वह पूरी तरह नशे में था।

तीसरा व्यक्ति एक नौजवान लड़का था, शायद 20-22 साल का। उसने महंगे ब्रांड का कपड़ा पहना हुआ था और उसके हाथ में एक चमचमाता मोबाइल फोन था, जो 70-80 हजार का लग रहा था। लेकिन उसकी भाषा और उसके हावभाव ने बता दिया कि पैसे होने का मतलब संस्कार होना नहीं होता।

मनोज ने अपने दोस्तों की ओर इशारा किया और कहा, "लगता है, भाई, आज कुछ एक्शन देखने को मिलेगा।"

सहदेव ने सिर हिलाया, "चलो देखते हैं।"

तीनों चुपचाप उन गुंडों के पीछे खड़े हो गए, उनकी बातों पर ध्यान देने लगे। पहले व्यक्ति ने, जो सिगरेट पी रहा था, लड़की की ओर इशारा करते हुए कहा, "अरे, इतनी रात को इस मोहल्ले में तुम लोग क्या कर रही हो? कोई खास काम है क्या? हमें भी तो बताओ।"

लड़की ने गुस्से में कहा, "हमें जाने दो, हम तुमसे कोई लेना-देना नहीं रखते।"

दूसरे व्यक्ति ने हंसते हुए कहा, "अरे! इतनी जल्दी क्यों? हमारे साथ थोड़ा टाइम स्पेंड करो, कोई बोरिंग नहीं होगा। हम भी तुम्हारा टाइम पास करा देंगे।"

तीसरे लड़के ने फब्ती कसी, "अरे दीदी, भाग क्यों रही हो? हम तो बस दोस्ती करना चाहते हैं। एक सेल्फी ही ले लो हमारे साथ।"

इससे पहले कि वे और आगे बढ़ें, सहदेव ने गुस्से में कहा, "अरे! ओए, बड़े मवाली बन रहे हो, हीरो बनने का शौक है क्या? चलो यहाँ से हटो और इनको जाने दो।"

उनकी आवाज़ सुनते ही तीनों आदमी चौकन्ने हो गए और गुस्से से सहदेव की ओर देखने लगे। सिगरेट वाला आदमी आगे बढ़कर बोला, "क्यों बे, क्या तू इनका बॉडीगार्ड है?"

सहदेव ने हंसते हुए जवाब दिया, "नहीं, बस दिल्ली का आम आदमी हूँ। और हाँ, यहां गुंडागर्दी नहीं चलती।"

पहला व्यक्ति भड़क गया, "तू जानता नहीं कि हम कौन हैं! तेरा हाल बुरा कर देंगे।"

मनोज ने मजाक में आदित्य से कहा, "लगता है भाई, ये लोग तो अपने सलमान खान के भाई निकले।"

आदित्य ने हंसते हुए जवाब दिया, "भाई, सलमान की स्टाइल है, मगर ये लोग बस सस्ती कॉपी लगते हैं।"

इस बीच सहदेव ने आगे बढ़कर पहले आदमी की सिगरेट को हाथ से झटक दिया, "अरे, इतनी रात में सिगरेट छोड़कर घर जाओ, वरना नशा बहुत महंगा पड़ सकता है।"

उनकी इस हरकत से तीनों गुंडे गुस्से में पागल हो गए। शराबी आदमी ने अपने हाथ में पकड़ी बोतल को सहदेव की ओर उठाते हुए कहा, "बेटा, अब तू बच नहीं पाएगा!"

सहदेव ने फुर्ती से उसका हाथ पकड़कर बोतल छीन ली और ज़मीन पर फेंक दी। जैसे ही बोतल के टुकड़े हुए, बाकी दोनों गुंडों के चेहरे का रंग उड़ गया।

मनोज ने हंसते हुए कहा, "भाई, फिल्म में देखा था कि हीरो आते ही गुंडों की हालत खराब कर देता है। लगता है हम असली हीरो बन गए हैं आज।"

इतने में लड़कियों ने सहदेव, मनोज और आदित्य को धन्यवाद दिया और तुरंत वहाँ से निकल गईं। तीनों दोस्त यह सुनिश्चित करने के बाद कि गुंडे डरे हुए हैं, धीरे-धीरे वापस मुड़ने लगे।

सिगरेट वाले ने पीछे से चिल्लाकर कहा, "अभी जा रहे हो, लेकिन अगली बार हमें देखना मत भूलना!"

सहदेव हंसते हुए बोला, "अरे भाई, अगली बार अगर तेरा फिर सामना हुआ तो हो सकता है पुलिस के साथ हो। संभल के रहना।"

हंसी-मजाक के इस माहौल में तीनों दोस्त वापस अपने रास्ते की ओर चल पड़े।


मनोज की कहानी सुनने के बाद मनीष सर ने एक भौं उठाते हुए पूछा, "अगर तुमने उन तीनों को सच में भगा दिया था, तो फिर आखिर ये लड़ाई इतनी आगे तक कैसे बढ़ी?"

मनोज थोड़ा हिचकिचाया, उसने सोचा कि पूरी बात बताना ठीक रहेगा या नहीं। उसके चेहरे पर एक हल्की सी झिझक दिख रही थी, मानो कुछ छुपाने की कोशिश कर रहा हो। मनीष सर की गहरी नज़रों ने उसे बुरी तरह से घेर लिया, और उसने नज़रें फेर लीं।

मनीष सर ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा, "मनोज, मेरे अनुभव में कुछ भी ऐसा नहीं होता जो 'इतनी आसानी' से खत्म हो जाए। अगर वो सच में डरकर भागे थे, तो उनके बाद के कदम क्यों उठे? या फिर तुमने कुछ ऐसा किया, जो हमें अभी तक पता नहीं?"

मनोज ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला, पर फिर चुप हो गया। बाकी कर्मचारी जो कमरे में थे, अब उनकी ओर जिज्ञासापूर्ण नज़रों से देखने लगे। सबके मन में एक सवाल उठने लगा – क्या कुछ और गहरी बात है जो मनोज ने छिपा रखी है? क्या वो तीन गुंडे सच में शांत हो गए थे, या फिर मनोज ने कुछ ऐसा कर दिया था जो इस कहानी का एक नया मोड़ ले आया?

मनोज की खामोशी ने सभी को और बेचैन कर दिया। क्या ये केवल संयोग था या फिर मनोज के जीवन में अब कोई गंभीर संकट दस्तक देने वाला है?