Nafrat e Ishq - Part 5 Umashankar Ji द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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Nafrat e Ishq - Part 5

अंधेरे में डूबी हुई सड़क पर एक काली BMW तेजी से हॉस्पिटल की ओर बढ़ रही थी। अचानक ब्रेक लगने की आवाज से माहौल में एक अस्थिरता सी छा गई।

"मैडम, हम हॉस्पिटल पहुंच गए हैं," ड्राइवर ने धीरे से कहा।

"ठीक है," मनीषा ने जवाब दिया और गाड़ी का दरवाजा खोलते ही बाहर उतर आई। ड्राइवर ने गाड़ी को बैक गियर में डालते हुए पार्किंग की ओर मोड़ दिया। मनीषा के कदमों की आवाज, ऊँची एड़ी के सैंडल की खटखट, शांत रात में गूंज रही थी। उसके कपड़ों से और चेहरे पर पसीने की हल्की चमक से साफ पता चल रहा था कि वह सीधा पार्टी से यहां आई है।

अभी वह अस्पताल की सीढ़ियां चढ़ ही रही थी कि एक लड़की उसके सामने आ गई। गुलाबी रंग की शर्ट और हल्के गुलाबी फूलों वाली पजामा पहने यह लड़की अंजू थी, जिसने अपने घर के कपड़े पहने हुए थे, मानो उसे तुरंत बुला लिया गया हो।

"मैडम, आप आगे चलिए," अंजू ने नरम आवाज में कहा।

मनीषा ने सिर हिलाते हुए उसे इशारा किया और दोनों एकसाथ इमरजेंसी वार्ड की ओर बढ़ चलीं। वार्ड के गलियारों में कुछ सब-इंस्पेक्टर और हवलदार खड़े थे, जिनकी सतर्क निगाहें हर किसी पर टिकी हुई थीं। उनके बीच से गुजरते हुए मनीषा और अंजू की चाल में गंभीरता थी, जैसे कुछ गंभीर बात का सामना करने आई हों।

जैसे ही वे इमरजेंसी वार्ड में दाखिल हुईं, वहां की हालत देख कर मनीषा के चेहरे पर हल्का सा गुस्सा छा गया। बेड पर कई लोग लेटे हुए थे, उनके शरीर पर खून के धब्बे, पट्टियां और दर्द के निशान थे। डॉक्टर और नर्स उनके घावों की ड्रेसिंग में जुटे हुए थे, मगर उनका दर्द उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था। उनके कपड़ों और हाव-भाव से पता चलता था कि ये लोग हाल ही में किसी बुरी झड़प का शिकार हुए हैं।

मनीषा ने चारों ओर निगाह दौड़ाई और फिर एक कोने में दो लड़कों को देखा जो बिस्तर पर बैठे थे। उनमें से एक की नर्स पट्टी कर रही थी, और उसकी भौंहें दर्द से सिकुड़ी हुई थीं।

"आह! थोड़ा आराम से," उस लड़के ने तकलीफ से कहा।

मनीषा ने गहरी सांस लेते हुए कदम आगे बढ़ाए और कड़े लहजे में बोली, "जब तुम मवालियों की तरह लड़ाई में कूदे थे, तब याद नहीं आया कि चोट लगने पर दर्द होगा?"

उसकी आवाज सुनते ही दोनों लड़कों ने चौंककर उसकी ओर देखा। यह मनीषा थी, उनकी कंपनी की मैनेजर। उनके साथ अंजू भी खड़ी थी, जो सिक्योरिटी हेड थी। लड़कों की हालत देखकर मनीषा की नजरों में एक गुस्से की चमक और गहराई आ गई थी।

नर्स की पट्टी के घेरे में जो लड़का था, वह मनोज था, और उसके बगल में आदित्य बैठा हुआ था। दोनों एक ही झड़प का हिस्सा रहे थे, और अब दर्द से कराह रहे थे। 

तभी सहदेव, एक अन्य कर्मचारी, कमरे में दाखिल हुआ। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी और उसके हाथ में एक बोतल थी, जिसमें शायद दर्द मिटाने का कोई घरेलू नुस्खा था।

"अरे, तुम लोग तो ड्रेसिंग में ही लग गए। ये लो, मैं बोतल लाया हूँ – दर्द मिटाने के लिए एकदम सही है!" सहदेव ने हंसते हुए कहा।

सहदेव की आवाज सुनकर आदित्य ने निराश होकर अपना सिर पकड़ लिया और धीरे से बड़बड़ाया, "यह हमें और मुसीबत में डालेगा।"

मनीषा ने उसकी बात सुन ली, मगर उसने नजरअंदाज करते हुए सहदेव को घूरकर देखा। वह समझ चुकी थी कि यहां मामला सिर्फ एक लड़ाई का नहीं था – इसमें कुछ ऐसा था, जो उसे जानना जरूरी था।

"सहदेव, तुम भी इस लड़ाई का हिस्सा थे?" मनीषा ने ठंडी नजरों से उसे देखा।

सहदेव की हंसी थोड़ी धीमी पड़ गई। उसने अपनी आँखें झुका लीं, जैसे कुछ छिपाने की कोशिश कर रहा हो। मनीषा की तीखी नजरें उसके चेहरे पर टिकी हुई थीं, मानो उसकी मनहूसियत को भांप रही हों।

"जी मैम, वो… थोड़ा मस्ती-मजाक हो गया था," सहदेव ने फुसफुसाते हुए जवाब दिया।

"मस्ती-मजाक?" मनीषा की आवाज में एक तीखापन था। "तुम्हें लगता है कि ये सब मस्ती है? तुम्हारी ये 'मस्ती' अब अस्पताल तक पहुँच गई है। क्या यही है तुम्हारी जिम्मेदारी?"

सहदेव ने फिर भी हंसी का मुखौटा ओढ़े रखा, मगर अंदर कहीं न कहीं वह मनीषा की गुस्से भरी नजरों से डर चुका था। वहीं अंजू भी गहरी सोच में डूब गई थी, यह सब देखकर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे इस हालात को सुधारा जाए।

अंजू ने मनीषा की ओर झुकते हुए कहा, "मैम, शायद हमें पुलिस को भी इसमें शामिल करना चाहिए। यह मामला साधारण नहीं लगता।"

मनीषा ने उसकी बात सुनकर गहरी सांस ली और कहा, "नहीं, अंजू। पहले हम इस बात की तह तक जाएँगे। मुझे इनके मुंह से सच निकलवाना है, फिर हम अगला कदम उठाएंगे।"

यह कहते हुए मनीषा ने मनोज और आदित्य की ओर देखा, मानो उनकी हर हरकत, हर शब्द को पढ़ लेना चाहती हो।


तभी उनके पास एक सब-इंस्पेक्टर और एक हवलदार तेज कदमों से चलते हुए आ पहुंचे। सब-इंस्पेक्टर ने सिर से पैर तक मनीषा का मुआयना किया और फिर बोले, "अरे मैडम, आप ही हैं क्या इनकी कंपनी की मैनेजर? हम इनसे पूछ रहे थे, लेकिन इन्होंने कहा कि हमारी मैनेजर ही आपसे बात करेंगी।"

मनीषा ने गहरी सांस ली और हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, यही हैं हमारे कर्मचारी।" आज उसका कंपनी में पहला ही दिन था और पार्टी के बाद थोड़ा सुकून चाहती थी। लेकिन उसके कर्मचारी कांड करके यहाँ, इमरजेंसी वार्ड में बैठे हुए थे। जैसे ही यह ख्याल आया, उसका मन एक पल के लिए झुंझला गया, लेकिन उसने खुद को संयमित रखा।

सब-इंस्पेक्टर ने थोड़ा अपने हाव-भाव में सुधार करते हुए कहा, "वैसे, मैडम, आपका नाम?" 

मनीषा ने भी हल्का सा सिर हिलाया और औपचारिकता में पूछ ही लिया, "और आपका नाम क्या है?"

"माइसेल्फ भोला पांडे... बनारस से। जय भोलेनाथ!" सब-इंस्पेक्टर भोला पांडे ने एक बड़ी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया और अपना हाथ आगे बढ़ाया। उनके चेहरे पर हंसी थी और उनकी आँखों में एक मस्ताना अंदाज। 

मनीषा ने उनकी मुस्कान और अंदाज का जवाब एक हल्की मुस्कान से दिया, मगर हाथ मिलाने का कोई इरादा नहीं था। उन्होंने देखा कि सब-इंस्पेक्टर पान चबाते हुए आए थे, जिसका सबूत उनके मुंह के कोनों पर लगा लाल निशान था। उनके वर्दी की हालत देखकर साफ पता चल रहा था कि उन्हें अनुशासन से ज़्यादा कोई सरोकार नहीं था। पांडे जी की हाइट अच्छी थी, करीब 5 फुट 10 इंच, और शरीर भी तगड़ा था। पर उनका पेट थोड़ा बाहर निकला हुआ था, जो उनकी स्वास्थ्य प्रेमी छवि पर हल्का सा प्रश्नचिह्न लगा रहा था। 

भोला पांडे को भी शायद समझ आ गया कि उनका पान से रंगा हुआ हाथ मनीषा को बिलकुल पसंद नहीं आया। उन्होंने कुछ असहजता से अपना हाथ पीछे खींच लिया और इधर-उधर देखते हुए बोले, "अरे, माफ करिएगा मैडम, यहाँ तो ऐसे ही माहौल है, थोड़ा अपनापन ही होता है। वैसे क्या किया इन शैतानों ने?"

मनीषा ने मनोज, आदित्य, और बाकी के कर्मचारियों की तरफ देखा, जो अब बगलें झांक रहे थे। उसने गहरी सांस ली और भोला पांडे की तरफ मुड़ी, "इन्होंने जो किया, वह सिर्फ एक 'मस्ती' नहीं है, इंस्पेक्टर। इनकी वजह से हमारी कंपनी की साख पर सवाल उठ सकते हैं।"

भोला पांडे ने हंसी दबाते हुए आदित्य और मनोज की तरफ देखा, जो नज़रें झुकाए बैठे थे। "मैडम, बनारस से हूँ, थोड़ा-बहुत समझता हूँ कि जो हुआ, वो मस्ती से ज्यादा कुछ है। हम भी देखेंगे, इन बच्चों का दिल कितना बड़ा है," उसने मुस्कुराते हुए मजाक में कहा, मगर उसके शब्दों में एक चेतावनी भी छुपी थी।

मनीषा ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा, "शुक्रिया, इंस्पेक्टर। लेकिन इस बार मैं ही इनसे बात करूंगी।"

यह सुनकर भोला पांडे ने सिर हिलाया और अपनी टोपी को थोड़ा ऊपर उठाते हुए बोला, "ठीक है, मैडम। किसी मदद की जरूरत हो तो हमें याद कीजिएगा। वैसे इनका इलाज तो हो ही रहा है।"

यह कहते हुए वह थोड़ा दूर हट गए। मनीषा ने अपनी गंभीर निगाहें आदित्य और मनोज पर जमाईं और धीरे से बोली, "तुम दोनों जानते हो न कि तुम्हारी यह हरकतें कंपनी के लिए कितनी बड़ी मुसीबत बन सकती हैं?"

उनके चेहरे पर एक हल्की घबराहट दिखने लगी, और वे समझ गए कि यह मजाक में हल्के में उड़ाने वाली बात नहीं थी।


जैसे ही मनीषा ने उन दोनों से सवाल किया, आदित्य और मनोज ने एक-दूसरे की ओर नज़रें घुमाईं, उनके चेहरों पर चिंता और असमंजस की लकीरें थीं। उन्हें अंदाज़ा हो गया था कि अब मनीषा उनसे केवल उनकी हरकतों का जवाब ही नहीं बल्कि कुछ और भी जानना चाहती है। 

"तो, यह सब यहाँ तक कैसे पहुँचा?" मनीषा ने गंभीरता से पूछा, उसकी आवाज़ में एक सख्त इरादा झलक रहा था। 

मनोज ने हिचकिचाते हुए कहा, "मैडम, असल बात कुछ और ही है... शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि..."

अचानक मनीषा का फोन बज उठा—क्या ये एक और नया मोड़ था? 

(अगले अध्याय में जारी...)