उसी समय विभीषण दरबार मे चले आये
"यह दूत है।औऱ दूत की हत्या नियम विरुद्ध है विभीषण की बात का समर्थन और भी कई दरबारियों ने किया था।
"दूत है लेकिन दूत ने नियम विरुद्ध काम किये हैं।दूत होकर लंका में चोरी छिपे आये।अशोक वाटिका को उजाड़ दिया और इतना ही नही इसने हमारे सेनिको भी मार दिया,"रावण बोला,"इसके कर्मो कि सजा इसे जरूर मिलेगी
रावण कि बात सुनकर कुछ देर के लिए सभा मे सन्नाटा छा गया।फिर कोई बोला,"सजा ऐसी होनी चाहिए जो यह हमेशा याद रख
"यह बात सही है,"रावण उसकी बात सुनकर बोला,"सिर्फ यह ही याद हज रखे।दूसरे लोग भी सबक ले
औऱ सभा मे विचार होने लगा।ऐसी क्या सजा दी जाए और फिर बात निकली वानर को अपनी पूंछ बहुत प्यारी होती है।इसमें आग लगा दी जाए।और पूंछ जलाने की तैयारी होने लगी।
हनुमान रूप बदलने की कला में माहिर थे।उन्होंने अपने रूप को विशाल बना लिया।पूंछ इतनी लंबी हो गयी कि लंका का सब घी तेल नही बचा।
लंका सोने की थी।
भगवान शिव ने सोने कि लंका पार्वती के लिए बनवाई थी।यह काम शिव ने विश्वकर्मा को सौंपा था।विश्वकर्मा ने अथक परिश्रम और सूझबूझ से तीनों लोकों में अनोखी लंका का निर्माण किया था।लेकिन पार्वती उसमे निवास कर पाती उससे पहले रावण ने चालाकी से शिव से लंका मांग ली थी।
पति कि इस उदारता और भोलेपन से पार्वती को बहुत क्रोध आया और उन्होंने श्राप दिया था कि इसे एक दिन वानर आग लगाएगा।और शायद वह दिन आ ही गया था।
और जब लंका वासी हनुमानजी की पूछ में तेल लगा चुके तब हनुमान ने फिर अपना रूप छोटा कर लिया था।
"अरे आग तो लगाओ
और हनुमान कि पूंछ में आग लगा दी गई।हनुमान रावण कि मूर्खता पर मुस्कराए और जोर से बोले
जय श्री राम
और छलांग लगाकर रावण के महल पर चढ़ गए और जलती पूंछ से रावण के महल में आग लगा दी।और वह उछल कूद कर एक एक घर मे आग लगाने लगे।उनकी इस हरकत को देखकर कुछ लोग बोले
हम तो पहले ही कह रहे थे।यह वानर नही है।वानर के भेष में कोई और हैं।पहले जो लीग पूंछ में तेल लगाते हुए खुश हो रहे थे।वे अब दुखी थे क्योंकि उनका तेल उनके ही घर को जला रहा था।हनुमैन
कूद कूद कर एक एक घर मे आग लगाने लगें।त्राहि त्राहि मच गई।सारे घरों में आग लगा दी।सिर्फ एक घर को छोड़कर।वह घर था विभीषण का।लंकापति रावण के भाई का।जो प्रभु राम का भक्त था।और अपने स्वामी के भगत का घर वह कैसे जला सकते थे।
लंका।सोने की लंका जिसे रावण ने भोले शिव से चालाकी से ले लिया।उस लंका को हनुमान ने जला डाला था
लंका में आग लगाने के बाद हनुमानजी ने समुद्र में छलांग लगा दी।और उन्होंने समुद्र के पानी से अपनी पूंछ की आग बुझायी थी।
"माता
और फिर वह माता सीता के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए
"तुंमने तो लंका को हिलाकर रख दिया
"माते यह जरूरी था।रावण को बताना जरूरी था कि जब राम का एक छोटा सा सेवक इतना तांडव मचा सकता है, तो जब प्रभु राम सेना के साथ आएंगे तब क्या होगा
सीता उनकी बात सुनती रही
"माता मुझे आप कोई निशानी दो जैसी मेरे रभु ने दी थी।तब सीता ने चूड़ामणि दी थी
और हनुमान लंका से लौट आये