जंगल - भाग 11 Neeraj Sharma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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जंगल - भाग 11

                        (-----11------)

जितना सोचा था, कही उनसे जेयादा लहरों का उठना हो गया था। कोई इस दुनिया मे आप के बारे नहीं सोचता, एक माँ के सिवाए, बिना मतलब के।

बाकी दौलत से बधी दुनिया, भागम भाग मे कया कया सोचती रहती है... कोई नहीं जानता... खैरियत उसी मे है,तुम आपने आप मे ही रहो। बस वो ही करो, जो मन के बुलद खाब कराये।


---------" माँ तुम छोड़ के कभी मत जाना ---" ये भोले से शब्द जॉन के उसकी बगल मे लगते हुए कहा था।

-------" कया हुआ बेटा, मैं तुम्हे सच मे छोड़ने के लिए नहीं आयी!!"" माँ तुम जीन मे बहुत अच्छी लगती हो, मैं उम्र मे बीस साल का हो गया हुँ, और तुम अभी भी बूढ़ी नहीं लगती। ""

हसते हुए खूब हसते हुए माधुरी (सगीना ) ने कहा, " तो मैं कया लगती हुँ तुझे!!!" सगीना ने जॉन को पूछा।

"माँ जो अटूट सुन्दर होती है " इतना कहते उसने गोल्फ का खेल छेद मे बॉल आगे जाती को हाथ मे उठा लिया था।

"पिता जी से ऐसी कोई बात जो होंगी, जो तुम मुझे भी छोड़ कर चली गयी, माँ।" जैसे सगीना के ऊपर बिजली गिरी। बात को घुमाते हुए उसने कहा, आज कया खाब देखा, बेटा। "

"पहले सच बोलो, तुम मुझे छोड़ के अब तो नहीं जाओगी।" ------------"नहीं बड़े बाबा। " उसे प्यार मे बे बस होकर कहा।

"तुम मुझे जॉन कहा करो.... ये बाबा कया है " उसने दुबारा वापिस चलते हुए एक शांत एक चेयर पर बैठते कहा। ये वादी किस्म का घर मे बनाया गया बनावटी झरना, बनावटी पहाड़ था। जिस की डिके रेशन उच्च कोटी की थी। दूध के साथ आमलेट उसकी पहली पसंद की थी। "मैंने आपने हाथ से बनाया है।" उसने प्यार मे कहा।

"माँ " शब्द मे कितना सकून है " जॉन एक फिलासफर की तरा बोला।

"हाँ बेटा "सकून से जैसे भर गया हो।

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धनराज एक वपारी और पियकड़ किस्म का कंजूस था। हर किसी की कहानी है, आखिर धयान से सुनो,

टारगेट पर था, फरोति मांगी गयी, दस लाख। और धमकी जान की, नाम अबू हसन, जिसने धमकी दी थी।

अगली अख़बार का पब्लिश मे पढ़ा गया। अबू हसन इस दुनिया को अलविदा कह गया। ये काम हार्ट अटैक मे शामिल हो गयी थी, ज़हर का मिश्रण पाया गया, लेब मे, परन्तु ये किसने कर दिया। मीट ने , वो खतरनाक हो गया जो अख़बार मे पढ़ा गया, पांच दिन का बासी खाना... खत्म अबू हसन। उसकी डेथ बाडी अख़बार मे छपी थी। कितनी ही बेतुकी बात हजम नहीं हुई, भाईचारे को।

धनराज ने सात लाख चैक से दें दिए, वास्तव सेक्टरी के अक्कोउट मे...सी ऐ वास्तव।

जो कमेंमेंट हुई, वो कर दी गयी। धनराज को चुप का वादा याद रहा था। हमेशा के लिए ता, 

रिवाल्वर देख चूका था, राहुल के पास।

सच घिनोना होता है, अति कड़वा भी।

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इंस्पेक्टर राधे आ धमका।

"राहुल  का बगला यही है, चौकीदार।"

पतलून थोड़ी डीलि करता हुआ, राधे बोला।

"जी साहब -----मिलेंगे नहीं, कही गए हुए है।"

"हुँ "--------"बोलोगे नहीं, किधर गए है, चाये पानी कुछ भी नहीं, स्टेशन आओ, बताउगा, पुलिस कया खौफ है ".... चौकीदार वहा से खिसका।

तभी गेट खुला.... एक बड़ी कार अंदर से निकली।

जिसके शीशे ब्लेक थे।

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