खामोश चाहतें - पार्ट 2 R. B. Chavda द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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खामोश चाहतें - पार्ट 2

उसका नाम तो मैं नहीं बताऊंगी, पर उसकी तस्वीर मेरे दिल और दिमाग में हमेशा के लिए अंकित हो गई है। वह लड़का न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि उसके स्वभाव और आचरण से भी बहुत प्यारा और आकर्षक है। उसकी आँखें गहरी ब्राउन रंग की हैं, जैसे कोई पहाड़ी झील हो, जिनमें डूब जाने का मन करता है। वह हमेशा सादगी में ही दिखता है, जैसे किसी को दिखाने के लिए नहीं, बल्कि अपनी सहजता को अपनाने के लिए कपड़े पहनता हो। उसके कपड़े कभी बहुत फैशनेबल नहीं होते, बल्कि साधारण होते हैं, और उसका पहनावा उसके स्वभाव को ही व्यक्त करता है। वह चमक-दमक या फैशन से बहुत दूर रहता है, उसे बस शांति पसंद है, कुछ ऐसा जो उसे खुश रखे और लोगों को सहज महसूस कराए।

उसका एक अनोखा तरीका है बात करने का। वह हर किसी से बहुत प्यार और आदर से बात करता है, भले ही वह किसी से भी मिल रहा हो, चाहे वह उसका पुराना दोस्त हो या कोई नया परिचित। उसकी बातों में एक गरिमा और मिठास होती है, जो दिल को छू जाती है। लेकिन जब वह मुझसे बात करता है, तो उसका व्यवहार कुछ अलग ही होता है। उसकी मुस्कान में कुछ खामोशी छिपी होती है, जैसे वह मुझसे कुछ कहना चाहता हो, पर शब्दों में बंधा न हो। ऐसा लगता है जैसे वह जानता है कि मेरी खामोश चाहतें उसे घेरे हुई हैं, और शायद यही वजह है कि वह मुझसे थोड़ी दूरी बनाए रखता है।

मैं यह सोचती हूँ कि शायद उसे कोई ऐसी लड़की चाहिए होगी जो मुझसे ज्यादा परिपक्व हो, जो हर बात को समझे और जिसे वह अपना जीवन साथी बना सके। मैं खुद को उस स्तर तक नहीं मानती, और यह सोचकर ही मेरे दिल में एक दर्द सा उठता है। क्या उसे मेरी मासूमियत और खामोशी दिखाई देती है? क्या वह समझता है कि मैं बहुत साधारण हूँ? या फिर वह यह जानता है कि मैं उसे अपनी खामोश चाहतों से कभी भी बता नहीं पाऊँगी?

यह सब मैं उस पहली मुलाकात के हिसाब से कह रही हूँ, क्योंकि उसके बाद हमारा मिलना हुआ नहीं है। पर हाँ, कुछ बार ऐसा हुआ कि मैं अस्पताल गई और उसी वक्त उससे थोड़ी बहुत मुलाकात हो गई। मगर ये मुलाकातें कभी व्यक्तिगत नहीं हुईं, बस तात्कालिक और औपचारिक थीं। वह हमेशा उसी तरह अपने काम में व्यस्त रहता है, और मैं खुद को उस समय बस एक व्यक्ति के तौर पर ही सीमित पाती हूँ।

उसका पेशा डॉक्टर है, और यह जानकर मैं और भी अधिक प्रभावित होती हूँ। वह एक ऐसा इंसान है जो दूसरों की मदद करता है, जिनके पास हमेशा सही शब्द होते हैं जब कोई रोगी परेशान होता है, और जो हर किसी की जान को अपनी जिम्मेदारी मानता है। उसके डॉक्टर बनने के पीछे जो समर्पण और त्याग छिपा है, वह उसके व्यक्तित्व को और भी महान बना देता है। वह किसी को भी दर्द में देखता है और उसे राहत देने की पूरी कोशिश करता है। यही वजह है कि मैं सोचती हूँ, क्या एक डॉक्टर जैसे पेशेवर व्यक्ति को मेरी तरह की किसी लड़की की जरूरत होगी?

कुछ दिनों से मुझे यह अहसास हो रहा है कि वह शायद मेरी खामोश चाहतों को समझता है, और इसी वजह से मुझसे थोड़ा दूर रहता है। क्या उसे लगता है कि मैं उसकी दुनिया में शामिल होने के योग्य नहीं हूँ? क्या उसे लगता है कि मैं उस स्तर की नहीं हूँ, जिसे वह अपने साथ देख सके? मैं खुद से यह सवाल पूछती हूँ, लेकिन कभी भी इसका संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाती।

एक दिन, जब वह अस्पताल में अपने काम में व्यस्त था, मैंने उसे दूर से देखा। उसकी गंभीर मुद्रा और उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी खामोशी थी। उसके चेहरे पर कोई भी भावनात्मक बदलाव नहीं था, जैसे वह किसी गहरी सोच में खोया हुआ था। वह अपने मरीजों को देखता, उनका इलाज करता, और फिर चुपचाप अपने काम में व्यस्त हो जाता। उसे देखकर मैं सोचने लगी, क्या उसकी जिंदगी इतनी सरल और सीधी है? क्या वह अपने जीवन के बारे में कभी नहीं सोचता, या फिर वह खुद को किसी के साथ साझा नहीं करना चाहता?

क्या वह कभी मेरे बारे में सोचता है? क्या वह कभी मेरी खामोश चाहतों को समझता है? मैं नहीं जानती, लेकिन मुझे यकीन है कि वह हर किसी से जितनी स्नेहपूर्ण बात करता है, उतनी ही उसे मुझसे कुछ दूरी बनाए रखने की आवश्यकता क्यों महसूस होती है।

क्या वह किसी ऐसे रिश्ते में बंधना चाहता है जिसमें उसके अपने मानक और उम्मीदें पूरी हो सकें? क्या वह मेरी खामोशी को समझ सकता है, या उसे अपनी जिंदगी में किसी मजबूत और परिपक्व साथी की जरूरत है?

ये सब सवाल मेरे दिल में उठते रहते हैं, लेकिन शायद जवाब कभी नहीं मिलते। फिर भी, मैं अपने दिल की सुनती हूँ और अपने विचारों को खुद तक ही सीमित रखती हूँ। शायद खामोश चाहतें ही वह सबसे बड़ी ताकत होती हैं जो किसी को भी बिना कहे समझा सकती हैं, और मुझे यकीन है कि वह समझेगा।

जब भी तुम्हें देखूं, दिल की खामोशी बढ़ जाती है,
तुमसे बात करने की चाहत, एक परछाई बन जाती है।
क्या तुम समझ पाओगे, इस चुप्पी को मेरे मन की?
या फिर यह खामोश चाहतें, यूँ ही रह जाएं अनकही?