तीन दोस्त - भाग 1 Varun Kumar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • जंगल - भाग 2

     ----------------------- अंजाम कुछ भी हो। जानता हु, "शांत लह...

  • व्यवस्था

    व्यवस्था जंगल में शेर ने एक फैक्ट्री डाली... उसमें एकमात्र क...

  • तीन दोस्त - भाग 1

    एक घना जंगल जहां हरे भरे पेड़ों की कमी नहीं है और जंगली जानव...

  • दो बातें

    हेल्लो और नमस्कार!     मैं राहुल नर्मदे, आज कोई कहानी लेकर न...

  • अंधेरे का बंदी

    रात का सन्नाटा गहरा और भयानक था। हवा में अजीब सी ठंडक थी, जो...

श्रेणी
शेयर करे

तीन दोस्त - भाग 1

एक घना जंगल जहां हरे भरे पेड़ों की कमी नहीं है और जंगली जानवरों की भी कमी नहीं है जंगल से बाहर तरह-तरह के कई शेप्स शेप्स के घर बने हुए हैं वह घर देखने में बहुत ही सुंदर है। और उसे घर के पास एक पेड़ है जिस पेड़ पर संजीव नाम का एक 10 वर्ष का बच्चा अकेला बैठा है। ऐसा लग रहा है जैसे वह किसी की प्रतीक्षा कर रहा है उसे इस तरह बैठा देखकर उसकी मां शोभा उसके पास आती है और कहती है- बेटा संजीव अकेला क्यों बैठा है आज तेरे दोस्त कहां है।


संजीव ने अपनी मां की और देखा फिर कहा-मां सब घूमने गए हैं।"


शोभा-अच्छा तो तुझे लेकर नहीं गए तो इसलिए उदास बैठा है।"


संजीव- मां मेरे दोस्त हर बार ऐसा करते हैं मुझे ऐसा दोस्त चाहिए जो जीवन भर मेरा साथ निभाए यह सब तो मतलब के साथी है।मुझे मेरा प्रिय दोस्त कब मिलेगा।


  • शोभा- आज की रात बहुत खास रात है जो भी मांगो वह तुरंत मिल जाता है आसमान की ओर देखकर भगवान से प्रार्थना करना कि तुम्हें बेहतर दोस्त मिले तुम्हें बेहतर दोस्त में जाएंगे।


संजीव-मां क्या ऐसा सच में हो सकता है?


शोभा- भगवान बच्चों की प्रार्थना बहुत जल्दी सुनता है अगर कुछ दिल से मांगोगे तो जरूर पूरा होगा अब पेड़ से नीचे आओ।


संजीव पेड़ से नीचे आया और अपनी मां के गले लग गया उसकी मां ने उसे सिर्फ मजाक में पेड़ से नीचे उतरने के लिए कहा था की वह भगवान से प्रार्थना करें और उसे बेहतर दोस्त मिल जाएंगे लेकिन उसे क्या पता था कुछ ऐसा होने वाला था जो उसके बेटे की जिंदगी बदल सकता था। आसमान की ओर देखकर रात में संजीव ने कहा- भगवान मेरा कोई भी दोस्त नहीं है मैं जिसे भी दोस्त बनाता हूं वह मतलब का निकलता है क्या कोई सच्चा दोस्त इस दुनिया में बचा नहीं है। अगर आपके पास है तो उसे मेरे पास भेज दो मुझे उसकी जरूरत है। आपसे यह मेरी प्रार्थना है आप बच्चों के प्रार्थना सुनते हैं तो मेरी भी सुनिए।


संजीव के दोस्त खास नहीं थे बस मतलब के वक्त संजीव का साथ देते थे बाकी अलग ही रहते थे इस कारण संजीव बहुत उदास रहता था और चाहता था कि उसे ऐसे दोस्त मिले जो दोस्त उसकी जान से ज्यादा परवाह करें और हर काम में उसका हाथ बताएं। संजीव यह  बोलकर नीचे चला गया और अचानक उसे रात उसके पिता की बदलि प्रयागराज में हो गई। उसके पिता एक नौकरी में काम करते थे जो की प्रोडक्ट बनाने की कंपनी थी आज उन्हें पता चला उनकी कंपनी उनकी बलि प्रयागराज में कर रही है तो उन्होंने फोन करके यह खुशखबरी अपनी पत्नी को दी और कहा कि जल्दी से प्रयागराज जाने की तैयारी करें।


संजीव यह सुन तो बहुत खुश हुआ। वह यह सोचकर बहुत खुश था कि उसे नए शहर जाने का मौका मिलेगा नई-नई जगह देखने का मौका मिलेगा नहीं नहीं दोस्त बनाने का मौका मिलेगा। उसके अंदर खुशी का सोता फूट रहा था संजीव को प्रयागराज में क्या दोस्त मिलने वाले थे यह आप देखेंगे अगले भाग में