सोनू नाम का एक लड़का अपने गाँव के जंगल वाले रास्ते से गुजर रहा था। शाम का वक्त था, हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और चारों तरफ एक सन्नाटा सा पसरा हुआ था। सोनू के पास कोई रास्ता भी नहीं था कि वो जंगल को छोड़कर कहीं और से जाता, क्योंकि यही रास्ता सबसे छोटा था, और उसे जल्दी अपने घर पहुँचना था।
जंगल के बीचों-बीच पहुंचते ही सोनू को अचानक कुछ अजीब सी आहट सुनाई दी। उसने सोचा शायद कोई जानवर होगा और नजरअंदाज कर आगे बढ़ गया। लेकिन तभी, अचानक से झाड़ियों में से एक सांप फुर्ती से निकला और सोनू के पैर पर काट लिया!
सोनू को काटने के बाद सांप ने सोचा कि वो अब लड़के को झट से गिरता देखेगा और उसकी जान निकल जाएगी। लेकिन जो हुआ, वो सांप की उम्मीद के बिल्कुल उलट था। सोनू ने अपने चेहरे पर कोई भी डर या दर्द नहीं दिखाया बल्कि मुस्कुराता हुआ अपना पैर आगे कर दिया और बड़े ही शांत अंदाज में बोला, "अरे भाई, ले काट ले, जितना दिल करे काट ले। और चाहें तो दूसरी बार भी काट ले!"
सांप को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था। वो सोच में पड़ गया कि आख़िर ये कैसा इंसान है जो मरने की जगह उसे और काटने का निमंत्रण दे रहा है। लेकिन सांप को लगा कि शायद उसका एक बार काटना असरदार नहीं था, तो उसने फिर से काटने का निर्णय लिया।
सांप ने एक बार नहीं, दो बार नहीं, बल्कि चार-पांच बार काटा, लेकिन सोनू के चेहरे पर ज़रा भी दर्द या पीड़ा का भाव नहीं आया। उल्टा, सोनू ने बड़े ही इत्मीनान से हंसते हुए कहा, "ले, और काट ले। मजे ले ले आज के दिन के।"
अब तो सांप पूरी तरह से हैरान-परेशान हो गया। वो इतनी जल्दी थक गया और हांफते हुए बोला, "अरे यार, तू इंसान है या भूत? कोई कैसे इतना सहन कर सकता है!"
सोनू ने सांप की हालत देखी और मुस्कुराते हुए अपना एक पैर ऊपर उठाया और बोला, "अरे भाई, हूँ तो मैं इंसान ही, पर ये पैर नकली है।"
सांप की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसे समझ में आया कि उसने किसे काटा था और बेकार में अपनी ऊर्जा बर्बाद कर दी थी। बेचारा सांप थका-मांदा सा झाड़ियों में वापस चला गया और सोनू हँसता हुआ अपने घर की ओर बढ़ गया, ये सोचते हुए कि शायद आज जंगल में उसने किसी को पहली बार सबक सिखाया है।
होशियारी, बुद्धिमानी और विवेक के विषय में संस्कृत साहित्य में अनेक सुभाषित (सारगर्भित श्लोक या कथन) मिलते हैं। ये सुभाषित जीवन में विवेकपूर्ण निर्णय, सावधानी और समझदारी का महत्व बताते हैं। यहाँ १० सुभाषित प्रस्तुत हैं:
विवेकहीनाः पशुभिः समानाः।
अर्थ: विवेक के बिना मनुष्य पशु के समान होता है।
विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेषां परिपीडनाय। खलस्य साधोर् विपरीतमेतत्।
अर्थ: विद्या का उपयोग विवाद के लिए, धन का घमंड के लिए, और शक्ति का दूसरों को कष्ट देने के लिए किया जाता है; जबकि सज्जन इसका विपरीत उपयोग करते हैं।
सुप्तेषु जाग्रति बुद्धिमन्तः।
अर्थ: जब सभी सो रहे होते हैं, तो बुद्धिमान व्यक्ति जागता है और मौके का लाभ उठाता है।
सत्यम् ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतम् ब्रूयात्, एषः धर्मः सनातनः।
अर्थ: सत्य बोलो, परंतु प्रिय बोलो; अप्रिय सत्य मत बोलो और प्रिय अनर्थ भी मत बोलो। यही सनातन धर्म है।
नास्ति बुद्धिसमं मित्रं।
अर्थ: बुद्धि जैसा मित्र कोई नहीं होता।
न बुद्धिर्यस्य बलवत्यपि तस्य शक्तिः।
अर्थ: जिस व्यक्ति के पास बुद्धि नहीं है, उसकी शक्ति भी व्यर्थ है।
विवेकः परमं श्रेयः।
अर्थ: विवेक ही परम कल्याणकारी है।
प्रत्युत्पन्नमतिर्नार्यो भवति।
अर्थ: जो व्यक्ति समयानुसार निर्णय लेने में सक्षम होता है, वही बुद्धिमान है।
नहि ज्ञानवताम् बन्धुः विपद्गते समो नृणाम्।
अर्थ: संकट में ज्ञान जैसा मित्र मनुष्य के लिए कोई नहीं है।
शठे शाठ्यं समाचरेत्।
अर्थ: होशियारी से पेश आने वाले के साथ ही होशियारी करनी चाहिए।
ये सुभाषित व्यक्ति को सजग, विवेकशील और जीवन के कठिन परिस्थितियों में समझदारी से कार्य करने की प्रेरणा देते हैं।