इश्क इबादत - 2 Juhi Patel द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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इश्क इबादत - 2

इतना सबकुछ हो गया फिर भी पूनम जी अभी तक मूक दर्शक बनकर बैठी हुई थी।

पुरुषोत्तम ने एक नज़र पूनम को देखा और तिरछा मुस्कुरा दिया।फिर वो सबके सामने बोला , अब तो आप सबको विश्वास हो गया होगा ना की ये सब अब मेरा है।

गांव के सभी लोगो मायूस होकर अपना सिर झुका लिए।उनके पास अब कोई मुद्दा ही नही था इस बात पर बहस करने के लिए।  

पूनम जी वहां से उठ गई और अपने घर में चली गई।  अंदर जाकर उन्होंने अपनी कुछ जरूरत का सामान कपड़े लिए और चौधरी साहब की तस्वीर लेकर बाहर आ गई।

पुरुषोत्तम आगे आया और बोला ... अगर तुम चाहो तो यहां रह सकती हो मुझे कोई दिक्कत नहीं। लेकिन तुम्हे यहां अब महारानी नही नौकरानी बनकर रहना होगा।

पूनम ने जलती हुई आंखो से उसे देखा और बोली ... चौधरी की बीवी हूं, इतना काबिलियत है की अपनी बेटी को पाल सकती हूं।

पुरुषोत्तम ... कहां जाओगी इसे लेकर ?  इस बाहरी दुनिया को तुम जानती नही , एक से बढ़कर एक गिद्ध पड़े हुए है बाहर को तुम्हे और तुम्हारी इस नन्ही सी जान को नोच खाएंगे।

पूनम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ... जब  अपने खुद के घर में भेड़िए पड़े हों तो बाहर के गिद्धों से क्या डर.... कहकर वो वहां से अपना सामान लेकर चली गई।

गांव के बंजर जमीन पर एक कुटिया बनाई और वहीं रहने लगी... दिन भर बाहर मजदूरी करती तब जाकर कहीं पेट भर खाना मिलता ,लाडली भी पहले से काफी कमजोर हो गई थी।

इसलिए अब वो भी बीमार रहने लगी।एक लड़की को बुखार हो गया, पूनम उसे लेकर बाजार के एक डॉक्टर के पास गई।  

डॉक्टर ने दावा दिया। , और उसका अच्छे से ख्याल रखने को कहा... पूनम लाडली को लेकर घर आई उसे कुटिया में सुला कर ।गांव के एक घर जहां से लाडली के लिए दूध लेती थी उसके पास गई।

पूनम ने ग्वाले से दूध के लिए कहा .... ग्वाला ने पैसे मांगे ,पूनम बोली .. भाई साहब आज लाडली की तबियत बहुत खराब थी, जो पैसे थे सब उसके दवा में खर्च हो गए।

मैं कल आपको पैसे दे दूंगी..

ग्वाला ...  कहां से लाओगी पैसे आप ? कौन देगा आपको पैसे ? देखिए यही हमारी रोज़ी रोटी है ... हम अगर ऐसे ही उधारी देते रहे तो  हमारे बच्चे भूखे मरने लगेंगे  !

उसकी बातों ने पूनम के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई थी।      कितनी मतलबी दुनिया है ये जिंदगी भर मेरे पति ने सारे गांव वालो को अपनी संतान की तरह माना ।

और आज ये लोग उन्ही के परिवार को अपना नही समझते। वो अपनी कुटिया में आई और रणधीर के तस्वीर को गले से लगाकर रोने लगी। 

पूनम ...  क्यूं चले गए आप हमे छोड़कर , देखिए आपकी लाडली किस हाल में है, कोई नही हमारा यहां, ना जाने कब तक यूं ही रोते रोते उनकी आंख लग गई और वो सो गई।

अगले दिन सुबह ....

सुबह होते ही पूनम जी की आंख खुली उन्होंने देखा अभी तक लाडली उनसे चिपक कर सो रही है। वो यू ही बैठी कल की बात सोचने लगी।

आखिर कब तक वो ऐसे ही। मजदूरी करेंगी ? गांव में मजदूरी करके उन्हें मिलेगा क्या , सिर्फ दो वक्त की रोटी बस और कुछ नहीं।

इससे वो लाडली की परवरिश कैसे करेंगी, उसकी पढ़ाई लिखाई, और सब का खर्चा कहां से आएगा , फिर उन्हे अपने भाई की याद आई,

उन्होंने अपना सामान पैक किया और अपने मायके के लिए निकल गई। उनका मायका काफी संपन्न था, हालांकि उनके माता पिता की मृत्यु हो चुकी थी।

और मायके में उनका इकलौता भाई कमलेश और भाभी सुमित्रा जी रहते थे।पूनम जी पैदल ही अपने मायके के लिए निकल पड़ी ,

पास में इतने भी पैसे नही थे की कोई सवारी गाड़ी में बैठ जाएं, चील चिलाती धूप में किसी तरह अपने मायके पहुंची।

वहां उनके भाई ने जब अपनी बहन को देखा तो झट से बाहर गेट पर आए और उनके हाथ से लाडली को थाम लिया।

पूनम की भाभी ने उन्हें संभाला , उन्हे खिलाया पिलाया और संभाला , उनके भाई के भी दो बेटे थे, पूनम ने अपनी सारी आपबीती अपने भाई भाभी को बताया।

जिसके बाद  उनके भाई ने उन्हें अपने यहां ही रहने के लिए कहा, लेकिन पुनम एक स्वाभिमानी औरत थी, मायके में रहकर खाना उनके स्वाभिमान के खिलाफ था।

इसलिए वो अपने भाई भाभी से बोली ...  मैं कोलकाता जाना चाहती हूं । मेरे पति का वहां  कारोबार था, मैं उसे संभालना चाहती हू और आगे बढ़ाना चाहती हू.

जिसपर उनके भाई भाभी ने विरोध जताते हुए कहा ... नही पूनम तुम अकेली औरत एक अनजान शहर में क्या करोगी।

वो भी कोलकाता जैसे बड़े शहर में, जमाना इतना खराब है सब क्या कहेंगे की , एक बहन का भी खयाल नहीं रख पाया मैं। 

और अगर तुम्हे या लाडली को कुछ हो गया तो मैं चौधरी साहब को ऊपर जाकर कौन सा मुंह दिखाऊंगा।

अपने भाई की बात सुनकर पूनम बोली... भैया कब तक मैं जमाने के डर से मायके में बैठी रहूंगी,! क्या जमाना मुझे खाना देने आएगा या फिर , जमाने के लोग मेरी लाडली की परवरिश करेंगे ।

पूनम के भाई ....  हम है न पूनम, हम तुझे और लाडली को कोई कमी नहीं होने देंगे ।

अपने पति की बात सुनकर पूनम जी के भाभी का मुंह बन गया । वो मन ही मन बोली ... हे प्रभु अब ये कौन सी नई बला भेज दिया आपने मेरे मत्थे पर। इस आदमी को जरा सी सद्बुद्धि दीजिए।

अपनी  भाभी का  बिगड़ा मुंह देखकर पूनम को सब समझ आ रहा था पर वो कुछ नही बोली ... और अपने भाई से कहने लगी।

पूनम ...  मैं जानती हूं भईया आप हमे कोई कमी नहीं होने देंगे लेकिन  मुझे अपनी लाडली का भविष्य सुधारना है। उसे पढ़ा लिखकर कुछ बनाना है।

जिसके लिए मुझे कोलकाता जाना ही होगा .! तभी पूनम जी की भाभी बीच में बोल पड़ी ...

सुमित्रा ... ठीक ही तो कह रही है पुनम ! ये गांव में रहकर लाडली को एक अच्छी परवरिश कैसे दे पाएगी,। गांव में अच्छे स्कूल है ही कहां ,? शहरो में एक से एक स्कूल है। वहां अगर लाडली पढ़ेगी तो जरूर अपने जीवन में कुछ बन पाएगी। ।

कमलेश जी भी अब क्या ही करें!  पूनम के इतना ज़िद करने के बाद आखिर कर उन्होंने अपना मान मारकर हां कह दिया। और बोले .. 

ठीक है अगर तुमने मन बना ही लिया है तो अब मै नही रोकूंगा तुम्हे । बताओ कब चलना है।

पूनम ने हल्का से मुस्कुराया और बोली . ! मैं अकेली जाऊंगी भईया। उसकी बात सुनकर कमलेश जी नाराज होते हुए बोले ... 

ये क्या बात हुई पूनम ,  तुमने जाने के लिए कहा मैने माना नहीं किया लेकिन यूं अकेली तुम इतनी दूर एक अनजाने शहर में कैसे जाओगी। 

पूनम ...  आजकल तो अपने भी अंजान हो गए है भईया ! फिर वो तो शहर ही अंजान है! जबतक मैं अपनी पहचान नहीं बनाऊंगी कोई कैसे जानेगा मुझे। 

और ये लड़ाई मेरी अकेली की है। मैं इसे अकेले लड़ लुंगी ।बस आप लोगो की एक मदद की जरूरत थी।

सुमित्रा ...  मदद के नाम पर मन ही मन भगवान से मानने लगी की ,कहीं पूनम जी पैसे न मांग ले ,वरना उसका निठल्ला पति तुरंत निकाल कर दे देगा।

उसके चेहरे को पूनम ने एक नजर देखा और बोली ... मैं चाहती हू आप लोग कुछ दिनों के लिए मेरी बेटी लाडली को अपने पास रख लें।

आप लोगो के पास रहेगी तो मुझे उसकी काम चिंता रहेगी। मैं जैसे ही वहां सेटल हो जाऊंगी मैं अपनी बेटी को अपने साथ ले जाऊंगी।

कहकर मेरे चुप हो गई। उसकी बात सुनकर कमलेश जी बोले... इसमें कौन सी बड़ी बात है पूनम , लाडली हमारी इकलौती भांजी है हम उसे अपने पलकों पर बिठा कर रखेंगे।

तूं इसकी बिलकुल चिंता मत करना । है ना सुमित्रा .. उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा ... सुमित्रा ने मन मार कर कहा ... हां हां बिल्कुल  !  क्यू नही, 

पूनम में एक हल्का सा मुस्कुरा दी । उसके बाद उसने अपनी बेटी को अपने गोद में लिया .! और उसे चूमने लगी,उनकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगे।

एक मां ही समझ सकती है उसपर क्या गुजरती है जब उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी बच्ची को छोड़कर उससे दूर होना पड़ रहा है।

पहली बार पूनम अपनी बच्ची को छोड़कर कही जा रही थी। लाडली को देखकर उनका कलेजा बाहर आने को हो रहा था। वो ईश्वर से प्रार्थना करने लगीं उनकी बेटी सही सलामत रहे ।

उसके बाद सबसे विदाई लेकर वो कोलकाता के लिए निकलने वाली थी। वो जब जाने को हुई लाडली दौड़ते हुए उनके पास आई और उनके पैरो को पकड़ कर रोने लगी।

पूनम जी ने उसे जैसे तैसे बहकाया और जल्दी से वहां से निकल गई। कमलेश जी उन्हे स्टेशन तक छोड़ने आए थे। उन्होंने पूनम को कुछ पैसे दिए। और उनका टिकट कटवाया।

कुछ देर बाद स्टेशन पर ट्रेन आई और पूनम जी ट्रेन में जाकर बैठ गई ... जैसे जैसे ट्रेन आगे बढ़ रही थी पूनम जी का जी एकदम भारी होता जा रहा था।

उन्हे चौधरी साहब की याद आई। आज अगर वो होते तो पूनम जी को कभी ये दिन न देखना पड़ता। आज उन्हे अपनी लाडो से अलग न होना पड़ता।

यूं ही पूरे रास्ते रोते रोते उनका सफर कट रहा था। और मंजिल नजदीक आ रही थी।




आगे जारी है ,....

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