अब तक हम ने पढ़ा की लूसी और रोवन की सगाई तो हो गई थी लेकिन लूसी गन चलाने की प्रेक्टिस के लिए किशनगंज जाने के लिए अपने घर में ज़िद करती है तो भाभी उसे डांट कर चुप करा देती है। नाराज़गी से अपने आप को कमरे में बंद किया तो उसे उसी बच्ची ने दीदी कह कर पुकारा। वो खिड़की पर बैठी रो रही थी।
उसे देखते ही लूसी अपनी नाराज़गी भूल कर हक्का बक्का सी उसके क़रीब आई और उसे हाथ पकड़ कर नीचे खड़ा किया। उसके आंसु अपने हाथों से साफ कर के बोली :" तुम कहां चली गई थी?...और और ये रो क्यों रही हो क्या हुआ है मुझे बताओ तो सही!"
बच्ची ने बड़ी बेचैनी और बदसुकुनी में कहा :" मैं मरने के लिए छत से कूद गई थी। मुझे लगा था के मैं भगवान जी के पास चली जाऊंगी लेकिन जब मेरी आंख खुली तो मैंने अपने आप को बादलों में लिपटा हुआ पाया और फिर नीचे वापस आ गई। दीदी!...भगवान के पास जाने के लिए कोई अलग रास्ता है क्या? मैं उन्हें जा कर सब बताऊंगी वो मेरी बात ज़रूर सुनेंगे!"
लूसी ने उसे गले लगा लिया और सर पर हाथ फेरते हुए दबी दबी आवाज़ में बोली :" मुझे भगवान के घर जाने का रास्ता तो नहीं पता लेकिन तुम्हारी बातें मैं भी सुन सकती हूं! मुझे बताओ शायद इस से तुम्हारा दिल हल्का हो जाए!... मैं तुम्हारे लिए कोई न कोई रास्ता निकाल लूंगी मुन्नी!"
" झुमकी!... सब मुझे झुमकी बुलाते थे। ( वो फिर से फूट फूट कर रोई और हिचकियां लेते हुए बोली) मुझे किसी आदमी ने मारा दीदी! मेरे बदन में अभी दाग नहीं है लेकिन उसने मेरा पूरा बदन नोच कर फाड़ डाला था। मुझे मार कर एक पुराने कब्रिस्तान में फेंक दिया जहां अब लोगों को दफनाया नहीं जाता और अब वो जगह जंगल में बदल गया है। मुझे नहीं पता के मैं अब भी यहां क्यों हूं! मरने के बाद मैं भगवान जी के पास क्यों नहीं गई?....दीदी मुझे तकलीफ हो रही है। मुझे नहीं रहना यहां।"
बच्ची के इस बेचैनी भरी बातों से लूसी का दिल थर्रा उठा और उसके आंसु फूट पड़े। उसने झुमकी का हाथ पकड़ा और छत की ओर जाने लगी। छत पर जा कर उसने दुलाल को आवाज़ लगाना शुरू किया। कुछ देर इंतज़ार के बाद दुलाल आया और बोला :" तुमने मुझे यहां फिर से क्यों बुलाया?....और ये कौन है?
लूसी ने झुमकी को दिखाते हुए कहा :" मुझे इस बच्ची के बारे में सब जानना है। ये तुम्हारी तरह ही एक हमज़ाद है लेकिन ये बहुत ज़्यादा बेचैन है। इसकी बातें अलग है। मैं समझ नहीं पा रही हूं।"
दुलाल ने पूछा :" कैसी बातें ?
लूसी ने वोही सब बताया जो झुमकी ने अभी कुछ समय पहले उसे बताया था। बताने के बाद उसने कहा :" क्या झुमकी की हम कुछ मदद नहीं कर सकते?"
दुलाल ने बच्ची को गौर से देखा फिर कहा :" ये हमज़ाद एक नादान बच्ची है इस लिए उसे लग रहा है की इसकी हमज़ाद के साथ जो कुछ हुआ वो सब इसी के साथ हुआ इस लिए ये इतनी बेचैन है।...ये बच्ची दो जिस्म एक जान समझ रही थी लेकिन असल में तो ये सिर्फ जान है!... इसका अलग जिस्म तो है लेकिन इसके खमीर में आग पानी हवा है पर आसमान ज़मीन नही है। इसे सुकून तभी पड़ेगा जब इसके हमज़ाद के गुनाहगार को सज़ा मिलेगी! वो ज़रूर आज़ाद घूम रहा होगा! अगर रोवन पार्कर ने मेरे हमज़ाद के कातिलों को उनके किए की सज़ा न दी होती तो मैं भी इसी तरह बेचैन भटकता रहता!"
ये सारी बातें सुन कर लूसी बिलकुल असमंजस में पड़ गई। आखिर वो कैसे किसी को सज़ा दिलाए? ये सवाल उसके दिमाग में सेंध लगाने लगाने लगा। उसने एक बार बच्ची की आंसुओ से भरी धुंधली आंखों को देखा तो दिल में जज़्बात और गुस्सा एक साथ भड़क उठा। उसने गुस्से में कहा :" आखिर कौन हो सकता है वो शैतान!.....दुलाल क्या तुम इसकी कुछ मदद नहीं कर सकते?.... देखो मेरी शादी होने वाली है और मैं पहले से बहुत उलझी हुई हूं। अगर मैं इन सब में बिज़ी नहीं होती तो झुमकी के साथ उसके कातिल को ढूंढने निकल जाती!"
दुलाल :" मैंने तुमसे पहले भी कहा था मैं सिर्फ रोवन पार्कर की मदद करूंगा! मुझसे किसी मदद की उम्मीद मत रखो। मैं तुम्हारे सवालों का जवाब देता हूं यही बहुत बड़ी बात है।"
" अरे लेकिन रोवन सर की मदद करो या मेरी एक ही बात है। वो मेरे हसबैंड!... मेरा मतलब है की होने वाले हसबैंड हैं तो मेरी प्रोब्लम उनकी प्रोब्लम है। तुम समझे की नहीं?"
लूसी ने उसे समझाते हुए कहा।
वे दोनों इसी तरह बात कर ही रहे थे कि झुमकी ने सुध बुध खो कर छत पर दस ग्यारह इंच की लंबाई तक निकले हुए रॉड पर तेज़ी से जा कर गिर गई जो उसके पेट में घुस कर पीठ में निकल आया था। और फिर उसी तेज़ी से उठ कर छत से कूद पड़ी।
लूसी के मुंह से एक चीख निकल पड़ी " झुमकी नहीं!"
फिर दौड़ कर छत से नीचे की ओर झांक तो वो सफेद रेत सी बन कर ऊपर की ओर उड़ गई।
ये सब देख कर उसकी रूह कांप उठी। वो कांपते हुए कदमों से मुड़ कर जाने लगी तो दुलाल ने कहा :" मुझे उसके कातिल का पता लगाने के लिए बच्ची की मदद चाहिए होगी लेकिन वो तो बादलों में चली गई! जब वो आयेगी तब मैं कोशिश करूंगा!"
लूसी रोई हुई आवाज़ में बोली :" थैंक्स!"
अपने कमरे में आ कर वो बहुत रोई। आजतक उसे लगता था के उसे इस खास शक्ति का वरदान मिला है लेकिन अब उसे लग रहा था के ये वरदान नहीं बल्कि अभिशाप है। दुनिया के साथ साथ उसे वो दुनिया भी दिख रही है जिस से सभी लोग बिलकुल अंजान बैठे हैं। दोनों दुनियां को देखना अब उसे भयानक लगने लगा था।
रात के समय वो उदास हो कर अपने बिस्तर पर पड़ी थी। आंखों में झुमकी का इस तरह खुद को कष्ट देना बार बार घूम रहा था। इस उलझन में वो असाइनमेंट भी नहीं लिख पा रही थी। मोबाइल की घंटी बजी। देखा तो रोवन का मैसेज था। उसने लिखा था " कल वेडिंग ड्रेस पसंद करने के लिए तुम यहां आ रही हो। हम किसी बहाने से गन लेने चले जायेंगे तुम देख लेना के उस गन को इस्तेमाल कर पाओगी या नही!"
सुबह जब भाभी को पता चला के वे लोग लूसी को लेने आ रहे हैं तो उन्होंने बड़बड़ाना शुरू कर दिया :" कोई ज़रूरी है क्या दुल्हन की पसंद का ही ड्रेस हो! ये अमीर लोगों के फालतू के चोंचले खत्म नहीं होते। सगाई होने के बाद दुल्हा दुलहन को मिलने नही दिया जाता है और उन्हें देख लो मरे जा रहे हैं मिलने के लिए! बस बहाना चाहिए!"
लूसी अपने कमरे से उनकी बातें सुन सकती थी। लेकिन उसने नज़र अंदाज़ किया और तैयार हो कर बाहर आई। साथ में कियान भैया भी जा रहे थे। उधर से रोवन का भांजा आर्यन अपने ड्राइवर के साथ लेने आया था।
किशनगंज पहुंच कर उसने जल्दी जल्दी में एक ड्रेस पसंद किया। उस शो रूम में रोवन भी था। उन्हें कियान भैया को भटकाने के लिए एक बहाना चाहिए था। शो रूम से बाहर निकलते हुए आर्यन ने ज़िद लगा दिया के नानी ने आपको घर बुलाया है। उसी बीच लूसी ने कहा के उसे एक ज़रूरी फाइल लेने अपने लॉज जाना है जो वर्षा के पास रह गई है। दोनों के ज़िद में कियान मजबूर हो कर बोला :" हां ठीक है लेकिन दोनों जगह जाने में रात हो जायेगी फिर वापस भी तो जाना है।"
उनके बीच रोवन ने कहा :" आप आर्यन के साथ मां से मिलने चले जाइए मैं लूसी को उसके लॉज लेकर जाता हूं! इस तरह समय बच जायेगा।"
कियान का दिल नहीं मान रहा था के लूसी को उसके होने वाले पति के साथ अकेले भेजे। वो अब भी खामोश था। उसे कंफ्यूज देख कर लूसी ने उसके कान में कहा :" वहां रौशनी भी है। मैं ने रूमी से कहा था उसे बुलाने को!"
रौशनी की बात सुनते ही कियान का मन एक दम अचानक खिल उठा और आर्यन के साथ चल पड़ा।
लूसी रोवन के कार में जा कर बैठी। उसके दिल में अजीब सी उथल पुथल मची जब रोवन साथ आ कर बैठा। दोनों खामोश थे। रास्ते में लूसी ने नज़रे चुराते हुए और अपनी उंगलियों को आपस में उलझाते हुए कहा :" आप ठीक तो है ना! अब ज़ख़्म में पेन तो नहीं होता?
रोवन ने रास्ते पर नज़र टिकाए हुए जवाब दिया :" मैं ठीक हूं! हम घर पहुंच गए!"
वो दोनों एक महल जैसे घर के सामने रुके जिसका मेन गेट किसी शाही दरवाज़े से कम न था। लोहे के भारी भरकम दरवाज़े पर बड़ा सा ताला लगा हुआ था। रोवन ने जेब से चाबी निकाली और ताला खोलने लगा। उसके साथ लूसी ने दरवाज़े को धक्का लगाया और दोनों अंदर गए।
(अगला भाग जल्द ही)