उत्तर प्रदेश,
गाँव के मुखिया चौधरी रणधीर के घर आज लोगों की भीड़ लगी हुई थी। पूरा घर जगमगा रहा था, घर के आंगन में औरतें सोहर गीत गा रही थीं। और बड़े बुजुर्ग आंगन में बैठकर हुक्के बाजी कर रहे थे।
शादी के 10 साल बाद रणधीर चौधरी को एक बेटी हुई थी, जिसके लिए उन्होंने ना जाने कितने देवी-देवताओं के मत्थे टेक थे।
आज उसी लड़की का नामकरण था, इसलिए गाँव के हर सदस्य को न्योता दिया गया।
पंडित जी ने पूजा अर्चना की सभी देवी-देवताओं, कुल देवता आदि की पूजा की, उसके बाद बिटिया का नाम रखा गया -
"पृथ्वी," यानी साक्षात धरती माँ।
लड़की के नामकरण के बाद सभी गाँववालों को भोजन कराया गया, पूरे गाँव में मिठाई बांटी गई और ब्राह्मणों को भर-भर के दान-दक्षिणा दी गई।
चौधरी साहब आज बहुत खुश थे, होते भी क्यों नहीं? इतने सालों बाद उनके सिर से बांझ का धब्बा हटा था। उनकी बेटी में जान बसी थी।
वो प्यार से पृथ्वी को लाडली कहकर बुलाते थे। चौधरी साहब का कोलकाता में छोटा सा कारोबार था, जिसके लिए उन्हें कभी-कभी वहां जाना पड़ता था।
जन्म के पहले चौधरी साहब ने कोलकाता में भी काली माँ से मन्नत मांगी थी कि उन्हें एक संतान हो जाए। गंगा मैया के आगे हाथ जोड़ा था, कि अगर उन्हें कोई भी संतान हुई तो वे उसे गंगा मैया की गोद में देंगे।
सबकुछ बीत जाने के बाद चौधरी जी अपनी बेटी लाडली और पत्नी पूनम के साथ कोलकाता पहुंचे। अपनी मन्नत पूरी करने के लिए।
कोलकाता पहुंचकर उन्होंने परिवार सहित मां काली के दर्शन किए। फिर नाव में बैठकर गंगा मैया को इस पार से उस पार माला चढ़ाई और अब बारी थी बेटी को गंगा मैया की गोद में देने का।
पूनम का जी एकदम भारी हो गया था, मन्नत तो मान दिया पर अब बेटी को गंगा में कैसे डाले? अगर उसे कुछ हो गया तो?
नाव बीच में पहुंच चुकी थी, चौधरी जी ने पूनम की गोद से लाडली को मांगा। उसने इनकार कर दिया, भला वह कैसे अपनी बेटी को गंगा में फेक दे? उनके जिगर का टुकड़ा।
उनकी आंखों में पानी आ गया। चौधरी जी ने प्यार से उन्हें समझाया, "कुछ नहीं होगा हमारी लाडो, ये खुद गंगा मैया का उपहार है।"
पूनम जी ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर लाडली को चौधरी साहब को दे दिया। चौधरी साहब ने बच्ची को नाविक को थमाया।
और नाविक ने बच्ची को झटके से उठाकर गंगा में पटक दिया। पूनम जी तुरंत चिल्ला पड़ी, "लाडो।"
चौधरी साहब ने पूनम जी को संभाला, जोर जोर से रोने लगी। इधर गंगा मैया ने लाडली को अपने गोद में से ऊपर भेज दिया और वह ऊपर आ गई। नाविक ने लाडली को पानी में से अपने गोद में लिया और मुस्कुराते हुए उसे पूनम जी की तरफ बढ़ा दिया।
पूनम जी ने जब सामने रोटी हुई लाडली को देखा, तो उनके जान में जान आई। उन्होंने झट से लाडली को अपने कलेजे से लगा लिया।
चौधरी साहब और पूनम ने गंगा मैया को हाथ जोड़कर नमन किया, और घाट के किनारे आ गए।
इसी तरह समय बीतने लगा और लाडली बड़ी होने लगी, वह गाँव में सबसे प्यारी और चंचल बच्ची बन गई थी। चौधरी साहब ने उसे बड़े प्यार से पाला था।
तीन साल बाद,
चौधरी साहब किसी काम से कोलकाता गए हुए थे। अपने घर पर आकर उन्होंने पूनम जी को फोन किया और हाल-चाल लिया।
लाडली ने अपने पिता से तुतला कर बोला, " पापा, आप तब आओ दे।"
चौधरी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "बहुत जल्दी मेरी लाडो। मेरी लाडली को पापा से क्या चाहिए?"
लाडली: "मेले साले थिलौने पुलाने हो गए हैं। निया चाहिए पापा।"
"ठीक है मेरा बच्चा। पापा बच्चा के लिए ढेर सारे खिलौने लाएंगे!" कहकर चौधरी जी ने फोन रखा।
वह पीछे मुड़े ही थे कि उनके सामने उनके बड़े भाई पुरुषोत्तम खड़े थे, जिनके हाथ में इस समय बंदूक थी। और उन्होंने बंदूक चौधरी साहब के सामने तान दिया था।
अपने बड़े भाई को यूं अपने ऊपर बंदूक तान देखकर चौधरी साहब एकदम हैरान थे। उन्होंने पुरुषोत्तम से कहा,
"ये क्या है भईया।। ये बंदूक क्यूं है आपके हाथ में।" पुरुषोत्तम जी बोले, "कितने मासूम हो तुम रणधीर? मैं तुम्हारे सामने बंदूक तान खड़ा हूं फिर भी तुम मूर्खता भरा सवाल कर रहे हो।"
चौधरी साहब मुस्कुराते हुए बोले, "अपनों से कैसी चालाकी भाई साहब, जो आनंद मासूमियत में है वो धूर्तता में नहीं।"
पुरुषोत्तम: "ये गीता के लाइन किसी और को जाकर सुनाना मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं। हमारे पिता के हम दो बेटे थे, तुम छोटे हो फिर भी उन्होंने अपना सब कुछ तुम्हे सौप दिया।
एक ही कोख से जन्म लेने के बाद भी तुम राजा की तरह रह रहे हो और मैं जीवन भर भिखारी की तरह। लेकिन अब नहीं।
जो जीवन मैंने जिया है वो मैं अपने बच्चों को नहीं जीने दूंगा। मैं अपने बच्चों को उनका हक दिलाऊंगा।" कहकर पुरुषोत्तम ने चौधरी साहब पर गोली चला दी।
गोली लगते ही रणधीर जी जमीन पर गिर पड़े और छटपटाने लगे। लेकिन पुरुषोत्तम को कोई फर्क नहीं पड़ा। वह ऐसे ही वही खड़ा रहा जबतक की रणधीर जी इस दुनिया को छोड़ नहीं दिए।
इधर गांव में आज पूनम का जी एकदम भारी सा हो गया था। उन्हें सारी रात नींद नहीं आई। सुबह होते ही वह अपने घर से जब बाहर आई, तो देखा गांव के सारे लोग उनके घर के बाहर भीड़ लगाकर खड़े हैं।
सबकी आंखों में इस वक्त आंसू थे। पूनम जी हैरानी से सभीको देख रही थीं। उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। गांव की एक बुजुर्ग औरत उनके पास आई और रोते हुए बोली, "बहुत बड़ा अनर्थ हो गया चौधराइन। चौधरी साहब की किसीने गोली मारकर हत्या कर दी।"
उनकी बात सुनते ही पूनम जी के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। वह बदहवास सी जमीन पर बैठ गई।
इधर लाडली की भी नींद खुल गई थी, उसने जब अपने पास अपनी मां को नहीं पाया, तो वह सीधा। घर के बाहर आ गई।
उसने बाहर बहुत से लोगों को खड़े देखा और अपनी मां को रोते हुए देखकर वह घबरा कर अपनी मां के गोद में जाकर बैठ गई।
उसके चेहरे को देखकर पूनम और तेज से रोने लगीं। उन्होंने लाडली को खुद से चिपका लिया और फूट-फूटकर रोने लगी।
गांव के कुछ लोगों ने कोलकाता जाकर वही चौधरी जी का दाह संस्कार किया। तेरह दिनों बाद ब्राह्मण भोज कराया गया। चौधरी साहब को मरे अभी एक महीने भी नहीं गुजरे थे।
पूनम जी तो पूरी तरह से सदमे से निकली भी नहीं थीं, तभी एक नया तूफान उनके सामने आ खड़ा हुआ, पुरुषोत्तम नाम का।
पुरुषोत्तम ने पूरे गांव को इकट्ठा किया और पंचायत समिति की बैठक हुई। जिसमें सभी पंचों के सामने पुरुषोत्तम ने अपनी बात रखी।
पुरुषोत्तम: "गांववालो, जैसा कि आप सभीको पता है, मेरे छोटे भाई रणधीर चौधरी को गुजरे महीने भर बीते हैं। इसलिए मैं आप सभीके सामने कुछ दिखाना चाहता हूं।"
फिर उसने सारे गांववालों के सामने एक कागज दिखाया और बोला, "ये कागज रणधीर के जायदाद और उसके मकान का है, जो उसने हमारे नाम कर दिया है।"
गांववालों में खलबली मच गई। सब जानते थे पुरुषोत्तम कितना नीच इंसान था, ऐसे कोई गलत काम नहीं जो उसने ना किया हो, इसलिए तो उसके पिता ने उसे जायदाद से बेदखल कर दिया था।
कोई उसकी बात मानने को तैयार नहीं था। तभी उसने कहा, "मुझे पता था तुम सब मेरी बात को कभी नहीं मानोगे, इसलिए मैं पुलिस को साथ लेकर आया हूँ।"
कहकर उसने एक इशारे किया और कुछ पुलिस वाले वहां आ गए। पुरुषोत्तम ने उन्हें कागज दिखाया और गांववालों को पढ़कर बताने को कहा।
पुलिस ने कागज पढ़कर कर गांववालों से बताया कि इस कागजात के अनुसार आज से 5 साल पहले ही रणधीर ने अपनी सारी जमीन और जयादाद अपने बड़े भाई पुरुषोत्तम और उनके बेटों के नाम कर दी थी।
क्योंकि उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। इसलिए उनके मरने के बाद उनके सारी संपत्ति पर उनके बड़े भाई का अधिकार होगा।
पुरुषोत्तम की बात सुनकर सभा में बैठे सारे लोग एकदम से दंग हों गए ,"
आगे जारी है ,,