वो जो अपना सा लगे R B Chavda द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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वो जो अपना सा लगे

रुशाली अपनी खिड़की के पास बैठी थी, बाहर हल्की बारिश हो रही थी, और आसमान पर बादल घुमड़ रहे थे। उसके मन में एक अजीब सी खामोशी थी, जो बारिश की उस हल्की-हल्की खनक के साथ और गहरी होती जा रही थी। दिल के कोने में छुपा एक सपना था—सपनों का शहजादा, जो कभी रुशाली के ख्वाबों में तो कभी उसके खयालों में आता-जाता रहता था। उसे अक्सर लगता था, "क्या कभी ऐसा कोई होगा जो उसे समझ सके, जो बिना बोले ही उसके दिल की बात जान ले?"

रुशाली एक ऐसे इंसान की तलाश में थी, जो जिंदगी के सफर में उसका हमसफर बन सके। उसने कभी किसी से ज्यादा उम्मीद नहीं की, बस इतना चाहा कि जो भी आए, उसका सपनों का शहजादा हो। जो सिर्फ उसका हमसफर नहीं, बल्कि उसका साथ निभाए, उसके हर कदम पर साथ चले। रुशाली का सपना किसी बड़े शहर में रहने वाले अमीर शहजादे का नहीं था, बल्कि एक सीधा-सादा इंसान, जो दिखने में बिलकुल साधारण हो, जो दूसरों की मदद करता हो, और जो बिना बोले समझ जाए कि रुशाली क्या सोच रही है।

रुशाली अपने सपनों को हर रोज खुद से बांटती थी, लेकिन कभी किसी से कह नहीं पाई। हर रात जब वो अपने सपनों में खो जाती, उसे लगता कि कहीं न कहीं दुनिया के किसी कोने में उसका शहजादा भी उसी के इंतजार में है। लेकिन फिर उसे एक सवाल सताता, "जब वो सामने आएगा, तो क्या मैं उसे पहचान पाऊंगी?"

एक दिन, रुशाली अपनी पुरानी दोस्त अंजलि की शादी में गई। शादी में रुशाली का मन बिलकुल नहीं लग रहा था। सब लोग हँसते-खेलते दिख रहे थे, लेकिन रुशाली अपने सपनों की दुनिया में खोई हुई थी। उसे लग रहा था कि ये सब दिखावा है, असली खुशी तो तब मिलेगी जब उसका सपनों का शहजादा उसके सामने होगा। शादी की रस्मों के बीच, रुशाली एक कोने में जाकर बैठ गई। वहीं, एक हल्का सा ठंडा झोंका उसके चेहरे को छूकर गुजरा, और रुशाली ने अपने आस-पास देखा।

उसने देखा एक लड़का, जो दिखने में बिलकुल साधारण था, लेकिन उसकी मुस्कान में एक अजीब सा सुकून था। वो लड़का सबसे अलग था। ना तो वो शादी के शोर-शराबे में रुचि ले रहा था, और ना ही अपने फोन में उलझा हुआ था। वो शांत था, लेकिन उसकी आँखों में एक गहराई थी। रुशाली उस लड़के को देखते ही रह गई, मन में एक अजनबी सा एहसास हुआ।

थोड़ी देर बाद, अंजलि की माँ ने उस लड़के को रुशाली से मिलवाया। "ये मयूर है, मेरे पति का भतीजा," अंजलि की माँ बोली। मयूर से मिलते ही रुशाली को लगा जैसे उसके मन का बोझ हल्का हो गया हो। मयूर से बात करते हुए रुशाली को ऐसा लगा जैसे वो पहले से उसे जानती हो। मयूर की बातों में एक सादगी थी, लेकिन हर बात में एक सोच, एक गहराई थी।

जैसे-जैसे दिन बीतता गया, रुशाली और मयूर के बीच बातें बढ़ती गईं। रुशाली को समझ नहीं आया कि वो मयूर से इतनी आसानी से बात कैसे कर पा रही थी, जैसे सालों से दोनों एक-दूसरे को जानते हों। मयूर भी अपनी कहानियाँ सुनाता, अपने सपने और अपनी सोच साझा करता। उसकी हर बात रुशाली के दिल के कोने में घर कर जाती थी।

एक दिन मयूर ने कहा, "रुशाली, तुम्हें कभी लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में जो लोग हैं, वो तुम्हें समझते नहीं हैं?"

रुशाली एक पल के लिए चुप हो गई, क्योंकि यही बात उसके सपनों के शहजादे के लिए थी। उसने धीरे से कहा, "हाँ, लगता है। कभी-कभी हम जितना कहना चाहते हैं, उतना कोई समझ नहीं पाता।"

मयूर मुस्कुराया और बोला, "मैं समझ सकता हूँ।"

रुशाली को लगा जैसे मयूर सच में उसके दिल की बात जान गया हो। अजीब था, लेकिन मयूर की हर बात रुशाली के दिल तक पहुँचती थी। फिर रुशाली के मन में एक सवाल आया, "क्या यही मेरा सपनों का शहजादा है?"

दिन बीतने लगे, रुशाली और मयूर की दोस्ती और गहरी होती गई। मयूर का स्वभाव बहुत ही मददगार था। वो हमेशा रुशाली की मदद करता, बिना कुछ कहे, बिना किसी बात के। उसे कभी बोलना नहीं पड़ता, मयूर उसकी हर छोटी-बड़ी बात समझ जाता। हर बात में, हर चेहरे में, मयूर वही इंसान लगता जो रुशाली अपने सपनों में देखती थी।

लेकिन रुशाली के मन में एक उलझन थी। क्या वो मयूर से अपने दिल की बात कहे? क्या मयूर भी उसके लिए वैसे ही सोचता था जैसे रुशाली सोचती थी?

एक दिन, रुशाली ने अपने सपने का ज़िक्र मयूर से किया। "मयूर, क्या तुमने कभी किसी को बिना बोले समझा है? जैसे कि तुम्हें पता हो कि सामने वाला क्या सोच रहा है?" रुशाली ने धीरे से पूछा।

मयूर ने थोड़ी देर चुप रहने के बाद कहा, "हाँ, जब तुम्हारे साथ होता हूँ, तो ऐसा लगता है। तुम कुछ बोलो या ना बोलो, तुम्हारे चेहरे से, तुम्हारी आँखों से सब कुछ समझ लेता हूँ।"

रुशाली का दिल एक पल के लिए धड़क उठा। उसे लगा कि यही वो पल है जिसका इंतजार था।

फिर मयूर ने धीरे से कहा, "रुशाली, मैं तुम्हें कभी अपनी पूरी दुनिया नहीं बनाना चाहता, लेकिन तुम मेरी दुनिया का वो छोटा सा हिस्सा बन गई हो जो सबसे खास है। तुम मेरी हमसफर हो सकती हो, अगर तुम चाहो तो।"

रुशाली की आँखों में आँसू आ गए। उसे समझ आ गया था कि मयूर वही इंसान है जिसे वो अपनी जिंदगी में चाह रही थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे तुम्हारी दुनिया नहीं बनना, मुझे बस तुम्हारी दुनिया का एक छोटा सा हिस्सा बनना है, जिसे हमसफर कहते हैं।"

और इस तरह, रुशाली को उसका सपनों का शहजादा मिल गया। एक ऐसा इंसान, जो बिना बोले ही उसका दिल समझता था, जो सीधा-सादा था, जो हर कदम पर उसका साथ देने को तैयार था, और जिसके साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना अब रुशाली का सपना नहीं, हकीकत बन गया था।

रुशाली और मयूर के बीच की दोस्ती अब एक नए रिश्ते में बदल चुकी थी, लेकिन इसके साथ ही एक नई जिम्मेदारी भी आई। एक दिन दोनों नदी किनारे बैठे हुए थे, जब मयूर ने रुशाली की ओर देखा और कहा, "हमारा सफर सिर्फ आज तक का नहीं है, ये पूरी जिंदगी का है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव आएंगे, कभी हम खुशियों में खिलखिलाएंगे, तो कभी मुश्किलें भी होंगी, पर मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा, जैसे एक साए की तरह। तुम मेरी दुनिया का हिस्सा हो, और इस हिस्से के बिना मेरी दुनिया अधूरी है।" रुशाली ने मयूर का हाथ थामा और मुस्कुरा दी, जैसे उसने अपने सपनों का शहजादा नहीं, बल्कि अपने जीवन का हमसफर पा लिया हो—वो, जो सच में अपना सा लगे।