वो पहला इज़हार R. B. Chavda द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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वो पहला इज़हार

साक्षी और आरव की दोस्ती में एक अलग ही गर्माहट थी। वो दोनों बचपन से एक-दूसरे के सबसे करीबी दोस्त थे। आरव अपनी ज़िंदगी को सरलता से जीने वाला लड़का था। साक्षी को उसकी यही सादगी और मासूमियत पसंद आई थी। धीरे-धीरे उसकी ये पसंद प्यार में बदल गई, लेकिन उसने इसे कभी जाहिर नहीं किया। वो जानती थी कि आरव की ज़िंदगी में पढ़ाई और करियर ही सबसे बड़ी प्राथमिकता थी।

वो दोनों कॉलेज में थे, और आरव अपने करियर को लेकर बहुत ज़्यादा फोकस्ड था। साक्षी हर दिन उसे देखती, उसकी बातें सुनती, और उसे समझने की कोशिश करती। लेकिन जितना वो आरव के करीब जाती, उतना ही वो खुद को और अकेला महसूस करती। उसके दिल में प्यार का गुबार था, पर दिमाग कहता था कि शायद यह रिश्ता सिर्फ दोस्ती तक ही सीमित रहेगा।

एक दिन, साक्षी ने अपनी सबसे करीबी दोस्त मीरा से बात की। "मीरा, मैं आरव से प्यार करती हूं। लेकिन मुझे डर है, अगर मैंने उसे बता दिया तो हमारी दोस्ती टूट जाएगी।"

मीरा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "साक्षी, अगर तुम अपने दिल की बात नहीं कहोगी, तो क्या तुम्हें खुशी मिलेगी? प्यार एक खूबसूरत एहसास है, और अगर वो सच में तुम्हारा अच्छा दोस्त है, तो वो इसे समझेगा।"

साक्षी ने कुछ देर सोचा और फिर निर्णय लिया कि वो आरव से बात करेगी। अगले दिन, उसने आरव को शाम के समय कॉलेज के बगीचे में बुलाया। दोनों अक्सर वहीं बैठकर बातें किया करते थे।

शाम की हल्की ठंडक और पेड़ों की सरसराहट में साक्षी का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। आरव हमेशा की तरह सहज था, मगर साक्षी के चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था।

"क्या हुआ साक्षी? तुम इतनी चुप क्यों हो?" आरव ने उसे गौर से देखते हुए पूछा।

साक्षी ने गहरी सांस ली, उसकी आवाज़ थोड़ी कांप रही थी, लेकिन उसने हिम्मत जुटाकर कहा, "आरव, मैं तुमसे कुछ बहुत ज़रूरी बात करना चाहती हूं। ये बात मैं बहुत समय से अपने दिल में छुपाए बैठी हूं। और आज मैंने सोचा कि इसे तुम्हारे सामने कह दूं।"

आरव थोड़ा गंभीर हो गया, उसने साक्षी की आंखों में देखा और बोला, "तुम कह सकती हो, मैं सुन रहा हूं।"

साक्षी ने धीमे स्वर में कहा, "मैं तुमसे प्यार करती हूं, आरव। मैंने बहुत बार इसे नजरअंदाज करने की कोशिश की, लेकिन अब मैं इसे और दबा नहीं सकती। मुझे नहीं पता कि तुम क्या सोचते हो, लेकिन ये मेरे दिल की सच्चाई है।"

आरव की आंखों में एक हल्की हैरानी आई। वो कुछ पल के लिए चुप रहा, मानो वो साक्षी के शब्दों को समझने की कोशिश कर रहा हो। उसके चेहरे पर एक शांत सी मुस्कान आई, लेकिन वो मुस्कान दुख भरी थी।

"साक्षी," उसने धीरे से कहा, "तुम मेरे लिए हमेशा एक बहुत खास दोस्त रही हो। लेकिन मैं तुम्हें उस नजर से नहीं देखता। मैं तुमसे झूठ नहीं बोल सकता। मेरे दिल में तुम्हारे लिए वो भावना नहीं है।"

साक्षी की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उसने उन्हें रोकने की कोशिश की। वो समझ गई थी कि उसके दिल की बात ने एक अनकही दूरी बना दी है।

"मैं जानता हूं कि यह सुनना आसान नहीं होगा," आरव ने आगे कहा, "लेकिन मैं तुम्हारी सच्चाई की कद्र करता हूं। तुम बहुत अच्छी हो, और मुझे यकीन है कि तुम किसी ऐसे इंसान को पाओगी जो तुम्हारे प्यार के काबिल होगा। लेकिन मैं... मैं इस वक्त अपने करियर और परिवार पर ध्यान देना चाहता हूं। मेरे पास किसी रिश्ते के लिए जगह नहीं है।"

साक्षी ने धीरे से सिर हिलाया। वो चाहती थी कि यह पल कभी न आए, पर अब वह सामना कर रही थी। उसने आरव से कुछ नहीं कहा, बस उसकी ओर देखती रही।

आरव ने उसकी चुप्पी तोड़ने की कोशिश की, "हम अभी भी दोस्त हैं, साक्षी। मैं नहीं चाहता कि यह हमारी दोस्ती को बदले।"

लेकिन साक्षी जानती थी कि अब चीजें कभी पहले जैसी नहीं रहेंगी। कुछ रिश्ते बस दोस्ती की सीमा में ही अच्छे होते हैं, और जब आप उस सीमा को पार करने की कोशिश करते हैं, तो चीजें बदल जाती हैं।

उस दिन के बाद, साक्षी ने धीरे-धीरे खुद को आरव से दूर कर लिया। वो जानती थी कि उसका प्यार एकतरफा था, लेकिन उसने अपनी भावनाओं का सम्मान करना सीखा। उसने अपना ध्यान अपने सपनों और करियर पर लगाया। आरव हमेशा उसकी जिंदगी का एक हिस्सा रहेगा, लेकिन अब वो उसका केंद्र नहीं था।

समय बीतता गया, और साक्षी ने खुद को नया आयाम दिया। वो जान गई कि प्यार किसी को बांधना नहीं, बल्कि उसे आज़ाद करना है। कभी-कभी, खुद से प्यार करना ही सबसे बड़ा प्यार होता है।

"जब तुमने मुझे ठुकराया, तब मैंने खुद को अपनाया।"