शाम का समय,
सिद्धांत का घर,
शांतनु ने देखा कि माहौल कुछ ज्यादा ही भारी हो रहा है इसलिए उसने बात को बदलते हुए कहा, " अच्छा, ये सब छोड़ो, ये बताओ कि एडमिशन कहां लिया है ! "
यश ने कहा, " इग्नू में । "
लक्ष्मी ने मुस्करा कर कहा, " ये तो और भी अच्छा है ! "
शांतनु ने उसकी ओर देख कर कहा, " कैसे ? "
लक्ष्मी ने कहा, " भाई, दोनों दोस्त इग्नू से पढ़ रहे हैं तो ये दोनों सब कुछ एक साथ कर लिया करेंगे और फिर MSc भी साथ में कर लेंगे । "
इससे पहले कि कोई और कुछ कहता, सिद्धांत ने कहा, " हू टोल्ड यू दैट ! "
लक्ष्मी ने उसकी ओर देख कर कहा , " नो वन ( किसी ने नहीं ) । "
सिद्धांत ने पेपर साइड में रखते हुए कहा, " देन हाऊ कैन यू से दैट ( तो आप ऐसा कैसे कह सकती हैं ) ? "
लक्ष्मी ने कहा , " क्योंकि हमें पता है कि तुम MSc करोगे । "
सिद्धांत ने तुरंत कहा, " ना, हम M. Tech करेंगे । "
लक्ष्मी ने कहा , " बच्चा, उसके लिए पहले B. Tech करना होता है । "
सिद्धांत ने खड़े होते हुए कहा, " जस्ट लीव दिस टॉपिक । "
फिर उसने मिसेज माथुर की ओर देख कर कहा, " माता श्री, हम कोचिंग सेंटर जा रहे हैं । "
शांतनु ने बैठे हुए ही सिद्धांत की टी शर्ट को हल्के से खींच कर कहा, " हेलो ब्रदर ! "
सिद्धांत ने उसकी ओर देख कर कहा, " व्हाट ? "
शांतनु ने कहा, " तुम शायद भूल रहे हो कि आज सन्डे है । "
सिद्धांत ने अपने कंधे झटक कर कहा, " तो क्या हुआ, हम मंदिर चले जा रहे हैं । "
इस बार लक्ष्मी ने कहा, " हालत देखो अपनी, इस हालत में कहीं जाना जरूरी है क्या ! "
सिद्धांत ने उसकी ओर देख कर कहा, " दीदी, आई वांट सम पीस ऑफ माइंड और वैसे भी ज्यादा दूर नहीं जा रहे हैं । बस यहां कुंड तक ही जाएंगे । "
लक्ष्मी फिर से कुछ बोलें को हुई ही थी कि इतने में मिसेज माथुर ने कहा, " ठीक है, जाओ । "
सिद्धांत ने कहा, " थैंक यू, माता श्री । " और बाहर चला गया ।
उसके जाने के बाद यश ने भी खड़े होते हुए कहा, " आंटी, हम भी चलते हैं । "
मिसेज माथुर ने कहा, " हां, जाओ । "
ये सुन कर यश बाहर की ओर जाने के लिए मुड़ा ही था कि इतने में मिसेज माथुर ने फिर से कहा, " और सिड का अच्छे से ख्याल रखना । "
ये सुन कर यश के कदम जहां के तहां रुक गए । उसका चेहरा ऐसा हो गया जैसे कि उसकी चोरी पकड़ी गई हो ।
उसने अपने चेहरे पर नासमझी के भाव लाकर मिसेज माथुर की ओर पलट कर कहा, " आंटी, हम कुछ समझे नहीं । "
मिसेज माथुर के होठों पर मुस्कान आ गई । उन्होंने खड़े होते हुए कहा, " हमें पता है कि तुम्हें सिड की फिक्र है और तुम उसी के पीछे जा रहे हो । "
फिर उन्होंने यश के कंधे पर अपना हाथ रख कर कहा, " और हम चाहते हैं कि तुम उसके पीछे जाओ, उसका ख्याल रखो क्योंकि अगर उसके भाई बहन उसके पीछे गए तो एक बार के लिए वो उनको मना भी कर सकता है लेकिन तुम उसके दोस्त हो और ऊपर से तुमने उसकी जान भी बचाई है ।
इसलिए वो तुमसे कुछ नहीं कहेगा और ना ही तुम्हें मना करेगा । "
यश ने हां में सिर हिला दिया और बाहर चला गया ।
कुछ देर बाद,
सिद्धांत सूर्य कुंड की सीढ़ियों पर लेटा हुआ था । उसके सिर पर पट्टी थी इसलिए उसने अपने सिर के नीचे अपना हाथ लगा रखा था ।
वहां ठंडी हवाएं चल रही थीं और सिद्धांत अपनी आँखें बंद किए हुए इस प्राकृतिक हवा को महसूस कर रहा था और वहां के प्राकृतिक संगीत को सुन रहा था ।
तभी वहां पर यश भी आकर बैठ गया । उसकी आहट से सिद्धांत ने अपनी आँखें खोल दीं तो यश उसे ही देख रहा था ।
सिद्धांत ने अपनी भौंहें उठा दीं तो यश ने सामने की ओर इशारा करके कहा, " प्रकृति के इतने पास होकर भी उसका इतना अच्छा व्यू मिस कर रहे हो तुम ! "
सिद्धांत ने भी अपनी गर्दन उस ओर घुमाई तो इस वक्त सूर्य ढल रहा था । उसकी लालिमा पूरे आसमान में फैली हुई थी जो देखने भर से इंसान को सुकून मिल जाए ।
ढलते सूर्य का प्रतिबिंब जो पानी में बन रहा था उससे उस जगह की शोभा और भी बढ़ रही थी । आसमान में पंछी अपने अपने घर की ओर वापस लौट रहे थें ।
वो दृश्य इतना सुंदर था कि सिद्धांत उठने लगा । यश ने उसके कंधों को पकड़ कर उसे सहारा दिया तो सिद्धांत अच्छे से बैठ गया ।
सिद्धांत ने सामने देखते हुए ही यश से कहा, " तुम यहां क्यों आए ? "
यश ने कहा, " बस ऐसे ही, आने का मन किया तो आ गए । "
सिद्धांत ने आगे कुछ नहीं कहा तो यश ने कहा, " सिड ! "
सिद्धांत ने कहा, " हम्म ! "
यश ने कहा, " क्या तुम हमसे दोस्ती करोगे ? "
सिद्धांत ने एक नजर उसकी ओर देखा और फिर सामने की ओर देखते हुए कहा, " अगर हम तुम्हें दोस्त नहीं माने होते तो तुम हमें सिड कह कर बुला ही नहीं पाते और ना ही हमारे साथ यहां बैठे हुए होते ! "
यश ने मुस्करा कर कहा, " थैंक यू, सिड ! "
सिद्धांत ने सामने देखते हुए ही कहा, " हमसे दोस्ती करने का पहला रूल, नो सॉरी एंड नो थैंक यू ! "
यश ने उसी मुस्कान के साथ कहा, " ओ के ! "
फिर वो दोनों कुछ देर तक वहीं चुपचाप बैठे वहां के प्राकृतिक सौंदर्य को देखते रहें । फिर सिद्धांत उठ खड़ा हुआ तो यश भी खड़ा हो गया और वो दोनों ही घर की ओर बढ़ गए ।
वो दोनों घर से कुछ दूर ही थें कि इतने में यश के फोन पर कोई मैसेज आया । उसने मैसेज चेक किया तो भरत ने उसे मैसेज किया था जिसमें लिखा था, " सिड को लेकर घर आओ । "
वो अपने फोन में मैसेज देख रहा था तो वहीं सिद्धांत ने जैसे ही घर के बाहर एक कार खड़ी देखी, उसे तुरंत समझ आ गया कि अंदर फिर से कोई उसकी सेवा करने वाला है ।
उसने चिढ़ कर खुद से ही कहा, " आज का साला दिन ही खराब है । "
यश ने ये सुन कर कहा, " क्या हुआ सिड ? "
सिद्धांत ने एक गहरी सांस लेकर कहा, " होना क्या है, बड़ी दीदी आई हैं । "
इतना बोल कर सिद्धांत अंदर की ओर चला गया । वहीं यश को उसकी बात का मतलब समझ नहीं आया इसलिए वो कन्फ्यूजन में अपनी ही जगह पर खड़ा रह गया लेकिन जैसे ही उसे होश आया वो अंदर की तरफ चला गया ।
उसने अंदर जाकर देखा तो एक लड़की ने सिद्धांत के कान पकड़ रखे थें और सिद्धांत अपने कान छुड़ाने की कोशिश करते हुए कह रहा था, " दीदी, छोड़िए न दर्द हो रहा है । "
उस लड़की ने एक हरे रंग की साड़ी पहनी हुई थी । उसके गले में मंगलसूत्र और मांग में सिन्दूर था और उसका चेहरा काफी हद तक मिसेज माथुर से मिल रहा था ।
यश को कुछ समझ नहीं आया तो वो भरत के पास चला गया जो अपने सामने का तमाशा देख कर हंस रहा था ।
यश ने उनसे सवाल करते हुए कहा, " ये कौन हैं पापा ? "
भरत ने कहा, " ये, सिद्धांत, शांतनु और लक्ष्मी की बड़ी बहन, काव्या ! "
फिर यश ने शांतनु के पास खड़े एक लड़के की ओर इशारा करके कहा, " और ये ! " उस लड़के ने अपनी गोद में एक बच्चे को किया हुआ था ।
भरत ने कहा, " ये काव्या का पति है, युगल और उसके गोद में उसका पांच महीने का बेटा है, ओम ! "
ये सुन कर यश ने फिर से सामने देखा तो युगल चुपचाप शांतनु के पास खड़ा था और काव्या अच्छे से सिद्धांत के कान खींच रही थी ।
उसने अपने दांत पीस कर कहा, " तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमसे इतनी बड़ी बात छिपाने की ! "
सिद्धांत ने नौटंकी करते हुए कहा, " अरे, सॉरी बोला तो ! "
काव्या ने कहा, " तुम्हारे सॉरी बोलने से क्या होगा, हां ! तुम्हारा बस चलता तो हमें कुछ पता ही नहीं चलने देते, वो तो अच्छा हुआ कि हमने खुद ही दोपहर में मम्मी को फोन कर लिया, वरना हमें कुछ पता ही नहीं चलता । "
उसे ऐसे डांट पड़ते हुए देख ओम कर रोने लगा जिसे सुन कर सबका ध्यान उसकी ओर चला गया और काव्या की पकड़ सिद्धांत के कान पर ढीली पड़ गई ।
सिद्धांत ने जैसे ही ओम के रोने की आवाज सुनी उसने उसकी ओर जाते हुए काव्या से कहा, " बस, रुला दिया न बच्चे को ! "
ये सुन कर युगल के मुंह से निकला, " हां ! "
तो वहीं काव्या ने अपनी कमर पर हाथ रख कर कहा, " उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ! "
उसकी बातों से सिद्धांत को कोई फर्क नहीं पड़ा । उसने युगल के हाथों से ओम को लिया और बालकनी की ओर बढ़ गया । वो जाते हुए ओम से बातें भी कर रहा था ताकि उसका मन बहल जाए ।
उसके जाते ही सब जोर से हंस पड़े लेकिन काव्या ने मुंह बना लिया ।
उसे ऐसे देख कर मिसेज माथुर ने कहा, " तुम भी किसकी बातों का बुरा मान रही हो, जानती हो न कि वो कैसा है । "
काव्या ने उनकी ओर देखा तो अब उसके चेहरे पर गुस्सा और चिढ़ नहीं बल्कि फिक्र नजर आ रही थी । उसने टेंशन के साथ कहा, " इसीलिए तो फिक्र होती है मम्मी ! "
मिसेज माथुर ने नासमझी से कहा, " मतलब ! "
काव्या ने एक नजर उस ओर डाली जिधर सिद्धांत गया था और फिर कहा, " वो हमेशा अपने होठों पर मुस्कान रखता है, हर बात को मजाक में ले लेता है और सोचता है कि उसके अंदर जो भी तूफान चल रहा है उसके बारे में किसी को पता नहीं चलेगा लेकिन हम तो सब जानते हैं न ! "
मिसेज माथुर ने नासमझी से कहा, " तुम कहना क्या चाहती हो ? "
काव्या ने कहा, " कहीं अपनी तकलीफ भूलने के चक्कर में वो अंदर ही अंदर घुटता न रह जाए । हमें डर है मम्मी कि कहीं हम हमारे इस हंसमुख से सिड को न दें । "
ये कहते हुए उसकी आँखों में आंसू आ गए थे । मिसेज माथुर ने उसे गले लगा कर कहा, " ये सब सोचना बंद करो । ऐसा कुछ नहीं होगा । "
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क्या होगा सिद्धांत और यश की इस दोस्ती का अंजाम ?
क्या है काव्या के इस चिंता की वजह ?
आगे क्या होगा इस कहानी में ?
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,
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लेखक : देव श्रीवास्तव