"पता है मीरा, तुम यक़ीन नहीं करोगी!! चाचाजी मेरा एडमिशन कनाडा के सबसे जाने-माने आइस हॉकी इंस्टीट्यूट में करा रहे हैं!! मेरा बचपन का सपना था यह। लेकिन मेरे पास ठीक-ठाक प्रॉपर्टी सही, इतना कैश तो नहीं ही था कि अब्रॉड जाकर इतनी महंगी ट्रेनिंग का सोचूं। वह भी तब, जब बच्चे 12-13 साल की उम्र से ही खेलने लगते हैं। अब मुझे स्पोर्ट्स में करियर बनाने से कोई नहीं रोक सकता। मैं ख़ुद कनाडा जाकर सब देखकर और एडमिशन की फॉर्मलिटीज़ पूरी करके आ रही हूं। इट्ज़ बियॉन्ड इमेजिनेशन। बस यहां से जाते समय मेरा फोन खो गया था। नया लेना होगा। " वह चहक रही थी और मैं समझ गई थी, उसे न सगाई का पता है और न शादी का। फोन भी नहीं था उसके पास।
सगाई का सुनकर वह एक पल को शॉक्ड हो गई थी। यही हार, बस यही मैं उसके चेहरे पर देखना चाहती थी। थोड़ी देर पहले की उसकी खुशी ग़ायब हो चुकी थी।
अब उसका अगला कदम क्या होगा. मैं इसी डर में घि
रीपर उम्मीद के ख़िलाफ़ उसने खामोशी से अपनी पैकिंग की थी और तीन दिन बाद ही दोबारा कनाडा रवाना हो गई थी। मेरी शादी तक रुकी ही नहीं थी।
मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था, मैं मिसेज़ मीरा शर्मा बनकर सुहाग की सेज पर बैठी थी। तरुण मेरा था, बस मेरा।
और सच बताऊं तो इसी वजह से मैंने फैमिली प्लानिंग
वगैरह का भी नहीं सोचा। न जाने क्यों अनजाने अंदेशों
के साये मुझे घेरे रहते थे। इसीलिए अगले ही साल एक
प्यारी सी बेटी तारा की मां भी बन गई थी। अब हमारी
फैमिली पिक्चर परफेक्ट थी। और मेरे सारे वसवसे शांत
हो चुके थे।
सब-कुछ सही चल रहा था। हमारी शादी को पांच साल होने आए थे। लेकिन अब मुझे इस बोरिंग लाइफ से ऊब होने लगी थी। मैं चिड़चिड़ी, अनमनी सी रहने लगी थी। इरा का सोच सोचकर ईर्ष्या होती थी। वह देश- विदेश की जानी-मानी हॉकी प्लेयर बन चुकी थी, न सिर्फ आइस हॉकी बल्कि फील्ड हॉकी में भी नेशनल लेवल पर खेल रही थी और मैं घर बैठी बच्चा सम्भाल रही थी बस। मेरे मम्मी-पापा मेरे बजाय उसके नाम से जाने जाते थे। टीवी पर इंटरव्यू देते समय वे गर्व से फूले नहीं समाते थे कि उनकी भतीजी इतना नाम कमा रही है, अनाथ बच्ची के सपने पूरे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
मुझे लगता था मैं तरुण को जीतकर बाक़ी सब हार बैठी हूं इरा से। लेकिन आज तो मैं पूरी तरह ही ढह गई। आज न जाने कैसे तरुण अपना सीक्रेट कम्पार्टमेंट लॉक करना भूल गया। मैंने उसमें झांका तो इरा की तमाम फोटोज़, इंटरव्यू, आर्टिकल थे। साथ ही एक डायरी, जिसमें तरुण ने अपने दिल की हर एक बात लिखी थी कि कैसे उसे पहली बार इरा की बोल्ड, कॉन्फिडेंट पर्सनैलिटी से प्यार हुआ। किस स्पोर्ट में उसका कौनसा मूव उसे इम्प्रेसिव लगता था से लेकर इरा की पसन्द, नापसंद हर चीज़ उसमें दर्ज थी। तरुण ने कभी मुझसे नहीं पूछा था, मेरा फेवरेट कलर, मूवी, सॉन्ग, फूड पर इरा के बारे में सब पता था।
यह भी लिखा था, कैसे मेरे पापा ने बताया कि वह कनाडा जाकर ट्रेनिंग लेकर प्रोफेशनल करियर बनाना चाहती है, इसलिए उसे लगता है कि उसका प्यार इरा के करियर में रुकावट नहीं बनना चाहिए।
आख़िरी पेज पर यह भी लिखा था कि मीरा एक आइडियल पत्नी की खूबियों वाली लड़की है और मम्मी-पापा को बहुत पसन्द है। किसी से तो करना ही है शादी तो मीरा से ही क्यों नहीं। वह इरा की जगह नहीं ले सकती लेकिन मैं ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियां उसके प्रति ज़रूर निभाऊंगा, उसे कोई दुःख नहीं पहुंचने दूंगा।"
मीरा फूट-फूटकर रो दी। ज़िद, अहंकार और बेवजह के हार-जीत के इस खेल में उसके हाथ क्या आया था?
इस बार उसने अपना दिल टटोला, अब जबकि उसे तरुण से बेहद प्यार था, तरुण की डायरी के आख़िरी पेज पर लि
खा था-
"प्यार कहां किसी का पूरा होता है प्यार का तो पहला अक्षर ही अधूरा होता है..."
तकिया बादस्तूर भीग रहा था।