प्यार में हार....... 2 pooja द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्यार में हार....... 2

और इस कारण इरा की 'बुराइयां' और उभरकर सामने आतीं। लड़कों जैसी रहती है, लड़कों के साथ रहती है। आवारा, मुंहफट है एक नम्बर की। पैसों का नशा है इसलिए बेचारी मीरा को कुछ नहीं समझती। ऐसी तेज़- तर्रार लड़कियां कभी हंसती-बसती नहीं रह सकतीं। जब जवानी का जोश ठंडा होगा, बुढ़ापे में पछताएगी।


जबकि हक़ीक़त में इरा एक सीधी-सादी, मिलनसार, सच्ची, मददगार, नर्मदिल लड़की है। बस उसे बातें बनाना, मक्खन लगाना, अपना काम निकालना नहीं आता था। लेकिन उस समय तो मुझे यह सब बातें दिखती ही नहीं थीं। बस अपनी जीत पर ख़ुशी होती थी। एक अघोषित मुकाबला था, जो उसके और मेरे बीच चलता था, जिसकी उसे ख़बर भी नहीं थी।



तरुण हमारे कॉलेज का सबसे पॉपुलर लड़का था। वजह वही सब थीं जो एक परफेक्ट लड़के में होना चाहिये। टाल, डार्क, हैंडसम, पढ़ाई में होशियार, गिटार का माहिर, सुरीली आवाज़, बढ़िया स्पोर्ट्स प्लेयर और सबसे बढ़कर, अमीर बाप की इकलौती औलाद।


क्या मुझे तरुण से प्यार था, नहीं, बिल्कुल नहीं। मेरा लक्ष्य बिल्कुल साफ़ था। मुझे इंडिया में रहना ही नहीं था। अमेरिका, लंदन या यूरोप बेस्ड किसी करोड़पति एनआरआई की दुल्हन ही बनना था। इसलिए लड़कों के मामले में ट्रैक रिकॉर्ड सही होना भी ज़रूरी था। इसलिए तरुण में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

स्पोर्ट्स में एक जैसे शौक़ रखने के कारण इरा से तरुण की बढ़िया जमती थी। अक्सर वे लोग साथ घूमते दिख जाते थे। तरुण पढ़ाई के सिलसिले में मेरी भी हेल्प करता था और मैं उसकी। एक तरह से वह हमारा म्युचुअल फ्रेंड था। लेकिन एक दिन जब हम मेरे घर पर ग्रुप स्टडी कर रहे थे, इरा, तरुण के अलावा चार दोस्त और भी थे। पर बार-बार तरुण की बेचैन निगाहें जिस तरह इरा को ढूंढ़ती और उसके चेहरे पर ठहर रही थीं, मुझसे छिपा नहीं रह सका था।


मैंने फिर से अपने दिल को टटोला। क्या मुझे तरुण से प्यार होने लगा था? जवाब अब भी वही था। मुझे तरुण से प्यार नहीं था लेकिन उसने मेरी जगह इरा को कैसे पसन्द कर लिया? यह सोच सोचकर मेरे तन-बदन में आग लग गई थी। सिर फटा जा रहा था। पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था।


नहीं, मैं इरा से ऐसे हार नहीं सकती


उसी रात मैं अपने पेरेंट्स के पास गई और रो-रोकर अपना दुखड़ा सुनाया कि कैसे मुझे तरुण से बेइंतेहा प्यार है पर शायद इरा की नज़र भी तरुण पर है।


मेरे मम्मी-पापा ख़ुश भी हुए और चिंतित भी। ख़ुशी इस


बात की थी कि मैंने विदेश में बसने का इरादा त्याग दिया था। वे अपनी इकलौती बेटी को अपने से इतना दूर नहीं करना चाहते थे और फिर तरुण शर्मा इंडस्ट्रीज़ का इकलौता वारिस हर तरह से मेरे लिए परफेक्ट था। वहीं इरा वाली बात ने उन्हें परेशान कर दिया था। मुझे आश्वासन देकर उन्होंने सोने भेज दिया था।


फिर आनन-फानन में बड़ों के बीच सारे मुआमले तय पा गए। मुझ जैसी बेहद सुंदर, आकर्षक, पढ़ाई के साथ घर के कामों में भी अव्वल और वेल कल्चर्ड संस्कारी लड़की को बहू बनाना उनके लिए भी गौरव की बात थी, वहीं इरा के बारे में सुनकर वे थोड़ा बिदक गए थे।



हालांकि मेरे मन में अभी भी धुकधुकी थी कि तरुण किसी भी पल इन्कार कर देगा। इरा पूरा आसमान सिर पर उठा लेगी, लड़ेगी, झगड़ेगी। तरुण का मैसेज मैंने कांपते हाथों से खोला था, जिसमें उसने मेरी मर्जी पूछी थी और मैंने हां कहा था।


तमाम अंदेशों के बीच जब तरुण ने एक सादा से


फंक्शन में सगाई की अंगूठी पहनाई तो मुझे अपनी


क़िस्मत पर यक़ीन ही न हुआ। मुझे अब भी लग रहा


था, सगाई हुई है, शादी नहीं। मैंने तरुण का चेहरा पढ़ने


की कोशिश की। वह बस पूरा समय धीमे-धीमे मुस्कुरा


रहा था। शादी का मुहूर्त 15 दिन बाद का सुनकर हम


दोनों को आश्चर्य हुआ था, पर बोले कुछ नहीं थे। इरा


का कहीं कोई पता नहीं था और सच पूछो तो मैं जानना


भी नहीं चाहती थी।