यूँ तो कई मसले निज़ी किस्म के होते हैं पर कई बार वो बा- वजह या बेवजह बा - मतलब या शायद बे-मतलब की बातों में फंसकर बस उलझ कर रह जाते हैं।
दरअसल हम ख़ुशी से ज्यादा किसी और चीज को तवज्जो देने लगे हैं आजकल या फ़िर शायद हम पुराने को बस किसी तरह तोड़ने की जद्दोजहद में हैं या शायद कुछ है जो हम या तो समझ नहीं पा रहे हैं या शायद समझना ही नहीं चाहते हैं । कभी "कास्ट" तो कभी "रिलीजन" और गर इत्तेफाक से इन सबसे बच गए तो "मध्यम वर्गीय मूल्य_" अपनी तथाकथित संस्कृति_ का भीमकाय अवरोध खड़ा कर देते हैं ।
इतिश्री को दूर पहाड़ों में खुद का एक छोटा सा "कॉफी हॉउस " खोलना था और मुझे बस उसके साथ कुछ सपने बुनने थे। लाख कोशिश करने के बाद भी जब फैमिली ने साथ देने से मना कर दिया तो हम दोनों ने ही अपने-अपने सपने और एक दूसरे का साथ चुन लिया।
सब कुछ ठीक चल रहा था । मसलन उसके पसंदीदा राइटर के नॉवेल की पहली स्क्रीनिंग के लिए किस्मत से हमारा अधूरा बना हुआ कॉफी हॉउस पब्लिशर्स को काफी पसंद आ गया था । बाकी का काम हमें जल्द से जल्द खत्म करने को कहा गया। तारीख 14 फ़रवरी निर्धारित की गई थी। इसी सिलसिले में आज शाम उसे चकराता जाना था पर मौसम खराब था और नवम्बर की बर्फबारी ने रास्ते को पहले से भी अधिक मुश्किल कर दिया था। पर उसे तो बस जाना था, किसी भी कीमत पर और कैसे भी। काम के प्रति ऐसा समर्पण मैंने शायद ही कभी खुद में महसूस किया था।
वो चली गयी, हाँ बस चली गयी हमेशा-हमेशा के लिए; बिना कुछ कहे बिना कुछ सुने । हमारे सपनों का कॉफी हाऊस जैसे एक पल में बिखर सा गया हो। रात के तूफान ने मुझसे एक छड़ में जैसे सब कुछ छीन लिया हो। मैं क्षितिज़ पर अवाक सा खड़ा था या शायद कहीं शून्य में, मुझे ठीक–ठीक पता नहीं पर उसके जाने के बाद जीवन नीरस सा लगने लगा था।
पर वो सपने हमारे थे जिसे हमें पूरा करना था। क्या हुआ जो आज तुम मेरे पास नहीं हो। साथ तो तुम हमेशा से ही थी न। तुम्हारी बातों के सहज और भावुक स्पर्श आज भी तुम्हारे होने का एहसास दिलाते रहते हैं। आज पूरे दो साल हो चुके हैं हमारे कॉफी हॉउस को खुले हुए; ठीक तुम्हारे अठाईसवें जन्मदिन पर।
आज तुमसे न जाने क्यूँ ढेर सारी बातें करने का मन हो रहा है। मैं सीढ़ी से भागता हुआ उस कमरे में आ गया जहाँ तुम्हारा फेवरेट नॉवेल "चाय का आखिरी घूँट" खिड़की से आ रही तेज हवा से थोड़ा खुल सा गया था। मैंने अलमारी को धीरे से खोला और नॉवेल को उठाकर अंदर बस रखा ही था कि अचानक हवा के एक तेज़ झोंके ने तुम्हारे कपड़ों की भीनी खुशबू को पूरे कमरे में फैला दिया जो अभी तक उस अलमारी में ही बंद थी। एक पल को लगा कि जैसे तुम वहीं कहीं मेरे आस-पास ही खड़ी हो शायद ।