कहानी हमारी - 3 Shirley द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कहानी हमारी - 3

वृष्टि का अचानक से मेरे साथ ऐसा व्यवहार नजाने उसको क्या हुआ

कल रात जो तारों के नीचे एक अनजान केे साथ खुला आसमान देख रही थी वो आज मुझे ऐसा क्यू कह रही होगी भला 

मैं हिम्मत करके उसकी और बढ़ा

वो कह रही थी देखो तुम दूर रहो मुझसे समझे,,,,

मैं उसकी आँखों में देखते हुए उसका हाथ अपने हाथों में लेके मेरे सिने पर दिल के पास रखता हूँ 

वृष्टि जरा महसूस करो इस धड़कन को

देखो मेरी तरफ

क्या अभी भी तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें नुक्सान पोहचाऊंगा 

वृष्टि खामोश हो गयी थी फिर ,,,,,,, कुछ वक्त बात 

(अगस्त्य)

ठीक है मेरा यहां से चले जाना ही सही होगा ये कहकर मैं दरवाजे की और बढ़ा 

दरवाज़े तक पोहचा ही था की वृष्टि ने मुझे पीछे से पकड़ लिया,,, i am so sorry Agastya पता नहीं मुझे क्या हो जाता है अचानक से | मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था 

Please forgive me सब सही कहते हैं|

मैं मानसिक रूप से बीमार हूं मुझे दवाई ले लेनी चाहिए अभी ठीक हो जाउंगी देखो जब भी ऐसा कुछ होता है गुरुजी मुझे ये दवा देते हैं

ये सब वोह मुझे कहते हुए ही,मैंने पलट के उसे अपनी बाहों में ले लिया और उसे शांत करते हुए कहा कोई बात नहीं 

उसके बालो पर हाथ फेरते हुए कहा तुम ठीक हो ना और उसे शांत करने लगा 

मैंने वृष्टि को आराम करने कहा अपने बिस्तर पर वो लेट गयी और धीरे-धीरे अपनी आंखें बंद करने लगी फिर मैं वहां से बाहर निकला

दरवाज़े से बाहर निकलते वक़्त गुरुजी ने मुझे संदेह से देखा और अपने पास बुला लिया

( गुरुजी के साथ बाहर टहलते हुए )

गुरूजी :- क्या आप उसे पहले से जानते हैं वो भी बॉम्बे से आई है उसके दादा यहां के ट्रस्टी हैं और मेरे अच्छे दोस्त भी

अगस्त्य :- जी नहीं गुरुजी वो तो बस में,यहां से गुजर रहा था तो बस छोटी सी मुलाकात हो गई

गुरूजी :- हम्म, ये छोटी सी मुलाक़ात छोटी ही रहने दे अगस्त्य इसे मेरी सलाह समझो...

ये कहते हुए गुरुजी वहा से निकल गए ............

मैंने उनकी बातें सुनी और हल्के से हस्ते हुए कहा शायद नया नियम है आश्रम का आपस में बात ना करना

ये कहके मैं अपने कमरे की और चल पड़ा..

वृष्टि का मासूम सा चेहरा घबराया हुआ मेरे नज़रों के सामने आ रहा था

अगस्त्य अकेले ही शांत, मन में सोच रहा था,

सब वक्त का खेल है हम एक शहर में होने के बावजूद कभी आपस में टकराये नहीं और यहाँ इस अंजान जगह में यूं मिलना |

मेरी कोई फैमिली नहीं है फिर भी मुझे उनकी कमी महसूस होती है,

उनकी याद आती है वृष्टि ने तो अपनी आधी उम्र बिताई है परिवार के साथ उसका यूं परेशान होना सही है ऐसे में उसे किसी के साथ की जरूरत है बजाएं इसके, उससे दूर रहना ये कैसी सलाह है |

लेकिन इन सब बातों में ये बात समझ नहीं आई वृष्टि ऐसे क्यू बोल रही थी की मैं उसे मारने आया हूं क्या पहले ऐसा कुछ हुआ था | 

परिवार से दूर होना यह ट्रोमा इसके कारण आई है ना वो यहाँ फिर ये ऐसे क्यू बोल रही थी उसका ऐसा पैनिक करना

ये बातें बिल्कुल मेल नहीं खा रही थी......