कहानी हमारी - 2 Shirley द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कहानी हमारी - 2

हम चुपके से देख रहे थे गार्ड वहां से गया की नहीं.....

वही दूसरी और गार्ड भी वहाँ देख रहा था यहाँ कोई है तो नहीं या वेहम है,

उस वक्त वृष्टि मेरे इतने करीब थी उसकी सांसों की हलचल मुझे महसूस हो रही थी मैं मेरे मन में ये सोच रहा था, कि कुछ वक्त पहले जो चेहरा बिल्कुल अंजान था कैसे मेरे इतने करीब आ गया है

इतनी गहरी आँखें जिनमें बच्चों सी मासूमियत कुछ लोग अंजान होके भी खुद से ज्यादा करीब लगने लगते हैं उस वक्त कुछ ऐसा ही मुझे महसूस हो रहा था

गार्ड के जाते ही हम फोरन वहा से निकले मैंने वृष्टि को वापस अपने कमरे में छोड़ा दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और मैं भी अपने कमरे में लौट आया

सोते वक्त वही सब बातें याद कर रहा था रेडियो का वो गाना, वृष्टि की पहली झलक, एक साथ खुला आसमान देखना यहीं सब सोचते हुए गहरी नींद में डुब गया 

(अगले दिन)................

आश्रम के हर दिन की तरह इस सुबह भी व्यायाम,योग,गुरुजी से बात करके में अब ऐसे ही टहलते हुए उस कमरे के पास जाने लगा जहां वृष्टि अपने छोटे से puppy (pet) के साथ खेल रही थी मैने दरवाज़े पर दस्तक दी क्या मैं आ सकता हूँ 

वृष्टि ने जवाब में कहा अरे आप Mr...!!

अगस्त्य right आप आ सकते हैं

उस पल मुझे ये अंदाज़ा नहीं था कि कैसे आने वाला वक्त मेरे जिंदगी के सबसे हसीन पल के साथ ही सबसे मुश्किल भरा वक़्त बन जाएगा

मैं जाके वृष्टि के साथ बैठ गया और हम बातें करने लगे 

मैने वृष्टि से कहा..... वैसे आपको ठीक लगे तो कुछ पूछू 

उसने जवाब में कहा हाँ कहिये ना क्या बात है 

आप यहां इस आश्रम में हैं और कल आपका दरवाजा बाहर से बंद था..!!

वृष्टि :- दरअसल पिछले महीने मेरे मम्मी और डेडी बाहर फंक्शन में गए थे जहां से लौट ते वक्त उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया और उनके पीछे में और दादू बिल्कुल अकेले रह गए. मम्मी डेडी की जान बस्ती थी मुझमें तुमको पता है अगस्त्य मेरा प्यार किसी और में बटे ना इसलिए उन्होंने कभी दूसरा बच्चा प्लान नहीं किया उस रात के बाद में कभी सुकून से सोई नहीं हूं रातों मे

मेरे डिप्रेशन में जाने की वजह से दादू ने यहां इस आश्रम में कुछ वक्त गुजारने को कहा

ये सब सुनके मेरा दिल हल्का हो गया था मेरा इस दुनिया में परिवार के नाम पर कोई नहीं था उसकी तकलीफ़ मुझे समझ रही थी 

मैंने उसके बालो पर से हाथ फेरते हुए उसका हाथ अपने हाथ में लिया और उसे सांत्वना दी

पर वृष्टि दरवाज़ा यूं बाहर से बंद मुझे नहीं समझ आया

अगस्त्य इंसान जब बहुत ज्यादा परेशान होता है सबका अपना एक तरिका होता है एक्सप्रेस करने का मैं जब बहुत ज़्यादा परेशान होती हूँ तो मैं वही सब बातें सोचते-सोचते चलती रहती हूँ ना मंजिल की फ़िकर ना रास्ते का पता जबतक होश में ना आऊ मेरे कदम रुकते नहीं

ये सब बताते वक्त उसके चेहरे पर छायी उदासी, मैं देख पा रहा था उसका मूड चेंज करने के लिए मैंने बातें बदल दी, कुछ अपने बारे में भी बताया

बातों बातों में अचानक से एकदम वृष्टि के चेहरे के भाव बदल गए वोह संदेह से मुझे देखने लगी

उठो यहाँ से ,,,, उसके ऐसे कहते ही मैं चौंक गया 

क्या हुआ वृष्टि मेरी कोई बात बुरी लगी क्या 

सब समझती हूँ मैं, creepy smile करते हुए उसने कहा किसने भेजा है तुमको यहाँ तुम मुझे मारने आये हो ना 

मैं ये सब अचानक कुछ समझ नहीं पाया वृष्टि ऐसा कुछ नहीं है 

नहीं, झूठ बोलते हो तुम,,, 

उसकी शक भरी नज़रे,उसके अंदर भरा गुस्सा,

उसके साथ ही में देख पा रहा था डर से कापती हुई वोह,,,