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History of Kashmir.... - 4

# नवपाषाण काल (3000 ईसापूर्व से 1700 ईसापूर्व) वर्तमान श्रीनगर के करीब बुर्जहोम की बस्तियां थीं। यहां मिट्टी के बर्तन, पत्थर के औजार, शवों के दफनाने और खेती के सबूत मिलते हैं।

#बौद्ध शासक (250 ईसापूर्व से 5वीं शताब्दी)

250 ईसापूर्व में सम्राट अशोक का शासन आया। दूसरी शताब्दी में कुषाण वंश के सम्राट कनिष्क ने कश्मीर जीत लिया।

#कार्कोटा राजवंश (625 ईस्वी से 855 ईस्वी)

हिंदू राजा दुर्लभवर्धन ने इस राजवंश की शुरुआत की। ललितादित्य शासन कश्मीर का स्वर्ण युग माना जाता है।

# उत्पल राजवंश (855 ईस्वी से 1012 ईस्वी)

अवंतिवर्मन ने उत्पल वंश की स्थापना की। इस वंश की आखिरी शासक महारानी दिद्दा थीं।

# लोहार राजवंश (1003 ईस्वी से 1339 ईस्वी)

संग्राम राजा ने इसकी स्थापना की। उन्हीं के शासन में महमूद गजनी ने दो बार कश्मीर पर हमला किया, लेकिन विफल रहा।

# शाह मीर राजवंश (1339 ईस्वी से 1561 ईस्वी)

कश्मीर का पहला मुस्लिम राजवंश है। इसके बाद कुछ साल तक चक राजवंश रहा।

# मुगल साम्राज्य (1586 ईस्वी से 1752 ईस्वी)

मुगल सम्राट अकबर ने कश्मीर को अपने शासन में ले लिया। मुगलों के बाद कुछ साल दुर्रानी राजवंश रहा।

# सिख साम्राज्य (1819 ईस्वी से 1846 ईस्वी)

महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर को सिख साम्राज्य में शामिल किया। बाद में कश्मीर रियासत अंग्रेजों के हाथ लगी और उन्होंने राजा गुलाब सिंह को बेच दिया।


तारीख - 27 जून 1839

जगह- लाहौर का किला

सिख साम्राज्य के महाराजा रणजीत सिंह का शव चिता पर रखा है। महारानी महताब देवी उर्फ गुड्डुन नंगे पैर हरम से बाहर निकलीं। उनके साथ तीन और रानियां आईं। उन्होंने चेहरे पर कोई पर्दा नहीं किया था।

लेखक सर्बप्रीत सिंह अपनी किताब 'द कैमल मर्चेंट ऑफ फिलाडेल्फिया' में लिखते हैं, 'चारों महारानियां धीरे-धीरे सीढ़ियों के जरिए चिता पर चढ़ीं और महाराजा रणजीत सिंह के सिरहाने बैठ गईं। थोड़ी देर बाद 7 गुलाम लड़कियां शव के पैर की तरफ बैठीं।'

महाराजा के बेटे खड़क सिंह ने चिता में आग लगाई। 180 तोपों की आखिरी सलामी से माहौल गरज उठा। रणजीत सिंह के साथ उनकी 4 रानियां और 7 गुलाम लड़कियां भी भस्म हो गईं। उनके प्रधानमंत्री राजा ध्यान सिंह ने भी चिता में कई बार कूदने की कोशिश की लेकिन वहाँ मौजूद लोगों ने पकड़ लिया।

अकबर की नाराजगी से चक राजवंश का अंत:-

कश्मीर में बौद्धों और हिंदू शासकों के बाद मुस्लिम शासन आया। शाहमीरी वंश के जैनुल आबदीन ने करीब 50 साल तक कश्मीर पर खुशहाल शासन किया। हालांकि, वो अपने तीनों बेटों को लालची, शराबी और लम्पट मानता था। 12 मई 1470 को जैनुल ने आखिरी सांस ली और इसके बाद शाहमीरी वंश ढलने लगा। इसके बाद चक राजवंश का शासन शुरू हुआ। इस दौर में भी शिया-सुन्नी विवाद और हिंदुओं के धर्मांतरण का दौर चलता रहा।

1579 ईस्वी में यूसुफ शाह चक कश्मीर की गद्दी पर बैठा। वो कश्मीर के इतिहास के सबसे रूमानी किरदारों में से एक है। सुंदर सजीला और बांका यूसुफ एक बार कहीं जा रहा था। रास्ते में खेतों में केसर चुनती हब्बा खातून अपनी ही धुन में कोई दर्द भरा गीत गा रही थीं।

अशोक कुमार पांडेय अपनी किताब कश्मीरनामा में लिखते हैं, 'यूसुफ शाह हब्बा की खूबसूरती और उसकी आवाज के जादू में बंध गया और दिल दे बैठा। हब्बा उस वक्त एक गरीब किसान की बीवी थी। यूसुफ के आदेश पर किसान से फौरन तलाक दिलवाया गया और हब्बा बेगम बनकर श्रीनगर आ गईं।'

संगीत, शायरी और आशिकी में डूबे यूसुफ के खिलाफ विद्रोह हो गया। उसे गद्दी छोड़कर भागना पड़ा। उस वक्त मुगल बादशाह अकबर का साम्राज्य अपने उरोज पर था। यूसुफ ने 1580 में अकबर से आगरा में मुलाकात की।


अकबर ने उसकी मदद के लिए राजा मान सिंह को नियुक्त किया। मुगलों की मदद से यूसुफ लाहौर की तरफ बढ़ा। रास्ते में उसे पुराना वजीर मोहम्मद बट्ट मिला। दोनों ने मिलकर तय किया कि वो मुगल सेना की मदद लिए बिना कश्मीर पर कब्जा करेंगे, क्योंकि इनके साथ कश्मीर की जनता के खिलाफ होने का खतरा है। ये फैसला एक बड़ी गलती साबित हुआ।

यूसुफ शाह ने कश्मीर की गद्दी तो पा ली, लेकिन मुगलों को अंधेरे में रखने की वजह से अकबर नाराज हो गया। उसने यूसुफ को अपने सामने हाजिर होने के फरमान भेजे। न आने पर सैनिक भेजकर बंदी बना लिया और 1586 में अकबर के सामने पेश किया। उन्हें काफी वक्त तक कैद रखा गया। बाद में मान सिंह के कहने पर रिहा करके बिहार भेज दिया गया। 22 सितंबर 1592 को उसकी मौत हो गई।

यूसुफ के बेटे याकूब शाह को भी देश निकाला मिला।

अक्टूबर 1593 को चक वंश का यह आखिरी चिराग भी अपने पिता की कब्र के बगल में हमेशा के लिए सो
गया।

यूसुफ की याद में उसकी पत्नी हब्बा खातून जोगन बन गई। वो नंगे पांव यहां वहां भटकती और विरह के गीत गाती। कश्मीर में उसके गीत आज भी गाए जाते हैं।