बियोंड वर्ड्स : अ लव बॉर्न इन साइलेंस - भाग 12 Dev Srivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बियोंड वर्ड्स : अ लव बॉर्न इन साइलेंस - भाग 12


   रात का समय,

   नेशनल हाईवे,

   सिद्धांत के हाथ में गन देख कर गन वाले आदमी ने हकलाते हुए कहा, " बच्चे ! ये खे, खेलने वाली चीज नहीं है । "

   सिद्धांत ने वो गन पीछे लेते हुए कहा, " ओ रियली ! फिर चलो खेलने वाला काम ही करते हैं । "

   उन आदमियों ने नासमझी से कहा, " क्या मतलब ? "

   सिद्धांत ने उस गन की सारी गोलियां निकाल कर फेंक दीं । फिर उसने वापस से वो गन घुमाते हुए उन दोनों की ओर देख कर कहा, " अब हो गई, ये खेलने वाली बंदूक । "

   इस बार चाकू लिये हुए आदमी ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा, " ये तो तूने गलती कर दी मुन्ना ! तेरे पास गन थी और तूने उसे ऐसे ही जाने दिया । "

   फिर उसने अचानक से आगे बढ़ कर सिद्धांत के गले पर चाकू रख कर कहा, " पर अब, इसका क्या करेगा ? "
   
   इतना बोल कर वो दूसरे आदमी की ओर देखने लगा और बस इसी का फायदा उठा कर सिद्धांत उसके हाथ से चाकू छीन लिया । 
    
   सिद्धांत ने उस चाकू को तोड़ कर कहा, " तो अब हम हुए इक्वल - इक्वल । अब तुम दोनों डिसाइड कर लो कि पहले किसे लड़ना है । "

   उस आदमी ने कहा, " अब तक हम तुझे बच्चा समझ कर छोड़ रहे थें पर अब और नहीं ! अब तो तुझे भगवान भी नहीं बचा सकता । "

   सिद्धांत ने आस पास बेहोश पड़े हुए आदमियों को देख कर कहा, " अपने साथियों की हालत देखने के बाद भी तुम्हें ऐसा लगता है ! "

   दूसरे आदमी ने कहा, " ए, ये हमारा ध्यान भटका रहा है कूटो साले को ! "

   इतना बोल कर वो दोनों सिद्धांत की ओर दौड़ पड़ें । सिद्धांत ने भी अपनी गर्दन को झटका दिया और उन दोनों से भिड़ गया । उसके लड़ने का तरीका ही बता रहा था कि उसने मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग बहुत अच्छे से ली थी । 

   कुछ ही पलों में वो दोनों नीचे पड़े हुए दर्द से कराह रहे थे । सिद्धांत उन दोनों को वहीं छोड़ कर वैन की ओर बढ़ गया । 

   उसने दरवाजा खोल कर देखा तो वो लड़की अभी भी बेहोश थी । उसके गोरे रंग पर उसका नीले रंग का गाउन बहुत खूबसूरत लग रहा था । उसके चेहरे पर एक अलग ही नूर था । 

   गोल चेहरा, बड़ी बड़ी पलकें, गुलाबी होंठ और इन सब पर हल्के मेक अप में वो बहुत ही खूबसूरत लग रही थी लेकिन सिद्धांत के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था ।

   उस लड़की के चेहरे को देख कर वो शॉक में था लेकिन अगले ही पल उसने अपने सारे ख्यालों को दिमाग से निकाल फेंका । 

   उसने पास में पड़ी हुई पानी की बॉटल से कुछ बूंदें उस लड़की के चेहरे पर डालीं तो उस लड़की ने धीरे धीरे अपनी आँखें खोल दीं ।

   सिद्धांत ने उसे होश में आया हुआ देख कर कहा, " आर यू ओ के ( क्या तुम ठीक हो ) ? "

   उस लड़की ने कहा, " हम्म ! " तो सिद्धांत ने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा कर कहा, " कम आउट ! "

   उस लड़की ने खुद में ही सिकुड़ते हुए कहा, " हू आर यू ? "

   सिद्धांत ने कहा, " अभी वो जरूरी नहीं है । जरूरी है तुम्हारा तुम्हारे घर जाना । बोलो, कहां रहती हो, हम तुम्हें छोड़ देते हैं । "

   लड़की ने उसी तरह से कहा, " नहीं, प्रॉपर इंट्रो के बिना मैं कहीं नहीं जाऊंगी । "

   सिद्धांत ने खुद ने ही बुदबुदाते हुए कहा, " बोल तो ऐसे रही है जैसे उन गुंडों से कोई बहुत जान पहचान थी । "

   लड़की ने उसकी ओर देख कर कहा, " क्या कहा ? " तो सिद्धांत ने कहा, " हम कह रहे थें कि इंट्रो से क्या करना है ! "

   लड़की ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " अगर तुम भी उन्हीं में से एक हुए तो ! "

   सिद्धांत ने चिढ़ कर कहा, " आर यू आउट ऑफ योर माइंड ? "

   लड़की ने एटीट्यूड के साथ कहा, " हे, माइंड योर लैंग्वेज ! "

   अब सिद्धांत को गुस्सा आ रहा था । उसने भी गुस्से में कहा, " एंड यू माइंड योर बिजनेस ! "

   फिर उसने अपनी बाइक की ओर जाते हुए कहा, " पड़ी रहो, यहीं पर ! "

   उस लड़की ने वैन से बाहर आकर उन गुंडों पर नजर डाली तो वो डर से कांप उठी । उसने सिद्धांत की ओर देख कर धीरे से कहा, " तुम मुझे यहां, ऐसे अकेले छोड़ कर जाओगे ! "

   उसकी आवाज सुन कर सिद्धांत ने कदम जहां के तहां रुक गए । उसने अपना एक पैर जमीन पर मार कर कहा, " शिट ! "

   वो पीछे की ओर पलटा और उसने उस लड़की के पास आकर उसका हाथ पकड़ कर आगे बढ़ते हुए कहा, " चलो ! "

   उस लड़की ने अपना हाथ खींच कर कहा, " पहले इंट्रो ! "

   सिद्धांत ने उसे समझाते हुए कहा, " अरे तुम खुद ही सोचो न, अगर हम उनके जैसे ही होते तो तुम्हें होश में लाने का रिस्क क्यों लेते ? तुम्हें बेहोशी की हालत में ही अपने साथ नहीं लेते गए होते ! "

   उस लड़की ने कहा, " क्या पता, तुम दूसरा रास्ता अपना रहे हो ! "

   सिद्धांत ने नासमझी से कहा, " क्या मतलब ? "

   लड़की ने कहा, " मतलब उन सबने मेरे साथ जबरदस्ती करनी चाही जिसमें वो पूरी तरह से फेल हुए ।

   सिद्धांत ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " तो ! "

   उस लड़की ने कहा, " तो हो सकता है तुम मुझे होश में लाकर, प्यार से अपने साथ ले जाओ, जिससे किसी को शक भी न हो और तुम्हारा काम भी हो जाए । "

   सिद्धांत का मन कर रहा था कि वो अपना सिर किसी दीवार में मार ले ।

   उसने अपना चेहरा दूसरी ओर करके अपना सिर पकड़ कर कहा, " हे भगवान ! क्या लड़की है ये, मतलब जब गलत लोगों के साथ थी तब इसका दिमाग काम नहीं किया और जब कोई शरीफ बंदा इसे बचाने आया है तो उसके लिए इस लेवल तक सोच ले रही है ये । वाह, क्या ही कहने इसके ! "

   वो ये बातें बहुत ही धीरे बोल रहा था इसलिए उस लड़की को कुछ भी सुनाई नहीं दिया । उसने सिद्धांत की ओर देख कर कहा, " तो क्या नाम है तुम्हारा ? "

  सिद्धांत ने उसकी ओर पलट कर बहुत ही सफाई से झूठ बोलते हुए कहा, " हेलो मिस, आई एम सहर्ष ठाकुर । आई एम एन स्टूडेंट ऑफ बैचलर ऑफ साइंस इन द यूनिवर्सिटी । आई एम ट्वेंटी फाइव ईयर्स ओल्ड । आई वर्क इन ए साइबर कैफे । "

   फिर उसने अपने हाथ जोड़ कर कहा, " इज दैट इनफ या और कुछ भी जानना है ? "

   लड़की ने कहा, " नहीं, नहीं, इतना काफी है । "

   सिद्धांत ने अपने हाथ जोड़े हुए ही आगे की ओर इशारा करके कहा, " तो चलने की कृपा करेंगी देवी जी ! "

   लड़की ने मुंह बना कर कहा, " मेरा नाम देवी नहीं, निशा है, निशा ठाकुर ! "

   सिद्धांत ने अपने मन में खुद को ही गालियां देते हुए कहा, " क्या सिड, तुझे भी यही सरनेम मिला था यूज करने के लिए ! "

   फिर उसने वापस से उसे देख कर अपने शब्दों को शहद की तरह मीठा करके कहा, " तो मिस निशा ठाकुर, अब कृपया आप चलने का कष्ट करेंगी । "

   निशा ने कहा, " हम्म ! " और उसके साथ चलने लगी । अभी वो दोनों दो चार कदम ही आगे बढ़े थें कि तभी निशा के मुंह से हल्की सी आह निकल गई । 

   सिद्धांत ने उसकी ओर देख कर कहा, " अब क्या हुआ ? "

   निशा ने नीचे देखा तो उसका पैर मुड़ गया था । उसने कहा, " आई थिंक, मेरे पैर में मोंच आ गई है । "

   सिद्धांत ने अपना सिर ना में हिलाया और फिर वहीं घुटनों के बल बैठ गया । उसने निशा के पैर पकड़ने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो निशा ने तुरंत उसके हाथ पकड़ लिये ।

   सिद्धांत ने उसकी ओर देख कर कहा, " देखने तो दीजिए  ! "

   निशा ने कहा, " नहीं, मेरे पैर मत छुओ । "

   सिद्धांत ने कहा, " पर बिना छुए पता कैसे चलेगा ! "

   निशा ने कहा, " मैंने कहा न, पैर मत छुओ । "

   सिद्धांत ने एक गहरी सांस लेकर कहा, " ओ के, फाइन ! "

   फिर उसने अचानक से खड़े होकर निशा को गोद में उठा लिया तो वो चिल्ला उठी, " ये क्या कर रहे हो तुम ! "

   सिद्धांत ने गहरी आवाज में कहा, " शांत रहिए, किडनैप नहीं कर रहे हैं आपको । "

   निशा शांत हो गई तो सिद्धांत उसे लिए हुए आगे बढ़ने लगा । उसने निशा को बाइक पर बिठाया और उसके घर की ओर चल पड़ा । निशा उसे डायरेक्शन बताती जा रही थी और वो उस ओर अपनी बाइक घुमा रहा था ।

   उन दोनों के जाते ही उन सभी में से एक आदमी तुरंत उठ बैठा । उसने बारी - बारी से अपने सभी साथियों को उठाना शुरू किया ।

   वो सब उठ गए तो उसने कहा, " इसे छोड़ना नहीं है आज, लड़की भले ही बच गई लेकिन उस लड़के की लाश देखनी है मुझे ! "

   बाकी के आदमियों ने भी कहा, " हां, आज किसी न किसी को तो टपकाना ही है । "



   वहीं दूसरी तरफ,

   सिद्धांत ने एक बड़े से घर के बाहर अपनी बाइक रोकी । वो तीन माले का घर था और लगभग दस डेसिमल के एरिया में फैला हुआ था । सिद्धांत तो उस घर को देखता ही रह गया ।

   उसे ऐसे देख कर निशा ने कहा, " क्या हुआ मिस्टर सहर्ष ठाकुर, क्या देख रहे हो ? "

   सिद्धांत ने उसकी ओर देख कर कहा, " ये तुम्हारा घर है ! "

   निशा ने आराम से कहा, " हां ! "

   सिद्धांत ने वहां पर नेम प्लेट पढ़ी तो उस पर MLA रविन्द्र ठाकुर का नाम लिखा हुआ था ।

   उसने निशा की ओर देख कर कहा, " तुम MLA की बेटी हो ! "

   निशा ने हल्के से हंस कर कहा, " अब ये घर MLA के साथ - साथ मेरा भी है तो मैं उन्हीं की बेटी हूंगी न ! "

   सिद्धांत ने अपने सिर पर हाथ रख कर कहा, " ओ भाई साहब, हो गया बंटाधार ! "

   निशा ने कहा, " कुछ कहा तुमने ! "

   सिद्धांत ने कहा, " नहीं, नहीं, मैम ! कृपया अब आप जल्दी से अंदर जाइए । "

   निशा बाइक से उतर गई । गेट खुला तो उसने अंदर जाते हुए कहा, " ओ के, बाय ! "

   फिर उसने पलट कर सिद्धांत से कहा, " एंड, थैंक यू हैंडसम ! "

   सिद्धांत ने अपने हाथ जोड़ लिये तो निशा खिलखिला कर हंस पड़ी और अंदर चली गई ।

   


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   क्या होगा सिद्धांत और निशा के इस मुलाकात का अंजाम ?

   क्या सिद्धांत ने निशा को बचा कर कोई गलती की थी ?

   उसने निशा को अपना नकली नाम क्यों बताया था ?

   इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,

   बियोंड वर्ड्स : अ लव बॉर्न इन साइलेंस 

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                                             लेखक : देव श्रीवास्तव