प्रकरण - ५२
मैं और फातिमा मुंबई में अवॉर्ड समारोह में आ पहुंचे थे। अब ये अवॉर्ड फंक्शन जल्द ही शुरू होनेवाला था। कुछ ही मिनटों में एंकर बने अदनानखान और जूही बनर्जी दोनों मंच पर आ गए। पहले तो दोनोंने स्टेज पर आकर हल्का-फुल्का मजाक किया और फिर कार्यक्रम शुरू किया। कार्यक्रम की शुरुआत गणेशजी की स्तुति से हुई।
मुझे और फातिमा को वी.आई.पी सीट दी गई थी। हमारे साथ बगल की कुर्सी पर अभिजीत जोशी और नीरव शुक्ला भी बैठे थे। बॉलीवुड के कुछ नायकोंने अपनी प्रस्तुति दी जिसका वर्णन फातिमाने मुझे सुनाया और मैंने फातिमा की आंखों के माध्यम से पुरस्कार समारोह की सभी प्रस्तुतियों का आनंद लिया। आज फातिमा मेरे साथ होने की वजह से मैं बहुत खुश था।
कुछ ही देर में ज्युरी के पुरस्कारों की घोषणा हो गयी। इसमें मुझे नीरव शुक्ला की फिल्म में दिये गये संगीत के लिये सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार दिया गया। अभिजीत जोशी को सर्वश्रेष्ठ गायक और नीरव शुक्ला को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिया गया।
ज्युरी अवॉर्ड ख़त्म होने के बाद पॉपुलर अवॉर्ड कैटेगरी में भी हम सभी का नाम था। ज्युरी पुरस्कार में तो हमें पहले से ही पता था कि वो तो हमें ही मिलनेवाला है, लेकिन लोकप्रिय पुरस्कार में हमें सार्वजनिक वोटिंग के आधार पर पुरस्कार मिलना था, इसलिए हमें नहीं पता था कि पुरस्कार किसे मिलेगा। सभी लोकप्रिय पुरस्कार हर कलाकार के लिए एक आश्चर्य थे। जिसे अधिक वोट मिले थे वही जीतनेवाले थे।
जल्द ही पॉपुलर सिंगर अवॉर्ड की घोषणा हुई जिसमें अभिजीत जोशी का नाम था। उन्होंने मंच पर आकर अपने साथ काम कर रहे सभी लोगों का शुक्रिया अदा किया।
फिर बारी थी बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवॉर्ड की। मुझे नहीं पता था कि मंच से मेरे नाम की घोषणा होगी। जब मैंने सुना कि पुरस्कार रोशनकुमार को जाता है, तो मुझे दो मिनट के लिए अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। अपना नाम सुनकर मुझे बहुत सुखद आश्चर्य हुआ। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि भारत में लोगों को मेरा संगीत इतना पसंद आया।
जब मंच से मेरा नाम पुकारा गया तो फातिमा मेरा हाथ पकड़कर मुझे मंच तक ले गई। मुझे मंच पर पुरस्कार दिया गया। पुरस्कार प्राप्त करने के बाद धन्यवाद व्यक्त करने के लिए मेरे हाथ में एक माइक दिया गया।
आज मुझे बहुत कुछ कहना था। मैंने कहा, "सबसे पहले, मैं आप सभी से माफी मांगना चाहता हूं क्योंकि, मैं आप सभी का थोड़ा ज्यादा वक्त लूंगा। मेरे पास आपको बताने के लिए बहुत कुछ है। सबसे पहले तो मैं यह मेरे साथ आई मेरी सविशेष मित्र फातिमा को धन्यवाद देना चाहता हूं। क्योंकि आज अगर वह नहीं होती तो मैं यहां तक नहीं पहुंच पाता। मेरी इस सफर में उसका बहुत बड़ा योगदान है। वह मेरे अंदर के संगीतकार को पहचाननेवाली पहली व्यक्ति थी। फातिमाने ही मुझे राजकोट के अंध विद्यालय में ममतादेवी से मिलवाया था और ममतादेवी के माध्यम से ही मैं अभिजीत जोशी से मिल पाया था। मैंने और अभिजीत जोशीने मिलकर नवरस की भावनाओं को दर्शाता हुआ नौ गानों का एल्बम बनाया था, जिसने इस साल काफी हलचल मचा दी थी। मुझे इतना बड़ा अवसर देने के लिए मैं अभिजीतजी का भी आभार व्यक्त करता हूं। धन्यवाद अभिजीतजी! अभिजीतजी के इस एल्बम में मेरे संगीत के कारण नीरव शुक्लाजीने मुझे अपनी फिल्म में संगीत निर्देशक के रूप में साइन किया, जिससे मुझे आगे बढ़ने का एक और शानदार अवसर मिला। मैं इसके लिए उन्हें भी धन्यवाद देना चाहता हूं। आज जब मुझे उनकी फिल्म के संगीत के लिए यह पुरस्कार मिल रहा है तो मैं भी उन्हें दिल से धन्यवाद देना चाहता हूं। धन्यवाद नीरवजी! और अंत में मैं अपने परिवार, अपने मम्मी पापा, अपने भाई-भाभी रईश और नीलिमा और अपनी बहन दर्शिनी को धन्यवाद देना चाहूंगा। जब एक दुर्घटना में मेरी आंखें चली गई थी तो मेरे परिवार के इन्हीं लोगों ने मेरा बहुत अच्छे से ख्याल रखा था। मैं अपने भाई रईश को विशेष धन्यवाद देना चाहूँगा।
जैसा कि आप सभी जानते हैं, वह मेरी आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए बहुत मेहनत कर रहा है। मैंने रईश को हमेशा से अपनी प्रेरणा माना है। अगर वो न होता तो मैं आज गहरे अंधेरे में फंसा होता, लेकिन उसने मुझे एक उम्मीद देकर मेरी जिंदगी में रोशनी फैलाने की कोशिश की है और अब भी कर ही रहा है, इसलिए मैं उसे भी बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं अब आपका अधिक समय नहीं लूंगा। मैं उन सभी लोगों को दिल से धन्यवाद देता हूं जिन्होंने मेरे जीवन में कभी न कभी मेरी मदद की। आप सभी लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद। अंत में, मैं भारत की जनता को भी धन्यवाद देना चाहूंगा, जिन्होंने मुझे इतना प्यार दिया है। मेरा मानना है कि हर कलाकार हमेशा जनता के माध्यम से ही कलाकार होता है। आप मशहूर तभी हो सकते हैं जब आपको लोगों का प्यार मिले। मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे आज भी भारत के लोगों से इतना प्यार मिल रहा है, इसलिए आप सभी दर्शकों का भी बहुत-बहुत धन्यवाद।”
इतना कहकर मैं मंच से नीचे उतर गया। मेरे इस भाषण पर दर्शकों ने खूब तालियां बजाई, जिसकी आवाज मेरे कानों में गूंज उठी थी। फातिमा मुझे स्टेज पर से वापस अपनी सीट पर लेकर आई। उसके बाद सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, नकारात्मक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री आदि जैसे कई पुरस्कार दिए गए। जब समारोह ख़त्म हुआ तो रात के लगभग दो बज चुके थे। फातिमा और मैं हम जिस होटल में रुके थे वहा पर आकर अपने अपने कमरे में जाकर सो गए। अगली सुबह हम अहमदाबाद वापस लौटनेवाले थे।
अगली सुबह हुई और हम अहमदाबाद के लिए निकल पड़े। उस दिन मौसम बहुत अच्छा था। रास्ते में कार में मुझे रिमझिम बारिश की आवाज़ सुनाई दी तो मैंने फातिमा से पूछा, "फातिमा! बाहर बारिश हो रही है क्या?"
फातिमाने मेरे प्रश्न का उत्तर दिया, "हाँ! बारिश हो रही है। एक बात पूछूँ रोशन! क्या तुम्हें बारिश पसंद है?"
मैंने उत्तर दिया, "हां, फातिमा! जब मैं छोटा था तो मुझे बारिश बहुत पसंद थी। तुम्हे पता नही है लेकिन जब मैं और रईश छोटे थे तो हम दोनों कागज की नाव बनाते थे और रईश उस कागज़ की नाव को प्लास्टिक से कवर कर देता थे ताकि वह गीली न हो और हमारी नाव पानी में डूबे नहीं और हम उसे ज्यादा वक्त तक तैरा सके।"
यह सुनकर फातिमा बोल पड़ी, "ओह! तो तो तुम्हारे भाई में शुरू से ही वैज्ञानिक बनने के गुण थे। क्यों! ठीक न? वो कहते है न की जैसा कि पुत्र के लक्षण पालने में ही पता चल जाते है।
मैंने फातिमा से कहा, "हाँ! ये तो तुम ठीक कह रही हो।"
अभी तो मैं फातिमा के साथ बात कर ही रहा था की तभी मेरा मोबाइल बजा और रईश का नाम बोला गया। मैंने फातिमा से कहा, "यह सुनो! हम रईश के बारे में बात कर रहे थे और उसका ही फोन आ गया। मुझे लगता है कि उसे जरुर टेलीपेथी हो गई होगी की हम दोनों उसे ही याद कर रहे है।
ये सुनकर फातिमा और मैं दोनों हंस पड़े। मैंने फोन उठाया और हेल्लो कहा।
(क्रमश:)