प्रकरण - ४९
मुझे निषाद मेहता के साथ जो कॉन्ट्रैक्ट साइन करना था उसकी पूर्व तैयारी मैंने और मेरे पापाने हम दोनोंने पहले से ही करके रखी थी। जैसा कि आप सभी जानते है की उस समय मैं सूरदास था, इसलिए मेरे साथ किसी न किसी का हमेशा रहना अनिवार्य था।
मेरे पापा को भी मेरी चिंता थी और इसीलिए उन्होंने मेरे लिए मेरे पी.ए. के रूप में एक आदमी का इंतजाम किया था। सुभाषभाई मेरे पापा के खास दोस्त थे। मेरे पापा को जब उनके साथ बातों बातों में पता चला कि सुभाषभाई का बेटा भी अहमदाबाद में नौकरी ढूंढ रहा है, तो उन्होंने सुभाषभाई को ऑफर दी की यदि उनका बेटा पार्थ मेरा पी.ए. बनना चाहता हो जब तक की उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल जाती। सुभाषभाई को मेरे पापा का यह प्रस्ताव अच्छा लगा और उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
मेरे पापा इस बात से खुश थे कि सुभाषभाई का बेटा पार्थ अब मुझे रास्ता दिखाएगा। उसके मन में मेरे लिए जो चिंता थी वह सब अब दूर हो गई थी। मैं भी पार्थ को अपने साथ पाकर बहुत खुश था। जब भी मुझे कहीं जाना होता था तो पार्थ मेरे साथ आता था और बाकी का समय वह अलग-अलग जगहों पर इंटरव्यू देने के लिए जाता था। पार्थ को हमारे घर के ठीक बगल में ही किराये पर एक घर मिल गया था जिससे उसके और मेरे हम दोनों के लिए काम करना बहुत आसान हो गया था।
मुझे अगली सुबह नौ बजे निषाद मेहता के कार्यालय जाना था, इसलिए मैंने पार्थ से मुझे आठ बजे ले जाने के लिए कहा। अहमदाबाद एक बड़ा शहर है इसलिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने में समय लगता है और सड़क पर ट्रैफिक भी बहुत रहता है। हम आठ बजे घर से निकले ताकि समय पर पहुंच सके।
हमारी किस्मत बहुत अच्छी थी इसलिए हमें सड़क पर कहीं भी ज्यादा ट्रैफिक का सामना नहीं करना पड़ा। मैं और पार्थ हम दोनों समय पर निषाद मेहता के ऑफिस पहुंच गए। जैसे ही मैं कार्यालय परिसर में दाखिल हुआ की पार्थने मुझे कार्यालय के बारे में बताना शुरू कर दिया। उसने कहा, "रोशनभाई! निषादभाई का कार्यालय तो बहुत ही भव्य है। इतना अच्छा कार्यालय मैं अपने जीवन में पहली बार देख रहा हूं।"
मैंने पूछा, "क्यों! इस ऑफिस में ऐसा क्या खास है? पार्थ!"
मेरे प्रश्न का उत्तर देते हुए पार्थने कहा, "उनके इस कार्यालय में हमारी संस्कृति की झलक दिखती है। परिसर में प्रवेश करते ही एक तरफ देवी सरस्वती की प्रतिमा है और दूसरी तरफ गणेशजी और रिद्धिसिद्धि की प्रतिमा है। यहां विद्या की देवी सरस्वती और रिद्धिसिद्धि का अनोखा संगम है।"
मैं भले ही अंध था लेकिन मुझे भी इस कार्यालय में प्रवेश करते ही एक अनोखी शांति का अनुभव तो हुआ ही था। मैंने भी पार्थ से कहा, "हां! ये तो तुम सही कह रहे हो पार्थ! जब तुम मुझे अंदर ले गए तो मुझे भी ऐसा लगा जैसे मेरा मन अंदर से प्रफुल्लित हो गया हो। इस जगह की एक अलग ही आभा है।"
पार्थने मुझे एक कॉमन हॉल में बैठाया और वो रिसेप्शन पर चला गया। मैं वहीं हॉल में बैठकर पार्थ का इंतज़ार करने लगा। हॉल में सुंदर शांत धीमा संगीत बज रहा था जिसने मेरी आत्मा को अंदर तक छू लिया। पार्थ रिसेप्शन पर गया और वहां पर जो लड़की बैठी थी उसे हमारा परिचय दिया और कहा, "निषाद मेहता से कहना कि रोशनकुमार आए है।
जैसे ही उस लड़कीने निषाद मेहता को फोन करके हमारे बारे में जानकारी दी कि तभी अंदर से एक आदमी हमे ले जाने के लिए हमारे पास आया और हमें सीधे निषाद मेहता के चैंबर में ले गया। जैसे ही हम निषाद मेहता के कक्ष में दाखिल हुए निषाद मेहताने तुरंत हमारा स्वागत करते हुए कहा, "रोशनजी! मेरे आशियाने में आपका बहुत बहुत स्वागत है।"
मैंने निषाद मेहता की आवाज़ जिस दिशा से आ रही थी उस ओर हाथ जोड़कर उन्हें नमस्ते किया और मेरे साथ आए पार्थ का परिचय भी कराया और कहा कि ये पार्थ है जो की मेरा पी.ए. है। पार्थने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे उनके ऑफिस में जो कुर्सी थी उस पर बिठाया। अब हम अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे।
बातचीत का दौर शुरू करते हुए मैंने उनसे कहा, "निषादजी! आज आपके सामने उपस्थित होकर मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली महसूस कर रहा हूं। मैं आपके जैसे बड़े कलाकार के साथ काम कर पाऊंगा उसकी मुझे बेहद खुशी है।"
निषादने कहा, "अरे नहीं, नहीं रोशनजी..! ऐसा मत कहिए। मैं कोई बहुत बड़ा आदमी नहीं हूं। जैसे ही मैंने आपकी धून सुनी मुझे वह बहुत ही पसंद आई और तभी मैंने तय कर लिया था कि मैं एक न एक दिन आपके साथ जरूर काम करूंगा। और इसलिए आपके साथ यह पांच साल का कॉन्ट्राकट मेरी पहली पहल है। आप खुद भी एक दिन ये जरूर महसूस करेंगे कि हम दोनों साथ मिलकर गुजराती संगीत उद्योग को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।"
मैंने कहा, "हां, मुझे भी इस कॉन्ट्राक्ट से बहुत उम्मीदें हैं। लेकिन मैं आपको फिर से याद दिला दूं कि जब मेरा ऑपरेशन होगा, तब मैं कुछ समय के लिए छुट्टी पर रहूंगा जब तक की डॉक्टर मुझे फिर से काम करने की अनुमति नहीं देते।"
मैंने कहा, "हां, हां! आप इस बात को लेकर निश्चिंत हो जाइए। मैं आपको पूरा समर्थन दूंगा! मुझे उम्मीद है कि आपके जीवन में जहां तमस छाया हुआ है वही एक दिन ज्योति आपके जीवन में जरूर प्रवेश करेगी। आपकी दुनिया भी हम सबकी तरह एकबार फिर से रंगीन हो जाएगी।"
इसके बाद उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट की एक कॉपी मेरे हाथ में देते हुए कहा, "रोशनजी! ये पांच साल के कॉन्ट्रैक्ट की कॉपी है। पार्थभाई से कहीए कि इसे एक बार पढ़ लें और शांति से देख लें और फिर जहां वो कहें वहां आप अपने हस्ताक्षर कर दे।"
पार्थने शांति से पूरी कॉपी देखी और उसके बाद उसने जहां भी कहा, मैंने अपने हस्ताक्षर कर दिए। अगले दिन से मेरा काम शुरू होना था। इधर मैं तेजी से सफलता के शिखर पर चढ़ रहा था और उधर मेरा भाई रईश भी सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा था।
रईश और उनकी टीमने साथ मिलकर अब तक जो भी कृत्रिम कॉर्निया बनाई थी उसका डॉ. डेनिश विकने करीब दस जितने मरीजों में सफ़लता पूर्वक ट्रांसप्लांट किया था। इन दस मरीजों में से केवल एक ही मरीज को रिजेक्शन आया था। उस एक मरीज को उनकी बनाई हुई कृत्रिम कॉर्निया अनुकूल नहीं आई थी और उसकी दृष्टि भी वापस नहीं लौटी थी। उसके अलावा बाकी के नौ मरीज अब अच्छे से देख पा रहे थे। उनके जीवन में अब ज्योति प्रकाशित हो चुकी थी। रईशने विज़न आय रिसर्च सेन्टर का नाम रोशन किया था।
विज़न आई रिसर्च सेंटर की इस उपलब्धि को पूरे अमेरिका के लगभग हर अखबार और न्यूज़ चैनल ने कवर किया। विज़न आई रिसर्च सेंटर में काम करनेवाले वैज्ञानिकों की पूरे अमेरिका में व्यापक प्रशंसा हुई। वहां की कई अच्छी संस्थाओंने रईश और उनकी टीम को सम्मानित किया। इतनी प्रसिद्धि पाने के कारण रईश अमेरिका में एक सितारे की तरह चमक गया था।
विज़न आई रिसर्च सेंटर की इस पूरी टीम में रईश एकमात्र भारतीय वैज्ञानिक था जो की भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा था जो हमारे देश के लिए तो बहुत ही गर्व की बात थी।
रईशने हमारे देश का नाम रोशन किया था तो देश भी उसका सम्मान करने में कैसे पीछे रह सकता है? भारत भी रईश के लिए कुछ करना चाहता था जिसका पता रईश को बहुत जल्दी ही चलनेवाला था।
(क्रमश:)