प्रकरण - ४५
मेरी मम्मी और मेरे पापा दर्शिनी और नीलिमा को छोड़ने अहमदाबाद आये थे। घर काफी दिनों से बंद था इसलिए सबसे पहले इसकी सफाई करना जरूरी था। हालांकि रईश अमेरिका में था और नीलिमा भी इतने समय से अपनी मम्मी के घर राजकोट में ही थी इसलिए हमारा अहमदाबादवाला घर काफी समय से बंद ही पड़ा था।
मेरी मम्मी और दर्शिनी दोनों घर की सफ़ाई में लग गई थी। दोनों को घर की सारी सफ़ाई करने में लगभग एक घंटा जितना समय लग गया। उसके बाद दर्शिनीने अपना सारा सामान घर में ठीक से व्यवस्थित किया। इसी बीच मेरी मम्मी बगल के बाज़ार से सारा ज़रूरी सामान ले आई और रसोई की तैयारी में लगी गई। नीलिमा अरमानी को संभालने में व्यस्त हो गई थी।
अगली सुबह दर्शिनी का उसके कॉलेज में पहला दिन था इसलिए मेरे पापा उसे छोड़ने के लिए उसके साथ उसके कॉलेज गए। कॉलेज का माहौल देखकर वह बहुत खुश हुए और दर्शिनी को लेकर उनकी जो भी चिंताए थी वह भी अब कम हो गई।
मेरी मम्मी और पापा लगभग एक सप्ताह तक नीलिमा और दर्शिनी के साथ रहे। उसके बाद दर्शिनी के वहा पर सेट होने के बाद ही वे दोनों अपने घर राजकोट वापस आए। मम्मी पापा के चले जाने पर कुछ दिनों तक नीलिमा और दर्शिनी को घर बहुत सुना सुना लगता था। दोनो को थोड़ा अकेलापन भी महसूस होता था लेकिन फिर धीरे-धीरे उन दोनों को भी अकेले रहने की आदत हो गई थी। दर्शिनीने अपना सारा ध्यान अपनी पढ़ाई पर लगाना शुरू कर दिया और नीलिमाने अपना सारा ध्यान अरमानी की देखभाल में लगा दिया।
वक्त बड़ी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था।
इधर इस तरफ ममतादेवी कब से की फातिमा का इंतजार कर रही थी। कुछ मिनटों के बाद, फातिमा ममतादेवी के कार्यालय में आई और बोली, "मैडम! क्षमा करें! मैं... मुझे आने में थोड़ी देर हो गई।
ममतादेवीने कहा, "ठीक है फातिमा। कोई बात नहीं।" ममतादेवीने फातिमा को माफी दी।
फातिमाने पूछा, "मैडम! आपने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है? और आप मुझसे किस महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करना चाहती थी?"
ममतादेवीने कहा, "वही बात करने के लिए ही तो मैंने तुम्हे यहां बुलाया है। मैं अहमदाबाद में अपने स्कूल की एक शाखा खोलना चाहती हूं और मैं चाहती हूं कि वहा की सारी जिम्मेदारी तुम अपने सर ले लो।
यह सुनकर फातिमा बोली, "अरे! नहीं नहीं! यह तो बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। मैं इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी लेने के लिए बहुत छोटी हूँ। मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं ले सकती।"
ममतादेवीने कहा, "मैं तुमसे कुछ भी बहाने सुनना नहीं चाहती। तुम्हे मेरी ये बात माननी ही पड़ेगी। मैंने तुम्हारी मा से वादा किया है कि मैं तुम्हारा अच्छे से खयाल रखूंगी। अब मैं दो जगह पर नहीं पहुंच पाऊंगी और मुझे अपने विद्यालय के लिए एक ऐसी महिला चाहिए जो अपनी जिम्मेदारी अच्छे से समझती हो और उसे अच्छे से निभाना जानती हो। जब मैंने इस बारे में गहराई से सोचा तो मुझे केवल तुम्हारा ही चेहरा नज़र आया। फातिमा! अब मुझे और कोई बहस नहीं चाहिए। तुम्हें अहमदाबाद के स्कूल की सारी ज़िम्मेदारियाँ संभालनी ही होगी। तुम्हे मेरी कसम है।"
फातिमा बोली, "मैडम! कृपया आप ऐसा मत कहीए। अब आपने कसम दी है तो मैं आपकी बात टाल नहीं सकती। मैं अहमदाबाद में इस स्कूल का कार्यभार संभालने के लिए तैयार हूं।"
ममतादेवीने कहा, "मैंने अहमदाबाद में विद्यालय के निर्माण के लिए एक जगह भी देख ली है और मैं इसे जल्द ही खरीद लूंगी और उसके बाद के सारे कार्य की जिम्मेदारी तुम्हारी ही होगी।"
फातिमाने कहा, "ठीक है। मुझे मंजूर है।"
ममतादेवीने फातिमा पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी डाल दी थी इसलिए फातिमा थोड़ी डरी हुई थी। इसलिए वह हमारे घर गई थी और उसने मेरे मम्मी पापा को ये सारी बाते बताई।
फातिमा की बात सुनकर मेरी मम्मीने कहा, "अरे फातिमा! तुम क्यों डरती हो? बल्कि तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि ममतादेवीने तुम पर विश्वास दिखाकर तुम्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है।"
फातिमाने मेरी मम्मी से कहा, "हा आंटी! लेकिन....यह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है!"
फातिमा की यह बात सुनकर मेरे पापाने भी कहा, "फातिमा बेटी! तुम क्यों डरती हो? मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि तुम्हें यह जिम्मेदारी खूब दिल से निभानी चाहिए। तुम्हें यह सोचना चाहिए कि कितने सूरदास बच्चों के जीवन में तुम्हारी वजह से सुधार आएगा। तुम एक अच्छे सेवा कार्य के लिए निमित्त बनोगी इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है? मैं तुम्हें हृदय से आशीर्वाद देता हूं कि तुम अपना काम बहुत अच्छे से संभाल पाओगी। और हां! अहमदाबाद में ही हमारा घर भी तो है तो तुम भी वही नीलिमा और दर्शिनी के साथ रहना। दर्शिनी और नीलिमा दोनों को कंपनी भी मिल जाएगी। नीलिमा की नौकरी भी अब शुरू गई है तो तुम्हारे वहा जाने से उसे भी अरमानी को संभालने में तुम्हारी थोड़ी मदद मिल जाएगी।"
मेरे पापा की ये बात सुनकर फातिमा तुरंत बोल पड़ी, "नहीं! नहीं! अंकल! यह कैसे संभव है? मुझे नहीं लगता कि आपके पूरा परिवार वहां रहता हो और मैं भी वहां रहूं। ये मुझे ठीक नहीं लग रहा है। मैं अपने लिए किराए पर कोई जगह ढूंढ लूंगी।"
यह सुनकर मेरी मम्मी को बहुत गुस्सा आया और बोली, "खबरदार! अगर तुमने दोबारा कभी ऐसी बात कही.. तुम्हें पता है, हम सब तुम्हें हमेशा अपने परिवार का सदस्य मानते हैं, फिर भी तुम इस तरह बोलती हो? ऐसा क्यों कह रही हो? ऐसा बोलते हुए तुम्हारी जीभ कैसे चली? आज भले ही तुमने ये बोला लेकिन तुम आज के बाद कभी भी ऐसी बात नहीं करोगी। तुम्हें अहमदाबाद में हमारे घर पर ही रहना होगा।"
मेरे पापाने कहा, "हाँ! बेटा! मालती ठीक कहती है। हमने हमेशा से तुमको अपने परिवार का सदस्य ही माना है, इसलिए तुम्हे अहमदाबाद में हमारे घर पर ही रहना चाहिए। अगर तुम नीलिमा और दर्शिनी के साथ रहोगी तो मुझे भी कुछ राहत मिलेगी। उन दोनों के लिए मेरी चिंता थोड़ी कम हो जाएगी। और दूसरा मेरा स्वार्थ यह भी तो है कि अरमानी की देखभाल में नीलिमा को भी तुम्हारी कुछ मदद मिल जाएगी।"
मेरे पापाने भी मेरी मम्मी की बात का समर्थन किया इसलिए अब फातिमा के पास मेरे मम्मी पापा की बात मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।
कुछ समय बाद ममतादेवीने अहमदाबाद में विद्यालय के लिए जगह भी खरीद ली और अब वहां की सारी जिम्मेदारियां फातिमा को सौंप दीं।
फातिमा अब अहमदाबाद पहुँच चुकी थी। नीलिमा और दर्शिनी फातिमा के वहा आने से बहुत खुश थी। अब उन दोनों को यह घर हरा-भरा लगता था। घर में कभी कभी अरमानी हंसने की आवाज तो कभी कभी उसके रोने की आवाज से घर में जीवन हो ऐसा लगता था।
रईश को अमेरिका गए छह महीने हो गए थे। एक दिन अचानक रईश का फोन आया और उसने मुझसे कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर मैं एकदम हैरान रह गया।
(क्रमश:)