पथरीले कंटीले रास्ते - 22 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 22

पथरीले कंटीले रास्ते 

 


22

 


इंतजार को कातिल और कयामत किसी ने ऐसे ही नहीं कहा । इंतजार की घङियाँ बङी सुस्त होती हैं । इतना धीरे चलती हैं कि कभी खत्म होने में ही नहीं आती । जिसको किसी का इंतजार करने पङे , वही जानता है कितना तकलीफदेह होता है किसी का इंतजार करना । हर पल लगता है , सांसे रुक जाएंगी । काश इसे पंख मिले होते तो कितनी जल्दी बीत जाता । बग्गा सिंह को वहाँ खङा करके वकील गायब हो गया था । बग्गा सिंह को लग रहा था जैसे से यहाँ आये एक सदी बीत चुकी है । वक्त है कि काटे ही नहीं कट रहा ।
बग्गा सिंह ने इधर उधर देखा , वहाँ बहुत से लोग मुलाकात करने आये हुए थे । सब दूर दूर खङे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे । किसी को अपने पति से मिलना था , किसी को बेटे से । कोई बाप से मिलने भी आया हो सकता है । सब बेचैनी से अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे ।
तभी अंदर से एक सिपाही बाहर आया और जोर से पुकारा – तुम में से बग्गा सिंह वल्द गमदूर सिंह कौन है जी ।
मैं हूं भाई – अचानक हुई इस पुकार से बग्गा सिंह हङबङा गया । उसके हाथ से परना नीचे गिर गया । उसने झपट कर परना उठाया और सिपाही को देखा । वह तो अपने वकील का इंतजार कर रहा था पर इस सिपाही को जवाब देना जरूरी था तो वह अपना सामान सम्हालता हुआ उठ गया और पेङ के नीचे से चलता हुआ दरवाजे के पास खङे सिपाही के पास पहुंच गया ।
मैं हूं जी बग्गा सिंह । क्या हुक्म है ?
किससे मुलाकात करनी है ?
जी रविंद्रपाल सिंह वल्द बग्गा सिंह से । ये मुलाकात का सरकारी कागज है ।
चलो मेरे साथ ।
बग्गा सिंह सिपाही के पीछे चलता हुआ अंदर दफ्तर में आ गया ।अंदर क्लर्क ने उसका आधार कार्ड और वोटरकार्ड जाँचा । फिर कागज पर मोहर लगा दी ।
ये सामान उस मेज पर रखो । इसकी जाँच होगी ।
ठीक है जी । - बग्गा सिंह ने बैग और थैले ले जाकर मेज पर ऱख दिये । दो सिपाही सामान बैग से निकाल निकाल कर मेज पर रखने लगे ।
ये तीन जींस हैं , ये चार कमीजें । ये चार बनियान और ये रहे चार कच्छे । ये तीन टी शर्ट भी हैं । शादी में आया है क्या तेरा लङका जो इतनी ढेर सारी पोशाकें लेकर आया है । वे सारे ठहाके लगा कर हँसने लगे ।
और ये साबुन तेल पेस्ट शेविंग का सामान अंदर नहीं जाएगा । जो चाहिए , अंदर की कैंटीन से सब मिलता है । वहीं से सबको खरीदना होता है । इन्हें यहां छोङो जब वापिस जाओगे तब मिलेगा ।
जैसा आप कहो सरजी । आप माई बाप हो । .
और ये इन थैलों में क्या भरा है ? – एक सिपाही ने थैला अपनी ओर खींचा ।
थोङा सा खाने का सामान है सर । मिलने आ रहा था तो उसकी माँ ने अपने हाथों से बनाया था बच्चे के लिए ।
तब तक उसने पिन्नियों वाला डिब्बा खोल लिया था और दोनों हाथों में एक एक पिन्नी थामे खाना शुरु हो गया था कि उसकी निगाह क्लर्क पर पङी जो उसे ही घूरे जा रहा था ।
उसने तीन पिन्नी ले जाकर क्लर्क की मेज पर रखी । तब तक बाकी सिपाहियों ने भी दो दो पिन्नियां उठा ली थी और खाना शुरु हो गये थे ।
पहले सिपाही ने डिब्बे में झांक कर देखा । डिब्बा आधे से ज्यादा खाली हो चुका था । उसने डिब्बे का ढक्कन बंद कर दिया । तब तक दूसरे सिपाही को जलेबी दिख गयी थी । आनन फानन में सारी जलेबी बँट गयी । बग्गा सिंह की आँख में आँसू आने को हुए । कितने चाव से उसने रविंद्र के लिए गरमागरम जलेबी बंधवाई थी । पर सने अपने आँसुओं को भीतर ही सोख लिया । सिपाही ने बची हुई एक जलेबी बग्गा सिंह की ओर बढा दी – लो अंकल जी आप भी खाओ ।
आप सब खाओ बेटे , आप के लिए ही है । वह उस आखिरी जलेबी को भी मुँह में डाल गया ।
उसके बाद उन्होंने थैला बंद कर दिया तो बग्गा सिंह ने सुख की साँस ली । कम से कम बेटा साग और चूरी तो खा सकेगा ।
अंकल हर कैदी को जेल में दो हजार रुपये खर्चने की इजाजत है । पर आप उसे सीधे नहीं दे सकते । पैसे यहाँ आफिस में जमा करने होते हैं । आपके बेटे को उतने पैसों के कूपन दिये जाएंगे जिनसे वह कैंटीन से सामान खरीद सकेगा ।
बग्गा सिंह ने चुपचाप दो हजार रुपये क्लर्क को जमा करने के लिए दिये तो उसने रसीद काट कर बग्गा सिंह को थमा दी । एक सिपाही बग्गा सिंह को साथ वाले कमरे में छोङ आया ।
यह एक आकार में बङा कमरा था । कमरे में शायद अभी अभी पोचा लगाया गया था क्योंकि फिनायल की ताजा खुशबू या बदबू पूरे कमरे में फैली हुई थी । कमरे की दीवारें धूल मिट्टी से सनी हुई थी जिसमें मकङी के जाले यहाँ वहाँ लटके हुए थे । कमरे के बीचोबीच एक बङी सी मेज पङी थी जिसके दोनों ओर दो दो कुर्सियाँ रखी गयी थी ।
बैठो । आपका बेटा थोङी देर में आ जाएगा । एक लङके को उसे बुलाने के लिए भेजा गया है । - कहते कहते सिपाही कमरे से बाहर हो गया ।
बग्गा सिंह कुछ देर यूं ही इधर उधर ताकता रहा । अंत में थक कर एक कुर्सी पर बैठ गया और रविंद्र का इंतजार करने लगा । एक एक पल काटना उसे भारी लग रहा था । बाहर तब वह घबरा रहा था अब लगता है , बाहर यहाँ से कहीं ज्यादा ठीक था । कम से कम वहाँ हवा तो थी बेशक गरम ही थी । इधर उधर घूमते बातें करते लोग तो थे । रौनक थी । यहाँ इस भूतिया कमरे में अकेले पता नहीं कितनी देर बैठना पङेगा । सोचते ही उसके होठों पर मुस्कान आ गयी – बेबे सही कहा करती थी –
भैङा ( बहुत बुरा ) जीव ।
न धूप सहे न सीत ।।
अर्थात ये मनुष्य बहुत बुरा जीव है । जब धूप आती है तब गर्मी की शिकायत करता है और सर्द हवा मांगता है फिर जब शीत ऋतु आती है तो सर्द हवाओं की शिकायत करता है । तब उससे सर्दी बरदाशत नहीं होती ।
वह भी तो यही कर रहा था । जब बाहर इंतजार कर रहा था तो उसे भीतर आने की जल्दी लगी थी । कब कोई उसे पुकारे और भीतर ले जाकर बैठा दे । अब भीतर आ गया है तो बाहर जाने को उतावला हो रहा है । पर वह करे तो क्या करे साढे दस बजे घर से चल पङा था कि जल्द से जल्द बेटे के पास पहुंच जाएँ और अब चार बजने वाले हैं । अभी तक बेटे का कोई संदेश भी नहीं मिला । आ जाए तो चैन आ जाए ।

बाकी फिर ...