पथरीले कंटीले रास्ते - 9 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 9

पथरीले कंटीले रास्ते

9

 

रानी और बग्गा सिंह दोनों काफी देर तक जीप को जाते हुए देखते रहे । जीप सङक का मोङ मुङ गयी और जाते जाते अपने पीछे धूल का गुबार छोङ गयी । उस धूल में सब कुछ आँखों से ओझल हो गया । जीप और उसके सिपाही भी और हथकङी में बंधा रविंद्र भी । पीछे बची रही तो सिर्फ धूल जो आँखों और नाक में भीतर तक समा गयी थी और अब आँखों में रङक रही थी ।

वहां से दोनों कचहरी के परिसर में ही एक कोने में लगे नल पर हाथ मुँह धोने पहुँचे । रानी ने छींटे मार मारकर रगङ रगङ कर चेहरा धोया मानो इस तरह भीतर का सारा विषाद धो डालना चाहती हो । हाथ मुँह धोकर जैसे ही दो घूँट पानी के हलक से नीचे उतारे तो पानी कलेजे में लगकर उसे चीरता हुआ नीचे उतर गया । रानी कलेजा पकङ कर वहीं जमीन पर बैठ गयी । बग्गा सिंह नल पर अभी मुँह धो रहा था । रानी को यूँ कलेजा थामे जमीन पर ही बैठे देखा तो दौङ कर आया – क्या हुआ । तू ठीक तो है न  

कुछ नहीं – और वह घुटनों पर हाथ रख कर उठ गयी ।

फिर वे धीरे धीरे चल कर वकील के पास आ गये ।

वकील साब . बेटा तो डेढ महीने के लिए जेल चला गया ।

बग्गा सिंह का गला भर आया था ।

वकील ने सामने पङी बोतल से पानी भर कर पानी के गिलास पति पत्नी दोनों की ओर बढाये ।

लीजिए पानी पीजिए सरदार जी । देखिए , उनके पास रविंद्र के खिलाफ कोई सबूत नहीं है । अगर होता तो कोर्ट के सामने पेश कर देते । यह बात अपने हक में जाती है । बिना सबूत के सजा किस बात की होगी ।

बाकी आप हिम्मत रखो । हो सके तो सबूत इकट्ठे करो कि रविंद्र के बस से उतरते ही शैंकी ने रविंद्र को बिना बात खूब माँ बहन की गालियाँ दी । उसे लङने के लिए उकसाया । इससे पहले रविंद्र बिल्कुल शांत था । वह चुपचाप नलके की हत्थी जोङ रहा था । जब गालियाँ बरदाश्त से बाहर हो गयी तो  उसने शैंकी को गालियाँ देने से मना किया । पर शैंकी नहीं माना , वैसे ही लगातार गालियाँ देता रहा । तब उसे चुप कराने के लिए रविंद्र ने हाथ में पकङी हत्थी फैंकी जो अचानक शैंकी के जा लगी । ये एक हादसा था । आसपास कोई तो होगा जो आपकी जान पहचान का हो । जिसने यह घटना घटते हुए देखी हो और कोर्ट में गवाही के लिए आने को तैयार हो जाए । अगर ऐसे एक दो आदमी मिल जाएं तो रविंद्र जेल से बाहर आ जाएगा ।

और अगर कोई गवाह न मिला तो ..? 

अव्वल तो ऐसा होगा नहीं । .आप कोई न कोई आदमी ढूँढ ही लोगे जो गवाही दे देगा और अगर कोई न ही मिला तो फिर अपने गवाह खङे करने पङेंगे ।

बग्गा सिंह ने अचरज से वकील को देखा ।

हां जी । फिर नकली गवाह खोजने पङेंगे । यहाँ कचहरी में दो चार आदमी यही काम करते हैं । ये एक पेशी का दो हजार रुपये लेते हैं । और मनचाही गवाही दे देते हैं । हालांकि इनकी गवाही दिलाना थोङा रिस्की होता है  पर आपके केस में इसकी नौबत नहीं आएगी । गाँव के लोगों में भाईचारा होता है । मुसीबत में सब एक दूसरे का साथ देते हैं । आप बस थोङी कोशिश करो । कोई न कोई मिल जाएगा ।

जी वकील साब । करते हैं कोशिश । फिर मिलते हैं आपको ।

जी नमस्कार

यह वकील की ओर से संकेत था कि अब उन्हें उठ जाना चाहिए ।

जी सत श्री अकाल वकील साब – और वे दोनों पति पत्नी पैदल ही बस अड्डे की ओर चल पङे । पाँच बजे वाली बस मिल गयी तो साढे पाँच – पौने छ तक गाँव पहुँच जाएंगे । पंद्रह मिनट पैदल चलकर ये लोग बस अड्डे पहुँचे । काउंटर पर गाँव जाने के लिए एक बस लगी खङी थी । ये दोनों बस में बैठ गये । सवारियाँ आती गयी और थोङी देर में ही यह बस सवारियों से ठसाठस भर गयी ।

जीप शहर के भीङ भरे इलाकों को छोङ कर हाईवे पर आ गयी थी । वहाँ से गोनियाना रोड पर चली और गोविंदपुरा की छोटी सङक पर पङ गयी । सङक के दोनों ओर सफेदे के पेह लगे थे । लंबे और पतले पेङ जिनकी कोई छाया न थी । वहाँ से खेत शुरु हो जाते हैं । फिर खेत बी खत्म हो गये तो पहाङी कीकरें और झङबेरी की झाङियाँ आनी शुरु हुई । आगे नहर के साथ साथ चल कर बठिंडा जेल का परिसर है । रविंद्र ने यह सुना तो हुआ था कि सिटी जेल की क्षमता बढाने के लिए पुरानी जोन को नष्ट कर दिया गया है । उसकी जमीन की सरकार नीलाम करने जा रही है । साथ ही निकटवर्ती गाँव गोबिंदपुरा में  कुछ जमीन अधिग्रहण किया गया है जहाँ नयी जेल बनाई जा रही है । ये नयी जेल पुरानी जेल से आकार और सुविधाओं में बङी थी । इसमें दस हजार कैदियों को रखने की सुविधा थी ।

इसके अलावा ध्यान योग , पुस्तकालय खेल का मैदान आदि की सुविधाएँ भी थी । जैसे जैसे जेल पास आ रही थी , रविंद्र के दिल की धङकन बढ रही थी । पता नहीं जेल कैसी होगी । वह पने घर परिवार से दूर कैसे रहेगा जेल की चारदीवारी में बंद होकर ।

अचानक एक झटके से जीप रुक गयी । सामने जेल का विशाल फाटक था । जिसके दोनों ओर जेल के छोटे फाटक थे । वहाँ गारद के पाँच – छ सिपाही राइफल लिए मुस्तैदी से पहरा दे रहे थे । जीप से उतर कर दो सिपाहियों ने उन लोगों से बात की । काफी देर की बात के बाद संतुष्ट होकर उन्होंने बङावाला फाटक खोल दिया । जीप अंदर बढ चली । अंदर दोनों ओर फूलों की क्यारियाँ थी जिनमें सीजनल फूल खिले थे । दूर सब्जी की क्यारियाँ भी नजर आ रही थी । जीप चलती रही । करीब एक किलोमीटर तो चली ही होगी कि एक और फाटक आ गया । यहाँ भी उनका आई कार्ड देखा गया । आने का कारण पूछा गया । तब उन्हें अंदर जाने दिया गया । भीतर पहुँचकर ऐसा लगा जैसे रेगिस्तान में आ गये हो ।दूर दूर तक घास का एक पत्ता तक नहीं था किसी पेङ के होने का सवाल ही नहीं । एकदम तपती नंगी धरती । काफी दूरी पर कुछ इमारतें नजर आई । वे लोग इमारत में पहुँचे । यहाँ पहुँच कर रविंद्र को जीप से उतारा गया । भीतर एक मुंशी कुछ लिखापढ़ी कर रहा था । सिपाहियों ने रविंद्र की फाइल उसे सौंपी । फाइल लेकर वह अंदर गया । सामने जेलर का आँफिस था । थोङी देर बाद वह लौटा – आप सब को जेलर साब भीतर बुला रहे हैं ।

 

बाकी फिर ...