पथरीले कंटीले रास्ते - 21 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 21

 

पथरीले कंटीले रास्ते 

 

21

 

बग्गा सिंह की सारी रात आँखों में ही कटी । तरह तरह की सोचें उसे परेशान किये रही । वह कभी लेट जाता , कभी उठ कर बैठ जाता । कभी इस करवट लेटता , कभी उस करवट । करवट बदल बदल कर वह थक गया । लग रहा था कि आज की रात कभी खत्म ही नहीं होगी । बेटे को करीब दस दिन हो गये थे देखे हुए । पता नहीं किस हाल में होगा ।
भोर में ही वह उठ कर बैठ गया । अभी गुरद्वारे में भाई जी ने आवाज देना शुरु नहीं किया था । न ही मस्जिद से मौलवी की अजान की आवाज सुनाई दी थी । सप्तऋषियों की मंजी अब पूरब की ओर घूम गयी थी । मतलब आधे घंटे में दिन चढ जाएगा । उसे चाय की तलब लगी । रानी को क्या उठाना । आजकल उसे भी नींद कहाँ आती है । हो सकता है , अभी अभी सोई हो । वह बिना कोई आवाज किये धीरे से उठा और अपने लिए चाय खुद ही बनाने का इरादा करके रसोई में जा पहुँचा ।
रानी पहले से ही चौंके में बैठी खटर पटर कर रही थी । सामने एक बाल्टी में पालक कटी हुई पङी थी । चूल्हे पर कुछ पक रहा था और रानी वहीं चूल्हे के सामने आटा गूथ रही थी ।
आप उठ गये । आओ बैठो , मैं चाय बना देती हूँ – उसने पीढी बग्गा सिंह के सामने कर दी ।
भलिए लोक , तू आधी रात में ही क्या बनाने लग पङी । अभी तो दिन चढने में बहुत टाईम है और तू न जाने कब से लगी हुई है ।
रानी ने हाथ धोकर चूल्हे पर चाय का पानी चढा दिया ।
सोचा , रविंद्र को साग बहुत पसंद है तो थोङा सा साग बना दूँ । दो तीन रोटी की चूरी भी बना दूँगी । बङे दिनों बाद घर के खाने का स्वाद मिलेगा बेचारे को । आज ढंग से रोटी खा लेगा । वहां तो न जाने क्या घास फूस मिलता होगा , गले से नीचे भी नहीं उतरता होगा ।
बेचारा पता नहीं कैसे दो कौर खाता होगा ।
पर भागवान , मुलाकात तो दोपहर में तीन बजे है । और तू तङक सार तीन बजे ही लग पङी भोजन बनाने । दिन तो निकल जाने दिया होता । रात भी पता नहीं सोई भी है या नहीं ।
रानी ने गिलास में चाय छान कर फिर से साग चढा दिया ।
साग इतनी जल्दी कहाँ बनता है रविंद्र के पापा । चार घंटे लग जाते हैं । अब पाँच बजे का चढाया हुआ नौ बजे तक तैयार होगा । फिर रोटी बनानी है । चूरी बनानी है । कद्दू की सब्जी बनानी है । जब तक ये सब बन कर तैयार होगा , पैक करूँगी , तेरे जाने का टैम हो जाना है । - उसने चाय का गिलास आगे बढा दिया ।
ठीक है । बना ले । मैं तब तक खेत जा आऊँ - चाय पीकर गिलास नीचे रखते हुए बग्गा सिंह ने कहा ।
जब वह खेत से लौटा , रानी का साग और चूरी तैयार होकर डिब्बे में पैक हो चुका था । रानी एक चूल्हे पर रोटी सेंक रही थी । दूसरे चुल्हे पर सब्जी चढा रखी थी ।
बग्गा सिंह को आया देख उसने लकङियाँ चूल्हे से बाहर खींची और उसके कपङे निकालने चल दी । तौलिया लेकर वह तुरंत नहाने लगा । नहाकर कपङे पहनता हुआ जब वह चौके में आया , रानी उसकी रोटी थाली में डाल चुकी थी । बग्गा सिंह आसन पर बैठ रोटी खाने लगा ।
रानी ने दस बारह रोटियां पोने में लपेटी । सब्जी एक डिब्बे में डाली । ऊपर से कङछी देसी घी डाल के ढक्कन लगा दिया ।
बग्गा सिंह ने टोका – इतनी सारी रोटियाँ ... ?
वहाँ जेल में उसका कोई दोस्त बन गया होगा , तो वह साथ खा लेगा । नहीं तो बच गयी रोटी वह रात को खा लेगा । मैंने घी का हाथ लगा कर नरम रोटी बनाई है । रात तक सूकेगी नहीं ।
सारा खाने का सामान उसने एक थैले में डाल कर एक दूसरे थैले में उसके कपङे डाल दिये – सुन कच्छे और बनियानें खरीद कर ले जाना न भूलना । सामान पकङाते हुए उसने फिर से याद दिलाया ।
ले जाऊँगा और बता ।
कुछ नहीं ।
साढे दस बजे वह घर से चल पङा । बठिंडा के मैहना चौक बाजार से उसने बनियान और अंडरबीयर खरीदे । साथ ही तीन टी शर्ट भी ले ली । हुमस का मौसम है । ये सूती टी शर्टें आराम देंगी ।
कोने में एक रेहङीवाला कुरकुरी जलेबियाँ निकाल रहा था । उसने वे भी आधा किलो तुलवा ली ।
वहाँ से सामने ही कचहरी थी तो वह वकील से मिलने चल पङा । वकील ने उसे देखा – हाँ जी बग्गा सिंह जी आ गये तैयार हो कर । चलो मैं भी आपके साथ चलता हूँ ।
आप साथ चलोगे । चलो वकील साब । बहुत बहुत मेहरबानी आपकी ।
वकील ने अपने मुंशी को बुलाया और आधे घंटे तक उसे केसों की बातें समझाता रहा । मुंशी सिर हिला हिलाकर हूँ हाँ करता रहा । दो बजे वह फाईल संभालता हुआ उठा ।
चलो , बघ्गा सिंह जी , कार में ही चलें पर कार में थोङा पैट्रोल कम होगा ।
कोई न जी रास्ते में डलवा लेंगे ।
वे दोनों कार पर सवार होकर चल दिये ।
वकील ने कार मान पैट्रोल पंप पर रोक दी । बग्गा सिंह ने पाँच सौ का नोट निकाल कर बढाया तब तक वकील साहब ने कहा – भइया हजार का कर दो ।
बग्गा सिंह का खिङकी से बाहर निकला हाथ लौट आया । उसने चुपचाप कुरते की जेब से
एक पाँच सौ का नोट और निकाला और वे दोनों नोट पैट्रोल डाल रहे लङके की ओर बढा दिये ।
पैट्रोल डलते ही कार सैंट्रल जेल की ओर बढ चली ।
वकील साहब के साथ होने का यह फायदा हुआ कि उन्हें जेल के फाटकों पर ज्यादा पूछताछ का सामना नहीं करना पङा । मामूली पहचान पत्र दिखाकर उनकी कार को भीतर जाने दिया गया । तीनों दरवाजे पार कर वे जेल सुपरिटैंडेंट के दफ्तर पहुँचे ।
बग्गा सिंह को नीम की छाया में छोङ कर वकील अंदर सुपरिटैंडेंट के दफ्तर में घुस गया । बग्गा सिंह की बेचैनी लगातार बढ रही थी । कितनी देर और इंतजार करना पङेगा । यहाँ वह कब तक खङा रहेगा । वकील अंदर क्या कर रहा है । बाहर क्यों नहीं आ रहा ।
घबराहट के मारे उसका गला सूखने लगा था । दो सिपाहियों ने उसकी ये हालत देखी तो पूछा – अंकल जी किसी को मिलना है क्या
अपने बेटे रविंद्र से मिलने आया था । हमारा वकील अंदर साहब से मिलने गया था । अभी तक वापिस ही नहीं आया ।
एक सिपाही ने अपनी पानी की बोतल उसकी ओर बढा दी – आता ही होना है ।
पानी पीकर उसकी जान में जान आई । वह उस सिपाही के प्रति आभार व्यक्त करना चाहता था पर वे कहीं चले गये और आभार के शब्द बग्गा सिंह के पास ही रह गये ।

बाकी फिर ..