बच्चों में डाले गर्भ से संस्कार - 3 नीतू रिछारिया द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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बच्चों में डाले गर्भ से संस्कार - 3

वेदों के अनुसार ऐसे कारक जो गर्भ में बच्चे के विकास को प्रभावित करते हैं— 
गर्भावस्था में शिशु व माता का बहुत ही प्रगाढ़ संबंध होता है। माता के पेट में शिशु 9 माह गुजारता है। इस अवधि में शिशु को एक अति कोमल नाल के द्वारा माता के श्वास से श्वास तथा भोजन से पोषण मिलता रहता है। इस दौरान स्वाभाविक ही माता के शारीरिक, मानसिक व नैतिक स्थिति का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है। कुछ महत्वपूर्ण कारक (फैक्टर्स) होते हैं जो कि एक बच्चे के विकास को प्रभावित करते है इन कारकों को समझने के लिए कुछ उदाहरण लेते हैं— जैसे कि एक ही घर में जन्म लेने वाले भाई बहन। उनका वातावरण भी एक जैसा है। माता के स्वास्थ्य की स्थिति भी एक जैसी है। उनका आहार भी समान है। तो भी एक दूसरे से अलग होते हैं हमें पता है कि दो जुड़वा बच्चों में भी बहुत अंतर होता है तो इसका मतलब है कि कुछ अलग चीजें हैं जो एक बच्चे के विकास पर असर करती हैं तो वह कारक क्या है इन सारे कारकों को जानकर ,अच्छी तरह से समझकर एक आधार बनाकर अपने आने वाले बच्चे का अच्छी तरह से विकास कर सकते हैं। पहले हम देखेंगे कि वैदिक तौर पर वे कारक कौन से हैं जो गर्भ में बच्चे के विकास को प्रभावित करते हैं — चरक संहिता में बहुत ही अच्छी तरह से वर्णन किया गया है तो सबसे पहले हम बात करते हैं— मनुष्य का डेवलपमेंट छह संस्कार के बेस पर होता है उसमें से पहला है—

मातरुज भाव— माता की तरफ से आने वाले भाव। मां की पांच पीढ़ी के आनुवंशिकी गुण आने वाले बच्चे में आ सकते हैं। 

पित्तरुज भाव— पिता की तरफ से आने वाले भाव। पिता की बारह जनरेशन के भाव बच्चे में आ सकते हैं। जैसे कि कुछ बच्चों के बाल काले होते हैं , कुछ बच्चों के बाल सीधे होते हैं , कुछ बच्चों के बाल घुंघराले होते हैं, कुछ बच्चों के बाल भूरे होते हैं जबकि उनके माता और पिता दोनों के ही ऐसे बाल नहीं होते हैं। उनके दादा-दादी और ना ही नाना-नानी के ऐसे बाल होते हैं, तो हम समझ सकते हैं कि माता-पिता की पांचवी या बारहवीं जनरेशन में किसी ना किसी के ऐसे बाल रहे हैं वहीं से वह बच्चे को मिले हैं। कोई भी एक करैक्टर बच्चे में आने के चांस रहते हैं इसे मेडिकल लैंग्वेज में जेनेटिक एक्सप्रेशन कहते हैं। अब तक हम सोचते थे कि यह अपने आप ही तय होता है कि कौन से गुण बच्चे में आने हैं और कौन से गुण नहीं आने हैं। यानी कि यह सब रेंडम चॉइस होती है। लेकिन मेडिकल साइंस ने यह सिद्ध किया है कि जेनेटिक एक्सप्रेशन है वह माता-पिता के हाथ में है ओर माता-पिता जो भी गतिविधि करते हैं। यानी माता-पिता की जीवन शैली के अनुसार, माता-पिता के विचारों के अनुसार, यह सब निर्धारित करते हैं कि आने वाले बच्चे में कौन से गुण आने देने हैं। साइंटिफिक गर्भ संस्कार में भी यही है कि कैसे साइंटिफिकली अपने शरीर के अंदर बदलाव लाकर अनुवांशिक प्रक्रिया के चयन को सकारात्मक प्रभाव से कर सकते हैं। ताकि एक उत्तम संतान की प्राप्ति हो। 

आत्मज भाव— आत्मा और मन का संयुक्त प्रवेश होने पर आने वाले भाव। चरक संहिता में कहा गया है एक बच्चा अपने जन्मो-जन्म के संस्कार भी लेकर आता है। मेडिकल साइंस भी अलग-अलग तरह के रिसर्च करके इस बात को मानता है। हमारे वेदों में जो कारण शरीर की बात की गई है उसको मेडिकल साइंस में सेल को बेसिक इंटेलिजेंस के नाम से जाना जाता है।प्रत्येक सेल तय करती है कि उनको अपने आप में क्या रूपांतरण (कन्वर्जन) लाना है। हम जानते हैं कि एंब्रियो एक ही होता है उसी के अलग-अलग सेल में से आंखें भी बनती है, कान भी बनता है, नाक भी बनता है तो कैसे सेल तय करती है कि मुझे नाक के रूप में जाना है,मुझे आंख के रूप में जाना है ,उसमें भी मुझे आईलैशेस बनना है। यह सारी प्रक्रिया बेसिक इंटेलिजेंस सेल के अंदर होती हैं । इन सब का डीएनए टेस्ट करते हैं तो एक समान ही आएगा । उसको मेडिकल साइंस में बेसिक इंटेलिजेंस ऑफ सेल नाम से जाना जाता है। जिसके हमारे वेदों में कारण शरीर या आत्मज-भाव कहा गया है। 

सात्मयज भाव— गर्भधारण होने के बाद माता जो शिशु के लिए हितकर होने वाला आहार लेती है उससे निर्मित होने वाले भाव। एक माता जो भी पूरे दिन में अपनी जीवन शैली रखती है– कितने बजे उठती है। कितने बजे सोती है। कितने बजे खाना खाती है। क्या खाती है। कितना तनाव लेती है। या तनाव नहीं लेती है। कितनी देर फेसबुक उपयोग में लेती है। कितना व्हाट्सएप उपयोग में लेती है। ये सब कुछ एक बच्चे के विकास पर भी असर करते हैं। हमें इस बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए कि गर्भावस्था के दौरान और प्लानिंग फेज में फेसबुक और व्हाट्सएप से दूर रहना है। फेसबुक और व्हाट्सएप एक गर्भवती महिला या गर्भावस्था के चरण (प्रेगनेंसी फेज) में या जो प्लानिंग फेज में है तो उसको दो तरह से नुकसान करती हैं– पहला तो जो नेट की वजह से रेज या रेडिएशन आते हैं। वह आपके बच्चे को बहुत नुकसान करती हैं और आपके एग और स्पर्म के डेवलपमेंट को भी नुकसान करती हैं। दूसरा जो कारण है कि– व्हाट्सएप और फेसबुक में बहुत सारी नकारात्मक जानकारी भी हमें मिलती है और हमारा मन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उसके बारे में सोचता है तो उससे सात्मयज भाव में समस्याएं आती हैं। जितना हो सके मोबाइल से दूर रहें अगर मोबाइल का उपयोग करना भी पड़ रहा है तो बिना नेट वाला सिंपल मोबाइल का उपयोग करें। 

रसज भाव— गर्भ की वृद्धि के लिए जरूरी आहार का सेवन करने से शरीर में निर्माण होने वाले भाव। एक माता जो भी भोजन का उपभोग करती है वो भोजन रस बनकर बच्चे के शरीर का विकास करता है। लेकिन मां जो भी देखती है ,जो कुछ सुनती है, वही बच्चे की आत्मा का और चित का निर्माण करती है। यानी कि बच्चे के मन का निर्माण करती है, अंत में गर्भवती महिला जो भी देखती है, सुनती है वो रसज भाव बनकर बच्चे के निर्माण पर असर करता है । 

सत्वज भाव— आत्मा और मन का संयुक्त प्रवेश होने पर आने वाले भाव । मां के जो भी विचार हैं, भावना है, वह बच्चे के विकास पर असर करते।