बच्चों में डाले गर्भ से संस्कार - 1 नीतू रिछारिया द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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बच्चों में डाले गर्भ से संस्कार - 1

गर्भ संस्कार क्या है ?
सरल शब्दों में अगर गर्भ संस्कार को समझाया जाए तो इसका मतलब होता है— बच्चों को गर्भ से ही संस्कार प्रदान करना, ताकि वे समाज में अपनी आदर्श छवि प्रस्तुत कर पाएं। बहुत से लोग इस बारे में प्रश्न उठाते हैं कि गर्भ में बच्चे को कैसे संस्कार दिये जा सकते हैं। तो आपको बता दें कि ये बातें सिर्फ धार्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी सच साबित हुई हैं कि गर्भ में पल रहा शिशु किसी चैतन्य जीव की तरह व्यवहार करता है। वह सुनता भी है, समझता भी है, साथ ही ग्रहण भी करता है। गर्भ संस्कार की विधि गर्भ धारण के पूर्व से ही शुरू हो जाती है। गर्भ संस्कार में गर्भवती महिला की दिनचर्या, उसका आहार, ध्यान, गर्भस्थ शिशु की देखभाल कैसी की जाए, इन सभी बातों का वर्णन किया गया है। इस बात से हर कोई सहमत होगा कि गर्भावस्था के दौरान महिला जो खाती है, उसका असर शिशु पर जरूर होता है। उसी प्रकार महिला क्या सोचती है, क्या बोलती है व क्या पढ़ती है, उसका असर भी गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है। इसलिए, गर्भवती महिला को उत्तम भोजन करना चाहिए और हमेशा प्रसन्न रहना चाहिए। 

क्यों जरूरी है गर्भ संस्कार ?
उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए गर्भाधान संस्कार जरूरी होता है। जब पति-पत्नी के मिलन से संतान की उत्पति होती है, तो उस मिलन को ही गर्भाधान संस्कार का पहला चरण कहा जाता है। वर्तमान समय में सबसे ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता बच्चों पर ही है। बच्चे ही समाज एवं राष्ट्र का भविष्य हैं। बच्चे ही इस देश की प्राण ऊर्जा है, इन पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा सके तो निश्चित रूप से क्रमश: परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व का कल्याण हो सकता है। आज पैदा होने वाले बच्चे कल भविष्य में युवा बनकर देश की बागडोर एवं अन्य जिम्मेदारियां सॅंभालते हैं। यदि उन्हें ठीक प्रकार से गढ़ा नहीं गया, उनमें सही समझ पैदा नहीं हुई, तो उनका जीवन कुंठित एवं रूग्ण हो जाएगा। एक संस्कारित बच्चा ही अपने माता- पिता के नाम को प्रकाशित कर सकता है, हर घर में संस्कारित बच्चे हो तो निश्चित रूप से धरती के हर घर-परिवार में स्वर्गीय वातावरण हो जाएगा। आजकल हर माता-पिता अपने बच्चे के विकास के लिए बहुत चिंता करते हैं। लेकिन यदि माता-पिता विरासत में अच्छे संस्कार दे सकें, तो फिर उन्हें कुछ और खास चीज देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, क्योंकि ऐसी संताने न केवल अपना भविष्य सुधार लेंगी, बल्कि औरों के लिए भी साधन सुविधाएं जुटा लेगी। 

गर्भ संस्कार कब शुरू किया जाता है?
एक महिला के गर्भवती होते ही गर्भ संस्कार शुरू हो जाता है। लेकिन एक उत्तम संतान के लिए गर्भ संस्कार, गर्भ धारण करने से लगभग 1 वर्ष पहले ही शुरू कर देना चाहिए। गर्भ संस्कार में गर्भावस्था से पहले, गर्भावस्था के दौरान यहां तक स्तनपान की अवधि भी शामिल होती है। गर्भ संस्कार गर्भावस्था के साथ-साथ शिशु के दो वर्ष का पूरा होने तक करना चाहिए। इस दौरान आप बच्चे से बात करें और उसे अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाएं। विज्ञान भी कहता है कि गर्भ में पल रहा भ्रूण हर आवाज पर अपनी प्रतिक्रिया देता है। मां के शरीर से कुछ हार्मोंस निकलते हैं, जो शिशु को एक्टिव करते हैं। इसलिए, आप पूरे गर्भावस्था के दौरान सकारात्मक सोच बनाए रखें। 

गर्भावस्था के दौरान होने वाली मां की भूमिका
हमारे पूर्वज मानते थे कि अगर माता-पिता, दोनों में से कोई एक भी मानसिक रूप से शांत और खुश नहीं है तो गर्भधारण नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से होने वाली संतान की मानसिक अवस्था पर प्रभाव पड़ता है। धर्म शास्त्रों में मन: स्थिति पर बहुत जोर दिया गया है क्योंकि तनाव से आपके स्वास्थ्य और स्वभाव पर बुरा असर तो पड़ता ही है, साथ ही आपकी होने वाली संतान भी इसी प्रवृत्ति की हो जाती है। इसीलिए माता और पिता, दोनों का ही खुश और चिंतामुक्त रहना जरूरी है। 

1. सही खानपान– शुद्ध खानपान से मतलब है, सात्विक और अच्छा आहार ग्रहण करें। इससे आपके होने वाले बच्चे को वे सभी जरूरी प्रोटीन और विटामिन्स मिलेंगे, जो उसके शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक हों। 

2. तनाव से दूर रहे– गर्भावस्था के दौरान अगर मां तनाव में होगी तो बच्चा भी उसी तनाव को महसूस करेगा और इसका असर उसके मानसिक विकास पर भी पड़ सकता है। इसीलिए प्रेगनेंसी के दौरान खुश रहें और आने वाले पलों के स्वागत की तैयारियों में व्यस्त रहें। 

3. ध्यान– गर्भ संस्कार में ध्यान करना आवश्यक है और यह शरीर के लिए फायदेमंद है और मन को तनावमुक्त करता है। यह मन के स्तर को शून्य की ओर ले जाता है। जिसकी मदद से आप को शांति, धैर्य व एकाग्रता प्राप्त होती है। ध्यान करते समय बच्चे के बारे में अच्छी कल्पनाएं मां और बच्चे के संबंध को बेहतर बनाने और सकारात्मक सोचने का एक सर्वोत्तम तरीका है। 

4. प्रार्थना– प्रार्थना करना गर्भ संस्कार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह माना जाता है यह बच्चे के आध्यात्मिक विकास के लिए अच्छा है पौराणिक ग्रंथों में कुछ ऐसे मंत्र श्लोक दिए हुए हैं जो एक गर्भस्थ शिशु के लिए लाभकारी होते हैं। इस दौरान जो भी प्रार्थनाएं कि जाती हैं वह बच्चे की अच्छी सेहत व नैतिक मूल्य के लिए की जाती हैं और यह आध्यात्मिक विश्वास का एक भाग है। 

5. शांति प्रदान करने वाली और आध्यात्मिक किताबें पढ़ें— गर्भ संस्कार के अनुसार गर्भवती महिला को आध्यात्मिक किताबें पढ़नी चाहिए जिनसे उसे संतुष्टि और शांति प्राप्त हो सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान ज्ञान की किताबें पढ़ने से गर्भ में शिशु का व्यक्तित्व आकार लेता है यह भी माना जाता है कि गर्भावस्था के दौरान पढ़ने से अजन्मे शिशु में ज्ञान के विकास में मदद मिलती है इस दौरान नैतिक मूल्यों पर आधारित या पौराणिक किताबें पढ़ने की सलाह दी जाती है जैसे की— हरिवंश पुराण, श्रीमद्भगवद्‌गीता, रामायण, गर्भगीता अच्छे-अच्छे महान पुरुषों के जीवन चरित्र की किताबें पढ़नी चाहिए। आप चाहे तो अपनी पसंद के अनुसार कोई और प्रेरणादायक किताबें भी चुन सकती हैं। 

6. शांति दायक संगीत सुनें— गर्भ संस्कार के अनुसार गर्भ में पल रहा शिशु बाहरी संगीत पर भी प्रतिक्रिया देता है असल में पौराणिक ग्रंथ यह भी कहते हैं कि गर्भावस्था के सातवें माह से शिशु सुनने व प्रतिक्रिया देने में सक्षम होता है इसलिए गर्भवती महिला को कोई ऐसा संगीत सुनना चाहिए जो उसे शांति प्रदान करें ऐसा कहा जाता है कि मां व शिशु के लिए सौम्य व आध्यात्मिक गीत या मंत्र श्लोक लाभकारी होते हैं। गर्भ संस्कार के अनुसार शिशु पर संगीत का चिकित्सीय प्रभाव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गर्भ में पल रहे शिशु की सबसे करीब ध्वनि उसके माँ की धड़कन होती है और इसलिए बच्चे के रोने पर यदि माँ उसे सीने से लगाकर चुप कराए तो वह जल्द ही चुप हो जाता है। जैसे ही शिशु किसी अपने की ध्वनि सुनता है तो वह शांति महसूस करता है। बिलकुल ऐसा ही संगीत के साथ भी होता है और हृदय की धड़कन के समान ही संगीत की धुन शिशु में शांति प्रभाव का अनुभव प्रदान करती है। गर्भ संस्कार यह मानता है कि वीणा, तारों वाले वाद्य और बांसुरी में वह धुन समाहित है जो मन व आत्मा को शांति प्रदान करती है । 

7. बुरी आदतों को छोड़ दें— अगर कोई महिला गर्भवती होने के बाद भी धूम्रपान या फिर किसी अन्य तरह का नशा करती हो तो उसे यह बिल्कुल छोड़ देना चाहिए। इससे उसके स्वास्थ्य के साथ-साथ शिशु की सेहत पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसीलिए इससे बचें और अच्छी आदतों को अपनाएं। 

8. कुछ बातों का रखें खास ध्यान— आपके उठने- बैठने का तरीका, सोने का तरीका भी बच्चे के विकास के लिए जिम्मेदार होता है। इसीलिए धीमे- धीमे चलें, झटके से मत उठें और पीठ के बल न सोएं और कोशिश करें कि गर्भ पर कभी भी सीधी रोशनी न पड़े, यह बच्चे के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है। डॉक्टर और विशेषज्ञों के मुताबिक गर्भावस्था में बाई तरफ करवट लेकर सोना सबसे सही पोजीशन होता है। इससे शिशु का बेहतर विकास होता है। साथ ही आपके शरीर को ज्यादा आराम मिलता है। बाई और करवट लेकर सोने से आपके गर्भनाल से आप के शिशु को सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। साथ ही आपका रक्त प्रवाह भी दुरस्त बना रहता है। इस तरह से सोने का एक और फायदा है इससे आपके शरीर के अंदर मौजूद विषाक्त तत्व भी बहार निकल जाते हैं और आप कई तरह के संक्रमण आदि से बच जाती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक गर्भावस्था में पर्याप्त मात्रा में आराम भी बहुत जरूरी है। इस दौरान कम से कम 7 से 9 घंटे की नींद जरूरी है। 

9. ऐसे बनता है बच्चा खुशमिजाज— विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भधारण के 14वें दिन पर पहला न्यूरोन बनता है। फिर हर मिनट ढाई लाख न्यूरोन बनते हैं, जो आपस में जालीनुमा रचना बनाकर मस्तिष्क व नव्र्स बनाते हैं। इसके बाद शरीर व ज्ञानेंद्रियों का निर्माण होता है। इस समय गर्भ में जो अनुभव होता है वह शिशु की मेमोरी में जा बैठता है।यदि मां खुश है तो उसके मस्तिष्क से निकलने वाले न्यूरो हार्मोस प्लेसेंटा के जरिए बच्चे में पहुंचते हैं और केमिकल सिगनल के माध्यम से बच्चे की कोशिकाओं पर असर करते हैं। ये विशिष्ट न्यूरो हार्मोस ज़ाइगोट की सेंसेटिव कोशिकाओं को बढ़ाने व खुलकर विकसित करने में सहायक होते हैं जिससे बच्चे का स्वभाव खुशमिजाज बनता है। 

10. होने वाले शिशु से बातें करें— गर्भ में पल रहा बच्चा 23 वें हफ्ते से कुछ आवाज़ों के प्रति रिस्पॉन्स देना शुरू कर देता है और खासतौर से अपनी मां की आवाज़ पर। इसीलिए इस दौरान अपने होने वाले बच्चे को स्पर्श का एहसास दिलाएं और उससे अच्छी –अच्छी बातें करें। उसे कविता, गीत और मंत्र सुनाएं। इससे उसका मस्तिष्क तेजी से विकास करेगा।