नक़ल या अक्ल - 52 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

नक़ल या अक्ल - 52

52

चक्कर

 

 

 

रिमझिम ने बात घुमाते  हुए कहा, नानू  कॉलेज  बंद है, मगर लाइब्रेरी  खुली हुई  है।

 

पर लाइब्रेरी  भी तो कॉलेज के अंदर आती है।

 

लेकिन स्टूडेंट्स के लिए लाइब्ररी  शाम तक खुली रहती है। अच्छा मुझे बहुत भूख  लगी  है। यह कहकर  वह रसोई में  चली गई।  

 

सोनाली वही नदी के किनारे बैठ गई।  उसे बुरा  लगा रहा है कि  नन्हें ने उससे ऐसे बात की, कुछ देर ऐसे अकेले बैठने के बाद, उसने खुद को समझाते  हुए कहा,  “जाए  भाड़  में, मैं कोई उसके लिए मरी जा रही हूँ। सिर्फ दोस्त ही तो है “ अब वह भी गुस्से में  नदी में  एक पत्थर फेंकती  हुई  वहाँ  से चली गई।

 

घर पहुँची तो देखा दीदी खाना  बना रही है, वह सीधा अपने कमरे में  चली गई  और रिमझिम को कॉल करकर पेपर के बारे में  बताया, “यह तो बहुत बुरा हुआ।“ उसने जवाब दिया।  “वैसे तू आज सारा दिन कहाँ थीं?” “बाद में  बात करते हैं।“  यह कहकर उसने फ़ोन रख  दिया।

 

राधा,  लक्ष्मण प्रसाद, किशोर और नन्हें  को रात का खाना  परोस रही है। सरला तवे पर फुल्के बना रही है। काजल  अपनी पढ़ाई कर रही  है। नन्हें  यह तो बहुत बुरा हुआ, अब दोबारा  पेपर कब होगा? सुना है, छह  महीने बाद । नन्हें  ने बुझे मन से जवाब  दिया। यह सुनकर किशोर बोल पड़ा, “चलो अच्छा हुआ अबकी जी कसर रह गई है, उसे पूरा कर लियो। अरे!! भाई पेपर और भी मुश्किल कर देंगे। तो इससे क्या फर्क पड़ता है। किशोर ने खाने का एक निवाला मुँह में डालते हुए कहा।

 

 

रात को फिर से बूंदा बादी हो रही है।  निहाल अपने कमरे में सोया हुआ सोच रहा है, “पता नहीं कमलेश कहाँ होगा।“ उसने तो अपना नंबर ही बदल लिया है। उसके घरवाले, गॉंव का मकान  किराए  पर चढ़ाकर शहर चले गए हैं। इस तरह सोचते हुए उसे पता ही नहीं चला कि उसे कब नींद आ गई।

 

अगली सुबह बिरजू राजवीर के साथ शहर के लिए निकल गया। दोनों भाई राजू ट्रेवल की वैन में गए ताकि कंप्यूटर खरीदकर ला सकें। शहर की सड़कों पर लड़कियों  को स्कूटी  चलाते  देखकर राजवीर बोला, “यह होती है लड़कियाँ,  टाइट  जीन्स और शर्ट  में  कितनी कमाल  लग रही है।“ “बिरजू ने कहा तू भी कोई शहर की गौरी पटा लियो, वैसे तुम्हें  दोबारा पेपर देने को मिलेगा, इसलिए पूरी जान लगा दियो।“ “हाँ कोशिश करूँगा।“ उसने मुँह बनाते हुए कहा।

 

 

सोनाली रिमझिम से मिलने उसके  नाना की दुकान  पर गई  तो उसने नीमवती से सुनी सारी  बात उसे बताई।  सोना ने सुना तो उसे हैरानी और दुःख हुआ, “यार !! यह बहुत बुरा हुआ। वे लोग सचमुच  बड़े जालिम थें,” “हम्म!” रिमझिम ने सिर  हिला लिया। “अब तुझे सच्चाई पता चल गई है तो अपनी  पढ़ाई  पर ध्यान  लगा, कम से कम तेरा बैंक का पेपर तो लीक नहीं होगा।“ रिमझिम ने कोई ज़वाब  नहीं दिया मगर उसका चेहरा बता रहा है कि उसके मन में कुछ न कुछ ज़रूर चल रहा है। तभी नन्हें भी एक लकड़ी की चौंकी खरीदने उसके पास आ गया।  सोना ने उसे देखकर  नज़रें  फेर लीं तो वहीं  नन्हें  को भी कोई फर्क नहीं पड़ा, उसने रिमझिम से पूछा,

 

यह लकड़ी  का बेलन  भी दे दो । वैसे कल कहाँ थी रिमझिम, दिखी नहीं ?

 

किसी काम से कहीं गई  थी, उसने लकड़ी का बेलन उसे पकड़ाया तो नन्हें ने भी उसे पैसे पकड़ा दिए। वह अब भी सोनाली  को अनदेखा करता हुआ, वहाँ से चला गया। उसके जाते ही रिमझिम बोली,

 

क्या बात है!!! नन्हें ने तुझसे बात नहीं की ?

 

“भाड़ में  जाए  वो,”  वह  भी पैर  पटकते  हुए वहाँ  से चली गई।

 

बिरजू  पाँच  कंप्यूटर खरीदकर  उस दुकान  में  पहुँचा  जो उसने कैफ़े बनाने के लिए खरीदी है। अब उसने वहां  पर कम्प्यूटर लगाए  और  फिर दो तीन लोग इंटरनेट का कनेक्शन लगाने के लिए आ गए। उन्होंने सभी कंप्यूटर की अच्छे से जाँच की और बिरजू को नए काम की बधाई  देकर चले गए।

 

भाई! एक बार काम शुरू करने से पहले  कैफ़े में  पूजा  करवानी  चाहिए। राजवीर ने कहा।

 

तू सही कह रहा है।

 

अच्छा भाई, मैं चलता हूँ। उसके जाने के थोड़ी देर बाद निर्मला वहाँ आ गई। बिरजू ने उसे पहले ही फ़ोन करकर इस कैफ़े के बारे में  बता दिया था। वह सब देखकर बोली, “बिरजू सब कितना  अच्छा है।“

 

यह सब तुम्हारी  वजह से हुआ है।

 

मेरी वजह से ???

 

हाँ, तुमने मुझे फिर से ज़िन्दगी को गले लगाने का होंसला दिया है ।

 

यह बात मैं तुम्हारे लिए भी कह सकती हूँ। अब दोनों एक दूसरे की आँखों में झाँकते हुए बहुत नजदीक आ गए। तभी बिरजू का फ़ोन बजा और उनका ध्यान हटा।

 

मधु जमींदार को अपनी सहेली उषा से मिलने का बोलकर घर से चलती जा रही है।  उषा का घर तो कबका निकल गया, मगर वह है कि  जाती जा रही है। अब वह गॉंव की उस गली में  मुड़  गई, जहाँ  पर टूटी  फूटी  झोपड़ियाँ  है, उसने उन सभी को देखा और एक ठीक ठाक  झोपड़ी  का दरवाजा  खोलकर घुस गई, उसके अंदर घुसते ही उसने मधु को पागलों की तरह चूमना शुरू कर दिया, फिर वह उसे लेकर  एक घास पर गिर गया और उसके बदन से खेलने लगा। फिर उसने मधु  का घाघरा  ऊपर किया और उसके अंदर हाथ डाल  दिया, मधु !! बोली, “हरीश, मैं पेट  से हूँ। उसके हाथ वहीं  रुक गए। उसने मुस्कुराती  हुई  मधु  को देखा तो उसकी त्योरियाँ  चढ़ गई,  उसने मधु के स्तनों को इतनी ज़ोर से दबाया कि  उसकी  चीख  निकल गई,

 

उस सुधीर का बच्चा तेरे पेट में  क्या कर रहा है?

 

हरीश, छोड़ो मुझे और उसने फिर उसे छोड़ा और उसके साथ लेट गया। वह उसके सीने पर सिर रखते हुए बोली, “यह तुम्हारा और मेरा है!!!”

 

नहीं यह नहीं हो सकता। हरीश ने उसे झटक दिया और उसकी गर्दन को काटता  हुआ बोला, “मैं कैसे मान लो!!!”

 

मैं कह रही  हूँ इसलिए उसने दर्दभरी आवाज  निकाली।

 

तेरे उस सुधीर और उसके बाप जमींदार के खेतो में  काम करते करते मेरी क्या हालत हो गई है। मगर मैं सिर्फ तेरे लिए ऐसा करता रहा और तू उसके बच्चे की माँ बनी फिरती है। उसने मधु को नफ़रत से देखा तो उसने उसके होंठ चूमते हुए कहा, “मैं साबित  कर दूंगी कि यह तुम्हारा बच्चा है।“ उसने उसकी आँखों में  देखते हुए कहा, “अगर यह मेरा बच्चा नहीं हुआ तो तुझे भी पता है कि  मैं तेरा क्या हाल करूँगा,”  उसने उतावले होकर उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया।