दिल से दिल तक एक तरफ़ा सफ़र - 5 R. B. Chavda द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

दिल से दिल तक एक तरफ़ा सफ़र - 5

 

यह महज़ चंद लफ्ज़ नहीं,
दिल से दिल की बात है,
कुछ में लिखू जो तुम्हे छू जाये,
यह तो बस शुरुआत है।

हम 1 जुलाई को ही हॉस्पिटा जा के आये थे। फिर तो मेरे exams स्टार्ट होने वाले थे और में अपनी तैयारी में लग गयी। इन् दिनों ऑफिस में भी बहुत ही काम रहता और exams आने वाले थे तो उसकी भी तैयारी , इसलिए मुझे टाइम ही नहीं मिलता था की में डॉक्टर साहब को सोशल मीडिया पे भी देखु। लेकिन उनको हर रोज़ याद करना तो compulsory था। फिर आया मेरे exams का पहले दिन और एक interesting बात तो यह है की डॉक्टर साहब के जन्मदिन पर ही मेरा पहला पेपर था। उस रात तो पूरी रात पढ़ाई की और 12 बजे मुझे हुआ की क्या में उनको सोशल मीडिया पर मेसेज करू ? फिर लगा अभी नहीं करना चाहिए और अभी सिर्फ कल के पेपर की तैयारी करनी चाहिए। फिर सुबह मैंने बैग पैक किया एग्जाम के लिए और साथ ही डॉक्टर साहब को बर्थडे विश भी किया सोशल मीडिया अकाउंट से उनको मेसेज किया। फिर तो में चली गयी एग्जाम देने। वैसे उस दिन मेरा एक ही पेपर था और बस से जाना था इस लिए में ६ बजे की बस से एग्जाम सेन्टर पहुंची और फिर एग्जाम के लिए सब चेकिंग और यह सब हुआ फिर एग्जाम हॉल में पहुंची। वैसे मेरा पेपर बहुत ही अच्छा गया था। दोपहर को मेरा एग्जाम ख़त्म हुआ और में पहुंची बस स्टैंड वापिस घर आने के लिए। मुझे घर पहुंचते पहुंचते 3 बज गए। फिर में घर आकर फ्रेश होकर सो गयी। तब तक मैंने अपना सोशल मीडिया अकाउंट देखा ही नहीं फिर जाके शाम को मैंने सोशल मीडिया अकाउंट खोला और देखा की डॉक्टर साहब का thank u का मेसेज आया था आप मानोगे नहीं मुझे बिलकुल भी यह उम्मीद नहीं थी की उनका रिप्लाई आएगा। फिर मैंने उनके साथ थोड़ी बात की जैसे मुझे पेटिंग्स का बहुत शौख है तो मैंने उनको मेरी बनायीं हुयी कुछ पेटिंग्स की फोटो भेजी और उन्होंने बखान भी किये।

बस उस समय के ठीक एक महीने के बाद हमारा फिर से हॉस्पिटल जाना हुआ क्योकि मुझे अपने करीबी का चेकअप करवाना था। हम हॉस्पिटल पहोचे सुबह के 9 बजे और ये लम्बी लाइन फिर क्या था में उस लम्बी सी लाइन में लग गयी। इस बार भी मुझे डॉक्टर साहब को देखना था मतलब उनको देखने की आतुरता थी। पता नहीं वो दिन कैसे शुरू हुआ था क्युकी कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था मेरे साथ जैसे की लाइन में खड़ी रही और अगर बारी आ भी जाती तो वहां कहते यहाँ नहीं आपको कही और जाना था ऐसे करके हमने लगभग तीन से चार बार अलग अलग डॉक्टर को दिखाया इतने में शाम होने को आ गयी। लेकिन जभी में लाइन खड़ी थी न तब डॉक्टर साहब वहां से गुज़रे और उन्होंने मेरे करीबी को देखा और इधर उधर देखने लगे। मुझे literally लगा की शायद वो मुझे ढूँढ रहे होंगे लेकिन क्या ऐसा हो सकता था ? बिलकुल भी नहीं। उन्होंने न इस बार अपना लुक थोड़ा सा बदला था , मतलब उन्होंने ब्लैक शर्ट और ब्राउन पेन्ट पहना था , बहुत ही अच्छे शूज पहने थे और इन् भी किया था, मुझे तो बहुत ही अच्छा लगा उनको देख कर। फिर तो वह कही चले गए और उनको देखने का मौका नहीं मिला , लेकिन finally हमारा नंबर आया सही डॉक्टर को दिखाया और उन्होंने दवाईया लिख दी। फिर में हॉस्पिटल के बहार दवाईया लेने गयी और दवाईया लेने क बाद सोचा एक बार उस डॉक्टर को बता दू की क्या यह दवाईया सही है। इसलिए में उस डॉक्टर के पास गयी और वहां जाके देखा तो उस डॉक्टर के साथ मेरे डॉक्टर साहब भी थे उन्होंने दवाईया भी देखि और मुझसे मेरे करीबी के हालचाल भी पूछे और दवाईया सही है बोला फिर में वह से निकल गयी और में अपने करीबी के साथ वापिस घर आ गयी। बस वह हमारी आखरी मुलाकात थी क्युकी उसके बाद मेरे करीबी की ट्रीटमेंट हमारे ही शहर में शुरू करवा दी और मुझे उस हॉस्पिटल [जहाँ मेरे डॉक्टर साहब हे ] वह जाने ही नहीं मिला।

और ऐसे ही......

कुछ यूँ ख़तम हो गई दास्तान...

एक बोल ना सका, दूसरा समझ ना सका.....