हाड़ी रानी Rajendra singh द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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हाड़ी रानी

     
रूपनगढ़ के रावले मे अचानक शांति छा गई। दासियों की पायल की आवाज अचानक थम गई।राजमहल मे बैठी रानीयों के मुँह उतर गए।
श्री नाथजी के मंदिर मे पूजा करते हुए राजा जी के हाथ मे बादशाह औरंगजेब का पत्र दिया, पत्र पढ़ते ही राजा जी के पाव तले जमीन खिसक गई।
पत्र नहीं था जहर का प्याला था जिसकी एक घूंट भी गले से नीचे नहीं उतर रही थी।
राजकुमारी चारुमती की शादी आलमगीर के साथ करने का पैगाम था।
ये खबर पुरे रुपनगढ़ मे फैल गई सारे मर्दो ने गुस्से से मुट्ठी बंद करदी और उनके सामने काल की तस्वीर आ गई। यही खबर चारुमती ने सुनी तो वो गुस्से आग बबूला हो गई
बादशाह ने औरतों को समझ क्या रखा है ये भी कोई खेलने खिलाने की चीज होती है क्या? इज्जत ही औरतों का सबसे अमोलाक धन है मर जाना मंजूर है पर बादशाह के साथ विवाह मंजूर नहीं।
अपमान से भरे हुए राजा ने चारुमती से कहा की तू जो बोल रही है तेरी बात सच पर आलमगीर का मुकाबला करने के लिए हमारे मे ताकत नहीं है औरंगजेब की एक टुकड़ी पुरे रूपनगढ़ को तबाह कर देंगे अनेक औरते विधवा हो जाएगी।
उसके सैनिक औरतों और बच्चों पर जुल्म करेंगे वो तो सोच मे भी नहीं आ रहा है
चारुमती कहती है जुल्म और बेज्जती सहने से मर जाना अच्छा है। आप सब औरत की इज्जत के लिए मर नहीं सको तो मत मरो, मे जीते जी इस बात को नहीं मानू।
  
चारुमती कांच के सामने खडे होकर खुद को देख कर सोच रही थी की सभी मुसीबत की जड़ ये रूप है इसकी वजह से पहले पद्मिनी ने जोहर किया अब मेरी बारी है.
ये सब सोचते हुए उसे मेवाड़ के वीरो की याद आई जो पद्मिनी के मान लिए अपने सर कटवाये थे।
 उसने राणा राज सिंह को पत्र लिखा उसमे उसने पूरी बात बताई।
दरबार मे पत्र पढ़ते राज सिंह ने सबसे पूछा अब क्या करना है, उसमे से एक बोला की करना क्या आप राजकुमारी से शादी के लिए जाओ।
राजसिंह सेना तैयार करने का हुक्म देते है। सबको बोलते है खबरदर बादशाह की फोज रुपनगढ़ की सीमा मे नहीं आनी चाहिए। सलूम्बर के रावत जी को सन्देश भेजो की यहां आकर सेना की अगुवाई करें।
इनमे से एक बोला की सलूम्बर के रावत जी भी कल ही शादी करके आये है उनके हाथ से अभी तक फेरो की मेहंदी भी नहीं उतरी है।
एक लम्बी सांस लेके राणाजी बोले की औरतों की इज्जत के लिए कितने बलिदान दिए है 
सलूम्बर के रावले मे शादी के मंगल गीत गाये जा रहे है।
अपने रानीवास मे सलूम्बर के रावत रतन सिंह जी अपनी रानी सहल कँवर के साथ बैठे है तथा उनको बोलते है की आप मुझे मिल गए मुझे त्रिलोक मिल गए।
इतनी ही देर मे दासी हाथ मे कागज लेके दरवाजे पर आई,
और बोली की राणाजी का समाचार है।
पत्र पढ़ते ही रतन सिंह की आँखों के सामने काले बादल मंडराने लगे रावत जी का मुँह पीला पड़ गया।
रानी ने पूछा बात क्या है रतन सिंह के हाथ से कागज लेके पढ़ते ही रानी का कलेजा फटने को हुआ।
रावत जी बैठे के बैठे ही रह गए जैसे पत्थर की मूर्ति हो और बोले मे लड़ने नहीं जाऊंगा।
हाड़ी जी देखते ही रह गए उनको कानो पर भरोसा नहीं हुआ।
नहीं जाऊंगा मे आपको छोड़ कर कही नहीं जाऊंगा।
रानी बोली मेरा मोह आपको जाने नहीं दे रहा है। राजपूत होकर युद्ध से मुँह मोड़ रहे है. धिक्कार है आपको
 ऐसे शब्द आपके मुँह से शोभा नहीं देते है आपकी मातृभूमि को आपकी जरूरत है.
चुण्डावत जी के वंसज होकर ऐसी कायरो वाली बोली, आपरी पीढ़ियों रणभूमि मे काम आ गई।आप मना कर रहे हो इतिहास मे क्या नाम होगा आपका।
इतिहास और मर्यादा की बात मत करो रानी मे सब समझ ता हु मेरी वीरता के किस्से मेरी तलवार से पूछ लो।
मुझे युद्ध मे जाने का डर नहीं है मुझे आपकी चिंता हो रही है।
रानी बोली की आप युद्ध मे जीतकर आओ साथ मे बैठकर आनंद के गीत गायँगे और आप वीरगति को प्राप्त हुए तो स्वर्ग मे मिलेंगे।मेरी चिंता मत करो तलवार उठाओ और युद्ध मे जाओ।
रावत जी बिना मन के युद्ध की तैयारी करने लगे पर उनका मन तो रानी के पास था। वे घोड़े पर बैठ ते और जाते है रानी के महल के बाहर आकर दासी को बोलते है सेनानी लेके आओ 
रानी सोच मे पड गई की इतना मोह! युद्ध मे जाने के बाद ये क्या फतह करेंगे।पीढ़ियों के नाम पर कलंक लगेगा, मेरी सहेलिया मुझे कायर पति के ताने देगी, चुण्डावातो के उजले इतिहास पर काला दाग़ लगेगा। इन सबका कारण मे हु। मेरा मोह ही इस अनर्थ की जड़ है। इतने मे दासी हाथ जोड़ती हुई कहती है अनदाता आपसे सेनानी मांग रहे है।
हा देती हु थोड़ी तलवार पकड़
तलवार म्यान से बाहर निकालते ही बोली अनदाता से विनती करजे की ये सेनानी तो ले पधारे आपरो जीव है जो आपसे पहले जा रही है अब आप युद्ध भूमि मे पीछे मत हटना…
इतना बोलते ही रानी ने अपने हाथ से अपनी गर्दन पर वार किया और अपना सर धड से अलग कर दिया।
      सतरी सहनाणी चहि , समर सलुम्बर धीश।
          चुंडामण मेल्ही सिया, इण धण मेल्यो शीश ´
दासी सेनानी लेके आई उसने रानी का सर देखा तो उसकी की आँखों मे रक्त उतर आया रानी के सर को अपनी गर्दन मे बांधकर वो युद्ध मे गया और शत्रु सेना पर काल की तरह टूट पडा युद्ध मे वो इतनी वीरता से लड़ा की बादशाह की सेना को एक इंच आगे नही बढ़ने दिया।
       चुण्डावत मांगी सैनाणी,
                    सिर काट दे दियो क्षत्राणी"......