तमस ज्योति - 37 Dr. Pruthvi Gohel द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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तमस ज्योति - 37

प्रकरण - ३७

मैंने रईश को अपने दिल की बात बता दी तो मुझे आज बहुत सुकून महसूस हो रहा था। ऐसा लगा रहा था मानो मन का कोई बोझ बिल्कुल हल्का हो गया हो। बहुत समय तक कोई बात आपके मन में रहती है और जब तक आप उसे किसी को बता नहीं देते तब तक आप बहुत तनाव में रहते हैं, लेकिन जब वह बात हम किसीको बता देते है तो मन बहुत हल्का हो जाता है। रईश को अपने दिल की बात बताकर आज मुझे भी बहुत ही सुकून महसूस हो रहा था।

जब मैंने रईश को बताया कि फातिमाने मुझे शादी के लिए प्रपोज किया था और मैंने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था तो रईशने मुझसे कहा, "अरे! रोशन! ये तुमने क्या कर दिया? तुमने फातिमा के इस प्रस्ताव को अस्वीकार करके उसकी भावनाओं को बहुत ठेस पहुंचाई है। जब कोई महिला खुद चलकर तुम्हें प्रपोज करती है तो इसका मतलब सिर्फ इतना है कि वह तुमसे सच्चा प्यार करती है और अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ ही बिताना चाहती है। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, वह हर परिस्थिति में तुम्हारा साथ देगी। महिलाओं में किसी भी परिस्थिति से लड़ने की एक प्राकृतिक शक्ति होती है। और अगर तुम इसे मना कर देते हो तो वे बहुत दु:खी हो जाती है। तुमने भी फातिमा की भावनाओं को नकार कर उसका दिल दुखाया है। इससे उसका दिल टूट गया है। तुमने यह उसके साथ ठीक नहीं किया है, रोशन!"

रईश के इन सब शब्दोंने सचमुच मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था।

हालाँकि मैंने सामने से रईश के साथ थोड़ी बहस भी की और कहा, "लेकिन रईश! तुम तो जानते हो कि मैं अंध हूँ, तो मैं फातिमा का जीवन कैसे बर्बाद कर सकता हूँ?"

मेरी इस बात का उत्तर देते हुए रईशने कहा, "वो तो तुम ऐसा मानते हो रोशन! लेकिन फातिमा नहीं मानती। और इस बात का भी क्या भरोसा है की अगर उसकी शादी किसी दूसरे सामान्य आदमी से हो भी जाए तो क्या फातिमा उसके साथ खुश रह पाएगी? क्या सामनेवाला भी उसके साथ खुश रह पाएगा? नहीं! बिल्कुल नहीं। क्योंकि फातिमा तुमसे प्यार करती है! वह तुम्हारे अलावा किसी और को अपने दिल में जगह नहीं दे पाएगी। तो क्या यह भी इस दूसरे व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं होगा? अगर वह किसी और से भी शादी कर लेती है तो भी वह कभी भी उसके प्रति निष्पक्ष नहीं रह पाएगी। ऐसा करने से तो तीन-तीन जिंदगीया यू ही बर्बाद हो जाएगी।

मैंने पूछा, "तो फिर अब तुम ही बताओ की मैं क्या करूँ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।" मैं अभी भी किसी निश्चित निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहा था।

रईशने कहा, "अगर मेरी मानो तो तुम फातिमा को बताओ कि तुम्हारे मन में भी उसके लिए भावनाए है।  तुम फातिमा को बताओ कि जैसे वह तुम्हें पसंद करती है, तुम भी उसे पसंद करते हो। तुम्हें उसे ये भी बताना चाहिए की तुमने उसके प्रस्ताव को क्यों ठुकरा दिया? वह तुम्हारी बात जरुर समझेगी। जो बात आज तुम मुझसे कह रहे हो, वही बात तुम्हें फातिमा से भी करनी चाहिए। फातिमा के साथ बात करने के बाद ही तुम अपना निर्णय लेना। तुम जो भी निर्णय लो वो बहुत ही सोच-समझकर लेना।"

मैंने कहा, "हा! रईश! तुम सही कह रहे हो। मैं इसके बारे में जरूर सोचूंगा। चलो! अब देर हो रही है। हमें अब घर जाना चाहिए। घर पर सभी लोग हमारा इंतजार कर रहे होंगे।" 

रईश बोला, "हाँ, हाँ, चलो चलते है।"

हम दोनों अब गार्डन से उठे और अपने घर की ओर चलने लगे।

हम दोनों अब घर वापस लौट आये थे। दूसरे दिन फिर रईश अपने ससुर के पास जाने के लिए तैयार हुआ। वह वहां एक सप्ताह रुककर फिर वापस अहमदाबाद जानेवाला था। 

छह दिन बाद अरमानी की नामकरण की रस्म अदा की जानी थी। वैसे तो अरमानी का नामकरण जन्म से पहले ही कर दिया गया था, लेकिन फिर भी हमने नीलिमा की मम्मी के घर पर बड़े धूमधाम से यह समारोह किया। रईश तो वहीं रुका था लेकिन अब हम सब छठी की रस्म के लिए नीलिमा के घर पहुँच चुके थे।

नीलिमा के घर पर हमने नामकरण की ये सभी रस्में बड़ी धूमधाम से की। समारोह ख़त्म होने के बाद रईश को उसके सर का फ़ोन आया। रईशने कुछ देर फोन पर बात की और फिर फोन रख दिया। वो फोन रखकर हमारे पास आकर खुशी से बोला, "मेरे पास आप सभी के साथ साझा करने के लिए एक बहुत ही अच्छी खबर है। आज मैं बहुत-बहुत खुश हूं। मैंने अब तक जो भी कड़ी मेहनत की थी वह अब सफल हो गई है। मैंने अब तक जो भी रिसर्च कार्य किए है वे अब जल्द ही फल देंगे। अमेरिकन विजन आई रिसर्च सेंटर में मानव आंखों पर जो रिसर्च चल रहा था वह अब अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। एक महीने बाद अब मुझे इस प्रोजेक्ट के लिए अमेरिका जाना है। अरमानी हमारे लिए हमारा नसीब लेकर आई है। वह सचमुच हमारे घर में शुभलक्ष्मी बनकर आई हैं। देखो न! उसके आते ही हमारी जिंदगी में सब कुछ कितना अच्छा अच्छा होने लगा है! रोशन को भी एक नया प्रस्ताव मिला, मेरा रिसर्च कार्य भी आगे बढ़ा और दर्शिनी को भी ललित कला महाविद्यालय में प्रवेश मिल गया है जहाँ वह आगे पढ़ना चाहती थी। इससे ज्यादा अब हमें और क्या चाहिए?”

रईश की यह बात सुनकर हमारे परिवार के साथ-साथ नीलिमा के मम्मी पापा भी बहुत खुश हुए। उन्होंने भी अपने दामाद को आशीर्वाद दिया और कहा, "रईशबाबू! हम सदैव यही कामना करते रहेंगे की आप अपने जीवन में बहुत ही आगे बढ़ें और सफलता की कई ऊंचाइयो को प्राप्त करें।"

लेकिन रईश के अमेरिका जाने की बात सुनकर नीलिमा को खुशी तो हुई पर साथ में थोड़ा सा दु:ख भी हुआ क्योंकि फिलहाल उसकी हालत ऐसी थी कि वह रईश के साथ अमेरिका नहीं जा सकती थी।

फिलहाल तो नीलिमा मैटरनिटी लीव पर थी तो हम सबने मिलकर ये फैसला लिया कि अभी दो महीने तक वो उसके मायके में ही रहेगी और दो महीने के बाद वो हमारे घर पर हमारे साथ ही रहेगी। इसके बाद जब उसकी मेटरनिटी लीव खत्म हो जाएंगी और जब वह दोबारा नौकरी जोईन करेंगी तब हम तय करेंगे कि अब आगे हमे क्या करना है?

रईश के अहमदाबाद जाने का और मेरे मुंबई जाने का अब समय हो गया था।

अगली सुबह रईश अहमदाबाद के लिए निकल गया और मैं भी मुंबई के लिए रवाना हो गया। रईश के इतना समझाने के बाद भी मैं फातिमा से अभी भी अपने दिल की बात नहीं कर पाया। शायद इसके लिए अभी सही समय आया ही नहीं था।

(क्रमश:)