तमस ज्योति - 27 Dr. Pruthvi Gohel द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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तमस ज्योति - 27

प्रकरण - २७

अभिजीत जोशी का मुझ पर फोन आया। उन्होंने मुझसे कहा, "रोशनजी! जैसा कि हमने आपके विद्यालय के कार्यक्रम में चर्चा की थी, इस तरह से अब मेरे पास समय है और मैं अपने एलबम पर काम करना चाहता हूं। अब आप मुझे ये बताईए की क्या आप अगले सप्ताह से मुंबई आ पाएंगे?"

मैंने कहा, "हाँ। मैं आ तो जाऊंगा लेकिन आप जानते हैं कि मैं सूरदास हूं इसलिए आम लोगों की तरह काम नहीं कर पाऊंगा। आप अब भी एक बार इस बारे में सोच लीजिएगा।”

अभिजीतने कहा, "आप इसके के बारे में बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। मैंने इस बारे में ममता से भी बात की है। उसने मुझे आपके बारे में सब कुछ बताया है। ममताने आपकी देखभाल की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है। आपके रहने, खाने-पीने और बाकी सारी व्यवस्थाएं हमारी ओर से ही हो जाएगी, इसलिए आप इस बारे में एकदम निश्चिंत रहें। आपके लिए एक आदमी भी रखा जाएगा, जो हमेशा आपकी मदद के लिए मौजूद रहेगा। और हां! मैं आपको लेने के लिए गाड़ी भी भेजूंगा, इसलिए आप बिलकुल भी चिंता मत कीजिए। आप बिना किसी चिंता के बस एक बार यहां आ जाईए ताकि हम साथ मिलकर अपने इस एलबम पर काम शुरू कर सकें।”

मैंने कहा, "तो फिर ठीक है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे आप जैसे किसी व्यक्ति के साथ काम करने का मौका मिलेगा! मैं अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली महसूस करता हूं कि आप जैसे महान गायक खुद चलकर मुझे बुला रहे है। जैसा कि आपने बताया कि मैं अगले सप्ताह आपके पास मुंबई पहुंच जाऊं, लेकिन मुंबई आने से पहले मैं एक दिन अहमदाबाद अपने भाई रईश से मिलना चाहता हूं। मैं काफी समय से उससे नहीं मिला हूं इसलिए मैं वहां आने से पहले एक बार उससे मिलना चाहता हूं। इसलिए अगर आप गाड़ी भेजो तो वह अहमदाबाद ही भेजो। वैसे भी मुंबई अहमदाबाद से कहा ज्यादा दूर है?” 

अभिजीतने कहा, "ठीक है जैसा आप चाहें। फिर मैं अगले सप्ताह आपका इंतजार करूंगा।" इतना कहने के बाद उन्होंने फोन रख दिया।

फोन रखने के बाद मैंने अपने घर में सभी को यह खबर दी। जब मुझे यह ऑफर मिला तो मेरे घर में सभी लोग बहुत खुश हुए। मेरी मम्मी और पापा दोनों बहुत ही खुश थे लेकिन साथ ही उन्हें मेरी चिंता भी थी। वे लोग सोचते थे कि मैं वहा मुंबई में अकेला कैसे रह पाऊंगा? लेकिन अभिजीतजीने मेरे लिए सारी व्यवस्थाएं बहुत अच्छे से की है ये जानकर उन्हे बड़ी राहत मिली। मैंने ये भी कहा की वह मेरे लिए अहमदाबाद तक कार भी भेज देंगे। मैं मुंबई जाने से पहले रईश से मिलना चाहता हूं और उसके साथ एक दिन बिताना चाहता हूं इसलिए मैंने अभिजीतजी को अहमदाबाद ही गाड़ी भेजने को कहा।

यह सुनकर मेरी मम्मी तुरंत बोली पड़ी, "रोशन! यह तो बहुत बड़ी खुशखबरी है। एक और बात भी है जो मैं तुम्हे बताना चाहती हूं की आज तुम्हारे जीवन में जो भी खुशियां आई हैं, उसमें फातिमा और ममतादेवी दोनों का बहुत बड़ा हाथ है इसलिए हमे उन दोनो का शुक्रिया अदा करना चाहिए। मैं सोच रही हूं की हमें उन दोनों को अपने घर पर रात के खाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए और इस तरह से अपना आभार व्यक्त करना चाहिए।"

मैंने कहा, "हाँ मम्मी! आप सही कह रही हो। कल जब मैं स्कूल जाऊँगा तो उन दोनों को अपने घर पर खाने पर बुलाऊँगा।" 

अगले दिन मैंने फातिमा और ममतादेवी दोनों को रात के खाने के लिए अपने घर आमंत्रित किया और दोनों ने खुशी-खुशी मेरा ये निमंत्रण स्वीकार किया।

जब फातिमा और ममतादेवी मेरे घर आई तो मेरे मम्मी पापाने उनका बहुत प्यार से स्वागत किया। मैंने उन दोनों को मुझे मिले ऑफर के बारे में भी बताया। 

यह सुनकर ममतादेवीने मुझसे कहा, "हां! अभिजीतने मुझसे कहा कि उसने तुम्हें मुंबई आने के लिए कहा है और अब वह अपने एलबम के लिए काम करना चाहता है। क्या तुमने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया?"

मैंने कहा, "हां, मैंने इसे स्वीकार कर लिया है, लेकिन मैं अब अपने स्कूल के छात्रों के बारे में सोच रहा हूं। उनके भविष्य के बारे में क्या? वह ख्याल मुझे सोने नहीं दे रहा है। मेरे जाने से कहीं उनके जीवन का संगीत बंद तो नहीं हो जाएगा न?" 

फातिमाने मेरे इस सवाल का जवाब देते हुए कहा, "बिल्कुल नहीं। अगर आप सभी को ठीक लगे तो मेरे पास एक सुझाव है।" 

ममतादेवीने फातिमा की ओर मुड़कर पूछा "क्या?" 

फातिमा बोली, "अगर आप सभी को यह सही लगता है तो जो रोशन के गुरु है वही इन छात्रों के भी तो गुरु बन सकते है न! अगर सुधाकर अंकल को ये मंजूर हो तो..." 

फातिमा की यह बात सुनकर ममतादेवी तुरंत बोली, "अरे! हाँ! फातिमा! मैंने इस बारे में तो सोचा ही नहीं था। सुधाकरजी! क्या यह बात आपको स्वीकार्य है? क्या आप बनेंगे हमारे छात्रों के गुरु?"

मेरे पापाने कहा, "हाँ! हाँ बिल्कुल। क्यों नहीं? अगर मुझे छात्रों के साथ अपना ज्ञान साझा करने का मौका मिलता है तो क्यों नहीं? मैं निश्चित रूप से आपके स्कूल में संगीत की साधना करूंगा और छात्रों को भी करवाऊंगा। यह एक बहुत ही नेक काम है। मुझे बहुत ख़ुशी होगी अगर मैं इस तरह से आपके विद्यालय को अपनी सेवा प्रदान कर सकूँ।" सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि मेरे मुंबई जाने के बाद मेरे पापा स्कूल का सारा संगीत का काम संभालेंगे।

फातिमा और ममतादेवी दोनोंने खाना खाकर बिदाई ली। मेरे मम्मी और पापाने उन दोनों को तहे दिल से धन्यवाद दिया और कहा, "फातिमा! अगर तुम उस दिन कार्यक्रम में नहीं मिली होती तो मेरा बेटा रोशन आज इस मुकाम पर नहीं पहुँच पाता। और अगर आप नहीं मिली होती हमें ममतादेवी तो उसे ये प्रस्ताव नहीं मिलता। आप दोनों का हम पर यह कर्ज हमेशा रहेगा। हमे नहीं पता कि हम कभी वह कर्ज चुका भी पाएंगे या नहीं।

फातिमा बोली, "अरे अंकल! आप ऐसा मत कहिए। हम भी तो चाहते थे कि हमारे विद्यार्थियों को एक अच्छा संगीत शिक्षक मिले।"

फातिमा की ये बात सुनकर ममतादेवी भी बोली, "फातिमा बिल्कुल सही कह रही है। सुधाकर भाई! अगर फातिमा उस दिन रोशनजी से नहीं मिली होती, तो हमारे छात्रों ने कितना अच्छा संगीत शिक्षक खो दिया होता!"

अगली सुबह मैं विद्यालय पहुंच गया। आज विद्यालय में मेरा आखिरी दिन था। इसीलिए फातिमा, ममतादेवी और मेरे सभी छात्रोंने मुझे विदाई दी। मेरे साथी छात्र मुझे जाते हुए देखकर बहुत दु:खी थे, लेकिन वे सभी इस बात से खुश भी थे कि मेरे स्थान पर मेरे पापा ही उनकी कक्षाएं लेने जा रहे थे। वे सब ये सोच कर संतुष्ट थे कि अब भी उन सबके जीवन का संगीत बंद नहीं होगा।

पलक झपकते ही समय कहाँ बीत गया पता ही नहीं चला। आख़िरकार मेरे लिए अहमदाबाद रईश के घर जाने का दिन आ ही गया। मैं रईश के घर पर एक दिन और एक रात रुकने वाला था और अगले दिन मुंबई के लिए निकलनेवाला था। मैं अब अहमदाबाद में रईश के घर पहुंच गया था। रईश और नीलिमा दोनों मुझे देखकर बहुत ही खुश हुए थे।

(क्रमश:)