रात अब अच्छी लगती है A K द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रात अब अच्छी लगती है

रात के दो बज रहे है, एक पहर अभी बीत चुका है और मैं अभी जाग रहा हूं। तुम्हारे जाने के बाद अब मैं काफी देर तक जगा रहता हूं, मानो ऐसा लगता है जैसे जाते जाते तुम मेरी नींद चुरा ले गयी हो। लेकिन मुझे इस बात से किसी भी तरह की कोई नाराजगी या शिकायत नहीं है तुमसे, क्योंकि मुझे अब अच्छा लगता है देर तक जागना। रात को सुबह होते देखना, चांद और तारो को धीरे-धीरे छुपता देखना, फैले सन्नाटों को मेहसूस करना अच्छा लगता है, अब मुझे। लेकिन छोड़ो हम इससे आगे बढ़ते है तो फाल्गुन मास अब अपने अंतिम पड़ाव पर है लोगों के घरों में अभी से पंखे चलने लग पड़े है और इसी के साथ चैत्र मास अब शुरू होने को है। इसी बीच तुम्हें दूर गये चंद साल भी बीत चुके हैं, सरस्वती पूजा वेलेंटाइन बीता अब होली आने को है। बाहर निकलते ही तुम्हें एक आदमी तो रंगों से रंगा दिख ही जाएगा गलियों में अभी से होली के गाने सुनायी देने लगे हैं, जिनमे से एक पवन सिंह का गाना भी है जो मेरा खुद का पसंदीदा है जिसके बोल है ' कि असो होली में रे, यारवा, हई फलाना ब फरार भइली'। हाँ वही पवन सिंह और वही उनके भोजपुरी गाने जो मैं तुम्हारे होने पे भी सुनता था और अब जब तुम नहीं हो तब भी सुनता हूं। सब कुछ ठीक वैसा ही है जैसा उस फाल्गुन में था जब तुम थी। कुछ नहीं बदला, इन सब में बस एक तुम्हीं ही नहीं हो। नए लोग हैं, नए दोस्त है, नयी पहचान है। हा ठीक सुना तुमने नयी पहचान क्योंकि अब सब मुझे तुम्हारा अवि नहीं ब्लकि सिर्फ अवि के नाम से जानते हैं इसलिए मेरे लिए ये नयी पहचान ही हुई जो कि मुझे बिल्कुल भी पसन्द नहीं लेकिन अब क्या कर सकते है अपनाना तो पड़ेगा ही इसलिए कोई ना। इन सालों में मैं ना जाने कितने लोगों से मिला फिर भी उनके अक्स से तुम्हारी तस्वीर कभी धुंधली ना पड़ी। हमारी यादे अभी मेरे दिल मेरे दिमाग में किसी फिल्म के भाँति चलती है, जिसे मैं रात को देखना काफी पसन्द करता हूं। जब दिन भर की मुलाक़ातों से थक जाता हूँ इस नयी पहचान के बोझ से कंधे दब के झुक जाते हैं तब रात की सन्नाटों में तुम्हारे होने के एहसास को मेहसूस कर तुम्हारी यादों की गोद में एक छोटे बच्चे की तरह अपना सिर रख देर तक आराम करता हूं। लिखते लिखते अचानक प्यास लगी तो पानी पीने उठा। इसी बीच मेरी नजर उसी खिड़की पे जा पड़ी जो हमारा फेवरेट स्पॉट हुआ करती थी। जहां हम दोनों दुनिया जहान की बाते करते करते चाय पिया करते थे। जिसपे तुम अपना हक जमाया करती थी। जब इन दिनों में तुम मेरे घर आया करती उस खिड़की के पास ही बैठा करती थी, चांद को काफी देर तक देखा करती। जब उससे नज़रे हटती तो जाने क्यों मुझे तुम आंखे भर के देखा करती मेरे चेहरे में तुम ना जाने क्या ही ढूँढा करती थी?... खैर ये तो अभी एक सवाल ही है, जिसका जवाब मिल पाना अब मुश्किल है या शायद मिले ही ना तो इसे यही छोड़ देते हैं। इतने सब के बाद अब मुझे तुम्हारी याद आ ही गयी थी तो मैं उनदिनों को ताजा करने खिड़की के पास चला जाता हू। जब खिड़की से बाहर देखता हूं तो चांद ठीक मेरे ऊपर था जो तुम्हारी मौजूदगी का गवाह लग रहा था और जब ठंडी हवा ने चेहरे को छुआ तो लगा तुमने ही अपने हाथो में मेरे चेहरे को भर लिया हो। ओस भी गिर रही थी, ओस की सोंधी सी सुगंध तुम्हारे बदन की खुशबू से ठीक ठीक मेल खा रही थी। ये सब मुझे बिल्कुल उन दिनो की याद दिला रहे थे जो मैंने तुम्हारे साथ बिताई थी, और इसलिए मुझे राते पसन्द है रातो को जागना अच्छा लगता है।।।।