वतन के फूल
पत्नी ‘अनूपा’ के कहने पर मेजर विनय ने इस बार की अपनी छुट्टियों को समाप्त कर वापस जाने से पहले परिवार के रहने के लिये चार कमरों वाला एक स्वतंत्र मकान किराये पर ले लिया था । कारण यह था कि उनकी बेटी निकिता अब बारह वर्ष की हो चुकी थी और बेटा आर्यन दस वर्ष का । दोनों को अपने - अपने रहने और पढ़ने के लिये स्वतंत्र कमरों की आवश्यकता थी। वे स्वयं भी यही चाहते थे, जिससे उन दोनों को कोई डिस्टर्ब न करे।
मेजर विनय की पोस्टिंग भारत पाकिस्तान के बार्डर पर केन्द्र शासित राज्य जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग जिले में थी। अनंतनाग श्रीनगर से लगभग पचपन किमी. दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 44 पर स्थित राज्य का एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र होने के साथ - साथ राज्य में जम्मू और श्रीनगर के बाद तीसरा बड़ा नगर है।
अनंतनाग वह जिला भी है जो पिछले तीस वर्षों से पाकिस्तान प्रयोजित और पोषित आतंकवादी गतिविधियों से सर्वांधिक रूप से ग्रसित और प्रभावित रहा है।
किराये पर लिये गये नये मकान में मेजर विनय अपने परिवार के साथ केवल दस दिन रहने के बाद अपनी ड्यूटी पर अनंतनाग चले गये थे।
अनंतनाग में अपनी पोस्टिंग से पहले मेजर विनय तीन साल तक अपने परिवार के साथ सेना के बेस कैम्प ग्वालियर में रहे थे और यहीं से उनकी पोस्टिंग अनंतनाग में हो गयी थी जहां वे परिवार को अपने साथ नहीं रख सकते थे। अतः उन्होंने अपने परिवार की सहमति से, जिससे दोनों बच्चे की पढ़ाई में कोई व्यवधान न हो परिवार का ग्वालियर में ही रहना उचित समझा । मेजर विनय को अनंतनाग में दो वर्ष हो चुके थे, और अभी कम से कम एक वर्ष तक और वहीं रहना था। नये मकान में शिफ्ट होने से पहले दो वर्ष वे केवल दो कमरे के मकान में रहे थे जबकि इसके पहले उन्हें सेना के बेस कैम्प में ही चार कमरों का मकान मिला हुआ था।
कश्मीरी भाषा में ‘नाग’ शब्द का अर्थ होता है ‘पानी का चश्मा’। चश्मा अर्थात तालाब और अनंत संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है अनगिनत। इस प्रकार अनंतनाग का अर्थ हुआ अनगिनत पानी के चश्में। यह शहर अपने सुन्दर झरनों के लिये भी जाना जाता है।
अनंतनाग जिले में छः तहसील हैं- अनंतनाग, दोडू शाहाबाद, कोकरनाग, बिजबिहारा, पहलगाम और शांगस,इसे शांगुस भी कहते हैं।
अनूपा को उगते हुए सूर्य की अराधना करने में गहरी आस्था थी। इस कारण वह अपने परिवार को भारत के विविध भागों में स्थित सूर्य मन्दिरों की यात्रा करवा चुकी थी । भारत में स्थित विविध सूर्य मन्दिरों में चार प्रमुख सूर्य मन्दिर हैं। एक ‘उड़ीसा’ राज्य में ‘कोणार्क’ सूर्य मन्दिर, दो ‘गुजरात’ के मोहसाणा का ‘मोढ़ेरा’ सूर्य मन्दिर, तीन राजस्थान का ‘झालरापाटन’ सूर्य मन्दिर और कश्मीर के अनंतनाग में ‘मार्तण्ड’ सूर्य मन्दिर।
कश्मीर के हालात ठीक न होने के कारण वे मार्तंड सूर्य मन्दिर की यात्रा नहीं कर सकते थे किन्तु दो वर्ष पहले विनय की पोस्टिंग अनंतनाग में हुई तो सबसे पहले अपने को अध्यात्मिक रूप से शान्त रखने के लिये वहीं जाना ठीका समझा था।
मार्तण्ड सूर्य मन्दिर अनंतनाग के पूर्व - उत्तर में पहलगाम मार्ग में अनंतनाग से नौ किमी. दूर रामबीर पोर के केहरिबल ग्राम में स्थित है। इस मन्दिर को 726 ई0 से 756 ई0 के मध्य कार्कोटक वंश के राजा ललितादित्य मुम्तापीड ने बनवाया था। इसके निर्माण में ग्रीक निर्माण शैली का प्रयोग किया गया है।
मंदिर के अवशेष स्वयं ही इस बात के प्रत्यक्ष गवाह हैं कि एक समय यह मन्दिर कितना भव्य, विशाल और खूबसूरत रहा होगा। मन्दिर के चारों ओर 80 प्रकोष्ठ हैं। मुख्य मन्दिर तो लगभग 60 फुट लम्बा एवं 38 फुट चैड़ा ही रहा होगा किन्तु मन्दिर का आंगन 220 फुट *142 फुट के आस - पास ही है। मुख्य प्रवेश द्वार प्रकोष्ठ पूर्व में है। इस मन्दिर के स्तंभों की शैली रोम की द्वोरिक शैली से कुछ अंशो में मिलती है। मन्दिर के एक ओर रंग- बिरंगी मछलियों से युक्त एक बड़ा सरोवर भी है।
इस भव्य मंदिर को पंद्रहवीं सदी में 'सिकंदर बुतशिकन' ने अपनी धार्मिक, कुण्ठित भावनाओं के कारण तोड़ने का प्रयास किया था,परन्तु जब सफल नहीं हो सका तो मंदिर के चारोँ ओर खाई खुदवा कर उसमें लकड़ियां जलवा दीं जिससे मंदिर में प्रयोग किये गये पत्थर गर्म होकर चटक जायें और वह उन पत्थरों को तोड़ने में सफल हो जाये। मंदिर के चारों और एक माह से भी अधिक समय तक लगातार लकड़ियां जलती रही थी, उसके इस घृणित प्रयास से मंदिर के पत्थर चटक तो गये फिर भी वह पूरी तरह उसे तोड़ने में सफल नहीं हो सका और मंदिर के समृद्ध अवशेष उसकी विशालता को समेटे अब भी शेष हैं। उन्हें आज भी देखा जा सकता है। यह सब जान लेने के बाद मंदिर के निर्माण में लगे श्रम की कुशलता, तकनीकी और उपयोग में लायी सामग्री की गुणवत्ता का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार टूटी हुई प्रतिमा की उपासना नहीं की जाती ।इस कारण मंदिर की प्रतिमा के विखंडन के बाद मुख्य गर्भ गृह में पूजा - उपासना नहीं हुई किन्तु यहाँ बाद के वर्षों में कुछ निर्माण का कार्य भी हुआ और आजजहाँ विधिवत पूजा की जा रही है।
मन्दिर में दर्शन करने के बाद विनय ने मन्दिर के बारे में यह सारा वृतान्त अनूपा को मेल पर बताया था। विनय वहां की प्राकृतिक सुन्दरता का वर्णन भी अपनी ईमेल के माध्यम से पत्नी और बच्चों को बताता रहता था जिससे अनूपा और उसके दोनों बच्चों को बिना वहां गये ही बहुत कुछ जानकारी हो गयी थी।
ऐसे ही विनय ने अपनी एक ईमेल में अनूपा को लगभग 20 महिने पहले लिखा था-
डियर अनूपा!
आज अनंतनाग की एक तहसील कोकरनाग की सुन्दरता को देखने का अवसर मिला। दरअसल अभी - अभी कोकरनाग के बाहरी इलाके की एक दो मंजली इमारत में कुछ आंतकवादियों के छिपे होने की सूचना मिली । हम सब अपनी टीम के साथ वहां पहुंचते इसके पहले ही लोकल पुलिस की एक टीम जिसका नेतृत्व डी. एस. पी. मि.मोबीन बक्श कर रहे थे, ने चार आतंकवादियों को मार गिराया और दो को जिन्दा पकड़ने में सफलता प्राप्त कर ली थी ।तब हमारे पास काफी समय था तो हमने डी .एस .पी. मि.मोबिन बक्श के साथ कोकरनाग घूमने और देखने का मन बना लिया।
कोकरनाग एक अत्यन्त रमणीक पहाड़ी स्थल है, जहां ताजे पानी के कुण्ड, झरने और चारों ओर फैली हरियाली हृदय में सहज ही रोमांच उत्पन्न करती है। यह स्थान समुद्र तल से लगभग दो हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
कोकरनाग में कोकर सम्भवतः संस्कृत भाषा के शब्द ‘कुक्कुड़’ का बिगड़ा हुआ रूप है जिसका अर्थ होता है मुर्गे- मुर्गियां और नाग का अर्थ तो है ही पानी का कुण्ड ।इस प्रकार देखा जाये तो कोकरनाग का अर्थ हुआ ‘‘मुर्गियों का कुण्ड किन्तु एक जन मान्यता के अनुसार कोकरनाग मूल रूप से ‘कोह कण नाग’ शब्द का कुछ बना या बिगड़ा हुआ शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘पहाड़ के नीचे का चश्मा’। यह अर्थ कुछ अधिक ठीक सा लगता है। खैर, जो भी हो यह स्थान है बहुत मनोरम, पग - पग पर सुन्दरता बिखरी हुई है। जिसका वर्णन शब्दों में किया नहीं जा सकता। कश्मीर को स्वर्ग यूं ही नहीं कहा जाता, प्रकृति अपनी पूर्णता के साथ यहां कदम - कदम पर अपना सौन्दर्य बिखेरती हुई दिखती है। शेष कुशल है।
अपना और बच्चों का ख्याल रखना।
सदा तुम्हारा ही -
विनय
विनय की इस ईमेल का जवाब भी शीघ्र आ गया।
प्रिय विनय,
तुम्हारी मेल से कश्मीर की खूबसूरत वादियों के बारे में जानकर मेरा भी मन वहां घूमने को होने लगा है। मैं समझती हूँ कश्मीर इस समय आतंकवाद के साये में जी रहा है। वहां का मुख्य व्यवसाय टूरिस्ट ही था जो कि आंतकवाद के कारण काफी प्रभावित हुआ होगा। रोजगार के अवसर भी काफी कम हुए होगें। जहां तक मैं समझती हूँ कश्मीर के लोगों को विशेष रूप से युवाओं को इस विषय में फिर से विचार करना होगा कि किस प्रकार वे भारतीय सेना की मदद से वहां पर फैल चुके आतंकवाद से लड़कर इससे मुक्त हो सकते हैं।
खैर, मेरी जानकारी के अनुसार अनंतनाग जनपद में ही पहलगाम है जो कि अमरनाथ की यात्रा करने वाले शिव भक्तों का बेस कैम्प है। कभी अवसर मिले तो पहलगाम के विषय में भी जानकारी देना। शेष कुशल है। बच्चों की पढ़ाई ठीक से हो रही है, सब कुछ शानदार है।
तुम्हारी अनूपा
पहलगाम के बारे में जानने की इच्छा रखने वाले अनूपा के ईमेल के कुछ दिन बाद ही पहलगाम में सेना द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘बर्फ उत्सव’ में भाग लेने का उसे अवसर मिल गया था।
‘बर्फ उत्सव’ को सफलता पूर्वक सम्पन्न कराने में उसे चार दिन पहलगाम में रूकना पड़ा।वापस आकर विनय ने अनूपा को फिर ईमेल लिखा-
प्रिय अनूपा,
तुम्हारे स्नेह ने मुझे पहलगाम में सेना द्वारा आयोजित किये जाने वाले दो दिवसीय वार्षिक ‘बर्फ उत्सव’ में भाग लेने का अवसर प्रदान कर दिया।
इसे ‘पहलगा महोत्सव’ भी कहा जाता है जो कि प्रत्येक वर्ष नव वर्ष के प्रारम्भ पर जनवरी माह के मध्य में मनाया जाता है।
पहलगाम अनंतनाग से 41 किमी. दूर, समुद्र तल से 7200 फुट की ऊंचाई पर लिद्दर नदी के तट पर बसा हुआ एक छोटा सा कस्बा है, जो अपने अछूते और भव्य प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण सभी व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां के कुछ विशेष पर्यटक स्थल जैसे बैसाटन हिल्स, ममलेश्वर मन्दिर, अवंतीपुर मन्दिर, पहलगाम गोल्फ कोर्स, कोल्होई गलेशियर, अरू विलेज एंड वैली, चंदनवादी, तुलियान झील, शेषनाग झील, बीटा घाटी, मार्सर झील आदि खूबसूरत और दर्शनीय स्थान हैं, जो सहज ही किसी को अपनी दिव्य छटा की ओर आकर्षित करते हैं।
पहलगाम का बर्फ उत्सव दुनिया भर में मशहूर है। इस उत्सव में भाग लेने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं । इस दौरान आंगतुकों को बर्फ पर साइकिलिंग और स्कीइंग करने का अवसर मिलता है । हिमालय पर्वतमाला के भव्य बर्फ से ढ़के शिखर हृदय में रोमांच उत्पन्न करते हैं।
प्रत्येक वर्ष जुलाई - अगस्त माह से जब अमरनाथ गुफा में भगवान शिव के पंखिल प्रतीक का एक वर्ष गठन पूर्ण -चंद्र के दिन में अपनी अधिकतम ऊंचाई प्राप्त करता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह वह दिन है जब भगवान शिव साक्षात रूप से दिखाई देते हैं । भगवान शिव को समर्पित अमरनाथ गुफा पहलगाम से मात्र 28 किमी. है। और यहीं से वार्षिक अमरनाथ यात्रा शुरू होती है।
पहलगाम की झीलों, झरनों और लेखों के बारे में लिखने और बताने के लिये बहुत कुछ अभी शेष है किन्तु बाकी फिर।
मैं ठीक हूँ अपना और बच्चों का ख्याल रखना।
तुम्हारा विनय ।
विनय के अठ्ठारह माह बहुत तेजी से गुजरे । इस बीच वह एक बार और ग्वालियर जाकर वापस हो आया था। अनंतनाग में पोस्टिंग के बाद उसकी आतंकवादियों से कितनी मुठभेड़ हो चुकी थीं, उनका व्यक्तिगत हिसाब रखना उसने बन्द कर दिया था। आये दिन कहीं न कहीं मुठभेड़ होती ही रहती थी।
धीरे - धीरे विनय ने अनंतनाग, उसकी तहसीलों और दूर - दराज के गांवों में भी अपने विश्वास के मुखविर बना लिये थे, जिससे आतंवादियों के छिपे होने की सूचना उसे समय रहते मिल जाती थी। आतंकवादी कोई छोटी या बड़ी वारदात करके भागते इसके पहले ही सेना उनका शिकार कर लेती थी और इसमें सबसे बड़ा योगदान रहता था पूरे अनंतनाग में उसके द्वारा फैलाये गये विश्वास पात्र और सहयोगी मुखविरों के जाल का।
स्थानीय नागरिकों का विश्वास प्राप्त करना सेना के लिये कोई सरल कार्य नहीं था किन्तु विनय ने इस काम को बहुत आसानी और चतुराई से अंजाम दिया था जिससे सेना को स्थानीय नागरिकों का और नागरिकों को सेना का भरपूर सहयोग मिलने लगा था।
सेना और नागरिकों का आपस में जैसे - जैसे विश्वास और सहयोग बढ़ता जा रहा था,वैसे - वैसे मेजर विनय आंतकवादियों की आंखो में खटकता जा रहा था । आंतकवादियों का विनाश करने में सेना को इसके पहले इतनी सफलता पहले कभी नहीं मिली थी, जितनी पिछले एक वर्ष में मिल चुकी थी।
विनय अनूपा के जन्मदिन दस नवम्बर को उसके लिये कुछ विशेष करना चाहता था। इस कारण उसने छः नवम्बर को ही उपहार डिलेवर करने वाले एक ऑनलाइन पोर्टल से फूलों का एक गुलदस्ता, जन्मदिन कार्ड, रूमाल का एक सेट, हैण्ड पर्स, कुछ चॉकलेट और बच्चों के लिये केक दस नवम्बर को ही डिलेवर करने का आर्डर कर दिया था।
बीतता हुआ समय एहसास नहीं होने देता कि इतनी जल्दी इतना समय कैसे बीत गया। सुबह विनय की आंख खुली तो छः बज रहे थे। उसने अपना मोबाइल देखा तो उस दिन दस नवम्बर था। अनूपा को उसके जन्मदिन की बधाई देने के लिये उसने फोन लगाया - उधर से कोई आवाज आती इसके पहले ही विनय ने ‘‘जन्मदिन मुबारक हो’ कह दिया। फोन अनूपा ने ही उठाया था। उसने भी आनन्द और उत्साह से भरकर कहा ‘‘धन्यवाद।“ पति-पत्नी के बीच का यह वार्तालाप बहुत औपचारिक था किन्तु इसके अतिरिक्त और कोई सम्बोधन वे ढूढ़ नहीं पाये थे।
“अनूपा,” विनय ने फिर कहा, ‘‘आज एक पार्सल आने वाला है अतः कही जाने का कोई प्रोग्राम न बनाना।“
“ठीक है बाबा कहीं नहीं जाऊंगी परन्तु पार्सल में है क्या?“
“जब मिलेगा तब स्वयं ही देख लेना।“
“फिर भी कोई तो हिंट दे सकते हो।“
“नहीं यही तो सरप्राइज है।“
“अच्छा, चलो,नहीं पूछती हूँ... परन्तु आज तुमको मेरा जन्मदिन याद रहा ,यही मेरे लिये सौभाग्य की बात है।“
“मैं तुम्हारा क्या किसी का भी जन्मदिन नहीं भूलता, परन्तु कभी-कभी व्यस्तता के कारण फोन न कर पाता हूँ ,यह अलग बात है।“
“सो तो है, आज क्या प्रोग्राम है।“
“अभी तक तो कुछ भी नहीं, परन्तु क्या पता कहीं कुछ हो ही जाये हम सेना के लोग अघोषित युद्ध के सामने बैठे ही रहते हैं ।“
“यही तो भारत की ताकत और शान है।“
“अच्छा अपना ख्याल रखना।“
“ओ. के. डियर, पर ध्यान रखना जैसे ही पार्सल मिले मुझे फोन करना।“
“वो तो मैं करूंगी ही, तुम न कहते तब भी।“
“अच्छा, फोन रखता हूँ। जन्मदिन की पुनः मुबारकबाद।“
खुशियों से भरी हुई अनूपा की आवाज सुनाई दी ‘‘धन्यवाद।“और फोन कट गया।
विनय बस अभी सेना की वर्दी पहनकर तैयार ही हुआ था कि उसके मोबाइल से ‘टन’ की आवाज सुनाई दी। फोन उठाकर देखा तो मैसेज कोकरनाग से उसके एक विश्वासपात्र मुखविर मो. उस्मान का था। उस्मान ने केवल कॉल करने को संकेत दिया था। विनय को उस्मान के जिस फोन नंबर पर काल करना था वह फोन नंबर दूसरा था। विनय जानता था कि उस्मान अपने फोन से मैसेज करने के बाद अपना सिम बदलेगा। अतः कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद उसने उस्मान के उस फोन नं. पर फोन किया जिसे उसके सिवा और कोई नहीं जानता था।
उस्मान और विनय के बीच कुछ कोड शब्दों में बात हुई जिसका अर्थ था कोकरनाग के बाहरी इलाके में जिस ओर घना जंगल है, एक तीन मंजिला मकान के ऊपर तीसरे तल पर लगभग छः आतंकियों के छिपे होने की सूचना थी। वे कोकरबाग के बस स्टैण्ड, सिनेमा हाल और लड़कियों के एक स्कूल को अपना निशाना बना कर बम से उड़ाना चाहते थे।
विनय अच्छी तरह जानता था कि वे आतंकवादी जब तक इस तीन तल वाले मकान में हैं, तभी तक उन्हें मारा या पकड़ा जा सकता है, किन्तु एक बार यदि वे वहां से निकल कर कोकरनाग के भीतरी भाग में किसी भी मकान के रहने वाले लोगों को बंधक बनाकर छिप गये तो उनकी पहचान कर पाना आसान नहीं रहेगा और फिर उनके लिये अपने काम को अंजाम देकर जंगल के रास्ते भाग जाना आसान होगा।
मेजर विनय ने सबसे पहले कोकरनाग के डी.एस.पी.मोबीन बक्श को इसकी सूचना दी और जंगल की ओर से उस मकान को घेरने का आग्रह किया, क्योंकि स्थानीय पुलिस जंगल के रास्तों के सम्बन्ध में उससे अधिक जानकारी रखती थी।
अनंतनाग में उसके कैम्प से कोकरनाग लगभग 45 किमी.पर था । उसे अपनी टीम के साथ वहां पहंचुने में एक घन्टे से अधिक समय लगने वाला है, यह जानकर उसने इस अभियान में स्थानीय पुलिस को शामिल करना ठीक समझा था। इसके पहले भी उसने कई बार मोबीन बक्श के साथ मिलकर कई अभियानों को सफलता पूर्वक पूरा किया था।
अनुमान के अनुसार मेजर विनय को वहां पहुंचने में एक घन्टे से अधिक समय लगा था। उसके साथ सेना के चार अन्य अधिकारी और तीस से अधिक सिपाही थे। मोबीन बक्श ने बहुत तेजी से अपना काम किया था। उसका काम था जंगल के रास्तों को बन्द करना जिससे वे आतंकवादी जंगल में भागकर छुप न सकें। एक बार यदि वे भागने में सफल हुए तो फिर जंगल में उन्हें ढूढ़ना केवल कठिन ही नहीं असम्भव सा हो जायेगा।
जिस मकान में आतंकवादी छिपे हुऐ थे वह मकान जम्मू के एक बड़े व्यापारी का था ।उसके परिवार में से कोई न कोई अक्सर वहां रहता था और कभी - कभी वहां कोई नहीं भी रहता था। इस समय मकान मालिक के परिवार से कोई वहां है या नहीं, यह उस्मान को जानकारी नहीं थी।
मेजर विनय ने देखा कि मकान के सामने बड़ा समतल मैदान है कोई भी ऐसी जगह नहीं है जिसके पीछे छिपकर उनपर हमला किया जा सके किन्तु मकान के दोनों ओर छोटी-छोटी चोटियां हैं और बड़े - बड़े पत्थर भी कही - कही पड़े हैं, जिनके पीछे आसानी से छुपा जा सकता है और पीछे तो जंगल है ही।
मेजर विनय ने अपनी आधी टीम को थोड़ी दूर पर रहकर दूर से सहायता करने और सामने की ओर नजर रखने को कहा और आधी टीम को दो भागों में बांटकर दोनों ओर से मकान को घेरने का आदेश दिया।
विनय ने सबसे पहले सुनिश्चित किया कि मोबीन बक्स की टीम को छुपने का पर्याप्त स्थान मिला है कि नहीं। मोबीन ने बताया कि मकान को पीछे से अच्छी तरह घेरा जा चुका है और उसके सभी सिपाही और इन्सपेक्टर उसके नेतृत्व में अपनी - अपनी जगह पर पर्याप्त रूप से सुरक्षित हैं।
मकान को तीन ओर से अच्छी तरह घेरा जा चुका था किन्तु अभी तक मकान में छिपे हुये आतंकवादियों को इसकी जरा भी भनक नहीं लग पायी थी कि वे घेरे जा चुके हैं। अभी दिन के बारह बज रहे थे। विनय कोई कार्यवाही प्रारम्भ करने से पहले उन पर चुपचाप नजर रख कर उनकी गतिविधियों का अनुमान लगाना चाहता था, जिससे कार्यवाही के दौरान कम से कम मुश्किलें आयें।
विनय के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उस मकान में केवल सामने की ओर और पीछे ही खिड़कियाँ थी बाकी दोनों ही ओर दीवारें थी। विनय ने ड्रोन कैमरे के माध्यम से मकान के तीसरे तल का जायजा लेने के विषय में सोचा और शीघ्रता से ऐसा करने का उसने अपनी तकनीकी टीम को आदेशित किया।
ड्रोन कैमरे ने पहली तस्वरी भेजी उस समय दो बज रहे थे। किन्तु यह स्पष्ट हो गया कि वे आतंकवादी मकान के तीसरे तल पर ही हैं और उनकी संख्या छः ही है जैसे की सूचना भी थी।
रात होने से पहले आपरेशन को समाप्त करना आवश्यक था, क्योंकि रात के अंधकार में वे छिपते-छिपाते इधर-उधर भाग सकते थे। कार्यवाही प्रारम्भ करने से पहले विनय ने आतंकवादियों से हथियार डालकर आत्म समर्पण करने का आग्रह किया। जैसे ही माइक पर उसकी आवाज गूंजी, आतंकवादियों ने सामने और पीछे की ओर गोलियां चलानी शुरू कर दी। विनय ने मोबीन को जवाबी कार्यवाही करने से रोक दिया था। विनय ने जितना सम्भव हो सका था मकान के दोनों ओर और सामने से जवाबी कार्यवाही की।
दो घन्टे दोनों ओर से रूक-रूक कर गोलियां चलती रहीं किन्तु कोई लाभ नहीं था। इस बीच विनय चार-पांच बार उनसे हथियार डालने का आग्रह कर चुका था।
मकान के पीछे से कोई जवाबी कार्यवाही नहीं हो रही थी। अतः एक आतंकवादी ने उधर से भागने की कोशिश की । उस समय ऊपर से उसे एक दूसरा आतंकवादी संरक्षण देते हुये लगातार गोलियां चला रहा था, जिससे एक को भागने में सफलता मिल जाये। एक को भागता देख कर मोबीन ने जवाबी कार्यवाही की, जिसमें वे दोनों एक जो भाग रहा था और दूसरा जो उसे संरक्षण दे रहा था मारे गये। अब मकान पर तीन ओर से गोलियां चल रही थीं ।
एक घन्टे का समय और बीत गया। धीरे - धीरे दिन ढ़लता जा रहा था। विनय अब अधिक इंतजार नहीं कर सकता था। उसके पास ड्रोन कैमरे से मिली तस्वीरों से मकान का पूरा नक्शा था । उसने अनुमान लगा लिया था कि मकान के दूसरी मंजिल तक पंहुचा जा सकता है और इस काम को उसने अकेले करने का फैसला लिया।
शाम के पांच बज गये थे ।अभी तक ग्वालियर में प्रतीक्षा में बैठी अनूपा को कोई पैकेट नहीं मिला था। उसने विनय को फोन करके कोरियर वाले का डिटेल लेने का फैसला किया। वह कोरियर वाले से सम्पर्क कर पैकेट का पता करना चाहती थी। अनूपा ने फोन लगाया परन्तु यह क्या एक, दो, दस-बारह, बीस बार फोन, उधर से कोई उत्तर नहीं। अनूपा की चिन्ता बढ़ने लगी थी।
एक बार फिर दोनों ओर से गोलियों का चलना रूक गया था। आधा घन्टा सन्नाटा छाया रहा, फिर अचानक सन्नाटे को चीरती हुई पांच गोलियों की आवाजें सुनाई दीं और फिर घोर सन्नाटा।
आपरेशन पर जाने से पहले विनय ने अपने मोबाइल को साइलेन्ट मोड पर कर लिया था।
सेना के साथ मोबीन मकान के तीसरे तल पर पंहुचा तो विनय की सांसे चल रही थीं और चारों आंतकवादी मारे जा चुके थे।
घटना के सम्बन्ध में सेना के मुख्यालय को सूचना दी गयी। एक विशेष एम्बुलेन्स हेलीकाप्टर से विनय को जम्मू में सेना के चिकित्सालय में ले जाने का प्रयास किया गया।
रात के आठ बज गये थे। अनूपा और उसके दोनों बच्चों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी आखिर‘‘पापा फोन क्यों नहीं उठा रहे हैं? ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था।“लड़की ने कहा ।
अनूपा की आंखो से अनायास आंसू बहने लगे। बाहर से घन्टी बजी। आंसू पोंछते अनूपा और दोनों बच्चे बाहर की ओर भागे। बाहर कोरियर वाला था। फूलों का गुलदस्ता, उपहार का पैकेट, केक और जन्मदिन मुबारक का एक कार्ड उसने अनूपा को दिया। कोरियर वाला लड़का बस वापस मुड़ा ही था कि सामने सेना की एक गाड़ी आकर रूकी। गाड़ी से दो अधिकारी उतरे, जिन्हें अनूपा पहचानती थी। दोनों के सर झुके थे, “क्या हुआ ?“ अनूपा ने पूछा।
“मैडम, सेना का एम्बूलेन्स हेलीकाप्टर अपने अधिकतम प्रयासों के बाद भी जम्मू के हमारे चिकित्सालय तक समय रहते नहीं पंहुचा सका।“
अनूपा के हाथ से फूलों का गुलदस्ता छुटकर दूर तक बिखर गया। वह बदहवास सी जमीन पर बैठ गई थी।
तिरंगे में लिपटे उस वतन के के फूल “मेजर विनय” के शव को टेलीवीजन पर देखकर पूरा देश एक ओर जहाँ अपनी नम आँखों से विनम्र श्रद्धांजली दे रहा था, वहीं उसके घर के सामने ग्वालियर का जन समूह श्रद्धा से नतमस्तक होकर खड़ा था। सामने खड़े जन समुदाय ने उसके घर के सामने की मिट्टी को उठा कर अपने माथे से लगाकर चूमा तो अपनी सिसकियों पर काबू पाते हुये अनूपा भी खड़ी हो गई । सामने खड़े अपार जन समूह की ओर कृतज्ञता से अपनी आँखें उठाईं और दाहिने हाथ से आकाश की ओर देखते हुए सेल्यूट किया। उसके बच्चों ने भी नम आँखों से अपने शहीद पिता को सेल्यूट किया ।