तिलिस्मी कमल - भाग 5 Vikrant Kumar द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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तिलिस्मी कमल - भाग 5

इस भाग को समझने के लिए इसके पहले से प्रकाशित सभी भाग अवश्य पढ़ें --------💐💐💐💐



राजकुमार तेजी से पूर्व दिशा की ओर चल पड़ा । राजकुमार सात दिन और सात राते बिना विश्राम किये अपना घोड़ा दौड़ाता रहा । अपने रास्ते मे आने वाले सभी जंगलों , पहाड़ों , नदियों , खाइयों और घाटियों को पार करता हुया आठवें दिन प्रातः एक हरे भरे सुंदर वन में जा पहुंचा ।

आगे रास्ता बंद था । राजकुमार के सामने इतना ऊंचा पर्वत था जिसे पार करना राजकुमार के लिए असम्भव था ।

इतनी लंबी यात्रा करने के बाद राजकुमार काफी थक गया था । राजकुमार धरमवीर  कुछ देर आराम करने के बाद आगे के विषय मे सोच रहा था ।

अतः उसने अपने घोड़े को चरने के लिए खुला छोड़ दिया और स्वयं एक पेड़ की छाया में आंखे बंद करके लेट गया ।

राजकुमार को लेटे हुए अभी कुछ क्षण ही हुए थे कि उसके कानों में घोड़े के हिनहिनाने की आवाज आई । राजकुमार को बड़ा आश्चर्य हुया । आवाज किसी नए घोड़े की हिनहिनाने की थी ।

राजकुमार उठ कर बैठ गया । उसने जो दृश्य देखा तो देखता ही रह गया । उसके सामने एक खूबसूरत काला घोड़ा खड़ा था और उसके घोड़े का दूर दूर तक नामोनिशान नही था ।

काले घोड़े को देखते ही राजकुमार की थकान दूर हो गई । वह बिजली जैसी फुर्ती से उठा और काले घोड़े पर सवार हो गया ।

राजकुमार के सवार होते ही मानो काले घोड़े के पंख लग गए हो । वह बड़ी तेजी से ऊंचे नीचे पहाड़ो को ऐसे पार कर रहा था  जैसे उड़ रहा हो ।

दोपहर होते होते काले घोड़े ने हजारों मील का सफर तय कर लिया । राजकुमार उसकी पीठ में चिपका हुया था । यदि वह जरा सा भी चूक जाता तो सैकड़ो फ़ीट गहरी खाइयों में गिरता ।

ठीक बारह बजे काला घोड़ा एक घाटी में जाकर रुक गया । चारो ओर ऊँचे ऊँचे पर्वतों से घिरी धरती बड़ी सुंदर लग रही थी । जिस स्थान पर घोड़ा रुका था । उससे कुछ ही दूरी पर एक खूबसूरत बगीचा था ।

राजकुमार घोड़े से उतरा और प्रकृति के अद्वितीय दृश्य को देखने में इतना तल्लीन हो गया कि उसे याद भी नही रहा की वह भैरवी रत्ना के क्षेत्र में आ चुका है ।

अचानक बिल्ली की आवाज सुनकर राजकुमार चौंक पड़ा ।उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा । काला घोड़ा अपने स्थान से गायब हो चुका था । राजकुमार ने चारो तरफ नजरें दौड़ाई लेकिन घोड़ा कही भी नही दिखा ।

इस सूनसान प्राकृतिक घाटी में राजकुमार बिल्कुल अकेला था । राजकुमार ने हिम्मत से काम लिया और अपने हाथ मे तलवार लेकर पूर्व दिशा की ओर चल पड़ा ।

अभी राजकुमार कुछ ही दूर ही चला था कि उसे फिर से बिल्ली की आवाज सुनाई दी । अचानक राजकुमार के दिमाग मे एक विचार आया कि यह बिल्ली कोई चमत्कारी जीव तो नही है ।

ऐसा सोचते ही राजकुमार तेजी से आवाज की ओर भागा । इस बार उसे थोड़ी दूरी पर बिल्ली दिखाई पड़ गयी । बिल्ली एक स्थान पर बैठी हुई थी किन्तु जैसे ही राजकुमार उसके निकट पहुंचा वह एक ओर चल पड़ी ।

राजकुमार धरमवीर ने बिल्ली को छेड़ना ठीक नही समझा , वह उसके पीछे पीछे चल पड़ा । बिल्ली कई  स्थानों का चक्कर लगाते हुए । एक गुफा के सामने पहुंची और गायब हो गयी ।

राजकुमार भी उसका पीछा करते हुए गुफा के द्वार तक जा पहुंचा । अभी वह गुफा के भीतर घुसने की सोच ही रहा था की उसके कानों में बड़ी मधुर आवाज आई - " आओ राजकुमार ,  भैरवी रत्ना तुम्हारा स्वागत करती है । "

राजकुमार चौंक पड़ा । जिस स्थान पर बिल्ली गायब हुई थी , वही बीस बाईस वर्षीया एक अद्वितीय सुंदरी खड़ी उसका स्वागत कर रही थी ।

" आपको  कैसे मालूम कि मैं राजकुमार धरमवीर हूँ ? " - राजकुमार ने प्रश्न किया ।

भैरवी रत्ना ने उत्तर दिया - " मैं भैरवी हूँ । भूत , भविष्य और वर्तमान सब जानती हूं । मैं यह भी जानती हूं कि तुम यँहा चमत्कारी मणि लेने आये हो । "

राजकुमार बड़े विनम्र स्वर में बोला - " देवी भैरवी , जब आपको सब मालूम है तो फिर मुझे चमत्कारी मणि देने की कृपा करें । "

" राजकुमार , चमत्कारी मणि मेरे पास होती तो मैं तुम्हे दे देती , मणि मेरे गुरु भूतनाथ के पास है । भूतनाथ उसे अपनी पगड़ी में पहने रहता है । उसका वध किये बिना तुम मणि नही पा सकते हो । " - भैरवी की आवाज धीरे धीरे गंभीर होती जा रही थी ।

राजकुमार - " लेकिन देवी भैरवी , तुम अपने गुरु की हत्या क्यो करना चाहती हो ? "

" मेरे गुरु ने मुझसे छल किया है किंतु राजकुमार इस सम्बंध में और प्रश्न मत करना - " भैरवी की आवाज कठोर हो गई थी ।

राजकुमार धर्मवीर - " ठीक है देवी ! किन्तु भूतनाथ की मृत्यु किस प्रकार होगी ? "

" भूतनाथ को मारना आसान कार्य नही है , इसलिए अधिक उतावले मत हो । " - भैरवी ने राजकुमार को समझाया  और फिर अपने पीछे आने का संकेत देकर एक ओर चल पड़ी।

कुछ ही देर बाद दोनों एक कमरे में पहुंचे ।यह भैरवी का पूजा  कक्ष था । जिसमे चारो ओर सैकड़ो नरमुंड बिखरे हुए पड़े थे जिनसे भयंकर दुर्गंध आ रही थी । इतने सारे नरमुंड देखकर एक बार राजकुमार का दिल दहल गया ।

भैरवी राजकुमार से बोली - " राजकुमार , भूतनाथ ने मंत्र सिद्ध करके अपने आप को अमर कर लिया है । उसके प्राण उसके शरीर से निकल कर अंतरिक्ष मे घूमते रहते है । किन्तु अमावस की रात्रि ठीक बारह बजे कुछ क्षण के लिए उसके प्राण उसके मस्तक में आ जाते है । किन्तु अमावस की रात भूतनाथ अपने कक्ष से बाहर नही निकलता है । आज अमावस है , उसका वध केवल आज रात ही किया जा सकता है । "

राजकुमार धरमवीर - " लेकिन जब वह अपने कक्ष से बाहर ही नही निकलता है तो मैं उसका वध कैसे करूँगा ? "

" राजकुमार , भूतनाथ मुझसे प्रेम करता है , उसे कक्ष से बाहर लाने का कार्य मैं करूंगी । लेकिन तुम्हे काफी दूरी पर धनुष बाण लेकर छुपकर बैठना होगा । और मेरे संकेत पाते ही भूतनाथ के मस्तक का निशाना लगाना होगा । यदि निशाना ठीक बैठा तो  तुम्हे चमत्कारी मणि मिल जाएगी और यदि निशाना चूक गया तो तुम्हारे साथ आज मेरी भी अंतिम सांस होगी ।" - भैरवी ने एक धनुष बाण देते हुए राजकुमार को समझाया ।

राजकुमार धनुर्विद्या में प्रवीण था , उसने धनुषबाण ले लिया। शाम हो रही थी । अँधेरा बड़ी तेजी से बढ़ रहा था । अतः भैरवी ने राजकुमार को एक गुप्त स्थान पर छिपाया और स्वयं पूजा करने बैठ गयी ।

रात्रि बारह बजे के कुछ क्षण पहले भूतनाथ दहाड़ता हुया गुफा में प्रवेश कर गया ।और सीधा भैरवी के कक्ष में पहुंचा ।  भैरवी ने पूजा छोड़ दी और भूतनाथ के निकट आ गयी ।

उसके होठों पर मुस्कुराहट थी । भूतनाथ को भैरवी के व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हो रहा था । तभी भैरवी ने उसका हाथ पकड़ा और पूजा कक्ष के बाहर आ गई ।

इस समय भूतनाथ ऐसे स्थान पर खड़ा था । जहां से राजकुमार उसके मस्तक को बड़ी सरलता से निशाना बना सकता था । तभी भैरवी ने संकेत दिया ।

राजकुमार ने भैरवी का संकेत पाते ही बाण धनुष पर चढ़ाया और डोरी को कानो तक खींच कर छोड़ दिया । राजकुमार का निशाना अचूक था ।भूतनाथ का मस्तक क्षत विक्षत हो गया । वह बिना तड़पे ही मर गया ।

भूतनाथ के मरते ही भैरवी खुशी से उछल पड़ी । उसने भूतनाथ के पगड़ी से चमत्कारी मणि निकाली और राजकुमार को दे दिया ।

चमत्कारी मणि लेकर राजकुमार गुफा के बाहर आ गया । भैरवी रत्ना राजकुमार के साथ थी । तभी अचानक काला घोड़ा प्रकट हुया और राजकुमार के सामने आकर खड़ा हो गया ।

भैरवी रत्ना राजकुमार से बोली - " राजकुमार , जिस जंगल मे तुम्हे पत्थर की मूर्ति बना शंकर मिला था उसी जंगल मे तुम्हे अपनी अगली मंजिल मिलेगी । जंहा पर मेरी जरूरत होगी मैं खुद आ जाऊंगी । "

राजकुमार घोड़े पर सवार हुया । और भैरवी रत्ना से विदा लेकर वापस चल पड़ा । अगले दिन प्रातः काल घोड़े ने उसे उसी स्थान पर पहुंचा दिया जंहा राजकुमार का घोड़ा चर रहा था ।

अब राजकुमार ने काले घोड़े से विदा ली और अपने घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर चल पड़ा । पुनः सात दिन और सात राते घोड़ा दौड़ाने के बाद वह उसी जंगल मे पहुंच गया है जहाँ  उसको अपनी अगली मंजिल मिलनी थी ।

      

                           क्रमशः .....................💐💐💐💐💐💐💐💐


अपना बहमुल्य समय निकाल कर इस कहानी को पढ़ने के लिए आप सब लोगों का तहे दिल से धन्यवाद । अगर कहानी में कही गलती आप लोगो को दिखे तो जरूर बताना ताकि हम अगले भाग में सुधार कर सके । और अगला भाग जैसे ही हम प्रकाशित करे और वह आप तक पहुंच जाये इसलिए मुझे जरूर फॉलो करें ।



विक्रांत कुमार
फतेहपुर उत्तरप्रदेश
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